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"आधुनिक गल्प-लेखन-कला हिन्दी में अभी बाल्यावस्था में है; इसलिये इससे पाश्चात्य के प्रौढ़ गल्पों की तुलना करना अन्याय होगा। फिर भी इस थोड़े-से काल में हिन्दी-गल्प-कला ने जो उन्नति की है, उसपर वह गर्व करें, तो अनुचित नहीं। हिन्दी में अभी टालस्टाय, चेकाफ़, परे, डाडे, मोपासाँ का आविर्भाव नहीं हुआ है; पर बिरवा के चिकने पात देखकर कहा जा सकता है, कि यह होनहार है। इस संग्रह में हमने चेष्टा की है, कि हिन्दी के सर्वमान्य गल्पकारों की रचनाओं की बानगी दे दी जाय। हम कहाँ तक सफल हुए हैं, इसका निर्णय पाठक और समालोचक-गण ही कर सकते हैं।"...(पूरा पढ़ें)

कामायनी (1936) आधुनिककालीन हिंदी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। (पूरा पढ़ें)
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कर्मभूमि प्रेमचंद का दूसरा अंतिम उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९३२ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था। प्रेमाश्रम, कर्मभूमि और गोदान मिलकर किसान महागाथा त्रयी बनाते हैं।
"हमारे स्कूलों और कालेजों में जिस तत्परता से फ़ीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फ़ीस का दाख़िल होना अनिवार्य है। या तो फ़ीस दीजिए, या नाम कटाइए; या जब तक फ़ीस न दाखिल हो, रोज कुछ जुर्माना दीजिए। कहीं कहीं ऐसा भी नियम है, कि उस दिन फ़ीस दुगुनी कर दी जाती है, और किसी दूसरी तारीख को दुगुनी फ़ीस न दो, तो नाम कट जाता है। काशी के क्वींस कालेज में यही नियम था। ७वीं तारीख को फ़ीस न दो, तो २१वीं तारीख को दुगुनी फ़ीस देनी पड़ती थी, या नाम कट जाता था। ऐसे कठोर नियमों का उद्देश्य इसके सिवा और क्या हो सकता था, कि गरीबों के लड़के स्कूल छोड़कर भाग जायँ। वह हृदयहीन दफ्तरी शासन, जो अन्य विभागों में है, हमारे शिक्षालयों में भी है। वह किसी के साथ रिआयत नहीं करता। चाहे जहां से लाओ; कर्ज लो, गहने गिरो रखो, लोटा-थाली बेचो, चोरी करो, मगर फ़ीस जरूर दो, नहीं दूनी फ़ीस देनी पड़ेगी, या नाम कट जाएगा। जमीन और जायदाद के कर वसूल करने में भी कुछ रिआयत की जाती है। हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहाँ स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरियों में पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय यह राज है। देर में आइए तो जुर्माना, न आइए तो जुर्माना, सबक न याद हो तो जुर्माना, किताबें न खरीद सकिये तो जुर्माना, कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना, शिक्षालय क्या है जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जाते हैं। यदि ऐसे शिक्षालयों से पैसे पर जान देनेवाले, पैसे के लिए ग़रीबों का गला काटनेवाले, पैसे के लिए अपनी आत्मा को बेच देनेवाले छात्र निकलते हैं, तो आश्चर्य क्या है?"...(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह प्रमाणित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी रस गंगाधर.djvu [४२८ पृष्ठ]
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 – 2 फ़रवरी 1960) हिन्दी के ऐतिहासिक उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
- देवांगना
- आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
- मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानियों का संग्रह
- धर्म के नाम पर, धर्म संबंधी निबंधों का संग्रह
- धर्मपुत्र
- खग्रास
- बगुला के पंख
- लालारुख़
- कहानी खत्म हो गई
विकिस्रोत पर उपलब्ध सभी लेखकों के लिए देखें- समस्त रचनाकार अकारादि क्रम से।
आज का पाठ
"गल्प, आख्यायिका या छोटी कहानी लिखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आती है। धर्म-ग्रन्थों में जो दृष्टान्त भरे पड़े हैं, वे छोटी कहानियाँ ही हैं, पर कितनी उच्च-कोटि की। महाभारत, उपनिषद्, बुद्ध जातक, बाइबिल, सभी सद्ग्रथों में जन-शिक्षा का यही साधन उपयुक्त समझा गया है। ज्ञान और तत्व की बातें इतनी सरल रीति से और क्योंकर समझायी जातीं? किन्तु प्राचीन ऋषि इन दृष्टान्तों द्वारा केवल आध्यात्मिक और नैतिक तत्वों का निरूपण करते थे। उनका अभिप्राय केवल मनोरञ्जन न होता था।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- सभी विषय देखें
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,४९,५७१
- प्रमाणित पृष्ठ = ११,७६६, शोधित पृष्ठ = ५०,९६२
- समस्याकारक = ४६, अशोधित = ९६,०५०, रिक्त = २,५१३
- सामग्री पृष्ठ = ५,४०९, परापूर्ण पृष्ठ = ३६८५
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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