ज्ञानयोग  (1950) 
द्वारा स्वामी विवेकानंद
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ज्ञानयोग

 

स्वामी विवेकानन्द

 
 

श्रीरामकृष्ण आश्रम,
नागपुर, मध्यप्रदेश

 
जून १९५०]
[मूल्य ३ रु.
 
[ प्रकाशक ]
प्रकाशक-
स्वामी भास्करेश्वरानन्द,
अध्यक्ष, श्रीरामकृष्ण आश्रम, नागपुर-१, म. प्र.
 

श्रीरामकृष्ण-शिवानन्द-स्मृतिग्रन्थमाला
पुष्प-४९ वाँ
(श्रीरामकृष्ण आश्रम, नागपुर द्वारा सर्वाधिकार स्वरक्षित)

 

मुद्रक-

ल. म. पटले

रामेश्वर प्रिंटिंग प्रेस, सिताबर्डी, नागपुर

[ वक्तव्य ]

वक्तव्य

श्री स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेदान्त पर दिए गये भाषणो का संग्रह "ज्ञानयोग" है। इन व्याख्यानों में श्री स्वामीजी ने वेदान्त के गूढ़ तत्वों की ऐसे सरल, स्पष्ट तथा सुन्दर रूप से विवेचना की है कि आजकल के शिक्षित जनसमुदाय को ये खूब जँच जाते है। उन्होने यह दर्शाया है कि वैयक्तिक तथा सामुदायिक जीवन-गठन में वेदान्त किस प्रकार सहायक होता है। मनुष्य के विचारों का उच्च- तम स्तर वेदान्त है और इसी की ओर संसार की समस्त विचार- धाराएँ शनैः शनैः प्रवाहित हो रही है। अन्त में वे सब वेदान्त में ही लीन होंगी। स्वामीजी ने यह भी दर्शाया है कि मनुष्य के दैवी स्वरूप पर वेदान्त कितना ज़ोर देता है और किस प्रकार इसी में समस्त विश्व की आशा, कल्याण तथा शान्ति निहित है। हमे पूर्ण विश्वास है कि वेदान्त तथा भारतीय संस्कृति के प्रेमियो को इस पुस्लक से विशेष लाभ होगा।

इस पुस्तक के अधिकांश भाग का अनुवाद बनारस के श्री ब्रह्मेन्द्र शर्मा, एम॰ ए॰, शास्त्री, ने किया है और कुछ अंश का श्री अमल सरकार, एम॰ ए॰, कोविद, कलकत्ता ने किया है। इन दोनो मित्रो की इस सहायता के लिए हम उनके बड़े कृतज्ञ है।

डा॰ पं॰ विद्याभास्करजी शुक्ल, एम॰ एस-सी॰, पी-एच॰ डी॰, कॉलेज ऑफ साइन्स, नागपुर के भी हम बड़े आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तक के प्रुफ-सशोधन कार्य में हमे बड़ी सहायता दी है।

नागपुर,
प्रकाशक
 
ता. १५-६-१९५०
[ अनुक्रमणिका ]
अनुक्रमणिका
विषय पृष्ठ
१. संन्यासी का गीत .... .... ....
२. माया .... .... ....
३. मनुष्य का यथार्थ स्वरूप .... .... .... ३७
४. {{{1}}}——{{{1}}} .... .... .... ६७
५. माया और ईश्वरधारणा का क्रमविकास .... .... १०२
६. माया और मुक्ति .... .... .... १२२
७. ब्रह्म और जगत् .... .... .... १४१
८. जगत् (बहिर्जगत्) .... .... .... १६६
९. जगत् (अन्तर्जगत्) .... .... .... १८२
१०. बहुत्व में एकत्व .... .... .... २०५
११. सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन .... .... .... २२९
१२. अपरोक्षानुभूति .... .... .... २४९
१३. आत्मा का मुक्त स्वभाव .... .... .... २८३
१४. अमरत्व .... .... .... ३०७

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