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जाति-बहिष्कार

मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का एक अध्याय है। इस पुस्तक का प्रकाशन नई दिल्ली के सस्ता साहित्य मंडल द्वारा १९४८ ई. में किया गया था।


"माताजीकी आज्ञा और आशीर्वाद प्राप्त कर, कुछ महीनेका बच्चा पत्नीके साथ छोड़कर, मैं उमंग और उत्कंठाके साथ बंबई पहुंचा। पहुंच तो गया, पर वहां मित्रोंने भाईसे कहा कि जून-जुलाई में हिंद महासागरमें तूफान रहता है। यह पहली बार समुद्र-यात्रा कर रहा है, इसलिए दिवालीके बाद अर्थात् नवंबर में इसको भेजना चाहिए। इतनेमें ही किसीने तूफानमें किसी जहाजके डूब जानेकी बात भी कह डाली। इससे बड़े भाई चिंतित हो गये। उन्होंने मुझे ऐसी जोखिम उठाकर उस समय भेजनेसे इन्कार कर दिया, और वहीं अपने एक मित्रके यहां मुझे छोड़कर खुद अपनी नौकरीपर राजकोट चले गये।...
मेरे लिए स्थान भी मित्रोंने त्रंबकराय मजूमदार (जूनागढ़वाले वकील) की केबिनमें रिजर्व कराया। उनसे मेरे लिए उन्होंने कह भी दिया। वह तो थे अधेड़, अनुभवी आदमी। मैं ठहरा अठारह बरसका नौजवान, दुनियाके अनुभवोंसे बेखबर। मजूमदारने मित्रोंको मेरी तरफसे निश्चिंत रहनेका आश्वासन दिया।
इस तरह ४ सितंबर १८८८ ई० को मैंने बंबई बंदर छोड़ा।"(पूरा पढ़ें)