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मित्र-लाभ-श्रीयुत गणपत जानकीराम दूबे श्यामसुंदरदास द्वारा रचित हिंदी निबंधमाला-१ का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई सं॰ १९८७ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"जिन लोगों ने ग्रंथ-महिमा का बखान किया है उनमें से अधिकतर लोगों ने ग्रंथों की मित्रों से उपमा दी है, क्योंकि ग्रंथों की श्रेष्ठता पूरी तरह से ध्यान में आने के लिये मित्र के समान अन्य उत्तम उपमा उन्हें नहीं सूझी। सुकरात का कहना है कि "सब लोग घोड़े, कुत्ते, संपत्ति, मान, सम्मान इत्यादि की हवस करके उनके पाने के लिये परिश्रम करते हैं, परंतु मुझे किसी मित्र के समागम का लाभ होने से जितना संतोष होगा उतना उन सब चीजों के मिलकर प्राप्त होने पर भी नहीं होगा।" जिनके पास अतुल संपत्ति है उन्हें इसका कुछ न कुछ तो अंदाज होता ही है कि हमारे पास क्या माल मता है, परंतु उनके मित्र चाहे थोड़े ही क्यों न हों पर वे कितने हैं, इसका ज्ञान उन्हें नहीं होता।..."(पूरा पढ़ें)