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अक्टूबर की निर्वाचित पुस्तक
अयोध्या का इतिहास लाला सीताराम द्वारा रचित नगर इतिहास की पुस्तक है जिसका प्रकाशन १९३२ ई॰ में इलाहाबाद के हिंदुस्तानी अकादमी द्वारा किया गया था।
"इस देश का प्राचीन नाम उत्तरकोशला है, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। यों तो चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव प्रयाग के दक्षिण प्रतिष्ठानपुर में हुआ; परन्तु जैसे मनु पृथ्वी के प्रथम राजा (महीभतामायः) कहे जाते हैं वैसे ही उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या भी सबसे पहिली पुरी है। इसी उत्तरकोशला में विष्णु भगवान के मुख्य अवतार राम, कृष्ण और बुद्ध अयोध्या, मथुरा और कपिलवस्तु में हुए। तीर्थराज प्रयाग, मुक्तिदायिनी विश्वनाथपुरी काशी इसी कोशला में हैं। वेदों में जिन पांचालों का नाम बार बार आया है वे इसी कोशला के रहनेवाले थे। इसी कोशला में अयोध्या के राजा भगीरथ कठिन परिश्रम से गंगा को ले आये। यहीं से निकलकर क्षत्रियों ने तिब्बत, श्याम और जापान में साम्राज्य स्थापित किये। जैन लोग २४ तीर्थंकर मानते हैं। उनमें से २२ इक्ष्वाकुवंशी थे। यों तो ५ ही तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या में बताई जाती है, परन्तु जैनियों की धारणा यह है कि सारे तीर्थकरों को अयोध्या ही में जन्म लेना चाहिये।..."(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
"पश्चाताप के कड़वे फल कभी-न-कभी सभी को चखने पड़ते है, लेकिन और लोग बुराइयों पर पछताते हैं, दारोगा कृष्णचन्द्र अपनी भलाइयों पर पछता रहे थे। उन्हें थानेदारी करते हुए पचीस वर्ष हो गए; लेकिन उन्होंने अपनी नीयत को कभी बिगड़ने न दिया था। यौवनकाल में भी, जब चित्त भोग-विलास के लिए व्याकुल रहता है उन्होंने निस्पृहभाव से अपना कर्तव्य-पालन किया था। लेकिन इतने दिनों के बाद आज वह अपनी सरलता और विवेक पर हाथ मल रहे थे। उनकी पत्नी गंगाजली सती-साध्वी स्त्री थी। उसने सदैव अपने पति को कुमार्ग से बचाया था। पर इस समय वह भी चिन्ता में डूबी हुई थी। उसे स्वयं सन्देह हो रहा था कि वह जीवन भर की सच्चरित्रता बिलकुल व्यर्थ तो नही हो गई?..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
आकाश-दीप लीडर प्रेस, इलाहाबाद द्वारा १९२९ ई. में प्रकाशित जयशंकर प्रसाद का कहानी संग्रह है। इसमें १९ कहानियाँ हैं- आकाश-दीप, ममता, स्वर्ग के खँड़हर में, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्र-संतरण, वैरागी, बनजारा, चूड़ीवाली, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला तथा बिसाती।
""बन्दी! "
"क्या है? सोने दो।"
"मुक्त होना चाहते हो?"
"अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।"
"फिर अवसर न मिलेगा।"
"बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डाल कर कोई शीत से मुक्त करता।"
"आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बंधन शिथिल हैं।”
“तो क्या तुम भी बन्दी हो?"
“हाँ, धीरे बोलो, इस नाव पर केवल दस नाविक और प्रहरी हैं।”
“शस्त्र मिलेगा?”
"मिल जायगा। पोत से सम्बद्ध रज्जु काट सकोगे?”
"हाँ। "
समुद्र में हिलोरें उठने लगीं। दोनों बंदी आपस में टकराने लगे। पहले बंदी ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। दूसरे का बंधन खोलने का प्रयत्न करने लगा। लहरों के धक्के एक दूसरे को स्पर्श से पुलकित कर रहे थे। मुक्ति की आशा--स्नेह का असम्भावित आलिंगन। दोनों ही अन्धकार में मुक्त हो गये। दूसरे बंदी ने हर्षातिरेक से, उसको गले से लगा लिया। सहसा उस बंदी ने कहा--“यह क्या? तुम स्त्री हो?"
"क्या स्त्री होना कोई पाप है?"--अपने को अलग करते हुए स्त्री ने कहा।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/सितंबर २०२४
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
मोहनदास करमचन्द गाँधी (2 अक्टूबर 1869 — 30 जनवरी 1948) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, दार्शनिक, लेखक एवं पत्रकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- हिन्द स्वराज (1907), गाँधी-दर्शन की पहली सैद्धांतिक पुस्तक
- सत्य के प्रयोग (1948), आत्मकथा
- रामनाम (1949), गाँधी के विचारों का संग्रह
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर 1884 - 2 फरवरी 1941) हिंदी भाषा के आलोचक, निबंधकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- रस-मीमांसा (1949)
- चिन्तामणि
- कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ
- काव्य में रहस्यवाद
- हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929)
प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 — 8 अक्टूबर 1936) हिंदी और उर्दू के अत्यंत लोकप्रिय कथाकार एवं विचारक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- सेवासदन (1918), हिंदी में प्रकाशित पहला उपन्यास।
- प्रेमाश्रम (1922), किसान आंदोलन की महागाथा
- रंगभूमि (1931), मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित
- गबन (1931), साधारण स्त्री जालपा के अद्वितीय बनने की गाथा
- कर्मभूमि (1932), किसानों की लगान समस्या पर केंद्रित उपन्यास
- गोदान (1936), औपनिवेशिक चक्की में पिसते किसान जीवन की महागाथा
- पाँच फूल (1929), पाँच कहानियों का संग्रह
- नव-निधि (1948), नौ कहानियों का संग्रह
- प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ (1950), कहानी संग्रह
- मानसरोवर १ तथा मानसरोवर २- कहानी संग्रह
- कुछ विचार — निबंध और व्याख्यान संग्रह।
आज का पाठ
"पहले कहा गया है कि श्रीवल्लभाचार्यजी की आज्ञा से नंददास ने श्रीमद्भागवत की कथा को पदों में गाया। इनके सूरसागर में वास्तव में भागवत के दशम स्कंध की कथा ही ली गई है। उसी को इन्होंने विस्तार से गाया है। शेष स्कंधों की कथा संक्षेपतः इतिवृत्त के रूप में थोड़े से पदों में कह दी गई है। सूरसागर में कृष्णजन्म से लेकर श्रीकृष्ण के मथुरा जाने तक की कथा अत्यंत विस्तार से फुटकल पदों में गाई गई है। भिन्न भिन्न लीलाओं के प्रसंग लेकर इस सच्चे रसमग्न कवि ने अत्यंत मधुर और मनोहर पदों की झड़ी सी बाँध दी है। इन पदों के संबंध में सबसे पहली बात ध्यान देने की यह है कि चलती हुई ब्रजभाषा में सबसे पहली साहित्यिक रचना होने पर भी ये इतने सुडौल और परिमार्जित है। यह रचना इतनी प्रगल्भ और काव्यांगपूर्ण है कि आगे होने वाले कवियों की शृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी सी जान पड़ती है! अतः सूरसागर किसी चली आती हुई गीतकाव्य-परंपरा का––चाहे वह मौखिक ही रही हो––पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०२
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६४,३८१
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,५८२, शोधित पृष्ठ = ७२,०६९
- समस्याकारक = १०, अशोधित = ८९,५५६, रिक्त = २,७४६
- सामग्री पृष्ठ = ५,८४१, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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