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अन्तरप्रान्तीय साहित्यिक आदान-प्रदान के लिए प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"भारत में विज्ञान और दर्शन की, इतिहास और गणित की, शिक्षा और राजनीति की आल इंडिया संस्थाएँ तो हैं लेकिन साहित्य की कोई ऐसी संस्था नहीं है। इसलिए, साधारण जनता को अन्य प्रान्तों की साहित्यिक प्रगति की कोई खबर नहीं होती और न साहित्य-सेवियों को ही आपस में मिलने का अवसर मिलता है।
बंगाल के दो-चार कलाकारों के नाम से तो हम परिचित हैं; लेकिन गुजराती, तामिल, तेलुगू और मलयालम आदि भाषाओं के निर्माताओं से हम बिल्कुल अपरिचित हैं।..."(पूरा पढ़ें)