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शीघ्र विवाह और शीघ्र मृत्यु लाला लाजपत राय द्वारा रचित दुखी भारत का एक अंश है जिसका प्रकाशन सन् १९२८ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"इसमें ज़रा भी सन्देह नहीं कि बाल-विवाह से भारतवासियों के स्वास्थ्य पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ रहा है। परन्तु यह भारतवर्ष की प्राचीन प्रथा कदापि नहीं है। श्रीयुत मैकडानेल, केथ, सर हरबर्ट रिसले और दूसरे विद्वान्, जिन्होंने इस प्रश्न का अध्ययन किया है, सब इस बात से सहमत हैं कि भारतवर्ष में जब हिन्दुओं का राज्य था तब हिन्दू लोग, बालकाल में नहीं, युवावस्था में विवाह करते थे। यह कहना अधिक उचित होगा कि मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व भारतवर्ष में बाल-विवाह की प्रथा प्रचलित नहीं थी। यह कुप्रथा कब और कैसे प्रचलित हो गई यह तो निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि आज यह राष्ट्र की जीवनी शक्ति को खाये जा रही है।..."(पूरा पढ़ें)