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हवा के घोड़े/१ सआदत हसन मंटो द्वारा रचित हवा के घोड़े का एक अंश है जिसका प्रकाशन १९५६ ई॰ में नव साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा किया गया था।


"वैसे तो सैय्यद पर जुक़ाम का हमला होता ही रहता था। कई बार मोहम्मद गौरी की तरह दुम दबा कर भागने पर भी एक दिन अनोखे ढंग से हमला किया, तो उसने सोचा—मुझे प्यार क्यों नहीं होता? सैय्यद के जितने भी मित्र थे, सब के सब प्यार कर चुके थे। इनमें से कुछ तो अभी तक फँसे हुए थे; परन्तु जिस ढंग से वह प्यार को अपने पास देखना चाहता था, ठीक उसके विपरीत, उसको दूर, बहुत दूर पाता; किन्तु उसको अभी तक किसी से प्यार नहीं हुआ था। जब भी सूनेपन में बैठकर सोचता कि वास्तव में उसका हृदय प्यार से खाली है, तो उसे लज्जा का अनुभव होता और हृदय विदीर्ण हो उठता।..."(पूरा पढ़ें)