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६१. पत्र : सतीशचन्द्र मुकर्जीको

२० नवम्बर, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपका लम्बा पत्र पाकर मुझे खुशी हुई। लेकिन यह जानकर दु:ख हुआ कि आपको मलेरिया हो गया था और कृष्णदासको दुखद अनुभव हुए। मेहरबानी करके अपना ध्यान अवश्य रखें और कृष्णदासको अपने पास ही रखें। आशा है कि आप दोनों मुझे अपने तथा कृष्णदासके बारेमें खबर देते रहेंगे।

आपकी हितकर समालोचनाके लिए में आभारी हूँ। मैं जो लेखमाला लिख रहा हूँ उसमें इसके कुछ मुद्दोंपर चर्चा करूँगा। अधिक से अधिक लोगोंका अधिकसे अधिक कल्याण", यह सिद्धान्त अहिंसा के आधारपर सही नहीं ठहराया जा सकता। अहिंसा सभी लोगोंके अधिकसे-अधिक कल्याणका आग्रह रखती है। निस्सन्देह कुत्तोंको मार डालनेको मेरे सही ठहराने में कुछ तो उपयोगितावाद है और कुछ अपनी दुर्बलताके आगे झुकना और उसे स्वीकार करना। लेकिन मैंने कष्ट भोग रहे जानवरोंको मार डालना धर्मके उच्चतम आधारपर भी सही ठहराया है।

हृदयसे आपका,

सतीशचन्द्र मुकर्जी

द्वारा एस० सी० गुहा

दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७४३) की माइक्रोफिल्मसे।

६२. पत्र : जमनालाल बजाजको

कार्तिक वदी १ [२० नवम्बर, १९२६][]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। भगवान् करे कि तुम दीर्घायु हो और तुम्हारी पवित्रतामें उत्तरोत्तर वृद्धि हो। इस जगत् में ऐसा कोई नहीं जिसमें दूषण न हो। हम तो उसे दूर करनेका प्रयत्न ही कर सकते हैं और वह प्रयत्न तुम कर रहे हो। प्रयत्नशीलकी दुर्गति नहीं होती, ऐसा भगवानका आश्वासन है।

अब तो ४ तारीखको ही मिलेंगे। ताप्ती घाटी [ रेलवे ] से होकर आनेका विचार कर रहा हूँ। शास्त्री कल आ रहे हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८७८) की फोटो नकलसे।

  1. डाककी मुहरपर २३ नवम्बर, १९२६, वर्धा दिया हुआ है, जहाँ उस समय जमनालाल बजाज थे।