ज्ञानयोग
ज्ञानयोग
स्वामी विवेकानन्द
श्रीरामकृष्ण आश्रम,
नागपुर, मध्यप्रदेश
- प्रकाशक-
- स्वामी भास्करेश्वरानन्द,
- अध्यक्ष, श्रीरामकृष्ण आश्रम, नागपुर-१, म. प्र.
श्रीरामकृष्ण-शिवानन्द-स्मृतिग्रन्थमाला
पुष्प-४९ वाँ
(श्रीरामकृष्ण आश्रम, नागपुर द्वारा सर्वाधिकार स्वरक्षित)
मुद्रक-
ल. म. पटले
रामेश्वर प्रिंटिंग प्रेस, सिताबर्डी, नागपुर
वक्तव्य
श्री स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेदान्त पर दिए गये भाषणो का संग्रह "ज्ञानयोग" है। इन व्याख्यानों में श्री स्वामीजी ने वेदान्त के गूढ़ तत्वों की ऐसे सरल, स्पष्ट तथा सुन्दर रूप से विवेचना की है कि आजकल के शिक्षित जनसमुदाय को ये खूब जँच जाते है। उन्होने यह दर्शाया है कि वैयक्तिक तथा सामुदायिक जीवन-गठन में वेदान्त किस प्रकार सहायक होता है। मनुष्य के विचारों का उच्च- तम स्तर वेदान्त है और इसी की ओर संसार की समस्त विचार- धाराएँ शनैः शनैः प्रवाहित हो रही है। अन्त में वे सब वेदान्त में ही लीन होंगी। स्वामीजी ने यह भी दर्शाया है कि मनुष्य के दैवी स्वरूप पर वेदान्त कितना ज़ोर देता है और किस प्रकार इसी में समस्त विश्व की आशा, कल्याण तथा शान्ति निहित है। हमे पूर्ण विश्वास है कि वेदान्त तथा भारतीय संस्कृति के प्रेमियो को इस पुस्लक से विशेष लाभ होगा।
इस पुस्तक के अधिकांश भाग का अनुवाद बनारस के श्री ब्रह्मेन्द्र शर्मा, एम॰ ए॰, शास्त्री, ने किया है और कुछ अंश का श्री अमल सरकार, एम॰ ए॰, कोविद, कलकत्ता ने किया है। इन दोनो मित्रो की इस सहायता के लिए हम उनके बड़े कृतज्ञ है।
डा॰ पं॰ विद्याभास्करजी शुक्ल, एम॰ एस-सी॰, पी-एच॰ डी॰, कॉलेज ऑफ साइन्स, नागपुर के भी हम बड़े आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तक के प्रुफ-सशोधन कार्य में हमे बड़ी सहायता दी है।
विषय | | | | पृष्ठ |
---|---|---|---|---|
१. संन्यासी का गीत | .... | .... | .... | १ |
२. माया | .... | .... | .... | ८ |
३. मनुष्य का यथार्थ स्वरूप | .... | .... | .... | ३७ |
४. „——„ | .... | .... | .... | ६७ |
५. माया और ईश्वरधारणा का क्रमविकास | | .... | .... | १०२ |
६. माया और मुक्ति | .... | .... | .... | १२२ |
७. ब्रह्म और जगत् | .... | .... | .... | १४१ |
८. जगत् (बहिर्जगत्) | .... | .... | .... | १६६ |
९. जगत् (अन्तर्जगत्) | .... | .... | .... | १८२ |
१०. बहुत्व में एकत्व | .... | .... | .... | २०५ |
११. सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन | .... | .... | .... | २२९ |
१२. अपरोक्षानुभूति | .... | .... | .... | २४९ |
१३. आत्मा का मुक्त स्वभाव | .... | .... | .... | २८३ |
१४. अमरत्व | .... | .... | .... | ३०७ |
यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।