बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५८ से – १५९ तक
अति मीठी मधुरी हरि-मुख की हैं उर-अंतर साली॥
स्याम सघन तन सींची बेली, हस्त कमल धरि पाली।
अब ये बेली सूखन लागीं, छाँड़ि दई हरि-माली॥
तब तो कृपा करत ब्रज ऊपर संग लता ब्रजबाली।
सूर स्याम बिन मरि न गई क्यों बिरहबिथा की घाली?[१]॥२०४॥