विकिस्रोत:आज का पाठ/३० जनवरी
नेटाल इंडियन कांग्रेस मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का एक अंश है जिसका अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा तथा प्रकाशन सन् १९४८ ई॰ में नई दिल्ली के सस्ता साहित्य मंडल द्वारा किया गया था।
"वकील-सभा के विरोध ने दक्षिण अफ्रीका में मेरे लिए एक विज्ञापन का काम कर दिया है कितने ही अखबारों ने मेरे खिलाफ उठाये गये विरोध की निंदा की और वकीलों पर ईर्ष्या का इलजाम लगाया। इस प्रसिद्धि से मेरा काम कुछ अंश में अपने-आप सरल हो गया।
वकालत करना मेरे नजदीक गौण बात थी और हमेशा ही रही। नेटाल में अपना रहना सार्थक करने के लिए मुझे सार्वजनिक काम में ही तन्मय हो जाना जरूरी था। भारतीय मताधिकार-प्रतिरोधक कानून के विरोध में आवाज उठाकर-महज दरख्वास्त भेजकर चुप न बैठा जा सकता था।..."(पूरा पढ़ें)