दुखी भारत
दुखी भारत - -
लाला लाजपतराय
दुखी भारत
मिस कैथरिन मेयो की 'मदर इंडिया' का उत्तर
लेखक
लाला लाजपतराय एम० एल० ए०
('यंग इंडिया' इत्यादि के रचयिता)
प्रकाशक
इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग
१९२८
मूल्य २)
Printed and published by K. Mittra, at The Indian Press, Ltd.,
Allahabad
समर्पण
यह पुस्तक अमरीका के उन अगणित नर-नारियों को प्रेम और कृतज्ञता-पूर्वक समर्पित है जो संसार की स्वाधीनता के पक्षपाती हैं, काले-गोरे और जाति या धर्म का भेद नहीं मानते और जिन्होंने प्रेम, मनुष्यता और न्याय को ही अपना धर्म माना है। संसार की दलित जातियाँ अपनी स्वतन्त्रता के युद्ध में उनकी सहानुभूति चाहती हैं; क्योंकि उन्हीं में विश्वशान्ति की आशा केन्द्रीभूत है।
लाजपतराय
भूमिका
इस पुस्तक को संसार में उपस्थित करने के लिए अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है। मैं इसके लिए न मौलिकता का दावा करता हूँ न साहित्यिक विशेषता का। मेरी राय में अन्य लेखों से अपने मतलब की बातें खोजने, उनकी सत्यता की जांच करने और उनको प्रमाण स्वरूप उपस्थित करने की अपेक्षा किसी विषय पर एक मौलिक निबन्ध लिखना अधिक सरल है। पर मेरा सम्बन्ध एक पराधीन जाति से है और मैं, जो मिथ्या और भद्दी बातें घृणित उद्देश्यों को लेकर रची गई हैं और सारे संसार में फैलाई गई हैं, उनकी असत्यता सिद्ध करने के लिए और उनसे अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए यह किताब लिख रहा हूँ इसलिए मुझे लिखित प्रमाणों का सहारा लेना ही पड़ेगा।
इस पुस्तक में थोड़ी ही बातें ऐसी हैं (मैं तो एक के भी होने में सन्देह करता हूँ) जिनके समर्थन में सर्वमान्य और विश्वस्त प्रमाण न दिये गये हों। पतित हुए को गाली देना सरल है। उसको उठाना कठिन। यही बात कि वह पतित है उसके विरोध के लिए यथेष्ट है। अपने बचाव में विदेशियों द्वारा सिद्ध की गई बातों को उपस्थित करने की आवश्यकता पड़े तो इससे अधिक लज्जा की बात और नहीं हो सकती। यह ढङ्ग ही अपनी लघुता स्वीकार कर लेने का है। पर इस बात को छिपाने से कोई लाभ नहीं कि पश्चिम की गोरी जातियाँ सिवाय अपने वर्ण या जाति के लोगों के और किसी की सम्मति पर विश्वास करने और उसे मानने को तैयार नहीं हैं। यह पुस्तक मुख्यतः उन्हीं के लिए लिखी गई है। इसलिए उन्हीं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना उचित भी था। विदेशी संस्करण इससे ज्यादा बड़े होंगे और उनमें बातें भी अधिक होंगी। कई कारणों से उन सबका समावेश इस पुस्तक में नहीं हो सका।
विदेशी संस्करण के लिए चित्रों के संग्रह करने का प्रयत्न भी किया जा रहा है। मैं अपने सहकारी और मित्र 'पीपुल'- सम्पादक लाला फ़ीरोजचन्द को अनेक धन्यवाद देता हूँ। बिना उनके परिश्रम और सहायता के कदाचित् यह पुस्तक इतनी जल्दी न तैयार होती, न छपती और न प्रकाशित होती।
इस भूमिका को समाप्त करने से पहले मैं एक बात और लिख देना चाहता हूँ। मैंने इस पुस्तक में अमरीका के जीवन के कुछ दृश्यों का वर्णन किया है। पर वह मुझे अत्यन्त अनिच्छा और दुःख से करना पड़ा है। अमरीका के जीवन में दूसरे प्रकार के दृश्य भी मिलेंगे। वे सुन्दर, उच्च और मानवीय हैं। वे संसार की सब जातियों और वर्णों के लिए मानवीय कृपारस से भरे हैं। उनका मैंने उस देश में पांच वर्ष रहकर स्वयं अनुभव किया था। इस पुस्तक में अमरीका के जीवन के कुछ काले धब्बों को दिखलाकर मैंने जो पाप किया है उसके प्रायश्चित्तस्वरूप मुझे दूसरी पुस्तक लिखनी पड़ेगी। उसमें व्यक्ति-गत वर्णनों और चरित्र-चित्रणों के रूप में अमरीका के उज्ज्वल दृश्यों का प्रदर्शन होगा। इस पुस्तक में ये विषय असङ्गत जचेंगे। मेरे तर्कों के साथ उनका मेल न बैठेगा। आशा है अमरीका के जीवन की केवल एक-तरफा बातें देने के लिए मेरे अमरीका-निवासी मित्र मुझे क्षमा करेंगे। अमरीका इस पुस्तक का विषय नहीं था। मैंने वहाँ के जीवन की कुछ दशाओं का वर्णन केवल तुलनात्मक दृष्टि से किया है।
इस पुस्तक की तैयारी, छपाई तथा प्रकाशन का काम बड़ी जल्दी में हुआ है। इसकी त्रुटियों को मुझसे अधिक कोई नहीं जानता होगा। पर एक संतोष है कि इसमें कोई बात ऐसी नहीं कही गई जिसकी सत्यता पर मुझे विश्वास न हो।
'मदर इंडिया' का हवाला देने में मैंने उसके अँगरेज़ी संस्करण से काम लिया है।
नई दिल्ली, | लाजपतराय |
जनवरी १९२८ |
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