विकिस्रोत:आज का पाठ/३ मार्च
अतीत का मुर्दा बोझ प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"२१, २२ सितम्बर को पटना ने अपने साहित्य परिषद् का कई बरसों के बाद आने वाला वार्षिकोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया। हिन्दी के शब्द जादूगर श्री माखनलाल जी चतुर्वेदी सभापति थे और साहित्यकारों का अच्छा जमघट था। हम तो अपने दुर्भाग्य से उसमें सम्मिलित होने का गौरव न पा सके। शुक्रवार की सन्ध्या समय से ही हमें ज्वर हो आया और वह सोमवार को उतरा। हम छटपटा कर रह गये। रविवार को भी हम यही आशा करते रहे कि आज ज्वर उतर जायगा और हम चले जायंगे, लेकिन ज्वर ने उस वक्त गला छोड़ा, जब परिषद् का उत्सव समाप्त हो चुका था।..."(पूरा पढ़ें)