विकिस्रोत:आज का पाठ/७ मार्च
समाचारपत्रों के मुफ्तखोर पाठक प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"जहाँ विदेश से निकलनेवाले पत्रों के लाखों ग्राहक होते हैं वहाँ हमारे अच्छे से अच्छे भारतीय पत्र के ग्राहकों की संख्या कुछ हजारों से अधिक नहीं होती। यह एक विचारणीय बात है। जापान का ही एक उदाहरण लीजिये। यह तो सबको मालूम है कि जापान भारतवर्ष का षष्टमाश ही है, फिर भी जहाँ भारत से कुल ३५०० पत्र प्रकाशित होते हैं, वहाँ जापान से ४५००, और यह ४५०० भी ऐसे पत्र है जिनके प्रकाशन की संख्या हजारो नहीं लाखों की है। 'ओसाका मेनीची' नाम का एक दैनिक पत्र है। उसके कार्यालय की इमारत ही तैतीस लाख रुपये की है।..."(पूरा पढ़ें)