राजस्थान की रजत बूँदें

राजस्थान की रजत बूँदें  (1995) 
अनुपम मिश्र

गाँधी शांति प्रतिष्ठान, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – ५ तक

 

पर्यावरण कक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान

नई दिल्ली

 

आलेख और चित्र : अनुपम मिश्र
शोध और संयोजन : शीना और मंजुश्री मिश्र
सज्जा और रेखांकन : दिलीप चिंचालकर
आवरण चित्र : टोडा रायसिंह की बावड़ी, टौंक

मई १९९५

मूल्य : दो सौ रुपए
प्रकाशक : गांधी शांति प्रतिष्ठान, २२१ दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली ११०००२
टाइपसेट : अक्षरश्री, ४/१, बाजार गली, विश्वास नगर, दिल्ली ११००३२
मुद्रक : सहारा इंडिया मास कम्युनिकेशन, सी–३, सैक्टर ११, नोएडा

इस विषय पर अनुपम मिश्र को सन् १९९२–९३ में
के॰ के॰ बिड़ला फाउंडेशन की ओर से शोधवृत्ति मिली थी

इस पुस्तक की सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग किया जा सकता है,
स्रोत का उल्लेख करें तो अच्छा लगेगा

 

पधारो म्हारे देस
माटी, जल और ताप की तपस्या
राजस्थान की रजत बूंदें
ठहरा पानी निर्मला
बिंदु में सिंधु समान
जल और अन्न का अमरपटो
भूण थारा बारे मास
अपने तन, मन, धन के साधन
सन्दर्भ
शब्द सूचि


११
२२
३२
४४
६९
६५
७८
८५
१०५




कहते हैं...
मरुभूमि के समाज को
श्रीकृष्ण ने वरदान दिया
कि यहाँ कभी जल का अकाल
नहीं रहेगा ।
प्रसंग महाभारत युद्ध
समाप्त होने का है ।
लेकिन मरुभूमि का समाज
इस वरदान को पाकर हाथ पर हाथ
रखकर नहीं बैठ गया । उसने अपने को
पानी के मामले में तरह-तरह से
संगठित किया । गांव-गांव, शहर-शहर
वर्षा की बूंदों को सहेज कर रखने के
तरीके खोजे और जगह-जगह इनको
बनाने का एक बहुत ही व्यावहारिक,
व्यवस्थित और विशाल संगठन खड़ा
किया । इतना विशाल कि पूरा समाज
उसमें एक जी हो गया ।
इसका आकार इतना बड़ा कि वह सचमुच निराकार
हो गया ।
मरुभूमि के समाज ने भगवान के वरदान को
एक आदेश की तरह शिरोधार्य
कर लिया ।

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