अणिमा/२८. मरण को जिसने वरा है

अणिमा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
मरण को जिसने वरा है

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ ५८

 

 

मरण को जिसने वरा है
उसी ने जीवन भरा है।
परा भी उसकी, उसीके
अङ्क सत्य यशोधरा है।

सुकृत के जल से विसिञ्चित
कल्प-किञ्चित विश्व-उपवन,
उसीकी निस्तन्द्र चितवन
चयन करने को हरा है।

गिरिपताक उपत्यका पर
हरित तृण से घिरी तन्वी
जो खड़ी है वह उसी की
पुष्पभरणा अप्सरा है।

जब हुआ वञ्चित जगत में
स्नेह से, आमर्ष के क्षण,
स्पर्श देती है किरण जो,
उसी की कोमलकरा है।

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