भक्तभावन
ग्वाल, संपादक प्रेमलता बाफना

वाराणसी: विश्वविद्यालय प्रकाशन, पृष्ठ ३६ से – ३७ तक

 

अथ श्री राधाष्टक प्रारम्भ
कवित्त

नारद विशारद के सरद की हित सिद्धि, शारद शशी में जाकी नख दुति भासनी।
शेष सनकादि अविवाद गुन नाद गावे, शिव की समाधि हिय कमल विकासनी।
ग्वाल कवि कृष्ण महराज के सुखों के साज, सोकी सिरताज रही राजरूप रासनी।
विधि हू की बाधा हरे विरुद्ध हू राधा करें, करुना अगाधा राधा बृन्दावन वासिनी॥१॥

कवित्त

राधा महारानो मनि मन्दिर विराजमान, मुकर मयंक से जहाँ जड़ाव कारी में।
बादले बनाव के बिछौने बिछे बेसुमार, बीजुरी बिरी बनाय देत बलिहारी में।
ग्वाल कवि सुमन सुगंधित केसर ले ले, सची सुकुमार सो सुंधाये शोभ भारी में।
दारा देवतान की दिमाकदार दिस दिस, दार द्वार दौरि फिरे खिदमतदारी में॥२॥

कवित्त

मानिक तें मोतिन तें मंडित मुकेसनते। मृदु मसले दंता की उपमा मिले नहीं।
तापर विराजमान राधा मह महरानी। तहाँ सुरतिय तुंग दौरत ढिले नहीं।
ग्वाल कवि कहे चौंर चन्दरानी लिये रहे। सूर जानी छत्र लैं बिछारी तोहि ले नहीं।
चौमुखा कहा है जहाँ सौमुखा सहस्र मुखा लालमुखा विधि हू को मुजरा मिले नहीं॥३॥

कवित्त

चदन कप अतर मसाले करि। मानिक की गघ खुसबोये रकती रहै।
हीरन हजारन शिलान की दिवाले दीह। तामे प्रतिबिंबन की राशी लगती रहे।
ग्वाल कवि पन्नन के खम्भे नीलमनि छज। मत्त गज मोतिन की प्रभा पगती रहै।
जगा जोति जाहर जवाहर जलूसन में। राधा जगदीसुरी की जोति जगती रहै॥४॥

कवित्त

शेष ओ दिनेश तारकेश अलकेश वेश। सहित सुरेश आगे दौर में ढल्यो करे।
विधि विधि वेदन सों विरद सुनावे विधि। अप्छरा अनन्त नाच नाच उछल्यो करे।
ग्वाल कवि चौरें छत्र पानदान आदि ले ले। गोविन के गोरे जूथ जूथ सों हल्यो करे।
तैतीस करोड़ देवतान की शोभा सानी सदा। राधा महरानी की जलेब में चल्यो करे॥५॥

कवित्त

राधिका दरिद्र दुख दीरष दलन कोजें। दासन पं दीनन पें दया हे अगाधिका।
आधिका रहे न खोज जा के नाम ओज आगे। रोज करि भागें जमराज के उपाधिका।
राधिका सकल सुख कान्ह प्रान प्रानिका है। ग्वाल कवि कहे संभुजाही के समाधिका।
राधिका विविध विधि बाधा बिकुवात की सु। वृंदावन विदित विलासनी श्रीराधिका॥६॥

कवित्त

रामा अभिराम विष्णुवामा वाम वामा स्यामा। कामा अनुसार रूप नामा बहु धारनी।
मंगा गिरा जमुना में प्रमुना विचारो कोक। तिनहीं के तेज की त्रिधार है प्रचारनी।
बाल कवि माया मोह माया महामाया मंजु। गाया करे वेद आदि शक्ति जगतारनी।
ईश की अराधा रूप कान्ह साधा वही। राधा महरानी वृंदा विपिन विहारनी॥७॥

कवित्त

नागन की नरन की बाधा हरे वृंदारक। वृंदारक बाधा हरे वासव विधानी है।
वासव की बाधा विधि विधि की विरोध भरी। वाचत रहत विधि वेद के बखानी है।
ग्वाल कवि कहतःविविध बाधा विधि हू की। वाधत रहत सदा सम्भु गुरु ग्यानी है।
सम्भुहू की बाधा आधा पल में मिटावे[] कृष्ण। कृष्ण की बाधा हरे राधा महरानी है॥८॥

  1. मूलपाठ––मीटावे।