अणिमा/३१. स्नेह-मन तुम्हारे नयन बसे

[ ६१ ]
 

स्नेह-मन तुम्हारे नयन बसे,
जीवन-यौवन के पाश कसे।

पल्लवित प्रणय के, निरावरण,
खिल गये लता-द्रम नभस्तरण,
चुम्बित समीर-कुङ कुम क्षण-क्षण,
सिहरे, बिहरे; फिर हँसे, फँसे।

रंग गया प्रेम का अन्तराल,
खुल गया हेम का जगजाल,
तुल गई किरण, धुल गई झाल,
जीवन-सकाल से सकल गसे।

'४३