प्रताप पीयूष/जन्म सुफल कब होय?

करुना बरुनालय विष्णु की निरबल परजा संहरन।
कलि भूपति सेन कसाय गत भारत के गारत करन॥६॥
केवल धन हित दरसावत झूठे सनेह कहं।
काम अन्ध अज्ञानिन मूंड़हिं बात बात महं॥
करहिं आशरय दान चोर ज्वारिन व्यभिचारन।
काल पाय सिखवहिं कुकर्म बालक अरु नारिन॥
कुटिलाई की कुशला सविधि मूढ़ धनिक सेवित चरन।
कलि महाशक्ति कंचन जयतु भारत कहं गारत करन॥७॥
कोऊ काहू को न कतहुं न सतकर्म सहायक।
केवल बात बनाय बनत सहसन सब लायक॥
कुटिलन सों ठग जाहिं ठगहिं सूधे सुहृदन कहं।
करहिं कुकर्म करोरि छिपावहिं न्याय धर्म महं॥
कुछ डरत नाहिं जगदीश कहं करत कपटमय आचरन।
कलियुग रजधानी कानपुर भारत कहं गारत करन॥८॥
इति श्री दग्ध हृदयाचार्य विरचितं ककाराष्टकं समाप्तम्।
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जन्म सुफल कब होय?
श्री लार्ड रिपन उवाच।
सब कलंक सर्कार के जायं सहजही धोय।
"राजा राज प्रजा सुखी" जन्म सुफल तब होय॥१॥

गौराङ्गदेव उवाच
नित हमरी लातैं सहैं हिन्दू सब धन खोय।
खुलै न “इङ्गलिश पालिसी" जन्म सुफल तब होय॥२॥
पादरी साहब उवाच।
हम जो चाहें सो करें पै दुलखै मति कोय। :
जग हमार चेला बने जन्म सुफल तब होय॥३॥
भेड़ राज उवाच।
हिन्दु मिलें बरु धूर में, बरु थूकहिं मोहि लोय।
पै अपनावहिं श्वेत प्रभु जन्म सुफल तब होय॥४॥
गौरण्डदास उवाच।
जग जाने इङ्गलिश हमैं बाणी बस्त्रहि जोय।
मिटै बदन कर श्याम रंग जन्म सुफल तब होय॥५॥
हज़रत उवाच।
घर न सनहकी हू रहैं कह नवाब सब कोय।
हिन्दू नित हम पर कुढ़ैं जन्म सुफल तब होय॥६॥
सेठ उवाच।
बुधि विद्या बल मनुजता छुवहि न हम कहँ कोय।
लछमिनियां घर में बसै जन्म सुफल तब होय॥७॥
अमीर उवाच।
हवा न लागे देह पर करें खुशामद लोय।
कोउ न खरी हमसे कहै जन्म सुफल तब होय॥८॥

राजा उवाच
बरु ऊपरी दिखाउ में जाहि खजानों खोय।
तोप सलामी की बढ़ैं जन्म सुफल तब होय॥९॥
बुढ़ऊ उवाच।
हारिल की लकरी गहे हमहि न छेड़ै कोय।
अंधियारेहि में तन छुटै जन्म सुफल तब होय॥१०॥
लिकपिट्टन उवाच।
लोटिया थारी काल्हि ही लहनदार लें ढोय।
होय तारीफ़ बरात की जन्म सुफल तब होय॥११॥
पुरोहित उवाच।
बनियन की बुधि धरम धन गंगा देहु डुबोय।
नित्त टका सीधा मिलै जन्म सुफल तब होय॥१२॥
कनवजिया उवाच।
करिया अक्षर बिन हमैं कहैं त्रिवेदी लोय।
मरे बिटेवा मीच बिन जन्म सुफल तब होय॥१३॥
बाल विधवा उवाच।
सती होन सर्कार दे नाहिं तु पंडित लोय।
पुनर्विवाह प्रचार ही जन्म सुफल तब होय॥१४॥
कान्यकुब्ज कन्या उवाच।
मरैं बड़कुला और मम मरैं जु पुरिखा लोय।
चिट्ठी पठवें नर्क से जन्म सुफल तब होय॥१५॥

वकील उवाच।
फूट बढ़ै सब घरन में हारे जीतै कोय।
खुली अदालत नित रहे जन्म सुफल तब होय॥१६॥
ज़मींदार उवाच।
बरसे बिन बरसे कृषक जिमैं मरै चहु रोय।
पोत बढे़ काहू यतन जन्म सुफल तब होय॥१७॥
पुलिस उवाच।
झूठी सांची कैसिहू वारिदात में कोय।
आय भलो मानुष फंसैं जन्म सुफल तब होय॥१८॥
वैद्यराज उवाच।
कहुं मारी कहुं जीर्ण ज्वर सन्निपात महं कोय।
परै धनिक नित ही रहै जन्म सुफल तब होय॥१९॥
भंडसारि उवाच।
इन्द्र देव किरपा करैं बूंद न बरसै तोय।
पांच सेर गेहूं बिकै जन्म सुफल तब होय॥२०॥
आलसी उवाच।
सोवत सोवत एक दिन जाहिं भली बिधि सोय।
हाथ हिलावन ना परै जन्म सुफल तब होय॥२१॥
बकुला भक्त उवाच।
माला कर महँ देखिकै आय फंसैं सब कोय।
खुलैं न हमरे गुप्त ढंग जन्म सुफल तब होय॥२२॥

श्री हरिश्चन्द्र उवाच।
निज भाषा निज धर्म निज गौरव को सब कोय।
दिन दूनी बढ़ती करैं जन्म सुफल तब होय॥२३॥
सम्पादन समूह उवाच।
कलह जवन देशन मचै सुधरैं हिन्दू लोय।
नित हमार ग्राहक बढ़ैं जन्म सुफल तब होय॥२४॥
ब्राह्मण उवाच।
भारत हित भगवान हित सब जग के सुख खोय।
प्रिय हिन्दू एका करैं जन्म सुफल तब होय॥२॥
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कविता (विभिन्न)

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