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प्राचीन भारत में स्त्रियों का स्थान लाला लाजपत राय द्वारा रचित दुखी भारत का एक अंश है जिसका प्रकाशन सन् १९२८ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"वैदिक-काल-इसमें सन्देह नहीं कि वर्तमान समय में स्त्रियों की जो स्थिति है वह वैदिक-काल की अपेक्षा बहुत गिरी हुई है। इस बात को प्रायः सभी स्वीकार करते हैं कि वैदिक-काल में पञ्जाब में आर्य स्त्रियों को अत्यन्त सम्माननीय ही नहीं अत्यन्त महान् पद भी प्राप्त था। इसके पश्चात् के समय में जो प्रभाव पड़े और जो परिवर्तन हुए उनसे यह स्थिति और अच्छी नहीं हुई, उलटा और बिगड़ गई सूक्ष्म रूप से स्त्रियों और पुरुषों में क्या क्या सम्बन्ध होना चाहिए इस पर वैदिक साहित्य में कोई वाद-विवाद नहीं मिलता। ऋग्वेद में स्त्री को कुमारी, पत्नी और माता कहा गया है। और इन स्थितियों में उलके अधिकारों का बहुत संक्षिप्त वर्णन मिलता है।..."(पूरा पढ़ें)