अणिमा/४५. जलाशय के किनारे कुहरी थी

अणिमा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
जलाशय के किनारे कुहरी थी

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ १०४ से – - तक

 
 

जलाशय के किनारे कुहरी थी,
हरे-नीले पत्तों का घेरा था,
पानी पर ग्राम की डाल आई हुई;
गहरे अंधेरे का डेरा था,
किनारे सुनसान थे, जुगनू
दल दमके—यहाँ-वहाँ चमके,
वन का परिमल लिये मलय वहा,
नारियल के पेड़ हिले क्रम से,
ताड़ खड़े ताक रहे थे सबको,
पपोहा पुकार रहा था छिपा,
स्यार विचरते थे आराम से,
उजाला हो गया और—तारा दिपा,
लहरें उठती थीं सरोवर में,
तारा चमकता था अन्तर में।

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