साफ़ माथे का समाज
पेंगुइन बुक्स
साफ़ माथे का समाज
अनुपम मिश्र का जन्म 5 जून, 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले में हुआ। एम.ए. करने के तुरंत बाद 1969 से ही गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े रहे।
बाद का, सीखने का सारा काम समाज की असाधारण पाठशाला में हुआ। इसी जानकारी को एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह दूसरों के समक्ष रखते रहे। छोटी-बड़ी 17 पुस्तकें लिखीं, जिनमें से अधिकांश अब अनुपलब्ध हैं।
'आज भी खरे हैं तालाब' और 'राजस्थान की रजत बूंदें' की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चा और प्रशंसा हुई। पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने और जल संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए वर्ष 1996 का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिला।
किशन कालजयी का जन्म 31 दिसंबर, 1961 को झारखंड के गोड्डा ज़िले के मोतिया गांव में हुआ। शिक्षा एम. ए. (हिंदी) तक हुई।
साफ़ माथे का समाज
अनुपम मिश्र
संपादक
किशन कालजयी
अनुक्रम
लोक बुद्धि की जीवट यात्रा vii
भाषा और पर्यावरण 1
अकाल: अच्छे कामों और विचारों का भी 6
गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया 9
तैरने वाला समाज डूब रहा है 41
नर्मदा घाटी: सचमुच कुछ घटिया विचार 57
भूकंप की तर्जनी और कुम्हड़बतिया 68
पर्यावरण: खाने का और दिखाने का और 78
बीजों के सौदागर 87
बारानी को भी ये दासी बना देंगे 93
विभागों में भटक कर पुरे तालाब 97
गोपालपुरा: न बंधुआ बसे, न पेड़ बचे 103
गौना ताल: प्रलय का शिलालेख 112
साध्य, साधन और साधना 119
माटी, जल और ताप की तपस्या 125
सन् 2000 में तीन शून्य भी हो सकते हैं 136
साफ़ माथे का समाज 139
यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।