अणिमा  (1943) 
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – - तक

 
 

अणिमा

 



 

श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"

 
प्रकाशक

चौधरी राजेन्द्रशंकर
युग-मन्दिर

उन्नाव

 

मूल्य सवा रूपया,


 

मुद्रक
पं॰ भृगुराज भार्गव
अवध-प्रिटिंग-वर्क्स
लखनऊ

 

भूमिका

'अणिमा' मेरे इधर के पद्यों का संग्रह है। अधिकांश गीत हैं। कुछ गीत आल-इण्डिया-रेडियो, दिल्ली और लखनऊ, से गाये गये हैं। प्रायः सभी गीतों की भाषा सरल है। भाषा में भी कई प्रकार हैं। गाने की अनुकूलता और स्वर के सौन्दर्य और श्रुति-मधुरता के विचार से, पुस्तिका के प्रारम्भ के गीत मुझे ज़्यादा पसंद हैं। मेरे कुछ साहित्यिक मित्रों ने बाद के गीतों की तारीफ़ की है। उनकी भाषा गद्य के अनुसार है। प्रान्तीय भाषाओं में, ख़ासकर उर्दू में, यह प्रकरण है और ज़ोरों से चल रहा है। मैंने पहले भी इस प्रकार के पद्य लिखे हैं। कुछ छोटी-बढ़ी रचनाएँ प्रसिद्ध जनों पर हैं जो काव्य की दृष्टि से, आलोचकों के कथनानुसार, अच्छी आई हैं। पढ़ने पर पाठकों को प्रसन्नता होगी। मुझे विश्वास है कि शीघ्र नये नये उद्भावनों से मैं हिन्दी के समुत्साही पाठकों की अधिक से अधिक सेवा कर सकूँगा। इति।

युग-मन्दिर, उन्नाव
१. ८. ४३.
―"निराला"
 

विषय-सूची

संख्या विषय पृष्ठांक
१– नूपुर के सुर मंद रहे
२– बादल छाये १०
३– जन जन के जीवन के सुंदर ११
४– उन चरणों में दो मुझे शरण १२
५– सुंदर हे सुंदर १३
६– दलित जन पर करो करुणा १४
७– भाव जो छलके पदों पर १५
८– धूलि में तुम मुझे भर दो १६
९– तुम्हें चाहता वह भी सुंदर १७
१०– मैं बैठा था पथ पर १९
११– मैं अकेला २०
१२– अज्ञता २१
१३– तुम और मैं २२
१४– संत कवि रविदासजी के प्रति २५
१५– श्रद्धाञ्जलि २६
१६– आदरणीय प्रसादजी के प्रति २७
१७– भगवान्‌ बुद्ध के प्रति ३३
१८– सहस्राब्दि ३५
 
संख्या विषय पृष्ठांक
१९– उद्‍बोधन ४३
२०– अखिल-भारतवर्षीय महिला-सम्मेलन की सभा नेत्री श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित के प्रति ५०
२१– माननीया श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित के प्रति ५१
२२– "माननीया श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित के प्रति" बँगला चतुर्दशपदी का अर्थ ५२
२३– युग-प्रवर्तिका श्रीमती महादेवी वर्मा के प्रति ५३
२४– तुम आये ५४
२५– स्नेह निर्झर बह गया है ५५
२६– द्रुम-दल-शोभी फुल्ल नयन ये ५६
२७– मत्त हैं जो प्राण ५७
२८– मरण को जिसने वरा है ५८
२९– गया अँधेरा ५९
३०– तुम ६०
३१– स्नेह-मन तुम्हारे नयन बसे ६१
३२– जननि मोहमयी तमिस्ना दूर मेरी हो गई है ६२
३३- यह है बाज़ार ६३
३४- तुम्हीं हो शक्ति समुदय की ६४
३५- गहन है यह अंध कारा ६५
३६ घेर लिया जीवों को जीवन के पाश ने ६६
 
संख्या विषय पृष्ठांक
३७– भारत ही जीवन-धन ६७
३८– स्वामी प्रेमानन्दजी महाराज ६८
३९– नाम था प्रभात ज्ञान का साथी ९८
४०– मेरे घर के पच्छिम ओर रहती है ९९
४१– सड़क के किनारे दूकान है १००
४२– निशा का यह स्पर्श शीतल १०१
४३– तुम चले ही गये प्रियतम १०२
४४– चूँकि यहाँ दाना है १०३
४५– जलाशय के किनारे कुहरी थी १०४
 

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