अणिमा/३६. घेर लिया जीवों को जीवन के पाश ने
< अणिमा
घेर लिया जीवों को जीवन के पाश ने
वाँधा सुन्दर को तब नर के विश्वास ने।
ज्योति अगर अम्बर से विच्युत कर दी गई,
तो न रही ज्योति, हुई वह अलक्ष्यता नई,
मुक्ति उसे कह सकते हैं ; प्रभेद हैं कई;
किन्तु सदा बाँधा है ईश्वर को दास ने।
लोगबाग चलते फिरते हैं, यह सही है।
उठे पैर को लगनी आड़ एक रही है;
सब कुछ टेढ़ा है जैसे सरिता बही है,
सीधा है जैसे खोला गुल को वास ने।
बाँकी भौंहें ही सुन्दर हैं, यह कहते हैं,
बाँकी चितवन से ही नयन फँसे रहते हैं,
बड़े लड़ाके बाँके ही मारें सहते हैं,
पार किया है तम से प्रभा के विनाश ने।
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