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श्रीचंद्रावली भारतेन्दु हरिश्चंद्र की नाटिका है। इस नाटिका को भारतेंदु-नाटकावली में ब्रजरत्नदास ने संक्षेप में प्रस्तुत किया है। भारतेंदु-नाटकावली का प्रकाशन इलाहाबाद के रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर द्वारा १९३५ ई. में किया गया था।


"सं॰ १९३३ वि॰ में चन्द्रावली नाटिका की रचना हुई। यह नाटिका अनन्य प्रेम रस से प्लावित है और भारतेन्दु जी की उत्कृष्ट रचनाओं में से है। आरम्भ में एक शुद्ध विष्कम्भक देकर श्री शुकदेव जी तथा नारद जी से परम भक्तों के वार्तालाप द्वारा ब्रजभूमि के अनन्य प्रेम का माहात्म्य दिखलाते हुए नाटिका आरम्भ की गई है। ये दोनों पात्र केवल 'कथाशानां निदर्शकः संक्षेपार्थः' लाए गए हैं और इनसे नाटिका के मुख्य कथा-वस्तु से कोई सम्बंध नहीं है। इसी से कवि ने इन दोनों के आने, जाने आदि का कुछ भी पता नहीं दिया है। इसमें वीणा पर उत्प्रेक्षाओं की एक माला ही पिरो डाली गई है।..."(पूरा पढ़ें)