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हिन्दी-गल्प-कला का विकास प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"अगर आज से पचीस तीस साल पहले की किसी पत्रिका को उठाकर आज की किसी पत्रिका से मिलाइए, तो आप को मालूम होगा कि हिन्दी गल्प-कला ने कितनी उन्नति की है। उस वक्त शायद ही कोई कहानी छपती थी, या छपती भी थी, तो किसी अन्य भाषा से अनूदित। मौलिक कहानी तो खोजने से भी न मिलती थी। अगर कभी कोई मोलिक चीज निकल जाती थी, तो हमको तुरन्त सन्देह होने लगता था, कि यह अनुवादित तो नहीं है। अनुवादित न हुई तो छाया तो अवश्य ही होगी। हमें अपनी रचना-शक्ति पर इतना अविश्वास हो गया था।..."(पूरा पढ़ें)