रामनाम
मोहनदास करमचंद गाँधी

अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ २० से – २१ तक

 

"यह क्यो?"

विलकिनसन अिस सवादको ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। अुन्होने कहा "यह अिसलिअे कि हम निरन्तर निर्माण ही करते रहते है।"

गाधीजी "अिसलिये कि हम निरन्तर पूर्णताके लिअे प्रयत्न करते रहते है। केवल अेक अीश्वर ही पूर्ण है, मनुष्य कभी पूर्ण नही होता।"

हरिजनसेवक, २५-५-१९३५



मुंहसे रामनाम जपना

सवाल—दूसरेसे बातचीत करते समय, मस्तिष्क द्वारा कठिन कार्य करते समय या अचानक पैदा होनेवाली घबराहट वगैराके समय भी क्या हृदयमे रामनामका जप हो सकता है? अगर अैसी दशामे भी लोग करते है, तो कैसे करते है?

जवाब—अनुभव कहता है कि मनुष्य किसी भी हालतमे हो, चाहे सोता भी क्यो न हो, लेकिन अगर अुसे आदत हो गअी है और रामनाम हृदयस्थ हो गया है, तो जब तक हृदय चलता है, तब तक रामनाम हृदयमे चलता ही रहना चाहिये। वर्ना यह कहा जायगा कि मनुष्य जो रामनाम लेता है, वह अुसके कठसे ही निकलता है या अुसने सिर्फ हृदयके स्तरको ही छुआ है, लेकिन हृदय पर अुसका साम्राज्य स्थापित नही हुआ है। यदि रामनामने हृदयका स्वामित्व पा लिया हो तो जप कैसे करते है, यह सवाल पूछा ही नही जा सकता। क्योकि जब वह हृदयमे स्थान ले लेता है, तब अुच्चारणकी आवश्यकता ही नही रह जाती। लेकिन यह कहना ठीक होगा कि अिस तरह जिनके हृदयमे रामनाम बस गया है, अैसे लोग बहुत कम होगे। जो शक्ति रामनाममे मानी गअी है, अुसके बारेमे मुझे कोअी शक नही है। हरअेक आदमी अिच्छा मात्रसे ही रामनामको अपने हृदयमे अकित नही कर सकता। अुसके लिअे अथक परिश्रम और धीरजकी जरूरत है। पारसमणिको पानेके लिअे धीरज और परिश्रम क्यो न हो? रामनाम तो अुससे भी ज्यादा कीमती, बल्कि अमूल्य है।

हरिजनसेवक, १७-२-१९४६

स॰—क्या रामनामको हृदयमे ही रखना काफी नही है? या अुसके अुच्चारणमे कोअी खास विशेषता है?

ज॰—मेरा विश्वास है कि रामनामके अुच्चारणका विशेष महत्त्व है। अगर कोअी जानता है कि अीश्वर सचमुच अुसके हृदयमे बसता है, तो मै मानता हू कि अुसके लिअे मुहसे रामनाम जपना जरूरी नही है। लेकिन मै अैसे किसी आदमीको नही जानता। अुलटे, मेरा अपना अनुभव कहता है कि मुहसे रामनाम जपनेमे कुछ अनोखापन है। क्यो या कैसे, यह जानना आवश्यक नही।

हरिजनसेवक, १४-३-१९४६



रामधुन

गाधीजीने कहा—जिन्हे थोडा भी अनुभव है, वे दिलसे गायी जानेवाली रामधुनकी, यानी भगवानका नाम जपनेकी शक्तिको जानते है। मै लाखो सिपाहियोके अपने बैण्डकी लयके साथ कदम अुठाकर मार्च करनेसे पैदा होनेवाली ताकतको जानता हू। फौजी ताकतने दुनियामे जो बरबादी की है, अुसे रास्ते चलनेवाला भी देख सकता है। हालाकि यह कहा जाता है कि लडाअी खतम हो गअी, फिर भी अुसके बादके नतीजे लडाअीसे भी ज्यादा बुरे साबित हुअे है। यही फौजी ताकतके दिवालियापनका सबूत है।

मै बिना किसी हिचकिचाहटके यह कह सकता हू कि लाखो आदमियो द्वारा सच्चे दिलसे अेक ताल और अेक लयके साथ गाअी जानेवाली रामधुनकी ताकत फौजी ताकतके दिखावेसे बिलकुल अलग और कअी गुना बढी-चढी होती है। दिलसे भगवानका नाम लेनेसे आजकी बरबादीकी जगह टिकाअू शान्ति और आनन्द पैदा होगा।

हरिजनसेवक ३१-८-१९४७