भ्रमरगीत-सार/२०५-ऊधो जो हरि हितू तिहारे
ऊधो! जो हरि हितू तिहारे।
तौ तुम कहियो जाय कृपाकै जे दुख सबै हमारे॥
तन तरुवर ज्यों जरति बिरहिनी, तुम दव ज्यों हम जारे।
नहिं सिरात[१], नहिं जरत छार ह्वै सुलगि सुलगि भए कारे॥
जद्यपि उमगि प्रेमजल भिजवत बरषि बरषि घन-तारे[२]।
जौ सींचे यहि भाँति जतन करि तौ इतने प्रतिपारे॥
कीर, कपोत, कोकिला, खँजन बधिक-बियोग बिडारे।
इन दुःखन क्यों जियहिं सूर प्रभु ब्रज के लोग बिचारे?॥२०५॥