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भारतेंदु-नाटकावली

प्रथम भाग

संपादक
ब्रजरत्नदास, बी॰ ए॰, एल-एल॰ बी॰

 

 

प्रकाशक
रामनारायण लाल
पब्लिशर और बुकसेलर
इलाहाबाद

प्रथम संस्करण]
[मूल्य
सं॰ १९९२
[ प्रकाशक ]
 

Printed by Ramzan Ali Shah
at the National Press,
Allahabad

[ अनुवचन ]
 

अनुवचन

भारतेंदुजी की रचनाओं में से उनके नाटक विशेष लोकप्रिय हुए हैं और उनके दो संस्करण भी प्राप्त हैं। बा॰ राधाकृष्ण दास जी ने इनके लिखे नाटकों की संख्या बीस बतलाई है और भारतेंदुजी ने स्वयं स्वरचित 'नाटक' की सन् १८८३ ई॰ की आवृत्ति में सोलह नाटकों का नाम स्वकृत लिखा है। इसके बाद के संस्करण में दुर्लभबंधु, प्रेमयोगिनी, जैसा काम वैसा परिणाम बढ़ाए गए हैं। प्रथम मौलिक नाटक 'प्रवास' नाम से लिखा जा रहा था पर उसका कुछ ही अंश लिखा गया और वह भी अप्राप्य है। इसके अनंतर––'शकुंतला के सिवा और सब नाटकों में रत्नावली नाटिका बहुत अच्छी और पढ़ने वालों को आनंद देने वाली है, इस हेतु मैंने पहिले इसी नाटिका का तर्जुमा किया है। यह नाटिका सुप्रसिद्ध कवि श्रीहर्ष कृत है।' पर इस नाटिका के अनुवाद की केवल प्रस्तावना तथा विषकंभक ही प्राप्त हैं। भूमिका से इस अनुवाद के पूर्ण होने की ध्वनि निकलती है पर यह अब इतना ही प्राप्त है। माधुरी इनके मित्र राव कृष्णदेवशरण सिंह की कृति है। नवमल्लिका, जैसा काम वैसा परिणाम तथा मृच्छकटिक अप्राप्त हैं, इससे उनके विषय में कुछ नहीं कहा जा [ अनुवचन ]सकता। अतः इस संग्रह में भारतेंदुजी की सत्रह कृतियाँ संगृहीत हुई है जिनमें ६ अनूदित, ८ मौलिक तथा ३ अपूर्ण हैं।

इस संग्रह के दो भाग किए गए हैं, प्रथम में ऐसे नाटक संगृहीत हैं, जिनमें शृङ्गारिकता की मात्रा प्रायः नहीं सी है और ये नाटक विद्यार्थियो के पठन-पाठन के उपयुक्त हैं। श्री चंद्रावली नाटिका का शृङ्गार विप्रलंभ है अतः उसके कक्षाओं में सहपठन-पाठन में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। दूसरे यह कि समग्र नाटक एक ही जिल्द में प्रकाशित कर देने से वह बेडौल पोथा हो जाता। दूसरे भाग में बचे हुए नाटक, नाटक नामक निबंध, शब्दकोष, प्रतीकानुक्रम आदि सम्मिलित कर दिए जाएँगे। संस्कृत, फारसी, अँग्रेजी आदि भाषाओ के उद्धरणों के अर्थ भी दिए गए हैं और कथादि भी संक्षेप में दिए जाएँगे। भूमिका का विशेष प्रथम भाग ही में दिया गया है और दोनों भागो में संगृहीत नाटको की आलोचना दोनों भाग के आरंभ में अलग अलग दे दी गई है। इस प्रकार यथाशक्ति इस संस्करण को उपादेय बनाने का प्रयत्न किया गया है और आशा है कि पाठकगण इससे लाभ उठाकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।

काशी,
ब्रजरत्नदास
चैत्र शुक्ल ९
सं॰ १९९२
[ समर्पण ]
 

समर्पण

 

पूज्य मातामहगोलोकवासी

 

भारतेंदुजी

 

के

 

अनुज

 

पूज्य मातामह स्वर्गीय

 

बाबू

 

गोकुलचंद जी को

 

(स्मृत्यर्थ)

 

सादर समर्पित

स्नेहपात्र

रेवतीरमणदास

(ब्रजरत्नदास)

[ विषय-सूची ]
 
विषय-सूची ––:०:––
विषय पृष्ठ
भूमिका
१––संस्कृत-नाट्य शास्त्र तथा नाटकों का संक्षिप्त इतिहास १––८
२––हिंदी-नाटक ८––१३
३––नाटककार-परिचय १४––३५
४––धनंजय-विजय ३६––३७
५––सत्यहरिश्चंद्र ३८––५५
६––प्रेमजोगिनी ५६––६१
७––श्रीचंद्रावली ६१––७४
८––मुद्राराक्षस ७५––९५
९––भारत दुर्दशा ९५––१०३
१०––नीलदेवी १०४––१०९
११––अंधेर नगरी ११३––११६
१२––सतीप्रताप ११३––११६
नाटक
१––धनंजयविजय १––२७
२––सत्यहरिश्चंद्र २९––१२७
[ विषय-सूची ]
३––प्रेमजोगिनी १२९––१७७
४––श्रीचंद्रावली १७९––२६२
५––मुद्राराक्षस २६३––४५४
६––भारत दुर्दशा ४५५––४९८
७––नीलदेवी ४९९––५४२
८––अंधेर नगरी ५४३––५७०
९––सतीप्रताप ५७१––६१३
१०––पात्र-सूची १––७
११––संस्कृतादि अंशों के अर्थ ८––१२
१२––प्रेमयोगिनी के मराठी अंश का हिंदी रूपांतर १३––१७
 

[ चित्र ]
 

भारतेंदु हरिश्चन्द्रबा॰ गोकुलचन्द्र

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