दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग

दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग  (1914) 
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अनुवादक गदाधर सिंह

वाराणसी: माधोप्रसाद, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – २ तक

 

दुर्गेशनन्दिनी

प्रथम भाग।

बंग भाषा के प्रसिद्ध उपन्यास लेखक

बाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय कृत

बङ्गला ‘दुर्गेशनन्दिनी’ भाषानुवाद।

बाबू गदाधरसिंह कृत।

बाबू माधोप्रसाद ने

काशी ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ से अधिकार
लेकर छपवाया और प्रकाश
किया।

काशी।

जार्ज प्रिंटिंग वर्क्स, में मुद्रित।

१९१४ ई.

सूचना।


प्रिय पाठक गण!

यह मेरा दूसरा अनुवादित ग्रंथ है परन्तु इसके संशोधन में यथोचित अवकाश न मिलने के कारण इसमें विशेष रोचकता नहीं आई तथापि आप लोगों को इसके अवलोकन से यदि चित्त प्रसन्न न होगा तो समय हानि की ग्लानि भी न होगी।

इसके अनुवाद का अनुष्ठान श्रीयुत बाबू रामकाली चौधरी रायबहादुर, पश्चिमोत्तर देश के सबार्डिनेट जज के योग्य पुत्र बाबू रामचन्द्र चौधरी की आकांक्षा से किया गया। यह ग्रन्थ दो खण्डों में है, जब कि प्रथम खण्ड “कविबचनसुधा” में छप रहा था मेरे मित्र पण्डित रामनारायण प्रभाकर ने इसकी मनोहरता देखकर मुझको ग्रन्थ कर्ता से सहायता मांगने की सम्मति दी और मैंने एक पत्र श्रीबाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के चरण कमल में प्रेरण किया परन्तु उसका फल यह हुआ कि उलटे लेने के देने पड़े। “नमाज़ को गये थे रोज़ा गले पड़ा”। बाबू साहेब प्रथम तो बड़ेही अप्रसन्न हुए कि बिना आज्ञा के उनके रचित ग्रन्थ का उलथा क्यों किया गया किन्तु कई बेर की लिखापढ़ी में इस प्रतिज्ञा से आज्ञा दिया कि ग्रन्थ की बिक्री में जो लाभ हो उसमें से कोई अंश बाबू साहब को भी दिया जाय। जो कि मैंने इस ग्रन्थ को केवल देश हित के अभिप्राय से प्रस्तुत किया है, मैंने इसका मुद्रण और विक्रय कुल बाबूसाहब को समर्पण किया किन्तु उनको स्वीकृत न हुआ अतएव इतने दिनो उनकी मार्ग प्रतीक्षा कर अब इस प्रथम खण्ड को आप लोगों के चित्त विनोदार्थ अर्पण करता हूं कृपा कर ग्रहण कीजिये। दूसरा खण्ड भी छप रहा है शीघ्र उपस्थित हो जायगा।

कम्प कटहन
आज़मगढ़
११ एप्रेल सन् १८८२ ई.
आप का अकिञ्चन दास
गदाधर सिंह वर्म्मा।

सूचीपत्र

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