साहित्य का उद्देश्य
द्वारा प्रेमचंद

[ आवरण-पृष्ठ ]



साहित्य
का
उद्देश्य

लेखक

प्रे म चं द

[ प्रकाशक ]



प्रकाशक:

शिवरानी प्रेमचद

वितरक:

हंस प्रकाशन

इलाहाबाद

मुद्रक :

भार्गव प्रेस

इलाहाबाद

प्रथम संस्करण : जुलाई १९५४

मूल्य ४)

[ विषयसूची ]अनुक्रम


१-साहित्य का उद्देश्य
२-जीवन मे साहित्य का स्थान
३-साहित्य का आधार
४-कहानीकला : १
५-कहानीकला : २
६-कहानीकला . ३
७-उपन्यास
८-उपन्यास का विषय
९-साहित्य मे बुद्धिवाद
१०-जड़वाद और आत्मवाद
११-संग्राम मे साहित्य
१२-साहित्य में समालोचना
१३-हिन्दी गल्पकला का विकास
१४-साहित्य और मनोविज्ञान
१५-फिल्म और साहित्य
१६-सिनेमा और जीवन
१७-साहित्य की नयी प्रकृति
१८-दन्तकथाओं का महत्व
१६-ग्राम्यगीतों मे समाज का चित्र
२०-समकालीन अंग्रेजी ड्रामा
२१-रोमें रोलॉ की कला
२२-राष्ट्रभाषा हिन्दी और उसकी समस्याएँ
२३-कौमी भाषा के विषय मे कुछ विचार


. १
... २०
... ३०
... ३५
... ४०
... ४८
... ५४
... ६७
... ७६
... ८०
... ८५
... ९०
... ९५
... १०३
... १०७
... १२०
... १२४
... १२९
... १३२
... १३५
... १४१
... १४९


... १६९

[ विषयसूची ](२)


२४-हिन्दी-उर्दू की एकता
२५-उर्दू हिन्दी और हिन्दुस्तानी
२६-अन्तरप्रान्तीय साहित्यक आदान-प्रदान
२७-हंस के जन्म पर
२८-प्रगतिशील लेखक संघ का अभिनन्दन
२६-उहो मेरी दुनिया के गरीबो को जगा दो
३०-अतीत का मुर्दा बोझ
३१-साहित्यिक उदासीनता
३२-लेखक-संघ
३३-एक प्रसिद्ध गल्पकार के विचार
३४-समाचारपत्रो के मुफ्तखोर पाठक
३५-जापान मे पुस्तको का प्रचार
३६-रुचि की विभिन्नता
३७-प्रेम-विषयक गल्पो से अरुचि
३८-साहित्य मे ऊँचे विचार
३६-रूसी साहित्य और हिन्दी
४०-शिरोरेखा क्यो हटानी चाहिये


... १८६
... २०५
... २१७


... २४३
... २५४


... २५८
... २६१
... २६५
... २६७
... २७०
... २७४
... २७८
... २८०
... २८२
... २८४
... २८६
... २५८

____ [ दो शब्द ]

दो शब्द

प्रेमचंद के साहित्य और भाषा-संबंधी निबन्धों- भाषणो आदि का एक संग्रह 'कुछ विचार' के नाम से पहले छप चुका है। लेकिन उसमे दी गयी सामग्री के अलावा भी सामग्री थी जो 'हस' की पुरानी फाइलों मे दबी पड़ी थी और अब तक किसी संकलन मे नही आयी थी। वे अधिकाश मे सम्पादकीय टिप्पणियों हैं। उनमें कुछ टिप्पणियों बड़ी हैं और कुछ छोटी, कुछ टिप्पणियों एकदम स्वतन्त्र हैं और कुछ मे किसी तात्कालिक साहित्यिक घटना या वादविवाद ने निमित्त का काम किया है। वह जो भी हो, सब मे प्रेमचद की आवाज बोल रही है और सब किसी न किसी महत्वपूर्ण साहित्यिक-सास्कृतिक प्रश्न पर रोशनी डालती हैं । इसलिए इस सामग्री का सकलन करते समय हमने और सब बातों को छोड़कर अपनी दृष्टि केवल इस बात पर रक्खी है कि ऐसी एक पक्ति भी छूटने न पाये जिससे किसी साहित्यिक प्रश्न पर रोशनी पड़ती हो या प्रेमचद का स्पष्ट अभिमत मालूम होता हो। जो टिप्पणियों सामयिक विषयों को लेकर हैं, उनको लेते समय भी हमारी दृष्टि यही है कि यद्यपि उनकी सामयिकता अब कालप्रवाह मे बह गयी है तथापि उनके भीतर, किसी भी निमित्त से, कही हुई मूल बात का महत्व आज भी है और आगे भी रहेगा

और इसलिए उसे पाठकों तक पहुंचना चाहिए । [  ]

(२)

हमे विश्वास है कि यह नया, पूर्णतर, सकलन साहित्यिक विचारक प्रेमचंद और साहित्यकार प्रेमचद को और अच्छी तरह समझने में सहायक होगा।

संकलनकर्ता

[  ]





साहित्यिक समस्याएं)

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