भ्रमरगीत-सार/२०३-ऊधो यहै बिचार गहौ

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५८

 

ऊधो! यहै बिचार गहौ।

कै तन गए भलो मानैं, कै हरि ब्रज आय रहौ॥
कानन-देह विरह-दव लागी इन्द्रिय-जीव जरौ।
बुझै स्याम-धन कमल-प्रेम मुख मुरली-बूँद परौ॥
चरन-सरोवर-मनस[] मीन-मन रहै एक रसरीति।
तुम निर्गुनबारू महँ डारौ; सूर कौन यह नीति?॥२०३॥

  1. सरोवर मनस=मानस सरोवर।