विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/४६
शिवशम्भु के चिट्ठे बालमुकुंद गुप्त द्वारा रचित व्यंग्य-शृंखला है जिसका प्रकाशन भारतमित्र के सन् १९०३ ई॰ के विभिन्न अंकों में हुआ था।
"माइ लार्ड! लड़कपन में इस बूढ़े भङ्गडको बुलबुला का बड़ा चाव था। गांवमें कितने ही शौकीन बुलबुलबाज थे। वह बुलबुलें पकड़ते थे, पालते थे और लड़ाते थे। बालक शिवशम्भु शर्म्मा बुलबुलें लड़ानेका चाव नहीं रखता था। केवल एक बुलबुलको हाथपर बिठा कर ही प्रसन्न होना चाहता था। पर ब्राह्मणकुमारकों बुलबुल कैसे मिले? पिता को यह भय कि बालकको बुलबुल दी तो वह मार देगा, हत्या होगी। अथवा उसके हाथसे बिल्ली छीन लेगी तो पाप होगा। बहुत अनुरोधसे यदि पिता ने किसी मित्रकी बुलबुल किसी दिन ला भी दी, तो वह एक घण्टे से अधिक नहीं रह पाती थी। वह भी पिताकी निगरानी में!..."(पूरा पढ़ें)