गल्प समुच्चय
हिन्दी के
विशिष्ट गल्पकारों की सर्वोत्तम गल्पों का संग्रह
संग्रहकर्त्ता और सम्पादक
भारत-विख्यात उपन्यास-सम्राट
श्रीप्रेमचन्दजी
प्रकाशक
मुद्रक
श्रीप्रवासीलाल वर्मा
सरस्वती-प्रेस
काशी
भूमिका
आधुनिक गल्प-लेखन-कला हिन्दी में अभी बाल्यावस्था में है; इसलिये इससे पाश्चात्य के प्रौढ़ गल्पों की तुलना करना अन्याय होगा। फिर भी इस थोड़े-से काल में हिन्दी-गल्प-कला ने जो उन्नति की है, उसपर वह गर्व करें, तो अनुचित नहीं। हिन्दी में अभी टालस्टाय, चेकाफ़, परे, डाडे, मोपासाँ का आविर्भाव नहीं हुआ है; पर बिरवा के चिकने पात देखकर कहा जा सकता है, कि यह होनहार है। इस संग्रह में हमने चेष्टा की है, कि हिन्दी के सर्वमान्य गल्पकारों की रचनाओं की बानगी दे दी जाय। हम कहाँ तक सफल हुए हैं, इसका निर्णय पाठक और समालोचक-गण ही कर सकते हैं। हमें खेद है, कि इच्छा रहते हुए भी हम अन्य लेखकों की रचनाओं के लिये स्थान न निकाल सके; पर इतना हम कह सकते हैं कि हमने जो सामग्री उपस्थित की है वह हिन्दी-गल्प
कला की वर्त्तमान परिस्थिति का परिचय देने के लिये काफ़ी है। इसके साथ ही हमने मनोरंजकता और शिक्षा का भी ध्यान रखा है, हमें विश्वास है, कि पाठक इस दृष्टि से भी इस संग्रह में कोई अभाव न पावेंगे।
गल्प-लेखन-कला की विषद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब उसी एक भाव का पुष्टि-करण करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का सम्पूर्ण तथा वृहद् रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता, न उपन्यास[१] की भाँति उसमें सभी रसों का सम्मिश्रण होता है। वह रमणीक उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भांति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, वरन् एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।
हम उन लेखक महोदयों के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने उदारता-पूर्वक हमें अपनी रचनाओं के उद्धृत करने की अनुमति प्रदान की। हम सम्पादक महानुभावों के भी ऋणी हैं जिनकी बहुमूल्य पत्रिकाओं में से हमने कई गल्पें ली हैं।
-प्रेमचन्द
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- ↑ यहाँ टंकण की भूल है। उपन्यास की जगह महाकाव्य का प्रयोग होना चाहिए था।