अणिमा/१. नूपुर के सुर मंद रहे

अणिमा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ ९

 
 

नूपुर के सुर मन्द रहे,
जब न चरण स्वच्छन्द रहे।
उतरी नभ से निर्मल राका,
पहले जब तुमने हँस ताका
बहुविध प्राणों को झंकृत कर
बजे छन्द जो बन्द रहे।
नयनों के ही साथ फिरे वे
मेरे घेरे नहीं घिरे वे,
तुमसे चल तुममें ही पहुँचे
जितने रस आनन्द रहे।