कोड स्वराज
कार्ल मालामुद

पृष्ठ १०३ से – १२२ तक

 

साक्षात्कारः "इस छोटे से यूएसबी में 19,000 भारतीय मानक हैं। इसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाना चाहिए?"

द वायर, अनुज श्रीवास, 26 अक्टूबर, 2017 (द वायर के अनुमति से प्रकाशित)

भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा अधिसूचित कोड और विनियमों को कानूनी अनुसंधान करके उसे निःशुल्क रूप से जनता के लिए उपलब्ध कराने वाले एवं Public.Resource.Org के संस्थापक कार्ल मालामूद के साथ साक्षात्कार

[अनुज श्रीनिवास] नमस्ते, आज हम ‘सार्वजनिक जानकारी सबके लिए उपलब्ध कराना’ के विषय पर चर्चा करेंगे। द वायर की इस चर्चा में आप सबका स्वागत है। मेरा नाम अनुज श्रीनिवास है। आज हमारे अतिथि काले मालामुद हैं।

कार्ल को 'इंटरनेट के ओन इन्स्टीगेटर (Internet's own instigator)' से लेकर ‘अमेरिका के अनौपचारिक सार्वजिनक प्रिंटर -(अमेरिका का अनऑफिसियल पब्लिक प्रिंटर -Americas's unofficial public printer)' की तरह जाना जाता है। यहां 'इंटरनेट के ओन इन्स्टीगेटर' से तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति से है जो सरकारों को अपने खिलाफ खुद उकसाता हो या कार्यवाही करने का न्योता देता हो। 25 वर्षों में कार्ल का मिशन रहा है इंटरनेट का उपयोग करके लोगों तक, जितनी संभव हो उतनी जानकारी मुफ्त पहुंचाना है। पिछले दस वर्षों में, उनके कई काम कानून, और कानूनी कोड मानको पर केंद्रित रहे हैं। अक्सर यह उन्हें सरकारी अफसरों के विरूद्ध ला खड़ा करता है, जो लोग एक बहुत ही सीमित एवं संकीर्ण तरीके से इन जानकारियों को विनियमित करना या प्रसारित करना चाहते हैं।

कार्ल, आज हमारे साथ इस विषय पर चर्चा करने के लिए धन्यवाद।

[कार्ल मालामुद] मुझे खुशी है कि आपने मुझे अवसर दिया।

[अनज श्रीनिवास] हमारे उन दर्शकों के लिए जो आपके काम से परिचित नहीं हैं। क्या आप यह बर आ सकते हैं कि जो जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिये उसे जनता के लिए सार्वजनिक कराना, उसे जनता तक उपलब्ध कराने के आम तरीके क्या हैं और जिसे आम जनता कर सकती है।

[कार्ल मालामुद] अच्छा, मैं जिन चीजों के साथ काम करता हूं वह ऐसी जानकारी है, जिससे ज्यादातर लोग सहमत हैं कि इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए, लेकिन किसी कारणों से ऐसा नहीं किया जा रहा है। जड़ता के कारण, यह एक शुल्क की तिजोरी में बंद है, या सरकारी एजेंसी समस्या को सुलझाने में तकनीकी रूप से सक्षम नहीं है, या कोई व्यक्ति इसका विक्रेता बनना चाहता है, और उस जानकारी को मुख्यतः अपने ही अधिकार में रखना चाहता है। अमेरिका के पेटेंट डेटाबेस की तरह ही, मैं भी सिर्फ बड़े डेटाबेसों की ओर देख रहा है। इस मामले में, मैंने उनके सभी डेटा खरीद लिए हैं जब पेटेंट कार्यालय इसे बेच रहा था। इन डेटा को खरीदने में हजारों डॉलर लगे थे, और इसके लिये पैसा मैंने लोगों से मांग कर जुटाया था। मैंने इसे खरीदा, और फिर मैंने इसे इंटरनेट पर डाला, लाखों लोगों ने इसका निशुल्क इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, और मैं पेटेंट कार्यालय के दरवाजे पर दस्तक देने लगा और कहा, “आपको मालुम है यह आपका काम है, और आपको इसे करना चाहिये।”

मुझे पेटेंट व्यवसाय या किसी अन्य व्यवसाय में नहीं जाना है। मेरा हमेशा यह लक्ष्य रहा है, सरकार को बेहतर बनाना, उन्हें यह दिखाना कि लोग वास्तव में इस जानकारी के प्रति रुची रखते हैं। पेटेंट डाटाबेस के बारे में, पेटेंट आयुक्त ने मुझसे कहा था कि उन्होंने यह नहीं सोंचा था कि सामान्य अमेरिकियों को इन मानकों की परवाह होगी। इसे इंटरनेट पर डाल देने के बाद; लाखों लोगों ने इसका उपयोग करना शुरू कर दिया है।

[अनुज श्रीनिवास] कुछ मामलों में, उदाहरण के लिए यह जानकारी जनता के लिए उपलब्ध है; लेकिन एक निर्धारित शुल्क पर उपलब्ध है। जब सरकारी एजेंसी की बात आती है, तो आप इससे कैसे निपटते हैं, जो इससे पैसा बनाते हैं?

[कार्ल मालामुद] हाँ, किसी भी सरकारी एजेंसी, या गैर सरकारी संगठन के लिए राजस्व बहुत महत्वपूर्ण होता है। पेटेंट कार्यालय के मामले में, वे प्रति वर्ष 4 करोड़ डॉलर का पेटेंट बेच रहे थे। आप जानते हैं, पेटेंट का पूरा उद्देश्य क्या है - यह एकमात्र डेटाबेस है जो विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में शामिल है। यह बेचे जाने के लिए नहीं है। वे किसी अन्य कार्यों को करके धन कमा सकते हैं, और वे वास्तव में, इन्हीं डेटा को ज्यादा सुचारु बना कर बेच सकते हैं। सवाल यह उठता है कि एक बार जब मैंने यह खरीद लिया, तो क्या मैं इसे फिर से अन्य रुप में प्रकाशित करने में सक्षम हूँ, जिससे यह बेहतर और अधिक उपयोगी हो? मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि अपनी सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) के लिए कोई शुल्क ले। तो सवाल यह उठता है कि उस जानकारी का उपयोग करने के लिए, इसे बेहतर बना कर रखने के लिए, अपने साथी नागरिकों को सूचित करने के लिये, इसके साथ कुछ और करने के लिए, क्या आपको लाइसेंस के बिना अनुमति है?

[अनुज श्रीनिवास] यह सच है। पिछले दो सालों में आपका कुछ काम, भारत में भी बढ़ा है। जैसा कि मैं इसे समझता हूं, उदाहरण के लिए, आप भारतीय मानक ब्यूरो के साथ कानूनी लड़ाई में हैं। क्या आप इस बारे में हमारे साथ थोड़ी बातचीत कर सकते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई?

[कार्ल मालामुद] यहां कई प्रकार के कानून, अधिकार और कानूनी संबंधी सामग्री उपब्ध हैं। इनमें सरकारी फरमान, संसद के कार्य, सरकारी नियम हैं; लेकिन सुरक्षा मानक हमारी आधुनिक दुनिया के महत्वपूर्ण कानूनों में से हैं। नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया, टेक्सटाइल मशीनरी के लिए मानक जो श्रमिकों को सुरक्षित रखता है, या कीटनाशकों को सुरक्षित रूप से छिड़कने को लेकर मानक हैं। इन सभी भारतीय मानकों को आधिकारिक राजपत्रों में देखा जाता है। कई मामलों में, आप भारत में उत्पाद तब तक बेच नहीं सकते हैं, जब तक कि वे प्रमाणित न हों; और जब तक वे मानकों को पूरा पालन नहीं करते वे बीआईएस द्वारा प्रमाणित नहीं किए जा सकते हैं। वे सभी सरकारी प्रकाशन हैं।
इस छोटे से यूएसबी में 19,000 भारतीय मानक हैं।

इसके बावजूद, यह केवल एक कॉपीराइट संबंधी नोटिस नहीं है। यह एक नोटिस होता है। कि आप हमारी अनुमति के बिना इन चीजों की प्रतिलिपि नहीं कर सकते हैं; और वे इसे बेचते हैं। भारत में नेशनल बिल्डिंग कोड का मूल्य 14,000 रुपये है। यह एक किताब के लिए बहुत अधिक कीमत है, जिन्हें भारत का हर इंजीनियरिंग छात्र पढ़ना चाहता है। यदि आप इसे किसी दूसरे देश में खरीदते हैं, तो इसकी कीमत लगभग 1.4 लाख रूपये है, जो दस गुना ज्यादा हैं। यदि आप भारत के साथ व्यापार करना चाहते हैं, तो आपके लिए यह जानना जरूरी होगा कि भारत के सुरक्षा संबंधी कानून क्या हैं।

[अनुज श्रीनिवास] सही कहा आपने, यह सच है। 2013 में, आपने कुछ डेटा लिए और इसे सार्वजनिक कर दिया, लेकिन बीआईएस ऐसा करने से खुश नहीं था।

[कार्ल मालामुद] हाँ, बीआईएस का इस बात पर ध्यान नहीं गया। सर्वप्रथम यह हुआ कि मैंने कई भारतीय मानक खरीदे। मैं चोरी छिपे काम नहीं करता हूँ। मैंने श्री सैम पित्रोदा से बात की। वह उस समय सरकार में शामिल थे और मनमोहन सिंह के लिए काम करते थे। मैंने उनसे कहा, “पित्रोदा-जी, मैं आपसे मिलने आया हूं।” मैं गया और उनसे मिला और मैं मानकों की प्रतियाँ ले गया। मैंने स्थिति को विस्तार से बताया और कहा, “मैं इनको इंटरनेट पर डालूंगा, आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?” उन्होंने कहा, “हां, यह अच्छा है।” मैंने कहा, “अच्छा, आप यह जानते हैं कि भारतीय मानक ब्यूरो ऐसा करने से नाराज हो सकता है।” उनका कहना था, “यह महत्वपूर्ण जानकारी है। इसे उपलब्ध होना चाहिए।” उन्होंने इसपर ध्यान नहीं दिया। मैंने सभी 19,000 मानक ले लिए और उन्हें इंटरनेट पर डाल दिया। मैंने मानकों के डीवीडी के लिए, एक वर्ष के लिये, 5,000 डॉलर का भुगतान किया। फिर, मेरी सदस्यता का नवीनीकरण कराने का समय आ गया।

[अनुज श्रीनिवास] ज़रूर

[कार्ल मालामुद] मैंने उन्हें एक पत्र भेजा। मैंने कहा, “हां, यह एक खरीद संबंधी ऑर्डर है। मुझे मेरी सदस्यता नवीनीकृत कराकर खुशी होगी। वैसे, यहां सभी मानक हैं, और हमने उनमें से 971 मानक लिए हैं, और हमने उन्हें एच.टी.एम.एल. (HTML) में बदल दिया है। हमने एस.वी.जी. ग्राफिक्स के रूप में डिजाइन को दोबारा तैयार किया है। हमने सूत्रों को मैथ.एम.एल. (MathMIL) के रूप में रिकॉर्ड किया। क्या आप इन सभी सूचनाओं की प्रतियां लेना चाहेंगे?” मुझे एक पत्र मिला, जिसमें मूल रूप से लिखा था, आप यह करना बंद करें,आपको इसे तुरंत रोकना होगा। उन्होंने मेरी सदस्यता को नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया। उन्होंने मांग की कि हम ऐसा न करें।

मैंने उन्हें प्रत्युत्तर भेजा और बताया कि मेरी समझ से भारतीय संविधान के अंतर्गत, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत, यह सार्वजनिक जानकारी है। वे इससे असहमत थे। हमने मंत्रालय को याचिका दायर की, यह हमारा अगला कदम था। बड़ी बेहतरीन याचिका। पित्रोदा ने शपथ पत्र (एफिडेविट) दिया था। इंटरनेट के पिता विन्टन सर्फ ने शपथ पत्र दिया था। वाटर इंजीनियरिंग और परिवहन के बहुत सारे प्रमुख प्रोफेसरों ने शपथ पत्र पर हस्ताक्षर किए। हमारे पास ऐसे कई उदाहरण थे कि वे मानक बेहतर क्यों लग रहे हैं और हमने अपने योगदान से इसकी महत्ता को बढ़ा दिया हैं।
यह याचिका मंत्रालय पहुंची। कुछ समय बाद हमें जवाब मिला कि “नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।” अगला कदम एक जनहित याचिका संबंधी मुकदमा था। इसमें मेरे सहयोगी श्रीनिवास कोडाली, एक प्रतिभाशाली युवा परिवहन इंजीनियर और डॉ. सुशांत सिन्हा, ‘भारतीय कानून’ (इन्डियन कानून) के अद्भुत प्रकाशक, थे। हमने मुकदमा दायर किया। निशीथ देसाई के लॉ फर्म ने निःशुल्क रूप से हमारा प्रतिनिधित्व करने के लिए सहमत हुए। वे किसी भी तरह की फीस चार्ज नहीं कर रहे हैं। सलमान खुर्शीद, पूर्व कानून मंत्री, हमारे वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में हमारा प्रतिनिधित्व करने के लिए सहमत हुए। माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली में हमारी याचिका दायर है।


बीआईएस ने हमारे शिकायत का उत्तर दिया है। हमने उसका जवाब दिया। केंद्र सरकार जवाब देने में विफल रही है। हमने 13 नवंबर को फिर से अदालत की मदद ली और उम्मीद है कि मुख्य न्यायाधीश या जज जो अध्यक्षता कर रहे हैं, वह मौखिक तर्क का आदेश देंगे। सरकार अपने हिस्से का वर्णन करेगी और अपना फैसला प्रस्तुत करेगी।


[अनुज श्रीनिवास] ज़रूर। कार्ल, जैसा कि मैं इसे यहां समझता हूं, बीआईएस की प्रतिरक्षा कॉपीराइट पर निर्भर है। एक और पक्ष जिसके बारे में भी बात हो सकती है, वह यह है कि इन मानकों को तैयार करने के लिए मुआवजे देने की आवश्यकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच एक अंतर यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में मानक, जो अंततः कानून और विनियमन (रेगुलेशन) बनते हैं, वे निजी निकायों द्वारा तैयार किये जाते हैं। यहां भारत में, बीआईएस एक वैधानिक निकाय है, जो कभी-कभी, मेरे अनुसार ज्यादातर मानक लाता है, जिसे अंत में, कानून की शक्ति मान लिया जाता है। इन मानकों को कंपनियों, कॉलेजों, निजी व्यक्तियों को बेचने से एक सीमा तक राजस्व प्राप्त होते हैं। क्या आप बीआईएस के राजस्व मॉडल का भी विरोध करते हैं? क्या आप मानते हैं कि आज के दौर में इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए और हमें उन खर्चों के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए जो पहले, उन मानकों को बनाने में हुईं?


[कार्ल मालामुद] आइये पहले भारत के संदर्भ में इस मामले को निपटा लें और फिर बाकी की दुनिया के बारे में चर्चा करेंगे।


[अनुज श्रीनिवास] ज़रूर


[कार्ल मालामुद] भारत में, ये सभी सरकारी दस्तावेज हैं। उनके राजस्व का 4 प्रतिशत से भी कम आय इन मानकों की बिक्री से होता है। यदि भारत में आप उत्पादों को बेचना चाहते हैं, तो उसे प्रमाणित होना चाहिए। क्या आप जानते हैं कि आपको प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए किसे भुगतान करना पड़ता है? भारतीय मानक ब्यूरो को। उसमें काफी पैसा लगता है। केवल इसके लिए नहीं, वे उनके मिशन के लिए महत्वपूर्ण है। यह जन सुरक्षा के लिये है। मानकों तक कम पहुंच से, आप इंजीनियरों को उस तरीके से शिक्षा नहीं दे पाते जिस तरह आप उन्हें दे सकते हैं। आप स्थानीय अधिकारियों को, इन कोड को ठीक तरीके से लागू करवाने से वंचित करवा देते हैं, क्योंकि उन्हें इन मानको को खरीदने के लिए 14,000 रूपये खर्च करने होते हैं। सार्वजनिक सुरक्षा की जानकारी तक, उनकी कम पहुंच, उनके लक्ष्य के
आड़े आती है। और बीआईएस को इससे पैसों कमाने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें ज्यादातर पैसे अन्य जगहों से प्राप्त होते हैं।


अब, पूरी दुनिया में, निजी गैर सरकारी संगठन ने मानकों को विकसित किया है और फिर सरकार ने उन्हें कानूनी रूप देती है। मैं कुछ बातें बताता हूँ। गैर सरकारी संगठन इन्हें कानून बनाना चाहते हैं। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल इलैक्ट्रकिल कोड का संपूर्ण उद्देश्य है। वे इन्हें सभी 50 राज्यों और संघीय सरकार में इसे कानून के रूप में लागू करा चुके हैं। उन्हें इसकी आवश्यकता है। वे इन्हें काफी पैसों में बेचते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके पास इसके अलावे, प्रमाण पत्र कार्य, प्रस्तुतिका (हैंडबुक) और प्रशिक्षण का काम है। जब संघीय सरकार कहती है कि नेशनल इलैक्ट्रिकल कोड जमीनी कानून है, तो उन्हें अमेरिकी लोगों से स्वीकृति की मुहर मिलती है और वे सार्वजनिक सुरक्षा की जानकारी को बेचे बिना, उस सोने की मुहर से पैसे बनाने में सक्षम हैं। वे दावा करते हैं कि उन्हें पैसे की आवश्यकता है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है कि यह मुख्य कारण है। मुझे लगता है कि यह नियंत्रण (कंट्रोल) का मामला है।


मुझे ऐसा लगता है कि वे हमेशा इसी तरह काम करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंटरनेट ने दुनिया में प्रत्येक उद्योग को अपना कारोबार के स्वरूप को बदलने / अनुकूल करने के लिए विवश कर दिया है। समय के साथ हम अपने कारोबार को अनुकूल करते रहते हैं। वर्ष 1970 में मानकों को एक कीमत पर बेचना समझदारी भरा काम था। इस दिन और इस युग में भी बिल्डिंग कोड, पुस्तक को 14,000 रूपये में बेचा जाता है। यह छोटी सी यू.एस.बी. में सभी 19,000 मानक हैं। यह पूरा मानक है। इसका कोई कारण नहीं है कि भारत में इसे प्रत्येक विद्यार्थी के लिए कम से कम अवाणिज्यिक (नान कमर्शियल) रूप में उपलब्ध नहीं कराना चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि यह प्रत्येक उद्योग और प्रत्येक स्थानीय अधिकारी के लिए उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि इससे हम सार्वजनिक सुरक्षा पर बल देते हैं। हर एक व्यक्ति कानून जानता है।


[अनुज श्रीनिवास] सही बात है कार्ल, लेकिन बात केवल जानकारी को लोगों तक निशुल्क पहुंचना ही नहीं है, बल्कि इस जानकारी की पहुंच की गुणवत्ता भी बढ़ाना है। उदाहरण के लिए, आप आवश्यक दस्तावेजों के बारे में जानते हैं - आपको उस पर गौर करने की आवश्यकता है या इसके प्रारूप को अधिक सौंदर्यपरक रूप से तैयार करने की आवश्यकता है, ताकि लोग इसका उपयोग अनुसंधान के लिए कर सकें। आपके कुछ इस तरह के काम, बढ़ कर डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया से संबंधित हो गये हैं, और वे काम जो आप पिछले दो साल से कर रहे हैं, क्या आप इसके बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं?


[कार्ल मालामुद] हाँ, मानकों के लिए, हम उनमें से कई बिल्डिंग कोड समेत अधिकांश को एच.टी.एम.एल. में फिर से लिखा है। हमने डायग्राम को फिर से बनाया है और फॉर्मूले को फिर से कोड किया है। द डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया दावा करती है कि सरकारी सर्वर पर 5,50,000 पुस्तके थीं। भारत वर्ष में, लम्बे समय से पुस्तकें स्कैन हो रही हैं।


[अनंत श्रीनिवास] और वे कौन-कौन सी हैं? [कार्ल मालामुद] इलैक्ट्रॉनिक और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार इस योजना का प्रायोजक है। मैंने इस डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया पर ध्यान दिया है और मैंने उसे करीब से देखा है। मुझे दो चीजें दिखी। यह अच्छी तरह से उपलब्ध नहीं थी और इसे सर्च करना भी मुश्किल था। इसका सर्वर (server) काफी धीमा था। लगातार डी.एन.एस. गायब हो जा रहे थे। यदा-कदा सर्वर डाउन होते रहते थे। इसलिए मैंने इसे कॉपी कर लिया और ऑनलाइन कर दिया। मैंने उसे बहुत ध्यान से देखा। डाटाबेस में कॉपीराइट से संबंधित कुछ मामले थे। वे काफी लापरवाह तरीके के थे, लेकिन इनका मेटाडाटा खराब था। उनके शीर्षक गलत थे। स्कैनिंग की प्रक्रिया भी थोड़ी लापरवाह तरीके से की गई थी। उसके पृष्ठ तिरछे थे और कुछ गायब भी थे या आधी पुस्तक नहीं थी, या इसकी सूक्ष्मता (resolution) काफी कम थी।

हमने एक कॉपी भर बनाई है, और उसे केवल बेहतर बनाने के लिए इंटरनेट में डाला है। हमने उसे इंटरनेट आर्काइव में डाल दिया है। एक महीने में इसे लगभग दस लाख लोगों ने देखा। इसे देखने के लिये लोगों की संख्या बढ़ने लगी। हमें कुछ नोटिस भी मिले। ऐसा बड़े स्तर के संस्थाओं में होता है। आपको कुछ नोटिस मिले और आपने उन पर अपनी प्रतिक्रिया दी। आपने कहा, “ठीक है, मैं उसे हटा देता हूँ”

[अनुज श्रीनिवास] कुछ मामलों में, इनका पालन करके आप खुश हैं।

[कार्ल मालामुद] हां, बिल्कुल। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि पुस्तक कॉपीराइट है, तो यह कोई समस्या नहीं है। हम लोग इसे तुरंत हटा देंगे। यह कोई बड़ी बात नहीं है। जब आप करोड़ों या लाखों पुस्तकों जैसे ब्रुवस्टर काल्हे इंटरनेट आर्काइव पर डालते रहते हैं, तो गलतियां तो होती ही हैं।

सरकार काफी घबराई हुई थी क्योंकि यह डाटा अधिक मात्रा में इंटरनेट पर दिखाई दे रहा था और उन्हें कुछ लोगों से नोटिस भी प्राप्त हुए, जिसमें वे कह रहे थे, “हे भगवान!, उनके पास मेरी किताब है। उन्होंने सारे डाटाबेस को बंद कर दिया था। उन्होंने हम से सारे डाटाबेस को बंद करने को कहा। मैंने कहा, “नहीं, नहीं, हम ऐसा नहीं करने वाले हैं।” उन्होंने कहा, “ठीक है, कम से कम सन 1900 के बाद की सभी पुस्तके हटा दें।”

[अनुज श्रीनिवास] इस संग्रह में किस प्रकार की पुस्तकें हैं?

[कार्ल मालामुद] यह 50 विभिन्न भाषाओं का शानदार संग्रह है। जिनमें से आधी पुस्तकें अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि जैसी रोमानी भाषाओं में हैं। इसमें ऐतिहासिक पुस्तकें, कथेतर (नान-फिक्शन) साहित्य, भारत का राजपत्र आदि शामिल हैं। इसमें सभी राज्यों के राजपत्र और संस्कृत भाषा में 50,000 पुस्तकें है। गुजराती भाषा में 30,000 पुस्तकें भी हैं। मुझे इन आंकड़ों की सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन ये दस हजार से अधिक हैं। दस हजार पुस्तकें पंजाबी भाषा में हैं। पुस्तकें तिब्बती भाषा में भी है। ये पुस्तकें हजार वर्ष पुरानी हैं। यह शानदार बात है कि ऐसा अनोखा संग्रह दुनिया के किसी भी देश में उपलब्ध नहीं है। मुझे विश्व भर के भारतीय विद्वानों से पत्र प्राप्त हुए हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है “ओह भगवान, यह तो बहुत बड़ा संग्रह है।”
हमने इसे विभिन्न तरीके से उपलब्ध कराया है। आप इन्हें असानी से ढूंढ़ सकते हैं। लोग हमें असानी से नोटिस भेज सकते हैं और कह सकते हैं, “अहा, आपने मेटाडेटा गलत भरा है।” और हम इसे ठीक करने में सक्षम हैं। हम इसे बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार ने कहा, “नहीं, नहीं, नहीं, आपको इसे हटाना होगा, और हम आपको बताएंगे कि कौन सी किताबें रखनी सही है, क्यों कि हम इसे एक एक करके निरीक्षण करेंगे कि किस पर कॉपीराइट है और किस पर नहीं।”

सबसे पहले मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हूं, लेकिन मुझे विश्वास है वे इसके विशेषज्ञ है कि किस पर कॉपीराइट है और किस पर नहीं; पर कॉपीराइट कोई बाइनरी चीज नहीं है। यदि आप दृष्टिबाधित हैं, तो एक अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत, किसी भी पुस्तक तक आप अपनी पहुंच बना सकते हैं। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम के अधीन, यदि इसका प्रयोग शिक्षक और विद्यार्थी के बीच शैक्षिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा है तो वह वैध है - इसी से संबंधित दिल्ली विश्वविद्यालय का मामला था। इसलिए यह कोई बाइनरी चीज नहीं है। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचता हूं कि यह सरकार का काम है कि वह हमें यह बताए कि कौन सी चीज पढ़ने योग्य है और कौन सी नहीं, और उसी प्रकार न ही यह उनका काम है कि वे मुझे बतायें कि कौन सी पुस्तक इंटरनेट पर डालनी है और कौन सी नहीं।

[अनुज श्रीनिवास] हां, यह सही बात है।

[कार्ल मालामुद] जब तक इससे कोई राष्ट्रीय सुरक्षा या उसी की तरह कोई मुद्दा सामने न आए, तो अलग बात है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है और आप सिर्फ यह कहें कि, “हमें पसंद नहीं है।” तो हमारा कहना ऐसा होगा, “हमें खेद है, मैं आपकी बातों को मानने से इनकार करता हूँ।”

[अनुज श्रीनिवास] सही बात है। अब हम ऐसी स्थिति में हैं, जहां सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने इस पुस्तकालय को इंटरनेट पर बंद कर दिया है और केवल आपका ही संस्करण है जो लोगों को जानकारी प्रदान कर रहा है।

[कार्ल मालामुद] हां, जो उचित बात नहीं है। सरकार के साथ यह लड़ाई लड़ने के बजाय मुझे अच्छा लगेगा कि हम डेटाबेस को बेहतर बनाए, जिसके लिए मैं उनके साथ काम कर रहा था, जहां हम अधिक पुस्तकें स्कैन कर रहे थे। हम वही कर रहे थे, जो हम अपने ‘हिंद स्वराज संग्रह' के लिए करते हैं, जो बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री है। क्या मैं आपको इसके बारे में बता सकता हूँ?

[अनुज श्रीनिवास] हाँ, ज़रूर।

[कार्ल मालामुद] 'हिंद स्वराज संग्रह' के काम की शुरूआत महात्मा गांधी के संकलित लेखों से हुई। यह ऑनलाइन उपलब्ध है, इसे कोई भी व्यक्ति पढ़ सकता है। आप इसकी पी.डी.एफ. फाइल और ई-बुक संस्करण डाउनलोड कर सकते हैं। मुझे भारत वर्ष में, आकाशवाणी से प्रसारित 129 रेडियो प्रोग्राम मिले हैं, जो महात्मा गांधी के अंतिम वर्षों में, उनसे प्रत्येक एक-दो दिन पर बात की गई थी। आप उनके जीवन के अंतिम वर्षों के बारे में जान सकते हैं। प्रत्येक के लिए मैंने संकलित कार्य का प्रांसगिक भाग लिया है और उसे एचटीएमएल में डाला है जिसे आप उन्हें हिंदी या गुजराती भाषा में सुन सकते हैं। आप इनके अंग्रेजी अनुवाद की पढ़ सकते हैं। फिर आप संकलित कार्य पर क्लिक कर सकते हैं और उस दिन, उनके द्वारा लिखे पत्र को देख सकते हैं। उन्होंने अगले दिन क्या किया? उन्होंने उसके पिछले दिन क्या किया? वगैरह-वगैरह!

हमारे पास जवाहर लाल नेहरू के चयनित कार्यों का संग्रह है। उनमें से अधिकांश सरकार के सर्वर पर थे लेकिन उनमें से कुछ खंड़ गायब थे। मैंने वे खंड प्राप्त किए ताकि हमारे पास उनका संपूर्ण संस्करण हो। भीमराव अंबेडकर का कार्य, महाराष्ट्र राज्य के सर्वर पर था लेकिन उनमें से अंतिम छह खंड गायब थे।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखित में भारत की खोज” नामक पुस्तक भारत पर आधारित बड़ा ही सुंदर कार्य है। वास्तव में इसे काफी शानदार तरीके से दूरदर्शन ने बनाया था। यह 1980 का दशक था जब दूरदर्शन एक सरकारी एजेंसी हुआ। करती थी। इसे हमने यूं ही ऑनलाइन उपलब्ध नहीं कराया बल्कि हमने इसके पूरे कार्यक्रम पर विभिन्न भाषाओं में सब्टाइटल्स डाले। सभी एपिसोड़ों के लिये हम ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त पैसा नहीं था। लेकिन पांच एपिसोड के लिए सब्ट्राइटल्स तैयार किए हैं, अब आप हिंदी भाषा में सब्टाइटल्स देख सकते हैं, जो उनके पास नहीं थे। उनके पास अंग्रेजी थी, हमने उर्दू, तेलगू और अन्य भाषाओं में सब्टाइटल्स भी डाले। हमने उसे बेहतर और अधिक उपयोगी बनाने की कोशिश की है।

[अनुज श्रीनिवास] जरूर कार्ल। कुछ लोग सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े हिमायती कार्य जैसा आप करते हैं, उसको कॉपीराइट के बिल्कुल खिलाफ मानते हैं। वे मानते हैं कि कभी-कभी आप कॉपीराइट के लक्षमण रेखा को लांघ कर, शायद चोरी तो नहीं कर रहे हैं।

[कार्ल मालामुद] मैं कोई चोर नहीं हूँ, कोई लूटेरा नहीं हूं।

[अनुज श्रीनिवास] आप कैसे तय करते हैं कि आपको कब किस परियोजना में शामिल होना है? क्या इन सब की जांच आप सार्वजनिक हित को ध्यान में रख कर करते हैं?

[कार्ल मालामुद] हाँ, ये सब फैसला कुछ हद तक जनहित पर आधारित होता है। मैं सभी तरह की चीजों को देखता हूँ। सबसे पहले, मैं इसके बारे में बात करता हूं। मैं एक पेशेवर लेखक के रूप में जीवन यापन किया हूँ। ठीक ? मैं एक संगीतज्ञ था। मैं कॉपीराइट में । विश्वास रखता हूं। मुझे लगता है कि यह शानदार बात है लेकिन कॉपीराइट के मूल उद्देश्य को याद रखें, वो है - उपयोगी कलाओं को प्रसारित करना है। इसका मूल उद्देश्य ज्ञानात्मक सामाग्री को सुचारू रूप से उपलब्ध कराना है, और हाँ कॉपीराइट की एक सीमा भी है, और इसके अपवाद भी है। जैसे कि यदि आपके पास निजी संपत्ति है तो आपको अपने सामने एक सार्वजनिक पार्क की भी आवश्यकता होती है। आप इन दोनों चीजों के बिना शहर की कल्पना नहीं कर सकते हैं। आप वाणिज्य की चाहत रखते हैं लेकिन आप नागरिक जीवन भी चाहते हैं।
'इस छोटे से यूएसबी में 19,000 भारतीय मानक हैं।

मैंने इसे देखा और स्वयं से यह प्रश्न पूछा कि क्या यह सरकारी डाटा है? क्या इस पर कॉपीराइट का दावा वैध है? क्या यह जन हित में है? क्या इस सचना की अकाट्य आवश्यकता है? यदि यह सरकारी सूचना है, जो सार्वजनिक सुरक्षा या निगम के संचालन या सरकार के कार्यों के बारे में नागरिकों को सूचित करने के आधारिक तरीकों पर लागू होता है तो यह निश्चित ही सार्वजनिक जरुरत की है, और स्पष्टतः सर्वजन के लिये है।

मैंने इसे बहुत सावधानीपूर्वक अध्ययन करता हूँ। आप जानते हैं कि बहुत सारे लोग इस तरह का कार्य करते हैं और वे सोचते हैं कि “ओहो, आप एक हैकर हैं।” ठीक है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेरे पास तकनीकी कौशल हैं। लेकिन उतना अच्छा नहीं जितना उन बच्चों के पास है, लेकिन मैंने ऐसा काम काफी समय से कर रहा हूँ। मैं बड़े डाटाबेसों और शाब्दिक सामाग्री के बारे में काफी निपुण हूँ। मैं किसी चीज को इंटरनेट पर डालने से पहले उस पर अच्छी तरह से सचिता हूँ। मैं उन्हें पढ़ता हूँ। मैं उन पर बहुत सारा अनुसंधान करता हू।

आप भारतीय मानकों को जानते हैं, मैंने उसे सीधे नहीं उठाया। मैंने उन पर बहुत समय लगाया है। मैंने संवैधानिक कानून के तीनों खंड लिये और उन्हें काफी ध्यान से पढ़ा। मैं वकील नहीं हूँ लेकिन मैंने कानून पढ़ा है। मैं सैम पित्रोदा से मिला। मैंने बहुत सारे लोगों से बात की। इसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि “ मेरे समझ से यह सार्वजनिक सूचना है।” आप जानते हैं कि यदि मैं गलत हूँ, तो मुझे इसके परिणाम को भुगतने होंगे। यह इस तरह का कार्य करने का दूसरा पहलु हैं। यदि आप इस तरह की गलती करते हैं तो आपको जुर्माने का भुगतान भी करना पड़ सकता है और आपको उसके लिए तैयार रहना चाहिए।

[अनुज श्रीनिवास] ये सच है। यहाँ मैं बात को मोड़ते हुए सरकार के बारे में बात करना चाहता हूं। केवल भारत सरकार की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया अन्य सरकारों द्वारा, आपके द्वारा किए जाने वाले काम के प्रति प्रतिक्रिया की बात। वर्तमान में भारत में, मोदी सरकार, पिछली सरकार; दोनों ने ही सार्वजनिक मत बनाया है कि हमें पारदर्शिता के लिए, और सार्वजनिक सूचना को लोगो तक सहज पहुंचाने के लिए, प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहते हैं। आप ई-गवर्नेस और उससे संबंधित सभी बातों को भी जानते हैं। जब कोई व्यक्ति आगे बढ़कर ऐसा काम करता है तो उनकी पहली प्रतिक्रिया शत्रुता की होती है।

हमने भारत में आपके जैसे बहुत सारे लोगों को कानूनी नोटिस प्राप्त करते हुए देखा है। आप खुद कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जैसा आपने बताया है। क्या इन दो बातों के बीच एक, जिस सिद्धांत पर सरकार खड़ी हैं और दुसरे, जिसके लिये सरकार क्या कर रही है, इसमें विरोधाभास है? और इस में आप अपनी भूमिका को कैसे देखते हैं?

[कार्ल मालामुद] नौकरशाही वास्तव में इस तरह की बात के खिलाफ हमेशा खड़े हो जाएंगे। मैं वहां गया और सैम पित्रोदा से मिला। उन्होंने कहा, “ बेशक ये करो”। लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो की तरफ से जवाब रहा “नहीं, नहीं, नहीं, हमलोग हमेशा से ही ऐसे करते रहे हैं। एवं दूसरे लोग भी ऐसे ही करते हैं। यदि आप इनके पास एक पारदर्शिता के वकील के रूप में, या विशेष कर एक सरकारी मंत्री के रूप में जाते हैं तो आपको 15 बी.आई.एस कर्मचारियों के साथ आठ घंटे की लंबी बैठक करनी होगी जहां पर यह बताया जायेगा कि इससे कैसे इस कार्य को करने से आकाश फट जायेगा। यदि आप सरकार में होते हैं तो आपको काफी सर्तक रहना पड़ता है। आप किसी भी नियम का उलंघन नहीं । करना चाहेंगे। यहां तक कि यदि आप खुलापन लाने की जी तोड़ कोशिश भी करते हैं तो आप कुछ हद तक ही प्रगति कर पाते हैं - ओबामा प्रशासन इसका अच्छा उदाहरण है।

नागरिक समाज के साथ काम करना महत्वपूर्ण है और फिर भी आपको कभी-कभी विरोध का सामना करना पड़ता हैं। मेरा अधिकांश कार्य यह स्पष्ट करना होता है कि हम जो कर रहें हैं वह क्यू कर रहे हैं। ऐसा करना सही कार्य क्यों है। इसके समर्थन में मेरी मुख्य दलील यह है कि इस जानकारी का अब लाखों लोग उपयोग कर रहें हैं। यह बात फिर वैसी नहीं रहती और इसके कुछ सरकारी समर्थक कहने लगते हैं “अरे, अरे, आपको इससे भी अच्छा करना चाहिये।” ऐसा लगता है कि “लाखों इंजिनीयरिंग के छात्र, भारत में इस सूचना को प्रति दिन उपयोग कर रहे हैं। और इसी के चलते इसे सार्वजनिक होना चाहिये। और देखिये, आकाश अभी तक गिरा नहीं है। सही। और आप अभी तक इन मानकों को बेच रहे हैं।” आप जानते हैं कि यदि मैं सभी मानकों को भी सार्वजनिक कर दें तो ऐसे कई लोग होंगे जो इन मानकों की, और इसके पहले के सभी संस्करणों कीं, प्रमाणित प्रतियों को प्राप्त करना चाहेंगे। मैं उन चीजों पर विशेष ध्यान देता हूं, वह है कानूनी आयात।

[अनुज श्रीनिवास] हां क्या आप स्वयं को एक साझेदार (स्टेकहोल्डर) के रूप में देखते हैं। जो सार्वजनिक पहुंच के संबंध में, सरकार को उनके काम बेहतर करने में उनकी सहायता कर रहे हैं?

[कार्ल मालामुद] हाँ यह वही काम है जो मैं करने की कोशिश कर रहा हूं। मैं खुद को इस व्यवसाय से बाहर रखना चाहता हूं। मैं भारतीय मानकों से संबंधित काम नहीं करना । चाहता। बीआईएस इसे मुझसे बेहतर समझता है। मेरे पास सोर्स कोड नहीं है। मुझे एक पीडीएफ फाइल लेनी पड़ती है और इसे एचटीएमएल में बदलने के लिए इसे फिर से टाइप कराना पड़ता है, या अगर मैं भाग्यशाली हूं तो यह एक डिजिटल रूप में सोर्स फाइल मुझे मिल जाता है; लेकिन फिर भी मुझे इसे रिफॉरमेट करना पड़ता है। सही यह होगा कि आप पीडीएफ से, पैराग्राफ मार्क, इटैलिक, फुटनोट्स, सुपरस्क्रिप्ट्स को हटा दें। यह एक बड़ा काम है। अगर उनके पास मूल ‘वर्ड' फ़ाइलें हैं, जैसा कि मैं यह मान रहा है, तो यह काम एकदम आसान होगा। यह उनका काम है। उन्हें यह काम करना चाहिए। उन्हें इसे अपार जनसमूह को उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे कोई भी इसे डाउनलोड कर सके। तब * भारतीय कानून', उदाहरण के लिए, इसे अपने खोज इंजन में शामिल कर सकता है। यह एक अच्छी बात है, क्योंकि अचानक सभी मानक सभी जगह उपलब्ध हो जायेंगे। सभी सुरक्षा मानकों को जानेगे; हमारी दुनिया ज्यादा सुरक्षित होगी।

[अनुज श्रीनिवास] ज़रूर। यह सच है। एक सुरक्षित दुनिया की इस अवधारणा से संबंधित इस चर्चा को पूरा करना होगा। आम तौर पर, आपके पिछले भाषणों और वार्ता में जो भी मैंने सुना है, आपने सार्वजनिक जानकारी और आजकल के वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समस्याओं के बीच के लिंक को समझने की बात भी की है। आप यह क्यों। मानते हैं कि ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं? इस छोटे से यूएसबी में 19,000 भारतीय मानक हैं।


[कार्ल मालामुद] मेरा मानना है कि हमारी दुनिया में कई समस्याएं हैं, जो दुःसाध्य दिखती हैं, जो सुलझती हुई नहीं दिखती हैं। मसलन ग्लोबल वॉर्मिंग। बहुत सारे लोग यह नहीं मानते हैं कि यह सच है, या वे कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, या वे यह मानते हैं कि इसमें उनका स्वहित है, “मैं इसके लिये कुछ नहीं करुंगा क्यों कि मैं कोयले के खान में काम करता हूँ। मेरे लिये प्रदूषण अच्छा है क्यों कि इससे मुझे ज्यादा आमदनी होती है।” अन्य लोगों के प्रति असहिष्णुता। गरीबी, मौलिक अधिकार। शिक्षा से गरीबी दूर हो सकती है, अकाल कम हो सकता है, बीमारी भी दूर हो सकती है। सवाल यह है कि हम इन समस्याओं के बारे में क्या कर सकते हैं? मुझे दृढ़ विश्वास है कि ज्ञान की पहुंच ही एकमात्र तरीका है जिससे हम आगे बढ़ सकते हैं।


यदि सभी नागरिक जलवायु परिवर्तन की समस्या को समझना शुरू कर दें तो किसी बिंदु पर वे इसके लिए कोई कदम उठाने की मांग करेंगे क्योंकि वास्तव में यह वैश्विक संकट है। हम सभी को इसके लिए कदम उठाना चाहिए। अधिकांश लोग यह समझते हैं कि मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि आज कौन सी सरकार है, वे सभी नेता हैं। यदि प्रत्येक व्यक्ति यह कहेगा कि, “लोबल वार्मिंग! ओ भगवान, हमें कुछ करना होगा। इन ववंडरों को देखें, इन दावानलों को देखें, इन सूखों को देखें।” तब ही परिवर्तन होगा।


शिक्षा अब महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। रोग, आप यह कभी भी नहीं जानते कि रोगों की । समस्याओं के समाधान कहां से आते हैं। जब मैंने प्रचुर मात्रा में जानकारियों को इंटरनेट पर डाला, तो इंटरनेट से मैंने यह सीखा कि हमेशा कुछ बेनाम व्यक्ति आते हैं और जो इस समाज को और बेहतर बना देते है। जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। मुझे यकीन है कि प्रत्येक पीढ़ी एक नया संकल्प/चुनौती को पूरा करती है। किसी जमाने में वो एरनॉटिक्स से संबंधित हो सकती हैं, तो कभी वो अनैच्छिक दासता के उन्मूलन की बात हो सकती है। कभी वो सभी लोगों के लिए राजनैतिक मताधिकार की बात हो सकती हे, या तकनीकी की बात हो सकती है, सामाजिक परिवर्तन की बात हो सकती है। मुझे लगता है कि आज हमें जिससे ज्यादा उम्मीद है - वह है इंटरनेट, जो यहां मौजूद है, यह काम करता है। इसके माध्यम से जो हम कर सकते हैं वह है, सभी ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुंच को सुनिश्चित करना। और मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ कि यह काम मानव केलिए दुनिया को बेहतर बनायेगा।


[अनुज श्रीनिवास] ठीक है, बहुत अच्छे। धन्यवाद, कार्ल अपना समय देने के लिए आपका धन्यवाद।


[कार्ल मालामुद] आपका बहुत बहुत धन्यवाद।


[अनुज श्रीनिवास] हम आपके मामलों और उन मुद्दों का अनुसरण करेंगे, जिसको लेकर आप द वायर पर बारीकी से काम कर रहे हैं। धन्यवाद।


© द वायर, 2017, अनुमति के साथ उपयोग किया गया
https://thewire.in/191059/interview-fittie-usb-holds-19000-indian-standards-not-made-public/

माइक्रोफोन पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, 1947-07-20
मई, 1948 में जम्मू में आर.ए.एफ मैस में अधिकारियों के साथ बिलियर्स खेलते हुए।
मई, 1948 में, कश्मीर के नौका दौड़ में
मई 1948 में छुट्टियों के दौरान वाइसेरेगल लॉज शिमला में
सी.डबल्यु.एम.जी. खंड 43 (1930), पृ. 185. तारीख रहित.
अपनी भूटान की यात्रा के दौरान याक पर इंदिरा गांधी, 20 सितंबर, 1958
6 दिसंबर, 1954 को चीनी प्रतिनिधिमंडल के दल के दौरे का मार्गरक्षण
माननीय पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रधानमंत्री, का स्वागत श्रीमती विजय लक्ष्मी, अमेरिका में भारतीय राजदत और श्रीमती इंदिरा गांधी समेत श्री विल स्मिथ (Will Smith) द्वारा 28 अक्टूबर 1949 को इनकी शिकागो की यात्रा के दौरान किया गया।
प्रधानमंत्री श्री. जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी को जनरल, टैंग क्वान सान (सबसे बाईं ओर), चीन के गणतंत्र दिवस समारोह, रिंचनगैंग, तिब्बत-भुटान सीमा, भूटान यात्रा (सितंबर 1958) के दौरान।
गणतंत्र दिवस पर श्रीमती इंदिरा गांधी की कुल्लू घाटी के लोक नृर्तकों के साथ तस्वीर, 29 जनवरी 1958
सी.डबल्यू. एम.जी. खंड 14 (1917-1918), फ्रंटीसपीस, गांधी जी 1918 में.
सी.डबल्यु. एम. जी. खंड 78 (1944), फ्रंटीसपीस

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।