रामनाम
मोहनदास करमचंद गाँधी

अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ २१

 

स॰—क्या रामनामको हृदयमे ही रखना काफी नही है? या अुसके अुच्चारणमे कोअी खास विशेषता है?

ज॰—मेरा विश्वास है कि रामनामके अुच्चारणका विशेष महत्त्व है। अगर कोअी जानता है कि अीश्वर सचमुच अुसके हृदयमे बसता है, तो मै मानता हू कि अुसके लिअे मुहसे रामनाम जपना जरूरी नही है। लेकिन मै अैसे किसी आदमीको नही जानता। अुलटे, मेरा अपना अनुभव कहता है कि मुहसे रामनाम जपनेमे कुछ अनोखापन है। क्यो या कैसे, यह जानना आवश्यक नही।

हरिजनसेवक, १४-३-१९४६



रामधुन

गाधीजीने कहा—जिन्हे थोडा भी अनुभव है, वे दिलसे गायी जानेवाली रामधुनकी, यानी भगवानका नाम जपनेकी शक्तिको जानते है। मै लाखो सिपाहियोके अपने बैण्डकी लयके साथ कदम अुठाकर मार्च करनेसे पैदा होनेवाली ताकतको जानता हू। फौजी ताकतने दुनियामे जो बरबादी की है, अुसे रास्ते चलनेवाला भी देख सकता है। हालाकि यह कहा जाता है कि लडाअी खतम हो गअी, फिर भी अुसके बादके नतीजे लडाअीसे भी ज्यादा बुरे साबित हुअे है। यही फौजी ताकतके दिवालियापनका सबूत है।

मै बिना किसी हिचकिचाहटके यह कह सकता हू कि लाखो आदमियो द्वारा सच्चे दिलसे अेक ताल और अेक लयके साथ गाअी जानेवाली रामधुनकी ताकत फौजी ताकतके दिखावेसे बिलकुल अलग और कअी गुना बढी-चढी होती है। दिलसे भगवानका नाम लेनेसे आजकी बरबादीकी जगह टिकाअू शान्ति और आनन्द पैदा होगा।

हरिजनसेवक ३१-८-१९४७