स्वदेशरवीन्द्रनाथ टैगोर के चुने हुए निबन्धों का हिन्दी अनुवाद है। इसका प्रकाशन हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, (बम्बई) द्वारा १९१४ ई॰ में किया गया था।
हम पुराने भारतवर्ष के लोग हैं; बहुत ही प्राचीन और बहुत ही थके हुए हैं। मैं बहुधा अपने में ही अपनी इस जातीय भारी प्राचीनता का अनुभव किया करता हूँ। मन लगाकर जब अपने भीतर नजर डालता हूँ तब देखता हूँ कि वहाँ केवल चिन्ता, विश्राम और वैराग्य है। मानों हमारी भीतरी और बाहरी शक्तियों ने एक लम्बी छुट्टी ले रक्खी है। मानों जगत् के प्रातःकाल ही में हम लोग दफ्तर का कामकाज कर आये हैं, इसीसे इस दोपहर की कड़ी धूप में, जब कि और सब लोग कामकाज में लगे हुए हैं हम दर्वाजा बंद करके निश्चिन्त हो विश्राम या आराम कर रहे हैं; हमने अपनी पूरी तलब चुका ली है और पेंशन पा गये हैं। बस, अब उसी पेंशन पर गुजारा कर रहे हैं। मजे में हैं।...(पूरा पढ़ें)
स्वदेशरवीन्द्रनाथ टैगोर के चुने हुए निबन्धों का हिन्दी अनुवाद है। इसका प्रकाशन हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, (बम्बई) द्वारा १९१४ ई॰ में किया गया था।
हम पुराने भारतवर्ष के लोग हैं; बहुत ही प्राचीन और बहुत ही थके हुए हैं। मैं बहुधा अपने में ही अपनी इस जातीय भारी प्राचीनता का अनुभव किया करता हूँ। मन लगाकर जब अपने भीतर नजर डालता हूँ तब देखता हूँ कि वहाँ केवल चिन्ता, विश्राम और वैराग्य है। मानों हमारी भीतरी और बाहरी शक्तियों ने एक लम्बी छुट्टी ले रक्खी है। मानों जगत् के प्रातःकाल ही में हम लोग दफ्तर का कामकाज कर आये हैं, इसीसे इस दोपहर की कड़ी धूप में, जब कि और सब लोग कामकाज में लगे हुए हैं हम दर्वाजा बंद करके निश्चिन्त हो विश्राम या आराम कर रहे हैं; हमने अपनी पूरी तलब चुका ली है और पेंशन पा गये हैं। बस, अब उसी पेंशन पर गुजारा कर रहे हैं। मजे में हैं।...(पूरा पढ़ें)
हीराबाईकिशोरीलाल गोस्वामी द्वारा रचित उपन्यास है। "दिल्ली का ज़ालिम बादशाह अलाउद्दीन ख़िलजी जो अपने बूढे़ और नेक चचा जलालुद्दीन फ़ीरोज़ ख़िलजी को धोखा दे और उसे अपनी आंखों के सामने मरवाकर [सन् १२९५ ईस्वी] आप दिल्ली का बादशाह बन बैठा था, बहुत ही संगदिल, खुदग़रज़, ऐय्याश, नफ़्सपरस्त और ज़ालिम था। उसने तख़्त पर बैठते ही जलालुद्दीन के दो नौजवान लड़कों को क़तल करडाला और गुजरात" (हीराबाई पूरा पढ़ें)
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:
"भिन्न भिन्न देशों में रहनेवाली मनुष्य-जातियों के आकार, स्वभाव आदि की परस्पर तुलना करने से ज्ञात होता है कि उनमें आश्चर्य-जनक और अद्भुत समानता है। इससे विदित होता है कि सृष्टि के आदि में सब मनुष्यों के पूर्वज एकही थे। वे एकही स्थान पर रहते थे और एकही-से आचार-व्यवहार करते थे। इसी प्रकार, यदि भिन्न भिन्न भाषाओं के मुख्य मुख्य नियमों और शब्दों की परस्पर तुलना की जाय तो उनमें भी विचित्र सादृश्य दिखाई देता है। इससे यह प्रकट होता है कि हम सबके पूर्वज पहले एक-ही भाषा बोलते थे। जिस प्रकार आदिम स्थान से पृथक् होकर लोग जहाँ तहाँ चले गये और भिन्न भिन्न जातियों में विभक्त हो गये उसी प्रकार उस आदिम भाषा से भी कितनीही भिन्न भिन्न भाषाएँ उत्पन्न हो गईं।..."(पूरा पढ़ें)
एक ऐसे विश्व की कल्पना करें, जिसमें हर व्यक्ति ज्ञान को बिना किसी शुल्क के किसी से भी साझा कर सकता है। यह हमारा वादा है। इसमें हमें आपकी सहायता चाहिए। आप हमारे परियोजना में योगदान दे सकते हैं या दान भी कर सकते हैं। यह हमारे जालस्थल के रख रखाव आदि के कार्य आता है।