अणिमा/२४. तुम आये
< अणिमा
तुम आये,
अमा-निशा थी,
शशधर-से नभ में छाये।
फैली दिङ् मण्डल में चाँदनी,
बँधी ज्योति जितनी थी बाँधनी,
खुली प्रीति, प्राणों से प्राणों में भाये।
करती हैं स्तवन मन्द पवन से
गन्ध-कुसुम-कलिकाएँ भवन से,
किञ्चन के रस-सिञ्चन से तुम लहराये।
आने को भी है फिर प्रात सहज,—
सजने को नवजीवन से रज-रज,
तुमको व्यञ्जित या रञ्जित कर दे जाये।