शिवशम्भु के चिट्ठे  (1985) 
द्वारा बालमुकुंद गुप्त
[ आवरण-पृष्ठ ]
[ प्रकाशक-पृष्ठ ]










ऋषभचरण जैन एवम् सन्तति
[ मुख्यपृष्ठ ]
बाबू बालमुकुन्द गुप्त


कृत

शिवशम्भु के चिट्ठे




सम्पादक

डॉ॰ विजयेन्द्र स्नातक


[ प्रकाशक-पृष्ठ ]
@ दिग्दर्शन चरण जैन
नयी दिल्ली









प्रथम संस्करण

मूल्य

प्रकाशक




मुद्रक


१९८५

रु. १५.००

दिग्दर्शन चरण जैन
ऋषभचरण जैन एवम् सन्तति
४६६२/२१ दरियागंज, नई दिल्ली
११ गार्डन रीच, कुलड़ी मसूरी

रुचिका प्रिण्टर्स
नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२


Shivashambhoo ke Chitthe by Babu Balmukund Gupt.

Ed. by Dr. Vijyendra Snatak Price Rs. 15.00 [  ]
भूमिका
गूंगी प्रजा का वकील : शिवशंभु शर्मा


हिन्दी में व्यंग्य-विनोद की सजीव शैली के पुरस्कर्ताओं में बाबू बालमुकुंद गुप्त के 'शिवशंभु के चिट्ठे' अपना अप्रतिम स्थान रखते हैं। शिवशम्भु के कल्पित नाम से, गुप्तजी ने लार्ड कर्जन के शासनकाल में, भारतीय जनता की दुर्दशा को प्रकट करने के लिए आठ चिट्ठे लिखे थे। ये चिट्ठे उस समय की राजनीतिक गुलामी और लार्ड कर्जन की निर्मम क्रूरताओं को जितने सटीक रूप में प्रस्तुत करते हैं, उतनी पूर्णता के साथ उस समय का कोई दूसरा अभिलेख नहीं करता। इतिहास के पृष्ठों में जो जानबूझकर अंकित नहीं किया गया उसे यदि पढ़ना अभीष्ट हो तो इन चिट्ठों को पलटना चाहिए। ये चिट्ठे १९०३ ई॰ से १९०५ ई॰ के मध्य 'भारतमित्र' में प्रकाशित हुए थे। उस समय गुप्तजी ही 'भारतमित्र' के सम्पादक थे।

शिवशंभू परतंत्र देश का नागरिक है। मन बहलाव के लिए वह भांग का सेवन करता है। भांग का नशा उसकी चेतना को विलीन नहीं करता, हल्का-सा सरूर होता है जो मादक ने होकर मन को तरंगायित करने में समर्थ है। मन की इसी प्रमुदित तरंग में शिवशंभु अपने चारों ओर फैले हुए समाज के दुःख-दर्द की कहानी कहना शुरू करता है। गुलामी की निविड़ शृंखलाओं में जकड़ा हुआ भारतीत शिवशशंभु अपने अस्तित्व को यदि अनुभव कर पाता है तो केवल परतंत्र भारत की पामाली के लिए जो षड्यंत्र अपने शासन काल में रचे, उनका संकेत इन चिट्ठों में लेखक

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