कोड स्वराज/कोड स्वराज पर नोट

कोड स्वराज
कार्ल मालामुद

पृष्ठ १२३ से – १९४ तक

 
कार्ल मालामुद, कैलिफ़ोर्निया, दिसंबर 4-25, 2017

मैं अक्टूबर महीने के अंत में भारत से लौटा। मुझे अपने छोड़े हुए कई काम करने थे। साथ ही यात्रा के दौरान लिए गए नए कामों को भी देखना था। मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण काम था कोर्ट के मामलों पर ध्यान देना। लेकिन सबसे पहले मैंने अपने पसंद का काम किया।

मेरे कार्यालय के बाहर 9 बड़े बक्से रखे हुए थे, जिनका वजन 463 पाउंड था। उन बक्सों के अंदर 312 किताबें थीं। ये वहीं किताबें थीं, जिन्हें लॉर्ड रिचर्ड एटनबॉरो ने 'गांधी' फिल्म बनाते समय इस्तेमाल किया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके एक निर्माता ने वर्ष 2015 में नीलामी में ये किताबें खरीदी थी। हाल ही में उन्होंने कॉन्सल-जनरल, राजदूत अशोक से संपर्क साधा और पूछा कि क्या वे ऐसी किसी संस्था को जानते हैं जहाँ ये किताबें उपहार स्वरूप दी जा सकती हैं। राजदूत ने निर्माता को मेरा पता भेजा और अंत में ये सभी किताबें मेरे यहाँ आ गई।

यह संग्रह वास्तव में काफी असाधारण है। एक बॉक्स में फिल्म के शूटिंग स्क्रिप्ट की मूलप्रति, सेट का बजट, कॉल-शीट, और नीलामी घर की रसीद और सूचीपत्र (कैटलॉग) थे। इनमें से कुछ पुस्तकें मेरे पास पहले से ही थी, जैसे प्यारेलाल नय्यर की लिखी हुई, 8-खंड की जीवनी और उनके संकलित लेखों के कुछ खंड। परंतु इन किताबों में नवजीवन ट्रस्ट बुक्स की गांधी जी से संबंधित दर्जनों किताबें थी जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था।

मैंने उन पुस्तकों में से स्पष्ट रूप से पढ़े जाने वाले 47 पुस्तक को चुना जिन्हें पोस्ट किया जा सकता था। इनमें उद्योगपति जी.डी. बिड़ला और गांधी जी के पत्राचार के 4 खंडों के संग्रह जैसी सर्वोत्तम कृतियाँ थी। जब गांधी जी की हत्या की गई थीं तो वे दिल्ली में बिरला जी के घर में रह रहे थे। वे दोनों 44 साल से एक-दूसरे से पत्राचार कर रहे थे।

मैंने नेहरू के संकलित कार्यों के नए संस्करण को मंगवाया था वे आ चुके थे और मेरे कार्यालय के बाहर रखे थे। उनमें स्वतंत्रता संग्राम के मूल दस्तावेजों का एक बड़ा सेट, एक बड़े किताबों के संग्रह के रूप में था। ये दस्तावेज सब्यसाची भट्टाचार्य ने संपादित किए थे। जो मेरे पसंदीदा इतिहासकारों में से एक हैं। मैंने इन सभी को इकट्ठा किया और उन्हें स्कैन कराने के लिये इंटरनेट आर्काइव ले गया।

मैं इन पुस्तकों को इकट्ठा करने में व्यस्त था। उसी समय श्री अशोक, जो राजदूत हैं, ने एक ऐसे सज्जन से मिलवाया जिनके पास भारत से संबंधित किताबों का अच्छा खासा संग्रह था। वह उन किताबों को दान करना चाहते थे। मैं किताबों को लाने का खर्चा उठाने के लिए तैयार हो गया और मेरे पास 25 बक्से आ गए जिनमें 212 बड़ी पुस्तकों थीं जिनका वजन 763 पाउंड था। इतने सारे किताबों को रखने के लिए मुझे अलमारी खरीदनी पड़ी। परंतु इसके लिये यह खर्च करना वाजिब था।
कोर्ट के मामलें जिन्हे ध्यान देने की जरुरत थी।
 


नवंबर में मेरा प्रमुख काम कोर्ट के मामलों को देखना था। सबसे पहले भारत के मामलों को देखना था। हमने दिसंबर 2015 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। भारत में, आम तौर पर एक साथ दो पक्षों के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाता है। इस मामले में भारतीय मानक ब्यूरो और स्वयं भारत सरकार पर मुकदमा किया गया था। ब्यूरो जवाब देने में नाकाम रहा था, लेकिन न्यायालय के कहने पर उन्होने जून 2016 में हमारी याचिका का जवाब दिया। हालांकि, केंद्र सरकार बार-बार जवाब देने में नाकाम रही। वे न केवल जवाब देने में असफल रहे, बल्कि वे न्यायालय भी नहीं आए।

निशीथ देसाई के फर्म के वकीलों ने उनका ऐसा व्यवहार पहले कई बार देख चुके थे। वे हर बार न्यायालय आते थे और पता चलता था कि सरकार की तरफ से कोई नहीं आया है। वास्तव में, पहले तो ब्यूरो से भी कोई नहीं आया था। मुझे याद है कि ऐसी स्थिति होने पर भारत से मेरे लिए फोन आया था। वकीलों ने मुझे बताया कि दूसरी तरफ से कोई व्यक्ति आया था। जब कोर्ट ने उससे पूछा कि वह बीआईएस या केंद्र सरकार किसका प्रतिनिधित्व कर रहा है, तो वह उत्तर देने में नाकाम रहा अतः उसे यह जानकारी प्राप्त करने के लिए वापस भेजा गया कि वह किसका प्रतिनिधि है।

एक और सनवाई 13 नवंबर को हुई। चौथी बार केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए बलाया गया था। जाहिर है कि चार जादुई संख्या है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ब्यूरो का जवाब, केंद्र सरकार के जवाब के रूप में भी काम करेगा और 27 फरवरी, 2018 की तारीख को,मौखिक तर्क के लिये निश्चित किया गया ओर उसका आदेश दिया गया। यह रोमांचक था। दो साल की कागजी कार्रवाई और प्रक्रियाओं के बाद, हम अपने मामले में, विषय की महत्ता के आधार पर न्यायालय में सुनवाई के लिए प्रस्तुत होने वाले थे।

उसी दोपहर को मैं दूसरे मामले के लिए अटलांटा, जॉर्जिया के लिये विमान से निकल पड़ा। इस मामले में जॉर्जिया राज्य ने मुझ पर “एक प्रकार का आतंकवाद” करने का आरोप लगाया था क्योंकि मैंने बिना किसी शुल्क के, सभी के पढ़ने के लिए इंटरनेट पर जॉर्जिया के ऑफिशियल कोड को पोस्ट किया था। राज्य को ऐसा लगा कि उनके कॉपीराइट का उल्लंघन हुआ है। मैंने जॉर्जिया विधानसभा के अध्यक्ष को कई पत्र भेजे, जिसमें यह बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका में कानून पर कोई कॉपीराइट नहीं है क्योंकि कानून पर लोगों का आधिपत्य है। मेरे स्पष्टीकरण से अधिकारियों पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।

हमें यह जान लेना चाहिए कि जॉर्जिया विधायिका की कोई भी विधि (एक्ट) इन शब्दों से शुरू होती है: “एक विधिः जॉर्जिया के ऑफिशियल कोड को संशोधित करने के लिए एक अधिनियम।” जॉर्जिया का केवल एक ही आधिकारिक कानून है और वह यह है। कॉपीराइट का अधिकार राज्य के नाम पर था। यह उस स्थान का कानून था। यह मेरे विचार में, यह सरकार का फ़रमान था।

राज्य का कहना था कि उन्होंने जॉर्जिया ऑफिशियल कोड के टीकाकरण (ऐनोटेटेड) के लिए विक्रेता का इस्तेमाल किया था। हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि कानून पर शायद कोई कॉपीराइट नहीं है, पर उनका मानना था कि टीका (ऐनोटेशन्स) पर राज्य का अधिकार है।

ऑफिशियल कोड में कई तरह की टीकाएँ हैं, लेकिन राज्य ने न्यायालय के सामने जिस मुद्दे को उठाया, वह था कानून से संबंधित न्यायालय के मामलों का सारांश। ये उनके विक्रेता ने तैयार किया था। राज्य को लगा था कि किसी विक्रेता को, कोड को कई सौ डॉलर में बेचने के लिये एकाअधिकार दिये के बिना, किसी को भी ऑफिशियल कोड को उत्पादन करने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। और इसके चलते, इसके बनाने की लागत, जो लाखों डालर में होती, उसका खर्च करदाताओं पर पड़ेगा। उनका कहना था कि निजी पार्टी को बेचने के लिये एकाधिकार की रियायत (मोनोपॉली कंसेशन) देकर, उन्होंने करदाताओं के लिए अच्छा सौदा किया है।

हालांकि यह सफाई सिर्फ जॉर्जिया के स्टेटहाउस के अंदर तक ही सीमित थी। पर मैं आपको अनुभव से बता सकता हूं कि टैक्सी या बार में बैठे लोगों से लेकर छात्रों तक को, राज्य की यह सफाई समझ में नहीं आई। आप राज्य के कोड को ऐसे टुकड़ों में नहीं बाँट सकते जिसमें आप कुछ टुकड़ों के बारे में बात कर सकते हैं, और कुछ टुकड़ों के बारे में नहीं।

राज्य ने यह तर्क समझाने की बहुत कोशिश की कि कोड वास्तव में लोगों के लिए उपलब्ध हैं क्योंकि उनकी एक कापी, काउंटी कोर्टहाउसों के कुछ कानून की पुस्तकालयों में रक्खी हैं। एनबीसी न्यूज ने एक रिपोर्ट जाँच पड़ताल कर के बनाई, और कोर्टहाउस पुस्तकालयों में, उन कॉपियों की तलाश की तो पाया कि ज्यादातर मामलों में कोड एक पीछे के कमरे में बंद थे। कई पुस्तकें गायब थी या खराब हो गई थी। एनबीसी को उस रिपोर्ट के लिए ऐमी। (Emmy) पुरस्कार मिला।

केवल एक अकेला मैं नहीं था जो बिना अनुमति के जॉर्जिया के ऑफिशियल कोड का । इस्तेमाल नहीं कर सका। जिला न्यायालय में दाखिल हुमारी घोषणाओं में से एक कानूनी प्रदाता ‘फास्टकेस' से था। फास्टकेस के सीईओ और सह-संस्थापक एड वाल्टर्स, मेरे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के एक लंबे समय के सदस्य रहे हैं। फास्टकेस, सभी 50 राज्यों के लिए कानून और कानूनों के मामलों को देखने की सुविधा प्रदान करता है। इसे करने के लिये जो प्राथमिक तरीका यह अपनाता है वह है राज्यों की बार एसोसिएशन्स के साथ सौदे करना। राज्य में सभी वकीलों का प्रतिनिधित्व करने वाले जॉर्जिया के स्टेट बार के लिए, फास्टकेस को कानून का ऑफिशियल प्रोवाईडर बनाया गया था। सभी वकीलों को, बार में अपनी । सदस्यता के कारण, फास्टकेस तक पहुंच प्रदान की गई थी। फास्टकेस ने राज्य और उनके विक्रेता से संपर्क किया और ऑफिशियल कोड को लाइसेंस करने के लिए कहा ताकि वे । जॉर्जिया के वकीलों को, जॉर्जिया का एकमात्र आधिकारिक कानुन वितरित कर सकें। उन्हें बताया गया कि फास्टकेस को “किसी भी कीमत पर” जॉर्जिया के आधिकारिक कानूनों का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हार गए। न्यायाधीश ने हमारी दलील नहीं मानी और यह फैसला सुनाया कि न्यायालय के पुस्तकालयों में रक्खी कॉपियां काफी थीं। उन्होंने इस विचार पर जोर दिया कि अगर एक निजी विक्रेता ने कानून लिए हैं और उस पर अपने न्यायिक (जुड़ीशयल) सारांश लिखे हैं, तो वे वास्तव में कॉपीराइट के अधीन होगा। न्यायाधीश ने मुझे मेरी साइट पर ऑफिशियल कोड के वितरण या इसका कोई भी उल्लेख करने से रोक लगाने के लिए आदेश जारी किया। एक संघीय निषेध : बताने से रोका गया था।

हमने इस बात को माना कि अदालत के मामलों का, निजी तौर पर पेश किये जाने वाले सारांश, कॉपीराइट के अधीन हो सकते हैं। पर हमारा कहना था कि जॉर्जिया का । ऑफिशियल कोड कोई अनौपचारिक निजी संकलन नहीं था। यह कानून का निश्चित और आधिकारिक बयान था, जो जॉर्जिया राज्य के नाम और प्राधिकरण के तहत जारी किए गए थे। वास्तव में, ऑफिशियल कोड की धारा 1-1-1 में लिखा है कि जो लोग कोड के अनौपचारिक संकलन को कंसल्ट करते हैं, तो वे ऐसा “अपने जोखिम पर” करेंगे।

हम अब एलेवंथ सर्किट के लिए यू.एस. कोर्ट ऑफ़ अपील के सामने उपस्थित थे। इस मामले पर काफी तेजी से काम आगे बढ़ रहा था। हमने अप्रैल 7, 2017 को अपील की हमारी नोटिस दायर की और हमारे अपील का ब्रीफ 17 मई को भेजा गया। अपील के ब्रीफ डालने के बाद, जो लोग हमारा समर्थन करना चाहते थे, उन्हें फ्रेंड आफ द कोर्ट यानि कि ‘एमिकस क्यूरे' की ब्रीफ 24 मई तक देना था।

हमारी तरफ से तीन ब्रीफ दर्ज किए गए थे। पहला नागरिक स्वतंत्रता समुदाय की तरफ से था, जिसमें एसीएलयू ने नेतृत्व संभाला और साथ ही ‘सदर्न पॉवर्टी लॉ सेंटर' जैसे समूह शामिल हुए। स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल के लीगल क्लिनिक ने लाभकारी और गैर-लाभकारी प्रवर्तन (इन्नोवेटिव) समूहों की ओर से दूसरा ब्रीफ दायर किया जो सामान्य लोगों के लिए कानून के अभिगमन (एक्सेस) को और अधिक सुलभ बनाने की कोशिश कर रहे थे। पब्लिक नालेज’, वाशिंगटन डीसी के नीति समूह (पालिसि ग्रुप) के एक प्रमुख संगठन ने, कानून के प्रोफेसरों और पुस्तकालयों के एक विशाल समूह की ओर से, और साथ ही लाइब्रेरी एसोसिएशन, जैसे अमेरिकी लाइब्रेरी एसोसिएशन और अमेरिकी पुस्तकालयों की अमेरिकन एसोसिएशन की तरफ से, तीसरा ब्रीफ दायर किया गया था। यह काफी मजबूत प्रतीत हो रहा था। इसे देखकर मैं बहुत खुश हुआ।

हमारे दस्तावेज़ जमा करने के बाद, राज्य को भी ऐसा करना पड़ा। उन्होंने 30 जून, 2017 को अपना ब्रीफ दाखिल किया। जाहिर है, राज्य के समर्थन में कोई उनका दोस्त नहीं था अतः उनकी ओर से कोई एमिकस ब्रीफ भरने नहीं आया।

एसीएलयू ने, मौखिक बहस में हमारे साथ जुड़ने की अनुमति मांगने के लिए, अदालत में एक विशेष प्रस्ताव दायर किया था। हम आसानी से मान गए। वे मेरे वकील ‘एलिजाबेथ रेडर के साथ शामिल हो रहे थे, जो जॉर्जिया की सबसे प्रमुख कानूनी फर्म अल्स्टन एंड बर्ड की फर्म की प्रसिद्ध सम्पत्ति विशेषज्ञ थी। एलिजाबेथ और अल्स्टन के उनके सहयोगियों ने,
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जिले और अपीलेट कोर्ट में, इस मामले को संभालने में काफी समय और प्रयास लगाया है, और मैं उनके प्रयासों की बहुत सराहना करता हूँ।

मैं अटलांटा बहुत पहले पहुंच चुका था ताकि अदालत में बैठने की जगह मिल सके। साथ ही ये भी पता लगा सकें कि न्यायाधीश मौखिक बहस को कैसे संभालते हैं। कोर्ट आफ अपील की सुनवाई में, आपको अक्सर “गर्म बेंच” मिलता है जिसका अर्थ है कि न्यायाधीश बहुत से प्रश्न पूछते हैं। कभी-कभी वकील तो बस “अदालत शायद इससे खुश होंगे” ही कह पाते हैं कि इससे पहले ही न्यायाधीश प्रश्न पूछना शुरू कर देते हैं। यह निश्चित रूप से एक गर्म बेंच था और मुझे देखने में मजा आया कि तीन न्यायाधीशों ने वकीलों को कैसे परखा।

16 नवंबर, गुरुवार को हमारी पारी थी। हम तीन न्यायाधीशों के एक पैनल के सामने पेश हुए; वे पूरी तरह से तैयार थे। उन्होंने हमसे बहुत कठिन सवाल पूछे, लेकिन उन्होंने जॉर्जिया राज्य से और भी ज्यादा कठिन सवाल पूछे। वे यह जानना चाहते थे कि राज्य । ने ऑफिशियल कोड में एनोटेशन क्यों शामिल किए हैं, क्या वे इसे ऑफिशियल नहीं समझना चाहते थे। उन्होंने ऑफिशियल कोड के कुछ पन्नों को निकाला, जिसमें यह संकेत दिया गया कि पूरे कोड कानून थे, और राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को, ठीक से इन शब्दों का अर्थ बताने का आग्रह किया। उन्होंने कोड की उपलब्धता के बारे में पूछा।

हमें भी आसानी से नहीं छोड़ा गया लेकिन दिन के अंत में यह स्पष्ट हो गया था कि अदालत ने हमारे दृष्टिकोण को समझ लिया था। शायद वे हमारे साथ सहमत नहीं होंगे, लेकिन कम से कम वे समझ रहे थे कि हम क्या कह रहे थे। वे इस बात से इतना स्पष्ट नहीं थे कि ऐसा दृष्टिकोण जो राज्य ले रहा था वह क्यों ले रहा था। उन्होनें राज्य से पूछा कि क्यों नहीं एनोटेशन के बिना आफिशियल कोड को प्रकाशित कर देते हैं अगर उन्हें लगता है कि एनोटेशन को निशुल्क उपलब्ध नहीं होना चाहिए।

मौखिक बहस एक घंटे से अधिक समय तक चला, और अदालत में उस सप्ताह जो अन्य मामले सुने गये थे, उनसे दुगना लंबा चला। अंत में, मुख्य न्यायाधीश उठे और कहे, दिलचस्प मामला”। मैंने इसे सकारात्मक संकेत के रूप में देखा। न्यायाधीशों की दिलचस्प मामलें पसंद होते हैं। आप यह नहीं बता सकते की आगे क्या होने वाला है, लेकिन मैं अदालत से उम्मीद के साथ निकला कि हमारे पास मौका है। अगली सुबह, मैंने 6 बजे उड़ान भरी और वापस बे-एरिया (केलिफोर्नियां) आ गया।

मानक कानून है' - एक बड़ा केस
हमें एक और कोर्ट के मामले से निपटना था और यह था कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट के यू.एस. कोर्ट ऑफ अपील में दर्ज, मानकों से संबंधित एक बड़ा केस था। जैसे कि भारत में मैंने कानूनी दस्तावेज़ों को सावधानीपूर्वक देखा और फिर सार्वजनिक सुरक्षा मानकों, जिसे कानून का समर्थन प्राप्त है, उसको खरीदा और उसके बाद उन्हें इंटरनेट पर पोस्ट किया। मैंने पाया कि बिल्डिंग कोड, खतरनाक सामग्रियों की सुरक्षा, कारखाने में कर्मचारी की

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सुरक्षा, पानी में सीसा के परीक्षण के तरीकों, इत्यादि को संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय या राज्य स्तर पर कानून में शामिल किया गया था। मैंने 1,400 से अधिक ऐसे कानूनों को पोस्ट किया।


यह काम वर्ष 2008 में शुरू हुआ जब मैंने कैलिफोर्निया बिल्डिंग कोड को पोस्ट किया था उसे मैंने 979.95 डॉलर में खरीदा था। वर्ष 2012 तक मैंने सभी राज्यों के लिए अनिवार्य बिल्डिंग कोड के साथ-साथ पाइपलाइन, आग, बिजली, ईंधन और गैस और अन्य कोड पोस्ट कर दिए थे। मैंने संघीय कानून के लिए आवश्यक मानकों की एक बड़ी संख्या भी पोस्ट करनी शुरू कर दी थी जिसमें मैक्सिको की खाड़ी और आर्कटिक महासागर में तेल फैलने को रोकने, रेल सुरक्षा के ब्यौरे, खिलौनों के सुरक्षा मानक, बच्चे और शिशु के उत्पाद जैसे कार सीटें, क्रिब्स, प्लेपेन्स, स्ट्रॉलर्स, स्विंग्स और बाथ टब आदि थे।


वर्ष 2013 में तीन मानक संगठनों ने, कई सौ से ऊपर इन सार्वजनिक सुरक्षा कानूनों के लिए, मुझपर मुकदमा चलाया। अगले साल, तीन अन्य अभियोक्ताओं ने दसरा मुकदमा दायर किया। इन छह अभियोक्ताओं और उनके चार फैंसी 'सफेद जूते' वाले (व्हाईट-शू ) कानून फर्मों के चलते अदालत में चल रहे इन दो मामलों में काफी प्रगति हुई थी।


अभियोक्ता और हमारे बीच कोई असहमति अभी तक एक निर्णायक बिन्द पर नहीं पहुँची थी। जिन-जिन कोड के लिए मुझ पर मुकदमा किया गया था, वे देश के कानून हैं। हालांकि, अभियोक्ता ने यह महसूस किया कि उन्हें, इन कानूनों को अपनी मर्जी के अनुसार, उचित तरीके से वितरित करने का विशेष अधिकार, उनका होना चाहिए। उनका कहना था कि अगर गैर सरकारी नागरिक या सरकारी आधिकारिक को इन कानून का इस्तेमाल करने की आवश्यकता होगी तो उन्हें पहले उनसे अनुमति मांगनी होगी। यह अनुमति मनमाने ढंग से दी जाती थी। जैसे, उन्होंने छात्रों को, अपने कक्षा के प्रोजेक्ट्स में सुरक्षा कानूनों से फॉर्मुलों को शामिल करने से मना कर दिया था।


जब हमने मानकों को पोस्ट किया तो उन्हें स्कैन करना और इंटरनेट पर डालना, आसान और सस्ता काम नहीं था। चूंकि हमारी सरकार धीरे-धीरे काम करती है, इसलिए जिन काननों पर फ़ोर्स ऑफ लॉ लगा था, वो अब मानकों के संगठनों द्वारा नहीं बेचे जा सकते थे क्यों कि उनके नए संस्करण आ गए थे। मैंने आमेज़न, एबेबुक्स (Abebooks) और ईबे पर, पुरानी पुस्तकों के सेक्शन से, इन दस्तावेजों की कॉपीयों को मंगवाया।


एक बार दस्तावेज़ मिल जाने के बाद उनको पोस्ट करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सभी मानकों को स्कैन कर ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ओसीआर) के माध्यम से पहचाना गया। दस्तावेजों पर पहले एक कवर शीट डाली गई जिसमें यह कहा गया था कि इन्हें कानून में शामिल किया गया था और यह भी बताया गया कि इसे किस एजेंसी द्वारा किया गया था। सुरक्षा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण कई सौ मानकों के पूरे कोड को हमने आधुनिक एचटीएमएल में बदला। चित्रों को फिर से बनाया। उन दस्तावेजों को दृष्टिहीन लोगों के लिए कोडित किया। फिर सभी दस्तावेजों को हमारी साईट और 'इंटर्नेट आर्काइव' पर डाला। इंटरनेट आर्काइव ने, इसके बदले में अपनी साइट पर, इन दस्तावेजों में और भी उपयोगिताएं जोड़ दी, जैसा कि वे अपने अन्य सभी दस्तावेजों के साथ करते हैं। उन्होनें इसे ई-पुस्तक के रूप में रूपांतरित किया। उन्हें गूगल में डाला ताकि उसे आसानी से खोजा जा सकें, और जिसे पढ़ने वाला उसपर अपने कॉमेंट और रिव्यू लिख सके।

मानकों के संगठन खुश नहीं थे और मुकदमे में तीव्रता आ गई थी। वर्ष 2015 में हमें 23 दिनों तक कानूनी बयान देना पड़ा था, जिसमें तीन दिन मैंने बयान दिए। मेरे बयान के लिए प्रत्येक दिन 12-14 घंटे की पूछताछ शामिल थी। मेरे पक्ष में चार वकील थे। उनके पक्ष में छह वकील थे और साथ साथ स्टैनोग्राफर और विडियोग्राफर भी थे। पूछताछ जोरों से हो रही थी।

हम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हार गए। न्यायाधीश हमारे तर्क से सहमत नहीं थीं। उन्होंने माना कि ये सभी “कानून” थे लेकिन उनका कहना था कि अगर कांग्रेस यह कहना चाहती है कि ये कानून कॉपीराइट के अधीन नहीं हैं, तो वे ऐसा कानून पारित कर सकते थे। एक समय न्यायाधीश ने, हमें यूएस राजधानी की दिशा में इंगित करते हुए, “पहाड़ी पर बड़ी सफेद इमारत (US Capitol)” के दरवाजे पर दस्तक देने का सुझाव दिया।

हमने फरवरी 2017 में, अपील की नोटिस दायर की। लेकिन डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में काम धीरे-धीरे होता है। अदालत को समय निर्धारित करने में लंबा समय लगा। आखिरकार हमने अगस्त में अपनी फाईल का सारांश (ब्रीफ) दर्ज किया। सितंबर के अंत में हमारे न्यायमित्र सारांश (एमिकस ब्रीफ्स) दायर किए गए। हमारा प्रदर्शन बहुत मजबूत था। कन लाइब्रेरी एसोसिएशन और लॉ लाइब्रेरियों के अमेरिकन एसोसिएशन के अतिरिक्त जन साधारण के बहुत सारे विख्यात कानूनी प्रोफेसर और कानून पुस्तकालयों के अध्यक्ष (लाइब्रेरीयंस) भी शामिल थे।

इस ब्रीफ में ढेर सारे पूर्व सरकारी अधिकारी के हस्ताक्षर भी शामिल थे, जिनमें जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा नियुक्त रेमंड मोस्ले भी शामिल थे जिन्होंने 18 साल से ऑफिस ऑफ द फेडरल रजिस्टर (Office of the Federal Register) में काम किया था और साथ साथ पब्लिक प्रिंटर आफ युनाइटेड स्टेट्स भी थे। फ़ेडेरल रेगुलेशन्स के कोड के साथ-साथ, सरकार की ऑफिसियल जर्नल को प्रकाशित करने के लिये, ऑफिस ऑफ द फेडरल रजिस्टर (office of the Federal Register), गवर्नमेंट पबलिशिंग ऑफिस के साथ काम करता है। ये लोग कानून के प्रचार के लिए अधिकारिक तौर पर जिम्मेदार थे और यहीं लोग मेरा साथ दे रहे थे।

मेरे पूर्व बॉस जॉन डी, पॉडेस्टा और साथ ही लेबर विभाग के पूर्व सचिव रॉबर्ट रीच और ओक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (ओएसएचए) के पूर्व निदेशक डॉ. डेविड माइकल्स भी शामिल थे। ये सभी सरकारी अधिकारी इस प्रस्ताव पर एकजुट हुए थे कि सामान्य जनता जो इन कानूनों को पढ़ना चाहती है उन्हें पहले किसी निजी पार्टी की अनुमति लेने को मजबूर करना, गलत होगा। इस जान पाईस्टा (John Podesta) न, एक फोन वार्तालाप पर, 'पागलपन' कहा। जाने-माने ट्रेडमार्क प्रोफेसरों के समूह ने भी एक ब्रीफ दायर की। कांग्रेसवुमेन लोफग्रेन और कांग्रेसमेन इसा ने हमारे लिए ब्रीफ दर्ज की थी कि लोकतंत्र में कानून सहज उपलब्ध होना चाहिए। दोनों सांसदों ने सदन की न्यायिक समिति में कई सालों की सेवा (Self-Employed Women's Association of India) की है। सांसद इसा, कोट्र्स, इंटलेक्चुयल प्रोपर्टी और इंटरनेट के उपसमिति के अध्यक्ष हैं, और यह मुद्दा उनके कानूनी अधिकार के दायरे में आता है। यह काफी दमदार था।

नवंबर में, अभियोक्ताओं (प्लेन्टिफ्स) ने अपने ब्रीफ दायर किया। उन्होंने अपने लिये एक नए वकील लाये, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व सॉलिसिटर जनरल थे। दिसंबर के प्रांरभ में उनके अन्य मित्र भी आ गए थे। अधिष्ठान (एस्टैब्लिशमेंन्ट) इस बात से पूरी तरह असंतुष्ट था। अमेरिकन इंश्योरेंस एसोसिएशन और इंटरनेशनल ट्रेडमार्क एसोसिएशन दोनों ने ब्रीफ दायर किए। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के साथ अमेरिकन डेंटल एसोसिएशन और अमेरिकन हॉस्पिटल एसोसिएशन भी शामिल थे।

आखिर में 10 अन्य मानक संगठनों के साथ, अमेरिकी राष्ट्रीय मानक संस्थान (American National Standards Institute) ने एमिकस ब्रीफ दायर किया, जिसमें जिनेवा में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन भी शामिल था। उनका तर्क सरल था: हमें पैसे चाहिए। हमें पैसे की ज़रूरत है। अगर हमारे पास कानून बेचने का विशेष अधिकार नहीं है, तो हम उच्च गुणवत्ता वाले सुरक्षा मानकों का उत्पादन नहीं कर पाएंगे।

मैं इस तर्क से काफी असहमत हूँ। मानकों के संगठन ढेर सारे मानकों का निर्माण करते हैं, पर केवल कुछ ही कानून बन पाते हैं। जब सभी 50 राज्यों में नैशनल इलेक्ट्रिकल कोड कानून बनते हैं, तो वे प्रेस रिलीज़ जारी करते हैं और इसके बारे में अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शान से कहते हैं। मानकों के संगठन इन दस्तावेजों को शीघ्र कानून बनाना चाहते हैं। ऐसा करने से, उन्हें अमेरिकी लोगों की स्वीकृति मिलती है और वे अपनी सेवाओं की बिक्री करने में इससे बहुत लाभ उठाते हैं।

भारत में मानक दस्तावेज़ों की बिक्री में ज्यादा पैसा नहीं है। असली पैसा उत्पाद के प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) में है। मसलन बल्ब और वाशिंग मशीन जैसे उपभोक्ता उत्पादों को प्रमाणित करने वाली संस्थान अंडरराइटर्स लेबोरेटरीज, प्रति वर्ष 2 बिलियन डॉलर से अधिक प्रमाणीकरण रिवेन्यू से कमाता है। इसी तरह भारत में, ब्यूरो के रिवेन्यू का ज्यादा बड़ा भाग उनके अनिवार्य प्रमाणीकरण कार्यक्रम से आता है। प्रमाणीकरण के अतिरिक्त हैंडबुक, प्रशिक्षण, सदस्यता शुल्क जैसे और कई आय के आकर्षक स्रोत हैं।

जैसा कि अदालतों ने पहले बताया है, ये मानक सिर्फ कानून बनने के लिये नहीं बनते हैं। वे कानून बनते हैं क्योंकि उस उद्योग के सदस्यों ने कानून लिखने में मदद की है। कुछ दस्तावेजों को बेच कर ज्यादा पैसा नहीं कमाया जा सकता है। अधिक मूल्य कमाने का जरिया वे कंपनियाँ हैं जो कहती हैं कि 'हम कानून का अनुपालन करते हैं।

अधिक धन कमाने का एक और उदाहरण है जो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मानकों के संगठनों को वास्तव में पैसे की आवश्यकता नहीं है, वे पूर्णरूप से लालची हो गए हैं। जैसा कि रॉस पेरॉट ने इतने बेहतरीन ढंग से ओवरपेड और आलसी अधिकारियों के एक और बैच का वर्णन करते हुए कहा कि वे “मोटे, सुखी और थोड़े से बेवकूफ बन गए थे।

अमेरिकन नेशनल स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूट, अन्य सभी मानकों के संगठनों की तरह, आंतरिक राजस्व सेवा (Self-Employed Women's Association of India) (इनटर्नल रेवेन्यू सर्विस) में, प्रमाणित गैर-सरकारी चैरिटी के रूप में पंजीकृत हैं। वे वर्ष 2015 में 44.2 मिलियन डॉलर का राजस्व कमाए। उस राजस्व के लाखों डॉलर कुछ वरिष्ठ मैनेजरों की भरपाई में खर्च हो गए। सीईओ सालाना वेतन में 2 मिलियन डॉलर कमाता है, और सभी वरिष्ठ मैनेजरों ने स्वयं को कार्य सप्ताह में, 35 घंटा काम करने वाला बताया है। इसी तरह, नेशनल फायर प्रोटेक्शन एसोसिएशन ने सीईओ को प्रति वर्ष 1 मिलियन डॉलर का भुगतान ही नहीं किया, बल्कि जब वे रिटायर हुए तो उन्होंने उन्हें 4 मिलियन डॉलर का रिटायरमेंट चेक भी दिया।

एक चैरिटी (नॉन-प्रॉफिट) संस्था के लिए इस प्रकार का वेतन मोटी रकम होती है। उनके लिए पैसा संस्था के लक्ष्य से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है और उन्होंने अपनी सेवा (Self- Employed Women's Association of India) की भावना खो दी है। हालांकि, मुझे एक चीज़ स्पष्ट करनी है। ये संगठन बहुत से उच्च गुणवत्ता वाले कोड और मानकों को बनाते हैं। वे वास्तविक कार्य करते हैं, लेकिन यह सारा काम समर्पित एवं स्वेच्छा से काम करने वाले लोंगो (वालेन्टियस) द्वारा किया जा रहा है न कि पीछे ऑफिस में बैठे मोटी तनख्वाह पाने । वाले अधिकारियों द्वारा । किसी को भी नेशनल इलेक्ट्रिकल कोड लिखने के लिए पैसे नहीं मिलते हैं। यह हजारों वालेन्टियर्स द्वारा व्यावसायिक और सार्वजनिक सेवा (Self-Employed Women's Association of India) की भावना से तैयार किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में समर्पित संघीय कर्मचारी, राज्य कर्मचारी और स्थानीय कर्मचारी शामिल हैं।

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मझे यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि इस समय मेरी काननी लड़ाई में ज्यादातर कार्य एवं योगदान पब्लिक संसाधन (रिसोस) का प्रतिनिधित्व करने वाले लॉ फर्मों द्वारा किया जा रहा है। मुझे बेशक सभी ब्रीफ पढ़ने होते हैं, और मैं अपना अत्यधिक समय कानूनी प्रक्रिया में और अपने मामले की योग्यता के बारे में जानकारी लेने में लगाता हूँ। यह विशेष रूप से तब होता है जब हम खोज और बयान की गहन प्रक्रिया में होते हैं। मैं इसमें नजदीकी तौर पर शामिल था, जो निश्चित रूप से हमेशा अच्छी बात नहीं हो सकती है। एक वकील नहीं होने के कारण (मैं अपना पहला साल पूरा करने के बाद जॉर्ज टाउन लॉ स्कूल में पढ़ाई छोड़ दी), मैं अपने वकीलों को अपने मूढ़ सवालों से और अनुभव की कमी के कारण, पागल कर देता हूँ। लेकिन, क्योंकि मैं अपने मामले के तथ्यों को जानता हूँ और मैं कड़ी मेहनत करता हूँ, वे मुझे सहन करते हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि जब आप किसी लॉ फर्म को हायर करते हैं, तो आप ग्राहक हैं और आप जो कहेंगे, वो लोग वैसा ही करेंगे। पर यह काम ऐसे नहीं होता। वकील, विशेष रूप से मेरे साथ काम करने वाले अनुभवी वरिष्ठ वादी (लिटिगेटस) को कानून के बारे में मुझसे कई गुना ज्यादा पता है। अधिकांश समय, उनका काम यह बताना है कि केस का वास्तविक रूप कैसा होगा। यह विचार कि आप अपने वकील को आदेश दे सकते हैं और वे केवल आज्ञा का पालन करेंगें, तो यह प्रो बोनो कानूनी प्रतिनिधित्व की दुनिया में बहुत ही कम सही है। मैं आभारी हूँ कि दुनिया भर के नौ प्रमुख कानून फर्स, पब्लिक रिसोर्स का प्रतिनिधित्व करने के लिए, प्रौं बोनो आधार पर सहमत हुए हैं। वर्ष 2015 में, उन्होंने कानूनी समय के रूप, 2.8 मिलियन डॉलर का योगदान दिया। वर्ष 2016 में यह 1.8 मिलियन डॉलर से अधिक का हुआ, और वर्ष 2017 में, 1 मिलियन डॉलर से भी अधिक का हुआ। हमारी लड़ाई उनके सहयोग के बिना संभव ही नहीं है। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे और आखिरकार हमें इस संघर्ष से पीछे हट जाना पड़ता।

पुनः मैं ‘रीयल डेटा' पर काम करने लगाः मेरा ‘ब्रेड लेबर'

जैसे नवंबर खत्म होने वाला था, मैंने भारत से अपने बचे कामों पर, काम करना जारी रखा। सबसे महत्वपूर्ण भारत की डिजिटल लाइब्रेरी का काम था, जिसे मैंने भारत की पब्लिक । लाइब्रेरी में बदल दिया। सरकार ने तब भी अपना संस्करण वापस ऑनलाइन नहीं किया था और संस्कृत के विद्वानगण मुझे अतिरिक्त सामग्री के लिए नोट्स भेज रहे थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) से प्राप्त 4,450 पुस्तकों को जोड़ कर, हमने कुल 4,00,000 पुस्तकों के वॉल्यूम्स ऑनलाइन कर डाले।

इसके अलावा भारत के आधिकारिक राजपत्रों को ऑनलाइन करने में काफी समय लग रहा था। संघीय सरकार के राजपत्रों को इंटरनेट पर मिरर करना सीधा कार्य था। पब्लिक लाइब्रेरी संग्रह (रिपॉजिटरी) में खोजते वक्त मुझे स्वतंत्रता से पहले के कई सौ पुराने राजपत्र मिले, और उन्हें भी संग्रह में जोड़ दिये गए। हालांकि मुश्किल भाग, राज्य सरकारों और कई बड़े शहरों के राजपत्र से संबंधित थे।

एक उदाहरण ओड़िशा राजपत्र का था, जो 43 लाख लोगों के राज्य का आधिकारिक प्रकाशन है। मैंने एक स्क्रिप्ट लिखा जिससे राजपत्र के 38.073 प्रकाशन, पीडीएफ फाइलों में आ गए। लेकिन, जब मैंने ये स्क्रिप्ट चलाई और कुछ फाइलों को देखा तो पाया कि उन्होंने ओड़िया भाषा के लिए एक ख़ास फ़ॉन्ट को रेफर किया था जो पीडीएफ फाइल में एम्बेडेड नहीं था। इस कारण हम जो भी देख रहे थे वह सब कचरा दिख रहा था, क्योंकि हमारा कंप्यूटर, फ़ाइल में एम्बेड किए गये फ़ॉन्ट्रों के बजाय सिस्टम पर इंस्टॉल किए गए फ़ॉन्ट्रों के बीच उस ख़ास फ़ॉन्ट को खोज रहा है।

कई स्क्रिप्ट चलाने के बाद मैंने तय किया कि 35,705 फाइलों में यह समस्या थीं। मझे। उन्हें इंटरनेट आर्काइव में अपलोड करने से पहले फॉट को एम्बेड करना था। लेकिन, जो फ़ॉन्ट आपके सिस्टम पर होगा वह अस्पष्ट होगा। बहुत साल पहले यह एक भारतीय अनुसंधान संस्थान द्वारा तैयार किया गया था। कई दिनों तक खोजने के बाद, मैं इसे न कहीं बेचा जाता पाया, न डाउनलोड करने के लिये पाया, इसलिए मैंने इस समय ओड़िशा का काम तत्काल रोक दिया हैं।

अन्य राज्यों के काम और भी मुश्किल थे। ओड़िशा के मामले में, मैं राजपत्र के मुद्दों की लंबी सूचियों के साथ इंडेक्स फाइलों को खींच सकता था और उस इंडेक्स फ़ाइल में पीडीएफ फाइल पर एक यूआरएल था। पहले इंडेक्स फ़ाइल को डाउनलोड करना, फिर उन्हें मेटाडेटा और फाइल अड्रेसेस में पार्स करने से, सभी पीडीएफ फाइलों को लाना काफी सहज था। लेकिन, अधिकांश राज्यों के केस में यह सीधा काम नहीं था।

राज्यों के अधिकांश राजपत्र माइक्रोसॉफ्ट सर्वर सॉफ्टवेयर पर आधारित हैं जो पीडीएफ फाइलों के यूआरएल (नेटवर्क एड्रेस) को नहीं दिखाते हैं। समस्या यह थी कि हर राज्य में उनके प्रकाशन की प्रत्येक प्रति को पाने का एक अलग अपारदर्शी तरीका था। भारत में कई दर्जन आधिकारिक राजपत्र हैं, प्रत्येक राज्य के लिए, और दिल्ली जैसे प्रमुख नगर पालिकाओं के लिए भी। प्रत्येक को अलग ढंग से प्रोग्राम किया जाता है।

हमने कलेक्शन में कुल 1,63,977 पीडीएफ फाइलें एकत्रित की थी, लेकिन यह स्पष्ट था। कि यह सही काम करने के लिए, हमें वर्ष 2018 में गंभीर काम करना होगा। सभी राजपत्रों के लिए न केवल फाइलों को लाना था बल्कि संग्रह को वास्तव में उपयोगी बनाने के लिए उन्हें अपडेट करना था। साथ ही उन राजपत्रों को उस रूप में व्यवस्थित भी करना था जिस रूप में हम उन्हें दिखाना चाहते थे। स्कैन किए गई राजपत्रों पर उच्च गुणवत्ता वाले । ऑप्टिकल कैरेक्टर जैसे मुद्दों से गुजरना पड़ा। पब्लिक लाइब्रेरी आफ इंडिया बनाते हुए हमें इन मुद्दों से गुजरना पड़ा। केंद्र, राज्य सरकार और शहरों से राजपत्रों को डाउनलोड करते हुए हमने पाया कि उनमें से बहुत तो काफी अव्यवस्थित थे और कुछ गायब थे। अतः उनके गुणवत्ता का आश्वासन होना काफी जरूरी था।

किसी भी देश के लिए सरकार के आधिकारिक पत्रिकाओं का उद्देश्य नागरिकों को उनकी सरकार के कार्य के बारे में सूचित करना है। यह संयुक्त राज्य के संघीय रजिस्टर के बनने का कारण था, जो संघीय सरकार की आधिकारिक पत्रिका है। सुप्रीम कोर्ट में एक प्रसिद्ध कोर्ट का मामला चला था जिसमें सरकार ने ग्रेट डिप्रेशन के दौरान एक समूह पर नियमों के साथ गैर-अनुपालन के लिए मुकदमा दायर किया था, लेकिन कोई भी वास्तव में उन नियमों को नहीं ढूंढ पाया क्योंकि वे कभी प्रकाशित ही नहीं हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बैंडिस के आग्रह पर हार्वर्ड लॉ प्रोफेसर ने एक “गवर्नमेंट इन इग्नोरेंस ऑफ़ द लॉ - ए प्ली फॉर बेटर पब्लिशिंग ऑफ एक्ज़ीक्यूटिव लॉजिस्लेशन” नामक एक प्रमुख पर्चा लिखा था। इससे एक औपचारिक प्रक्रिया जारी हुई, जिसमें सभी सरकारी विनियमन के पहले प्रारंभिक रूप में प्रकाशित किए जाएंगे, जिसे प्रस्तावित नियम बनाने की सूचना” के रूप में जाना जाता है ताकि नागरिकों को पता हो कि क्या हो रहा है। फिर अंतिम नियम भी प्रकाशित किए जाएंगे। संपूर्ण विनियमन तब एक समेकित दस्तावेज, यानि कि संघीय विनियमन कोड में शामिल किया जाएगा, जो सभी संशोधनों, विलोपन और सहायक ऐतिहासिक नोट्स और पोइंटर्स के साथ अप-टू-डेट किया जाएगा।

संघीय स्तर पर उन तकनीकी मानकों को जो कानून का दर्जा पा चुके हैं उन्हें उपलब्ध कराने की मेरी लड़ाई में, मैंने संघीय नियमों के कोड में बहुत बड़ी कमी पायी। मैंने अनुमान लगाया है कि 30 प्रतिशत से अधिक कोड, बहुत पैसे खर्च किए बिना और निजी पाटी से। पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना, नागरिकों के लिए उपलब्ध नहीं हैं। फिर ऐसे कई मॉडल कोड और मानक हैं, जो स्वयम् कानून का दर्जा नहीं पाये हैं लेकिन जो अन्य कानूनी दर्जा पाये नियमों में “संदर्भ द्वारा शामिल किए गए हैं। पहले ऐसे प्रक्रिया बनाने का उद्देश्य था जगह बचाना लेकिन अब यह निजी संगठनों द्वारा नागरिकों की पहुंच को सीमित करने के लिए, और अन्यायपूर्ण किराए वसूलने का एक अच्छा ज़रिया बन गया है।

मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका में कानून के पब्लिक प्रिंटिंग में लंबे समय से दिलचस्पी रही है, इतना कि संयुक्त राज्य के पब्लिक प्रिंटर के रूप में माने जाने के लिए, मैंने अपना नाम भी दिया था। पब्लिक प्रिंटर एक वरिष्ठ अधिकारी होता है जो संघीय स्तर पर कानून का प्रचार करता है और सरकारी प्रिंटिंग कार्यालय का निदेशक होता है। मुझे नौकरी नहीं मिली, लेकिन मैं शॉर्टलिस्ट में था। मैंने देखा कि व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के कार्मिकों का कार्यालय कैसे काम करता है, और उस दौरान मैंने प्रिंटिंग ऑफिस के बारे में बहुत कुछ सीखा, और यह अनुभव बहुत ही लाभप्रद था।

पब्लिक प्रिंटिंग में मेरी रुचि होने के कारण, मेरे पास इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के साथ दुनिया भर में संपर्क भी थे। इनमें से एक जॉन शेरिडन (John Sheridan) हैं, जिन्होंने यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रीय अभिलेखागार के तत्वावधान में, कानून के प्रचार के लिए शायद दुनिया में सबसे अच्छी व्यवस्था बनाई है। यह एक बढ़िया प्रणाली है, जो इंगलैंड के सभी कानूनों को शब्दशः देखने देती है। आप मैग्ना कार्टा के शब्दों को वैसे ही देख पाएंगे। जैसे वे नियम बनाए गए थे, पुनः बनाए गए थे, और समय के साथ कैसे संशोधित होकर बदले थे।

भारत में, कानून तक लोगों के पहुंच बनाने का सवाल खुलकर सामने आया है। निशीथ देसाई एसोसिएटस, गौरी गोखले और जयदीप रेड़ी की फर्म के दो वकीलों ने, “ए पश फोर प्रोसेडुरल सर्टेनिटी (a push for procedural certainity)” पर ‘वांटेज एशिया' (Vantage Asia) नामक पत्रिका में एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने नियमों और विधियों की स्थिति का पता लगाने में असमर्थता के कई उदाहरण दिए। मेरे मामले में काम कर रहे मेरे दोस्त और सह-याचिकाकर्ता, सुशांत सिन्हा ने, जिसने पत्रिका ‘भारतीय कानून में सभी अदालत के मामलों और कानूनों के फ्री ऑनलाइन कलेक्शन डाले हैं, इस विषय में भी गहरी रुचि ली। मेरे अन्य सह-याचिकाकर्ता, श्रीनिवास कोडली ने आधिकारिक राजपत्रों के संग्रह की शुरुवात की थी।

हम अकेले नहीं थे। सितंबर 2017 में, दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय जस्टिस मनमोहन ने एक सुनवाई में कानून तक पहुंच की स्थिति के बारे में सुना था और फिर कानून मंत्रालय को एक बेहतर प्रणाली बनाने का आदेश दिया, जो सभी केंद्रीय अधिनियम और अधीनस्थ कानून को एक केंद्रीय पोर्टल पर उपलब्ध कराए। आदेश में कहा गया है कि कानून को मशीन रीडेबल पीडीएफ फॉर्मेट” के रूप में उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि पीडीएफ फाइल से टेक्स्ट निकाले जा सकते हैं और इसका इस्तेमाल बिग डेटा एनालेसिस, एचटीएमएल, बेहतर मेटाडेटा, और अन्य उपयोगों के लिए किया जा सकता है। यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र को वर्ष 2018 और आने वाले समय में महत्वपूर्ण ध्यान दिया जाएगा। कोड स्वराज पर नोट

मैं सरकार के कामों की उपेक्षा क्यों कर रहा था?

मैंने अपने दिन, गांधी जी के बारे में इकट्ठा सामाग्री को देखने में, 6000 अमेरीकी सरकारी फिल्मों को संग्रहित करने में, आधिकारिक राजपत्रों को पढ़ने में बिताए। लेकिन इन कामों में कोई ऐसा काम नहीं था, जो मुझे करना चाहिए था। इसके बजाय मुझे अमेरीकी सरकार के कामों पर अपनी शोध के परिणामों को प्रकाशिक करना चाहिए था।

अमेरीका में, और अधिकांश राष्ट्रीय कॉपीराइट सिस्टम के साथ, उन चीजों की एक सूची है, जिन्हें कॉपीराइट नहीं किया जाता है। अमेरीका में, अपवादों में सबसे उल्लेखनीय है, अमेरीकी सरकार का काम, जो अमेरीकी संघीय कर्मचारियों या अधिकारियों द्वारा उनके आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किये गये हैं। इस अपवाद के पीछे का उद्देश्य यह है कि कर्मचारी, जनता के सेवक है। जनता कर्मचारियों को वेतन देती हैं और उनके काम का उत्पाद उनके नियोक्ता, अर्थात् जनता का है। यह एक सरल और शक्तिशाली अवधारणा है।

सरकार का काम है कि वह पता लगाए कि 1990 के दशक के प्रांरभ से पेटेंट एंड सिक्यॉरिटी एंड एक्सचेंज डेटाबेस को सरकार राजस्व के स्रोत के रूप में उच्च कीमत पर कब और क्यों बेच रही थी जब कि मैं उन डेटाबेसों को मुक्त करने में सक्षम था। डेटाबेस को खरीदने के लिए प्रति वर्ष कई सौ हजार डॉलर का खर्च करने पड़ते हैं। मैं इतना पैसा जमा कर पाता तो मैं इसे खरीद लेता। जब मेरे पास डेटा है और उस पर किसी भी प्रकार का कॉपीराइट नहीं है तो उसे मैं इंटरनेट पर डाल सकता हूँ।

विडंबना यह है कि जिस तरह से मैंने इन सरकारी दस्तावेज़ो को अमेरिकी सरकार से खरीदा ताकि मैं इसे लोगों को बाँट सकें, तो ऐसा करने के लिये मेरे पास केवल एक ही रास्ता है कि मैं सरकार के अन्य अंग, नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) से अनुदान के लिए आवेदन करूं। एनएसएफ ने, उस समय के दौरान इंटरनेट के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अभी इसके डिविजन डायरेक्टर, स्टीफन वॉल्फ जो एक बहादुर व्यक्ति थे, उन्होंने मुझे यह अनुदान दिया।

जब इस नई परियोजना के बारे में खबर फैली, तो शक्तिशाली ‘हाउस एनर्जी’ कमेटी के अध्यक्ष डिंगेल ने नेशनल साइंस फाउंडेशन को एक तीखा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने पूछा था कि वे इस जानकारी को बांट कर, निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा क्यों कर रहे हैं। न्यूयार्क टाइम्स में छपे उप राष्ट्रपति गोरे के बयान के बाद ही ऐसा हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “यह अमेरिकी जनता के लिए एक बड़ी जीत” और अब चीजें सही हो गई थी। उस दिन के बाद से मैं अल गोरे का हमेशा प्रशंसक रहा हूँ।

मानकों को ऑनलाइन रखने के अपने काम के दौरान, मैंने देखा कि संघीय कर्मचारियों ने इन महत्वपूर्ण सुरक्षा कानूनों को बनाने में काफी योगदान दिया है, फिर भी निजी मानक निकाय उन पर कॉपीराइट का दावा करती हैं। यही प्रचलन, अन्य विद्वावतापूर्ण प्रकाशनों (स्कोलरली पब्लिकेशन) में भी, अधिक व्यापक रूप से होता है। कानून के बारे में मेरे काम की वजह से, मैंने राष्ट्रपति ओबामा के विद्वतापूर्ण कार्यों पर नजर डाला है और ‘हार्वर्ड लॉ रिव्यू' में प्रकाशित उनके एक लेख को ध्यान से पढ़ा है। मुझे यह अजीब लग रहा था कि हार्वर्ड लॉ रिव्यू उनके काम पर, अपने कॉपीराइटर का जोर दे रहा था। मैंने इसी तरह की बात ‘साइंस' जैसी पत्रिकाओं में भी देखा जहां उन्होंने अपने लेखों को प्रकाशित किया था।

इस तरह की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, वर्ष 2016 में एक प्रमुख संस्था ने मुझसे संपर्क किया। इस क्षेत्र में काम करने के लिए, अक्टूबर 2016 में, उन्होंने वर्ष 2017 के लिए 5,00,000 डॉलर और वर्ष 2018 में 4,00,000 डॉलर देने की पेशकश की। हालाँ कि इसमें एक चाल थी। उन्होंने हमारे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में एक सीट की मांग की और वे मेरे काम पर विस्तृत नियंत्रण हासिल करना चाहते थे। उसमें प्रत्येक काम जैसे जैसे पूरा होता, वैसे वैसे पैसौं का भुगतान किया जाना था। मुझे याद है कि मैं दिनेश त्रिवेदी के बंगले में बैठा था, जब अमेरिका से आये फोन पर मुझे इन शर्तों का पता लगा। फिर मैं बाहर लिविंग रूम में आया और दिनेश और सैम को बताया कि अभी अभी मैंन, 9,00,000 डॉलर का अनुदान को अस्वीकार कर दिया हूँ।

मैंने उस प्रतिष्ठान को समझाया था कि उनके पैस से हमें, सरकार के कार्यों का गहराई से अध्ययन करने में, किसी प्रकार के उल्लंघन पाने पर सरकार और प्रकाशकों को इन उल्लंघन के बारे में सूचित करने में, और फिर शायद वैसे किसी भी लेख को प्रकाशित करने में जो पब्लिक डोमेन में स्पष्ट रूप से है, जैसे कार्यों को करने में सहायता मिलेगी। हालांकि, इसका अधिकांश पैसा किसी पत्रिका के लेख को स्कैन करने (यदि आप इसे बड़े स्तर पर करते हैं) के लिये पुस्तकालय विज्ञान के स्नातक छात्रों को भुगतान करने में ही खर्च हो जाएगा।

हालांकि अनुदान में कोई भी कानूनी खर्च शामिल नहीं होगा। यहां तक कि यदि हमें बड़ी संख्या में, किसी पत्रिका में वैसे लेख मिलते हैं, जो स्पष्ट रूप से पब्लिक डोमेन में हैं और उन्हें हम प्रकाशित करते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि प्रकाशक, जो ज्यादातर झगड़ालू किस्म के होते हैं, इसके बाद हम पर मुकदमा नहीं करेंगे। अपने बेइमानी से मिले राजस्व प्रवाह को बनाए रखने के लिए, या सिर्फ बदले की भावना से, या हमारे काम में रुकावट डालने के लिये, वे मुकदमें की रणनीति अपनाएंगे।

दूसरे शब्दों में, यह अत्यधिक संकट भरा काम था। मेरा अनुदान अस्वीकार करने का कारण यह था कि मैं, प्रतिष्ठान के अधिकारी को हमारे बोर्ड के सदस्य बनने, और हमारी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने की अनुमति नहीं दे सकता था क्योंकि मैंने कभी उनके साथ काम नहीं किया था। कुछ प्रतिष्ठान, कुछ काम करवाने के लिए केवल पैसा देती है। यदि आप उनकी परियोजना पर काम करेंगे, तो वे आपको पैसा देंगे, लेकिन हम ऐसे काम नहीं करते हैं और हम पैसों से पहले, अपने मिशन को महत्व देते हैं।

आखिरकार प्रतिष्ठान फिर वापस आई और जनवरी 2017 में हमें 2,50,000 डॉलर का अनुदान देने के लिए सहमत हो गई। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट जमा होने के बाद, जुलाई में अतिरिक्त राशि 2,50,000 डॉलर देंगे। बाकी बचा हुआ 4,00,000 डॉलर वर्ष 2018 और 2019 में किश्तों के रूप में मिलेगा। यह काफी बड़ा अनुदान था। इसमें बहुत सारे टुकड़ों में पैसे आ रहे थे जैसा कि मैं नहीं चाहता था, फिर भी मैंने कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए थे। कोड स्वराज पर नोट

प्रकाशकों के संदेहात्मक कार्यों की छान बीन

मैंने वर्ष 2017 के शुरूआती छह महीने तक सरकार के कार्यों पर निरंतर शोध किये। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के दो प्रोफेसरों और स्नातक छात्र के साथ काम करके, और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और स्टैनफोर्ड के पुस्तकालय अध्यक्षों की सहायता से हमने विद्वावतापूर्ण साहित्य के लेखकों की संबद्धता (ऑथर एफिलिएशन) की तलाश १ वास्तव में इस जर्नल डेटाबेस की जानकारी का पता लगाना आसान काम नहीं है क्योंकि ऑथर एफिलिएशन को विभिन्न तरीकों से लिखा जा सकता है।

हुमने मूल रूप से जो किया वो यह है कि प्रत्येक सरकारी एजेंसी को, पुस्तकालयों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले तीन विभिन्न वाणिज्यिक सर्च इंजनों में डाल दिया, और फिर उनके परिणामों को अध्ययन किया। उदाहरण के लिए यदि आप “रोग नियंत्रन केन्द्र” को सर्च करते हैं तो आपको केवल संयुक्त राज्य अमेरिका की एजेंसियों के ही नहीं, बल्कि चीन के ऐसे केन्द्रों का भी विवरण प्राप्त होंगे। इसलिए आप एजेंसी के नाम खोजते वक्त “अमेरिका” or “संयुक्त राज्य” अथवा “अटलांटा” डालकर अपने खोज को सूक्ष्म बना सकते हैं।

हमें जो परिणाम प्राप्त हए वो असाधारण थे। हमारे प्रारंभिक ऑडिट में 12.64,429 लेखों का पता चला जो संघीय कर्मचारियों के लग रहे थे। प्रारंभिक सूची से हुमने द्वितीय स्तर का विशलेषण किया जिसमें विभिन्न प्रश्न पूछे गए थे। संघीय कर्मचारियों के लिए, अपने समय में और बिना संघ की निधि का उपयोग, लेख लिखने की छूट है। यहां तक कि यदि लेख कर्मचारी के विशेषज्ञता के अधीन भी हो तब भी यह सरकारी काम नहीं माना जाता है। हम लोगों के लिये यह प्रश्न था कि क्या ऐसे छपे लेख उनके अधिकारिक कर्तव्य के रूप में । किये गये थे और जिसे कॉपीराइट से परे समझना चाहिए या नहीं। हमारे मन में प्रश्न था कि क्या छपे आर्टिकल्स को कॉपीराइट से मुक्त होने के लिए यथोचित रूप से चिह्नित किया गया था, जो कानूनी तौर पर जरूरी होता है।

हमारे विश्लेषण ने हमें 1.2 मिलियन लेख को उल्लेख करने के, दो तरीके सुझाए। पहली बात, उन्होंने डिजिटल ऑब्जेक्ट आइडेंटीफायर का उपयोग किया था, जिससे हम यह निर्धारित कर सकते थे कि किस प्रकाशक से हमें कितने सरकार के कार्य मिले। उदाहरण के लिए, रीड एल्सेवीयर की एक कॉर्पोरेट शाखा में 2,93,769 लेख थे, जबकि अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के पास 5, 961 लेख थे। इसके अलावा चूकि हमने सर्च करने में एजेंसियों के नाम दर्ज किया थे, अतः हम प्रत्येक एजेंसी द्वारा छपे लेखों को को अलग अलग कर के निकाल लिये थे। उदाहरण के लिए, हमें आर्मी कौर्स आफ इंजीनियर्स के कर्मचारियों द्वारा लिखे 20,027 लेख और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (नेशनल इंस्टिच्यूट आफ हेल्थ) के कर्मचारियों के 45,301 लेख मिले।

29 प्रमुख प्रकाशकों के लिए, सांख्यिकीय रूपी से मान्य, लेखों के नमूने निकाले गये, जिसमें छोटे प्रकाशकों के लिए 50 लेख से लेकर, बड़े प्रकाशकों के लिए 500 लेख रखा गया था। 22 सरकारी एजेंसियों में से प्रत्येक के लिए इसी प्रक्रिया को संचालित किया गया था। अंत में, हमने लगभग 10,000 लेख निकाले और प्रत्येक की व्यक्तिगत परीक्षण से सत्यापन की जाँच की गई कि क्या शीर्षक पष्ठ पर कॉपीराइट दावों के साक्ष्य हैं। इसके साथ साथ हमें हमारे खोज परिणामों की सटीकता की जांच करनी थी ताकि गलत परिणामों (फाल्स पाजिटिव) को छांटा जा सके, और इसके लिये लेखकों के आधिकारीपना” के संकेतों कों तलाश करना था, जैसे कि लेखकों ने अपने लेख की समीक्षा के लिए अपने किस तरह के सहयोगियों का धन्यवाद किया है, या इसके विपरीत, क्या लेख यह दर्शाता है कि उन्होंने सरकारी सेवा (Self-Employed Women's Association of India) में प्रवेश करने के पहले यह काम किया था।

परिणाम बेहद स्पष्ट थे। जितने भी लेख हमें मिले उनमें से अधिकांश लेख अमेरिकी सरकार के अधीन किए गए काम थे। और किसी भी मामले में प्रकाशक ने इसे कॉपीराइट से परे नहीं दिखाया था। अधिकांश मामलों में, लेख सावधानी से एक ‘पे वॉल' के पीछे छिपे हुए थे और निश्चित रूप से कोई भी लेख सरकार की वेब साइट पर उपलब्ध नहीं थे। प्रत्येक एजेंसी के द्वारा राष्ट्रीय पुरालेख (नेशनल आर्काइव) पर डाले रिकॉर्डों के परीक्षण से यह स्पष्ट था कि आर्काइव में इन लेखों की प्रति नहीं थी।

ज्यादातर शोध विषयों के लिए, बड़े पैमाने पर किये गये ग्रंथसूची खोज (बिब्लियोग्राफिक सर्च) सफल रहे हैं। लेकिन विधि (लीगल) व्यवसाय के लिए ऐसा नहीं है, क्यों कि वे प्रौद्योगिकी की अनभिज्ञता पर जानबूझ कर गर्व करते हैं। विधि साहित्य सामान्यतः विशेष विक्रेताओं के साथ ऐसे जुड़े होते हैं कि ये सामान्य ग्रंथसूची सर्च इंजनों से नहीं खोजे जा सकते हैं। हालांकि, मैं वास्तव में यह जानना चाहता था कि विधि पत्रिकाओं में क्या विशेष बात थी क्योंकि यह काम कानून से संबंधित थी। मैंने देश भर के लॉ के विद्यार्थियों की सहायता ली, और मेरे साथ जुटे एक स्वयंसेवक, येल लॉ स्कूल के मीशा गुटेनटैग (Misha Guttentag), के नेतृत्व में कुछ प्रमुख जर्नल को उठाकर, उसके प्रत्येक अंक को एक एक कर के उन लेखों की सूची के तैयार करने के लिए कहा जिसे संघीय कर्मचारियों ने लिखे थे,और उन्हें एक स्प्रेडशीट्स पर डाल कर पेश करने को कहा।

विश्वविद्यालय की विधि समीक्षा (यूनिवर्सल ला रिव्यूज़) पत्रिका के अलावा, विधि प्रकाशन में एक और प्रमुख पत्रिका है अमेरिकी बार एसोसिएशन की। मैंने यह काम खुद किया और दर्जनों अलग-अलग प्रकाशनों में कई दशकों के लेखों की जांच च्यक्तिगत रूप से की। मुझे 552 लेख मिले जो निश्चित रूप से ऐसे लगते थे, जैसे वे संघीय कर्मचारियों के थे, जो संभवतः उन्होंने आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किये गये थे।

ऐसा ही एक उदाहरण है संघीय व्यापार आयोग के एक आयुक्त का। वो एजेंसी के विनियामक कार्यों और आने वाले वर्ष के लिए सुधारों पर, स्पर्धारोधी (एन्टीट्रस्ट) बार को ब्रीफ कर रहे थे। एक अन्य उदाहरण है एक सैन्य अधिकारी का। वह अपनी आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान, प्रोक्योरमेंट ला पर एक उच्च डिग्री प्राप्त करने के लिए, एक पत्रिका में लेख लिखते हैं। इन मामलों में से किसी भी ऐसे लेखों को सरकारी काम के रूप में नहीं करार किया गया था।

मैं सामान्य शोध साहित्य और कानूनी साहित्य में खोज करने, और सबूतों के बड़े हिस्से को इकट्ठा कर रहा था। इसके अलावा, मैं ‘सरकारी कार्य की उत्पत्ति' वाले उपवाक्य (क्लॉज़) को समझने के लिए कानूनी साहित्य का गहराई से अध्ययन कर रहा था। यह भी समझने की कोशिश कर रहा था कि इस ‘सरकारी कार्य’ वाले क्लॉज़ की अदालतों ने किस तरह व्याख्या की है। मैं प्रिंटिंग एक्ट 1895 में, इस उपवाक्य के उत्पत्ति का पता लगाने में सफल रहा जब एक सिनेटर ने राष्ट्रपति के कागजातों के एक संकलन पर कॉपिराइट का दावा किया तो इस बात पर विवाद उठ गया। फिर मैंने इस ‘सरकारी’ उपवाक्य के विधायिकी और न्यायिक इतिहास को दिखाया, जो कॉपीराइट अधिनियम 1909 का एक हिस्सा बन गया था जिसे बाद में अदलतों ने, और आगामी कानूनों में इसका इसी तरह का अर्थ लगाया गया है।

मैं बार में गया और मुझे वहां से बाहर निकल जाने के लिए कहा गया।

मैंने इस मामले का समाधान करने के लिए एक रणनीति बनाई। इस रणनीति में अमेरिकी बार एसोसिएशन (एबीए) के हाउस ऑफ डेलीगेट्स के सामने एक प्रस्ताव लाना था। ऐसा करने के लिए, सामान्य रूप से प्रस्तावकर्ता को एक वकील होना चाहिए। मेरे बोर्ड के दो। सदस्य एबीए के सदस्य थे। मेरा यह सोंचना था कि मैं उनके साथ मिलकर एक सह-लेखक की तरह एक पर्चा लिखें जिसमें इस मामले को उठाया जाय और उस आधार पर हम हाउस ऑफ डेलिगेट्स के सामने एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकें जिसमें एबीए से हम इस बात की समर्थन की मांग करें कि हम सभी को कॉपीराइट कानन के सभी प्रावधानों का पालन कर चाहिए। यह युक्तिपूर्ण प्रस्ताव लग रहा था।

गैर-वकील के रूप में, मैं वर्ष 2016 में हाउस ऑफ डिलेगेटस में संबोधन देने में सक्षम हो । गया था जिसे “सदन के विशेशाधिकार (special privileges of the floor)” के रूप में जाना जाता है। उस वर्ष मानकों को संघीय कानून में शामिल करने के प्रस्ताव को भी प्रस्तुत किया गया था। एबीए ने एक समाधान, प्रस्ताव के रूप में दिया कि जिससे तकनीकी कानूनों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जा सकता है लेकिन सिर्फ पढ़ने के लिये। जिसका अर्थ था कि कोई भी व्यक्ति ऐसे कानून को एक उपयोगी फारमेट में, बिना भुगतान किए, प्रयोग नहीं कर सकता है। साथ साथ इस सिस्टम के अधीन, कोई भी व्यक्ति निजी संस्था की अनुमति के बिना किसी भी कानून की बात नहीं कर सकता था। मैंने इस प्रस्ताव का विरोध किया क्यों कि यह पूर्णतः निशुल्क नहीं था, दूसरी तरफ कई मानक निकायों ने भी इसका विरोध किया क्यों कि वे किसी भी तरह के नि:शुल्क उपयोग का विरोध करते हैं। चूंकि, हम दोनों ने इस प्रस्ताव का, दो विपरीत कारणों से विरोध किया तो उस प्रस्ताव का प्रायोजक दल ने ऐसा महसूस किया कि जैसे उन्होंने ज्ञानी (सोलोमोन) के फैसले की तरह बच्चे को दो हिस्से में काटने का न्याय किया है। मेरे कठोर विरोध के बावजूद इस प्रस्ताव को पारित कर दिया, लेकिन कम-से-कम उन्होंने मुझे अपनी बात रखने का मौका तो दिया।

मेरा यह मानना था कि यदि कानूनी प्रकाशन के संरचना के अन्तर्गत आये सभी विषयों पर ठोस चर्चा होती, और उस चर्चा के व्यापक क्षेत्र के अन्तर्गत अध्ययनशील ज्ञान और शिक्षा के विषयों को भी सम्मिलित कर लिया जाता तो ए.बी.ए, इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के कॉपीराइट अधिनियम के कानुनी आवश्यकताओं के समर्थन में आवाज़ उठाने के, एक सुअवसर रूप में देख सकती थी। मैंने संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार के अध्ययनशील पर्यों पर पूरे वसंत ऋतु में काम किया। फिर मैंने एक प्रस्ताव को, 15 (अधिकतम स्वीकार्य) पेजों में, और 69 फटनोटों के साथ पूरा किया है। यह हमारे द्वारा किये गये लेखों के परीक्षणों के परिणामों की प्रस्तुत करते हैं। जो इस कानून की उत्पत्ति और उसके इस्तेमाल के इतिहास आदि को भी बताते हैं। यह प्रस्ताव थोड़ा सहज था जिसमें यह कहा गया था कि यदि कोई कर्मचारी अपने आधारिक कर्तव्यों के दौरान कोई लेख लिखता है तो उसकी एक प्रतिलिपि सरकारी प्रकाशन कार्यालय (गवर्नमेंट पब्लिशिंग आफिस) में जमा किया जाना चाहिए। यह पहले से ही सरकार प्रकाशनों के लिए जरूरी है। इसके द्वारा हम इस पहले से स्थापित व्यवस्था के अन्दर, अन्य जर्नलों के लेखों को भी लाने की कोशिश कर रहें हैं।

इस प्रस्ताव की दूसरी सिफारिश यह थी कि सभी प्रकाशकों (ए.बी.ए सहित) को, सरकार के किसी भी काम के प्रकाशन को, सही तरीके से लेबल करना चाहिए। यह इस बात का संकेत देगा कि कौन सा भाग, कानून के अनुसार, कॉपीराइट के अधीन नहीं है। पुनः, यह एक मौजूदा स्थापित मांग ही थी, न कि कोई नये या विलक्षन परिवर्तन की मांग। यह प्रस्ताव दूरदर्शी था; यह भविष्य में प्रकाशित होने वाले लेखों पर लागू होगा और पुराने फाइल की ओर संबोधन नहीं करता है जिसमें गलत लेबल लगे हो सकते हैं।

मेरे प्रस्ताव को ‘कमेटी ऑन रूल्स एंड कैलेंडर में जमा किया गया, और मुझे उनके बहुत ही सटीक नियमों को पूरा करने के लिए, संशोधन की व्यापक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। उदाहरण के लिए, हालांकि मैं अमेरिकी बार एसोसिएशन का सह-सदस्य था, लेकिन फिर भी पूर्ण सदस्यों को ही प्रस्ताव प्रस्तुत करने का अधिकार था। एक वकील न होने के कारण मैं इसके लिये सक्षम नहीं था। इसकी शुरूआत मैंने पेपर के एकमात्र लेखक के रूप में की और फिर जब उसे अस्वीकार कर दिया गया, तो मैंने अपने बोर्ड के सदस्य और स्वयं को, इसके लेखक के रूप में प्रस्तुत किया लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया। जब मैंने उसमें से अपना नाम हटा लिया तो इसे स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद मेरे प्रस्ताव पर, विचार करने के लिये, स्वीकार कर लिया गया। अगस्त मध्य में न्यूयॉर्क में होने वाली वार्षिक बैठक में मेरे प्रस्ताव पर चर्चा होना तय हुआ।

ए.बी.ए के कार्य प्रक्रिया में, बहुत सारे सेक्शन्स होते हैं जिनमें से प्रत्येक में, प्रतिनिधिगण, अधिकारीगण, समितियाँ और उनके अपने नियमों आदि के विभिन्न स्तर होते हैं। विभिन्न सेक्शन में नौकरशाही और नियमों की गहराई, वास्तव में, काफी प्रभावशाली है। आमतौर पर, प्रस्ताव (रेज़लूशन) को एक खास सेक्शन के द्वारा जमा किया जाता है। हालांकि प्रत्येक सदस्य को ऐसा करने की अनुमति होती है लेकिन यदा-कदा ही ऐसा होता है। जब एक खास सेक्शन, एक प्रस्ताव को लेता है तो उसे सह-प्रयोजन (को-स्पोन्सर) के लिए सभी अन्य सेक्शनों के पास भेजा जाता है। ए.बी.ए की संस्कृति में अधिकांश प्रस्तावों का सह-प्रयोजन, कई सेक्शनों के द्वारा किया जाता है और अधिकांश की ओर से कोई विरोध नहीं होता है।

मेरे प्रस्ताव को मई महीने में स्वीकार कर लिया गया। लेकिन तीन महीनों तक मझे किसी भी सेक्शन से कुछ भी खबर नहीं मिली। मैंने अधिकांश सेक्शनों के, जैसे इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी, एंटीटूस्ट, साइंस एंड टैक्नोलॉजी आदि के अध्यक्षों और प्रतिनिधियों से संपर्क किया
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और उन्हें प्रस्ताव के किसी भी मुद्दे पर, जिन पर उनकी कोई शंका हो, चर्चा करने का प्रस्ताव दिया। लेकिन किसी ने भी मझसे बात नहीं की।

हालांकि किसी ने भी मुझसे बात नहीं की लेकिन यह पता चला कि उस पर बहुत चर्चा हो रही है। एक सप्ताह पहले मैं न्यूयॉर्क में होने वाले बैठक के लिए जाने वाला था, मुझे तत्काल एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें यह लिखा था कि उस प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए फॉन कॉल पर मेरी उपस्थिति आवश्यक थी। मुझ से कहा गया कि कॉल पर अकेले मेरी उपस्थिति प्रयाप्त नहीं है। एक पूर्ण एबीए का सदस्य का, जिसका नाम प्रस्ताव के आधारिक सूची में था, उसे भी कॉल पर मौजूद होना चाहिए क्योंकि मुझे, बेशक वयस्क पर्यवेक्षण (एडल्ट सुपरविज़न) की आवश्यकता है।

हमने फोन किया। एक घंटे तक बात हुई। वह अच्छी नहीं रही। मेरे साथ टिम स्टेनली थे, जो मेरे बोर्ड के संस्थापक सदस्य हैं एवं एबीए के पूर्ण सदस्य हैं, और येल लॉ स्कूल के स्वयंसेवक, मीसा गुट्टेन्टैग थे। दूसरी ओर, बार एसोसिएशन के आठ गुस्सैल सदस्यों में इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी, एंटीट्रस्ट, और साइंस और अड्मिनिस्ट्रेटिव लॉ सेक्शनों के प्रतिनिधिगण थे।

उनकी स्थिति स्पष्ट थी। हमें प्रस्ताव को वापस लेना होगा या बार का कोपभाजन बनना होगा। एंटीट्रस्ट अनुभाग के प्रतिनिधि ने कहा कि उसने मेरे द्वारा भेजे एंटीट्रस्ट जर्नल के उन सभी 75 लेखों को देखा है और वह यकिन के साथ कह सकता है कि प्रत्येक सरकारी । कर्मचारी ने उन लेखों को अपने निजि समय में लिखा था न कि सरकारी कामकाज के समय में। वह सरकारी काम नहीं था। मैंने उस विचार पर अपनी असहमति व्यक्त किया कि उन सभी लेखों में प्रत्येक लेख निजी संपत्ति थे। लेकिन वह अपनी बात पर अडिग था। मैंने उस लिस्ट में कम-से-कम 17 प्रकाशनों को गिना था, जो फेडरल ट्रेड कमीशन (एफ.टी.सी) के उपायुक्तों के द्वारा लिखा गया था। अब मैं यह देख कर काफी हैरान था कि कैसे एक कार्यरत अधिकारी के द्वारा बार को एफ.टी.सी की प्राथमिकताओं को अमल कराने के बारे में ब्रीफ करना “उनके सरकारी काम के अलावा कुछ और हो सकता था।

विज्ञान अनुभाग से एक महिला ने कहा कि यदि मैंने इस प्रस्ताव को प्रस्तुत किया तो वह मेरे खिलाफ स्वार्थों के टकराव (कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट) का मुद्दा उठाएगी। यह सुनकर मैं हैरान हो गया और मैंने उनसे पूछा कि वे किस स्वार्थ के टकराव की बात कर रहे हैं। तब उन्होंने कहा कि मैंने सरकार सूचना को उपलब्ध कराने में अपना पूरा करियर लगाया है और मैं जार्जिया सरकार के साथ मुकदमे लड़ रहा हूँ। इसलिए मेरा इसमें स्वार्थ है। लेकिन मैंने उन्हें इन मुकदमों के बारे में नहीं बताया हैं। उन्होंने यह बात काफी गंदे और घिनौना तरीके से कहीं और मैं अब इस बारे में स्पष्ट था कि वह अपने इस रुख को सदन तल पर प्रस्तुत कर सकती हैं।

इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी अनुभाग के प्रतिनिधियों ने हर बात बहुत घुमाकर बताया, और कहा है कि मैंने कानून को पूरे गलत तरीके से समझा हूँ। क्योंकि कर्मचारियों के लेख यद्यपि सरकारी काम हैं, लेकिन जब वह पेज नंबरों के साथ एक फॉन्ट में टाइप होता है तो इस पर प्रकाशक के कापीराइट की परत लग जाती है। हांलाकि इसका बीज (कोर) पब्लिक डोमेन का हो। इसलिए प्रकाशकों के कॉपीराइट का उल्लंघन किए बिना काम करना संभव नहीं था। मेरा मानना था कि यह बकवास है और अमेरीकी कॉपीराइट अधिनियम इसे समर्थन नहीं करेंगा। फॉन्ट के चयन या पृष्ठ पर अंक लगने में कोई कॉपीराइट नहीं है, केवल एक वास्तविक सह-लेखक ही कॉपीराइट में हिस्सा लेने का हकदार है।

अब, मैंने चर्चा को सिर्फ कानून की बातों से पूरी नहीं की है। यह गहन अनुसंधान पर आधारित था और इसकी समीक्षा कॉपीराइट विशेषज्ञों के एक विशिष्ट पैनल द्वारा की गई थी, जो इस परियोजना के लिए मेरे सलाहकार बोर्ड में शामिल हो गए थे। मैं इस बात से आश्वस्त था कि हमारे पास कानूनी अधिकार थे। हम सिर्फ हवा में बाते नहीं कर रहे थे।

यह स्पष्ट था कि सदन में बहस के जरिए हमें घसीटा जाएगा। मैं इसे सहन कर सकता था, लेकिन हालत इससे भी बदतर थी। उन्होंने मुझे सूचित किया कि कम से कम आठ अनुभागों ने अपने प्रतिनिधियों को प्रस्ताव का विरोध करने के लिए पहले से ही कह दिया है। इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं कितना वाकपटु या समझाने-बुझाने की शिश करू, वटि पहले से ही निधारित था। मुझे लगता है कि वे प्रत्येक विषय बिन्दु पर गलत थे, लेकिन मुझे यकिन था कि, जब हम इसे प्रतिनिधिमंडल सभा (House of Delegates) के पटल पर प्रस्तुत करेंगे तो वे हमें बुरी तरह हरा देंगे। मुझे जीत के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे थे और मैंने निर्धारित तारीक से दो दिन पहले, अपनी न्यूयॉर्क यात्रा रद्द कर दी।

पैसों की समस्या पुनः उभरी

अपनी कड़ी हार को झेलने के लिये मैं प्रतिनिधि सभा में जा सकता था लेकिन मुझे दूसरे मसलो को भी देखना था। मैंने अपने 2,50,000 डॉलर के अनुदान पर ज्यादा सावधानी बरती थी, जिसका दो तिहाई पैसा खर्च हो चुका था। मेरा विचार था कि हम ए.बी.ए की बैठक के बाद इसे खर्च करेंगे। चर्चा क्या रूप लेती है, इसके आधार पर हम अपने खर्चे का निर्धारण करेंगे। जून के प्रारंभ में मैंने फॉउनडेशन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। उन्हें जुलाई 31 को हमारी दूसरी किश्त का भुगतान करना था। रिपोर्ट सौंपने के बाद मेरी प्रोग्राम मैनेजर या फॉउनडेशन के अनुदान स्टाफ से इससे संबंधित कोई बात नहीं हुई। इस कारण मैंने कई बार उनसे यह पूछा कि क्या रिपोर्ट उचित थी, क्या हमने सही काम किया था। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट ठीक थी।

जैसे ही 31 जलाई करीब आई. मैंने अपने बैंक खाते की बार-बार जांच की, लेकिन राशी जमा नहीं हुई थी। फिर उनके भुगतान करने की तारीख से दो दिन पहले, मुझे एक नोट मिला कि वे भुगतान नहीं करेंगे। इसका कारण यह था कि हमने अनुदान का पालन नहीं किया था क्योंकि हमने पर्याप्त पैसे खर्च नहीं किए थे। मुझे यह बताते हुए विस्तृत बजट प्रस्तुत करना था कि पूर्वानुमान का पालन करने में हमसे कहाँ चूक हुई थी। उसमें यह भी उल्लेखित करना था कि हमने पैसे कहाँ खर्च किए। इस बात का भी कोई संकेत नहीं था कि यदि मैं सफलतापूर्वक हमारी भविष्य की योजनाओं को विस्तार से बताता, तो दूसरा भुगतान स्वीकृत हो जाएगा। दूसरे शब्दों में, अपने संगठन को प्रभावी रूप से चलाते हुए हमारा
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ध्यान पिछले रिपोर्ट (retrospective reporting) को तैयार करने के बजाय भविष्य में संभावित अनुमोदन (prospective approval) को आर भटक गया था।

मैंने एक सुलह का प्रस्ताव रखा जिसमें इस समझौते को एक जगह पर समाप्त कर हमें अपने-अपने रास्ते चला जाना प्रस्तावित था। हमारे पास जो भी पैसा बचा है, मैं उसे अपने पास रक्खूगा और हम यह रिपोर्ट करेंगे कि हमने 2,50,000 डॉलर कैसे खर्च किया है, और अनुदान समाप्त कर दिया जाएगा। वे अनुदान की शेष रकम 6,50,000 डॉलर अपने पास रक्खेंगे। सीधे तौर पर कहा जाय तो यह बेहतर संबंध नहीं था। संस्थान को ऐसे बड़े आयोजकों में निवेश करना चाहिये जिनके पास स्थिर राजस्व और अधिकारियों के लिए व्यावसायिक विकास की स्थायी योजना हो।

फाउन्डेशन से निपटना, लाभ-निरपेक्ष क्षेत्र में काम करने वाले हमारे जैसे लोगों के लिए हमेशा मुश्किल रहा है। मैंने अपने साथियों के साथ कई बार बातचीत की है, जो संचालन-उन्मुख (आपरेशन ओरियन्टेड) इंटरनेट संगठन चलाते हैं। मिशन को आगे बढ़ाने के लिए धन की तलाश का काम अंतहीन है। कई फाउंडेशन अपने एजेंडा से संबंधित किसी भी चीज, या किसी बड़ी योजना में अनुदान देने को तत्पर रहते हैं। या संस्थान के प्रोग्राम मैनेजर द्वारा सोचे गए किसी वर्कशाप कराने में, या अपने इच्छा अनुसार किसी सॉफ्टवेयर बनवाने के लिए वे काफी आसानी से अनुदान दे देते हैं। लेकिन यदि आप इनमें से कुछ लोगों के पास जाते हैं और उन्हें बताते हैं कि आप पहले से ही कोई कार्य कर रहे हैं, तो वे कहते हैं कि “हम किसी नए काम के लिए अनुदान देना चाहते हैं, पहले से चल रही किसी परियोजना को नहीं।”

जब कि हर कोई किसी “नए” व्यवसाय में शामिल होना चाहता है, तो ऐसी स्थिति में एक विशिष्ट और कठिन लक्ष्य पर दीर्घकालिक तौर पर ध्यान केंद्रित रखना कठिन हो जाता है। यह न केवल लाभ-निरपेक्ष संस्थाओं के लिए समस्या है, बल्कि सिलिकॉन वैली में मेरे । दोस्तों के लिये भी है जो अपने स्टार्टअप पर काम कर रहे हैं। उन्हें भी निवेशकों के साथ ऐसी ही समस्या का सामना करना पड़ता है, जिन्हें उनकी कंपनी के काम में लगे लोगों के लिए फंडिंग देने के बजाय, उस कम्पनी को किसी नये आइडिया के प्रयोगशाला के रूप में काम कराना चाहते हैं। वे सभी, पहले से काम कर रहे परिश्रमी घोड़े जैसे स्टार्टअप में निवेश करने के बजाय, एकसिंह वाले घोड़े जैसे नए स्टार्टअप में निवेश करना चाहते हैं। इसमें ‘पब्लिक रिसोर्स’ भाग्यशाली रही है। हमें अपना पैसा दो जगहों से प्राप्त होता है। पहला, हमें पैसा यू.के. स्थित आर्केडिया, लिसबेट रौसिंग और पीटर बाल्डविन जैसी दूरदर्शी संस्थानों से कई सालों तक मिला। हमें ओमिड्यार नेटवर्क से प्रारंभिक अनुदान मिला जब गूगल ने अपनी 10वीं वर्षगांठ मनाई, तो उन्होंने “ विश्व को बदलने के उपायों (ideas for changing the world)” के लिए 20 लाख डॉलर के पांच पुरुस्कार दिए, जिसमें से एक पुरस्कार हमें मिला।

वित्तपोषण (फन्डिंग) का दूसरे स्रोत वे लोग हैं जो वैली में कुछ पैसे कमाये हैं और वे समाज को वापस देना चाहते हैं, जिनमें से कई लोगों को मैं कई सालों से जानता हूँ। उदाहरण के लिए, अलेक्जेंडर मैकिलिवेरे गूगल के प्रारंभिक वकील थे, फिर ट्विटर के जनरल काउंसल बन गए। वह ट्विटर को छोड़ कर संयुक्त राज्य अमेरिका के उप-मुख्य तकनीकी अधिकारी बन गये और अपनी सरकारी सेवा (Self-Employed Women's Association of India) शुरू करने से पहले उन्होंने हमें 10,000 डॉलर का चेक भेजने के लिए अपने दाता-सलाह वाले निधि को निर्देश दिया। फिर, ओबामा प्रशासन को छोड़ने के बाद, उसने हमें दूसरा चेक भी भेज दिया।

इसी तरह, यूएस के पूर्व सहायक अटॉर्नी, गिल एल्बज और उनकी पत्नी एलिसा ने शुरुआत से ही, हमें हरेक साल समर्थन दिया है। गिल की कंपनी को आई.पी.ओ के ठीक पहले गूगल ने खरीद ली थी और वे, कई तरह के महत्वपूर्ण गैर-लाभकारी संस्थाओं को फन्डिंग करने में काफी उदार रहे हैं।

मैंने इन सभी नामों को, नौ कानून फर्मों के नाम के साथ, जो हमारी तरफ से मुकदमें लड़ रहे हैं, हमारे कॉन्ट्रेक्टर और हमारे बोर्ड को, ‘पब्लिक रिसोर्स' के अपने “about” पृष्ठ पर डाला है। एक सरकारी या किसी अन्य सार्वजनिक संगठन की तरह, एक गैर-लाभकारी संस्थान के रूप में, मुझे लगता है कि हमें अपने बारे में और हमें कहाँ से पैसा मिलता है, इस बारे में पूरी तरह खुलासा करना हमारा दायित्व है। मैं इसके लिए प्रयासरत हूँ, कि हमारी कथनी और करनी में कोई अन्तर न हो। हमें हमारे कठोर स्वार्थ-विरोध (कनेफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट), मुखबिर (व्हिस्ल ब्लोअर), धन का उपयोग, वित्तीय नियंत्रण और अन्य कॉर्पोरेट नीतियों को देखकर हमें, एक गैर-लाभकारी निगरानी (मानिटरिंग) समूह गाइडस्टार ने हमें गोल्ड सील दी है।

इस उदार समर्थन के बावजूद, पैसे की हमेशा तंगी रहती थी। वर्ष 2016 में, मैं 12 महीने में से आठ महीने तक छुट्टी पर था, ताकि मैं अपने कॉन्ट्रेक्टरों का भुगतान कर सकें। मैं वर्ष 2017 में काम पर आने के बाद काफी खुश था, लेकिन फाउंडेशन के पीछे हटने के बाद, मैने पुनः पे-रौल कंपनी को कौल किया और कहा कि आप मुझे दिसंबर से वेतन नहीं देंगे।

मैं अधिक स्टाफ (वास्तव में मैं ही एकमात्र कर्मचारी था) को काम पर इसलिए नहीं रखता हूँ क्योंकि पैसा हमेशा समय पर नहीं आता है। अपने मुख्य खर्चा को कम करके, हुम अकाल के समय भी अपना अस्तित्व बचाये रख सकते हैं।

हमें समझने में कोई गलती न करें। यद्यपि मैं ही एकमात्र कर्मचारी हैं, लेकिन ‘पब्लिक रिसोर्स' एक इश्वर के प्रति इमानदार, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त गैर-लाभकारी संस्थान है, जो उपक्रम (एन्टरप्राइज़) के पैमाने पर संचालित होती है और लाखों लोगों को सेवा (Self-Employed Women's Association of India) प्रदान करता है। हमारे पास हमेशा से ही एक प्रतिष्ठित और उपयोगी निदेशक मंडल, व्यवसाय में कुछ अच्छे कॉन्ट्रेक्टर हैं और इंटरनेट पर मेरी अच्छी पकड़ के कारण, मैं होस्टिंग, आफिस, और अन्य सुविधाओं का लाभ उठाने में सक्षम हूँ, जो किसी भी अच्छी तरह से वित्तपोषित सिलिकॉन वैली स्टार्टअप के लिए ईष्यपूर्ण हो सकता है।

जब हमें बड़े अनुदान प्राप्त होते हैं, तो मैं अधिक कर्मचारियों को काम पर रखने के बजाय पूंजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडिचर) पर पैसा खर्च करता हूं, जैसे कि मैंने यूएस कॉर्ट ऑफ
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अपील की राय खरीदने के लिए 6,00,000 डॉलर खर्च किए, पब्लिक सेफ्टी कोड को खरीदने के लिए 2.50,000 डॉलर खर्च किए, या न्यायालय के गठन वर्ष 1891 से अभी तक के नाइंथ सर्किट ऑफ द यूएस कॉर्ट ऑफ अपील के 3.5 मिलियन पन्नों को स्कैन करने के लिए 3,00,000 डॉलर ‘इंटरनेट आर्काइव' को दिए।

मैं प्रिंट क्यों करता हूँ?

बहुत से लोगों ने सुझाव दिया कि मैं पैसा जुटाने के लिए ‘किक स्टार्टर’ की तरह क्राउडसोर्सिंग (crowdsourcing)” प्लेटफॉर्म का उपयोग करूं। मैंने कई बार इसका उपयोग किया, लेकिन इसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। किकस्टार्टर जैसे प्लेटफार्म तब अच्छी तरह से काम करते हैं, जब आप लोगों को एकदम नये हार्डवेयर, या किसी किताब या किसी अन्य ठोस वस्तु को देने का वादा करते हैं जो किसी भी अन्य स्थान पर उपलब्ध न हो। अच्छे मिशन के लिए इस दुनिया में आम समर्थन मिलना तब भी कठिन होता है, जब आप अभियान के हिस्से के रूप में लोगों को किताबों का, या अन्य कोई पुरस्कार भी देते हैं।

मैंने छुट्टियों के दौरान, छोटे योगदान के लिए अपील करने की कोशिश भी की है, लेकिन स्पष्ट रूप से, ऐसे कई अन्य जगह भी है, जहां मैंने लोगों को, व्यक्तिगत योगदान करने के लिए सुझाव दिया है, जैसे ई.एफ.एफ या इंटरनेट आर्काइव जैसे नेटवर्क ऑपरेशन, और कई ऐसे बाध्य कर देने वाले चैरिटी जैसे फुड बैंक, आपात राहत, आदि।

क्राउडसोर्सिंग अभियान से बहुत सारे विस्मयकारी काम होते हैं, जो अनुदान संचयन (फंड रेज़िंग) के लिये, या कुछ मुद्दों पर अधिक ध्यान आकर्षित करने के लिये होते हैं, जैसे PACER शुल्क इत्यादि। मुझे किसी भी काम को अपने प्रिंटिंग प्रयासों के माध्यम से करना अधिक प्रभावी लगता है, जो सामान्य रूप से, आम जनता को अपील करने की बजाय लक्ष्य पर केन्द्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, हमने भारत के बिल्डिंग कोड को बेहतर ग्राफिक के माध्यम से एच.टी.एम.एल में परिवर्तित करने के बाद, इसे सुंदर आवरण के साथ 2 खंडों के हाईकवर में प्रिंट किया, और इसके भीतर भारत के कई हिस्टॉरिकल बिल्डिंग को जगह-जगह पर चित्रित किया। इसे पॉइन्ट.बी.स्टूडियो के द्वारा डिजाइन किया गया था और मैंने इसकी केवल एक दर्जन प्रतियां ही प्रिंट कराई थीं लेकिन वे काफी भव्य थीं।

मैं जो कर रहा था उसके सशक्तता दिखाने के लिये, मैंने उनकी प्रतियों को सैम पित्रोदा और भारतीय मानक ब्यूरो को भेजा था। मैं उन्हें यह दिखाना चाहता था कि मैं इस काम के प्रति काफी गंभीर हूँ और उसके लिए मैंने वास्तव में काफी प्रयास किये हैं, ताकि इस कार्य से बहुत सुधार हो सके।

इसी प्रकार जब मैंने डेलावेयर कॉरपोरेट कोड का गैर-कानूनी संस्करण तैयार किया जिसे राज्य सचिव की आज्ञा के बिना करने से, जेल की सज़ा सुनाने का प्रावधान था, तो उसके बाद मैंने राज्य सचिव और अटॉर्नी जर्नल का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें, इसकी प्रतियां भेजी थीं। अपने मित्र के माध्यम से अगले अटॉर्नी जर्नल बियू बिडेन से संपर्क करने के बाद भी, मुझे उनसे कोई उत्तर नहीं मिला। मैंने, भारतीय चलन से प्रेरित होकर, जहाँ सुसज्जित मुद्रित दस्तावेजों को सम्मानीय अतिथियों को प्रदान किया जाता है, अनेक घोषणाओं और अभिनन्दन पत्र को प्रिंट कराया। उदाहरण के लिए जब महात्मा गांधी ने भाषण दिए थे तो उन्हें कुछ अभिनन्दन पत्र प्राप्त हुए थे। ये अभिनन्दन पत्र एक फ्रेम में सुंदर लिखाई में अंकित किए हुए थे और वैसे घोषणाओं से भरे हुए थे, जो प्राप्तकर्ता की कई गुणों को वर्णित करते हैं। मैंने जिन अभिनन्दन पत्रों को देखा है वे काफी सुंदर हैं, और मैं तब से अपनी आंखों को, इस तरह के स्रोत के लिए खुला रक्खा हूँ जिन्हे मैं स्कैन कर के लोगों को पोस्ट कर सकें।

जब मैंने याचिका दायर नहीं की थी तब मैंने महात्मा गांधी के पोस्टरों को प्रिंट करने में काफी समय लगाया था, जिसमें एक मैंने साबरमती आश्रम को दे दिए और कुछ को संयुक्त राज्य अमेरिका में उन लोगों को दिया जिन्होंने मेरी विभिन्न तरीके से सहायता की थी। मुझे महात्मा गांधी के पोस्ट-कार्ड, कानूनी आंकड़ों और अन्य कला के कार्यों को प्रिंट करने में आनंद मिला और जब कस्टम लैबल और पोस्टेज स्टैंप को प्रिंट करने की बात आती है तो उसमें मैं काफी निपुण हूँ। और जब पैकेज़ असेंब्ली की बात होती है तो उसमें मुझ से अधिक निपुण कुछ ही लोग होंगे।

मैं अलंकृत मुद्रण कार्य इसलिए करता हूं क्योंकि मुझे मुद्रण करना पसंद है लेकिन यह मेरी गंभीरता का भी संकेत है। जब मैं राज्य कोड को सार्वजनिक करने के लिये काम कर रहा था तो मैंने बड़े फार्मेट में ‘उदघोषणा का प्रख्यापन' (प्रोक्लामेशन आफ प्रोमलगेशन) को 19"x22" लाल चमकदार बुलबुले वाले चौरस लिफाफे में बंद कर स्पीकर ऑफ द हाउस ऑफ जोर्जिया को भेजा। इससे वह खुश नहीं था लेकिन उसको संदेश तो जरूर मिल गया होगा। और मैं इस बारे में पूरी तरह से निश्चित हूँ कि उसे यह बात समझ में आ गई होगी कि यदि वह मुझे उत्तर नहीं देगा तो मैं उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं हूँ। मैंने उसी उदघोषणा को एक वकील को भी भेजी जो मुझे जानता था और वह इतना खुश हुआ कि वह पब्लिक रिसोर्स के मामलों को, प्रो बोनो आधार पर, प्रस्तुत करने के लिए राजी हो गया।

अलंकृत मुद्रण कार्य पर तब नजर जाती है जब उसे उपहार में दिया जाता है। वरिष्ठ कॉर्पोरेट और सरकारी अधिकारी के मामले में, सामान्य रूप से प्राप्तकर्ता को पैकेज भेजने से पूर्वनिश्चित निष्कर्ष नहीं निकलता है। मुझे यह उम्मीद है कि प्राप्तकर्ता जब इस बात को समझेगा कि मैंने दस्तावेज को तैयार करने में काफी समय लगाया है तो वह इस मामले पर गौर करने के लिये समय देगा।

कुछ लोग हार्डकॉपी को नापसंद करते हैं या वे सामान्य रूप से, उस बात को पसंद नहीं करते हैं जिसे मैं कहना चाहता हूँ। जब मैंने एक बड़े डिब्बे में रिपोर्ट के साथ मुद्रित मानको को भेजा, और उस डिब्बे को लाल, सफेद और नीले क्लिक्ल- पैक के साथ पैक किया था जो अमेरिका के झंडे जैसा लग रहा था, तो अमेरिका राष्ट्रीय मानक संस्थान को ऐसा लगा कि मैं एक पागल हूँ। व्हाइट हाउस में कैश सन्सटीन (Cass Sunstein) ने अपने कर्मचारियों से इस डिब्बे को भेजने वाले को वापस भेजने के लिए कहा, और यह मेरे पास एक बड़े प्लास्टिक बैग में आया।
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दूसरी ओर, मैंने व्हाइट हाउस में जॉन पौडेस्टा के सहायक से यह सुना है कि वेस्ट विंग के मैल डिलवरी स्टाफ को मेरे पैकेज के मिलने पर बड़ा मजा आया। संयक्त राज्य अमेरिका के अभिलेखाध्यक्ष को पैकेज काफी पसंद आया और उन्होंने मुझे मेल भेजा इसमें लिखा था “अत्यंत मनोहर प्रस्तुति”। अमरीका के कांग्रेस की सदस्य डैरेल इज़ा (Darrell Issa), झिंकल-पैक से बने अमेरिका के झंडे को देखकर काफी प्रभावित हुई और उन्होने उसकी तस्वीर को ट्विट किया। फेडरल ट्रेड कमीशन के चेयरमैन, जॉन लीयूबॉड्स (Jon Leibowitz) ने मुझे पत्र भेजा कि उन्हें पैकेज का काम काफी पंसद आया और वे इस बात से दोगुने प्रसन्न हैं कि प्रसिद्ध ब्लॉग बॉइंग बॉइंग (Boing Boing) ने इस कहानी को साझा किया है और उस पर मेरे कानून का ज्ञापन (मेमोरेंडम आफ ला) प्रिंट किया। उसे क्या पता कि एफटीसी के चेयरमैन उन ब्लॉगों को पढ़ेंगे?

सब लोगों की पहुँच, मानवीय ज्ञान तक बनाना

पैसे समाप्त होने पर और एबीए से बड़ा झटका लगने के कारण मेरा दिल 'सरकारी कामों परअपनी रिपोर्ट लिखने में नहीं लग पा रहा था। यह रिपोर्ट दर्जनों प्रकाशकों को भेजी जानी थी जिसमें मेरे शोध का निष्कर्ष होना था कि वे किसी-न किसी रूप में कानून का उल्लघंन कर रहें हैं। हालांकि इसके कुछ अन्य कारण भी थे। मैं अपनी रणनीति पर फिर से विचार कर रहा था।

मैंने इस अनसंधान में तीन मख्य प्रश्नों को उठाया था। पहला, इस उठ रहे मद्दे का काननी विश्लेषण करना था। इस कार्य को तो मैंने पूरा कर लिया था। दूसरा, सरकारी कार्यों की पहचान करना था। इस बार फिर, हम अपने मूल्यांकन से आश्वस्त महसूस कर रहे थे। तीसरा, जर्नल्स के आर्टिकल्स की प्रतिलिपियाँ प्राप्त करना था। मेरी प्रारंभिक विचार यह थी कि हमें पुस्तकालय मिलेंगे जहाँ से हम पत्रिकाएं उधार ले सकें और फिर इंटरनेट आर्काइव से स्कैनिंग कर सकेंगे। इस विशाल कार्य को पूरा करने के लिए हमारे बजट का अधिकांश अनुदान, पुस्तकालयों और इंटरनेट आर्काइव पर होने वाले खर्यों पर आधारित था।

लेखों को एक एक करके निकालने का काम मुश्किल हो सकता है। हालांकि पुस्तकालय के लिए यह कार्य करना कुछ हद तक जोखिम भरा भी हो सकता है फिर भी उनमें से दो पुस्तकालय इस कार्य को करने पर विचार कर रहे थे। चूकि ये सभी लेख डेटाबेस में हैं और ये इलेक्ट्रनिक तरीके से उपलब्ध हैं इसलिए इनका स्कैनिंग करना, एक मायने में अनावश्यक कार्य था। कोई व्यक्ति प्रकाशक की साइट पर सीधा लॉग इन नहीं कर सकता है, क्योंकि वहां मौजूद जानकारियों को प्रयोग करने के कुछ कानूनी नियम और तकनीक प्रतिबंध होते हैं जिनसे अध्ययनशील अनुसंधान बाधित होता है। इसका प्रयोग केवल सीमित तरीकों से ही किया जा सकता है।

ज़ाखिस्तान की एलेक्जांड़ा एल्बाक्यान (Alexandra Elbakyam) नामक यवा वैज्ञानिक को भी इसी तरह की समस्या थी, और यही समस्या उसके जैसे विश्व भर में फैले उनके कई सहयोगियों और सहकर्मियों की भी हैं। ज्ञान को बंद कर दिया गया था, जो विशिष्ट विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे अमीर लोगों तक तो पहुंच रहा है लेकिन अधिकांश विश्व उससे वचिंत है। एलेक्जेंड्रा ने इस समस्या का समाधान किया और उसने एक सिस्टम तैयार किया जिसे स्की-हब (Sci-Hub) कहा जाता है, वह रूस में रक्खे एक मशीन पर चल रहा है जहां पर जर्नलों के 660 लाख लेख मौजूद हैं जिसे कोई भी देख सकता है।

स्की-हब (Sci-Hub) दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी साबित हुआ है जिनको पहले इस अध्ययनशील साहित्य तक पहुंच नहीं थी। वर्ष 2017 में स्की-हब से सबसे अधिक सामाग्रियों को चीन में डाउनलोड किया गया, जिसमें 249 लाख लेखों को अभिगमन किया गया था। दूसरा, भारत से 131 लाख सामाग्री को डाउनलोड किया गया। तीसरा, संयुक्त राज्य अमेरिका से 119 लाख सामाग्री को डाउनलोड किया गया। यह इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि वैज्ञानिक साहित्य तक की पहुंच विश्वभर में बाधित है। कई देश जैसे ब्राज़ील, ईरान, इंडोनेशिया, रूस और मेक्सिको भी इस डेटाबेस का व्यापक उपयोग करते हैं।

प्रकाशक इस बात से खुश नहीं थे और अपने अत्याधिक अनुलाभ और अयोग्य लाभ को बचाने के लिये वे एलेक्जांड्रा के विरोध जी जान से कर रहे हैं। प्रकाशकों को इसके लिए मुआवज़ा मिलना चाहिए लेकिन अनुचित कॉपीराइट का दावा करने और अन्य कानूनी छल-कपट के कारण उनकी स्थिति काफी संदेहात्मक बन गई है। उन्होंने न्यूयॉर्क में एलेक्जांड्रा के खिलाफ मुकदमा दायर किया। एलेक्जांड्रा के अदालत में उपस्थित न होने के कारण उन्हें, एलेक्जांड्रा के विरुद्ध लाखों डॉलर हर्जाने का निर्णय प्राप्त हुआ। इसके साथ ही उन्हें, एलेक्जेंड्रा के खिलाफ डोमेन नाम, इंटरनेट सेवा (Self-Employed Women's Association of India), और इस तरह के अन्य सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) से वंचित करने के आदेश, न्यायालय से प्राप्त हुए। उसके विरुद्ध अन्य मुकदमे भी चल रहे हैं जो अभी तक अनिर्णित हैं।

मैं एलेक्जांडा से कभी नहीं मिला। मेरे कछ दोस्त उन्हें जानते हैं लेकिन हमने उनसे कभी । बात भी नहीं की है। मैंने एक बार यू-ट्यूब पर उनका इंटरव्यू देखा था। वह काफी संतुलित, जवान और दिलेर लग रही थीं।

अप्रैल में, मेरे पास आठ डिस्क ड्राइव आया, प्रत्येक की क्षमता आठ टेराबाइट की थी। डिस्क पर सारे मानवीय ज्ञान थे, या कम से कम इनका एक बड़ा हिस्सा, जो स्की-हब से लिया गया एक महत्वपूर्ण भाग है। मैंने डेटा को दो डिस्क-अरे (Array) पर लिया। प्रत्येक डिस्क-अरे में आठ ड्राइव थे। इन्हें इस प्रकार सेट किए गए थे कि यदि मैं 'अरे' पर दो ड्राइव खो भी दें तो भी मैं किसी भी डेटा को नहीं खोउंगा। इस प्रक्रिया में कुछ महीने लग गए। फिर

मैंने डेटा की जांच करने में दो महीने बिताए। फिर मैंने, इन डिस्क-अरे को, अपने कार्यालय से बाहर किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया। प्रारंभ में इस डेटा की जांच करने का मेरा अभिप्राय, सरकारी परियोजनाओं के कार्यों से संबंधित था। मैं एक परिवर्तनकारी उद्देश्य के लिए डेटाबेस का उपयोग कर रहा था। यह निर्धारित करने के लिए कि क्या ये लेख वास्तव में पब्लिक डोमिन में थे, और संभवतः वे
कोड स्वराज पर नोट

उन घटकों को निकाल रहे थे जो पब्लिक डोमेन में थे ताकि उनका व्यापक प्रसार किया जा सके।

मुझे यह महत्वपूर्ण लग रहा था कि लोग खड़े होते हैं, और उन बातों का समर्थन करते हैं। जिन पर वे विश्वास करते हैं। इसलिए मैं ट्विटर पर गया, और मैंने दुनिया को बताया कि मैंने क्या किया और मैं यह क्यों कर रहा था। बातों को कहने की जरूरत है। मैंने उन ट्वीटों को इस पुस्तक में, परिशिष्ट के रूप में जोड़ा है।

मैंने अपने आप से वादा किया था कि दिसंबर में मुझे सरकारी शोध परिणामों के बारे में लिखना होगा, लेकिन मैंने नहीं किया। इसके बजाय, मैंने गांधी के स्कैन पर काम किया और एक ऐसे शब्द के बारे में सोचा था जो कई सालों से मेरे दिमाग में कौंध रहा था।

यह शब्द “कोड स्वराज” था। मुझे यह शब्द कैसे मिला, यह एक लंबा और घुमावदार सफर था। इसकी शुरुआत वाशिंगटन में हुई थी। मैंने वाशिंगटन, डी.सी में चार विभिन्न कार्याविधि कालों में कल 15 वर्ष बिताए हैं। मझे शहर से प्यार है लेकिन जब मझे इससे दर जाने का मौका मिलता है तो मैं खुश हो जाता हूँ। वर्ष 2007 में, मैं फिर वहाँ से भाग निकला।

फेडफ्लिक्स, फिल्मों पर बिताये मेरे समय (माई टाइम एट द मूवीज़)

मैंने पब्लिक रिसोर्स की स्थापना के दौरान, मैं जो काम कर रहा था वह था - अभिगमन|(एक्सेस) को सुगम बनाने का कानून। मैंने 1990 के दशक में, इस कानून के बारे में सोचा था जब यह बहुत मुश्किल लग रहा था। इसलिए मैंने उस समय, पेटेंट और एस.ई.सी जैसे बड़े डेटाबेस पर ध्यान केंद्रित किया। वाशिंगटन, डी.सी. में जॉन पॉडेस्टा (John Podesta) के लिए दो साल तक उनके मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी के रूप में, सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस में काम करने के बाद मैंने जॉन को अपना विचार बताया। मैंने बताया कि शायद मैं छोटे से गैर-लाभकारी व्यवसाय चलाने के लिए ज्यादा उपयुक्त हूँ। मैं कैलिफोर्निया वापस चला गया, और मेरे दोस्त टिम ओ रेली (Tim O'Reilly) से मैंने पूछा कि क्या मैं उसके मुख्यालय में, अपने कार्यालय के लिये जगह किराए पर ले सकता हूँ और अपना काम कर सकता हूँ। यह वर्ष 2007 की बात थी।

सबसे पहले, मैं भी निश्चित नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ। मैंने वीडियो पर काम करने में। काफी समय व्यतीत किया। हमारे “फेडफ्लिक्स” प्रोग्राम के भाग के रूप में, हजारों संघीय वीडियो को कॉपी करने और उन्हें पोस्ट करने के लिए, मैंने स्वयंसेवकों को, नेशनल अभिलेखागार (नेशनल आर्काइव) में भेज दिया। मैंने ज्यादा से ज्यादा वीडियो के लिए, राष्ट्रीय तकनीकी सूचना सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) (नेशनल टेकनिकल इनफार्मेशन सर्विस) के साथ मिलकर एक संयुक्त उद्यम भी स्थापित किये। उन्हें यह बताया है कि यदि वे मुझे अपना वी.एच.एस, बीटाकैम और यूमैटिक टेप देते हैं तो मैं उन्हें इसे डिजिटाइज़ करके, उन्हें डिजीटल वीडियो के डिस्क ड्राइव के रूप में वापस भेज दंगा और यह सब, सरकार के किसी खर्चे के बिना होगा। यह एक निःशुल्क सहायता होगी। इसे प्रारंभ करने के बाद मैं ओबामा द्वारा नियुक्त किये गये एक नए व्यक्ति से मिला, जो सेना के सहायक सचिव थे। सेना के पास वीडियो का ऐसा डेटाबेस था जो काफी बड़ा था। उनके पास ऐसी प्रणाली थी, जिसमें संगठन का कोई भी सदस्य, किसी खास डी.वी.डी की कापी को, उसके कार्यक्षेत्र में भेजने का अनुरोध कर सकता था। उनके अधिकांश वीडियो, विवर्गीकृत किया गये प्रशिक्षण फिल्में और ऐतिहासिक सामग्री थे, उदाहरण के लिए, वायुयान का महान इतिहास, आदि। मैंने उनसे 800 डी.वी.डी मंगा ली। सेना से संबंधित कुछ पुरानी फिल्में, जैसे बिजली कैसे काम करती है, यूट्यूब पर काफी प्रचलित हैं। मुझे लगातार इस विषय पर टिप्पणी मिल रही थी कि कैसे एक खास वीडियो किसी विषय को, उसके श्रेणीगत दर्शकों की राय में काफी अच्छी तरह प्रस्तुत करती है। संक्षेप में, उन 6,000 वीडियो को इंटरनेट अर्काइव और यूट्यूब पर डालने के बाद हमें, 723 लाख से अधिक दर्शक प्राप्त हुए।

जब मैंने इन सरकारी वीडियो को पोस्ट करना शुरू किया तो मेरे यूट्यूब चैनल ने “कंटेंट आई.डी” को मिलाना चालू कर दिया। जब कोई कंटेंट निर्माता स्वरचित वीडियो अपलोड करता है, यदि वे प्रमुख मीडिया विक्री केंद्र (आउटलेट) हैं तो वैसे निर्माता यूट्यूब को, इसी तरह के किसी अन्य वीडियो को खोजने का निर्देश देते हैं, जो पूर्णतः या आंशिक रूप से समान हो। यदि कोई मिलान पाया जाता है तो कंटेंट निर्माता दूसरे व्यक्ति के वीडियो को चिह्नित (फ्लैग) करने, और उन्हें औपचारिक रूप से हटाने (टेकडाउन) की सूचना जारी करने का निर्देश देते हैं।

यदि आपको इन टेकडाउन सूचनाओं में से एक भी प्राप्त होता है तो आपका खाता (एकाउन्ट) बंद हो जाता है, जब तक आप “कॉपीराइट स्कूल” (जिसमें कानूनी और गैर कानूनी संबंधित प्रश्नोत्तर किया जाता है) नहीं जाते। यदि कॉपीराइट स्कूल आपसे संतुष्ट हो जाता है तो आप पनः अपने खाते को चालू कर सकते हैं। परंतु जब तक कानूनी शंका टल । नहीं जाती तब तक आप सीमित विशेषाधिकार पर कार्य करते हैं। वास्तव में यदि । आपको सूचना मिलती है और तीन सुनवाई के बाद आप बचाव नहीं कर पाते हैं तो आपका खाता रद्द कर दिया जाता है। जब आप पहली सुनवाई के लिए जाते हैं तो आप उस बिंदु पर अपने नोटिस के साथ टेकडाउन नोटिस का विरोध कर सकते हैं, जो वास्तव में अन्य पार्टी के लिए एक औपचारिक कानूनी नोटिस होती है। उस समय, वे आपको अदालत में ला सकते हैं क्योंकि आपने अपनी कथित संपत्ति को हटाने से इनकार कर दिया है।

मुझे जिस समस्या का सामना करना पड़ा था कि वह यह था कि सैकड़ों सामग्री प्रदाताओं ने यह तय किया है कि सामग्री में किसी भी तरह की समानता, उनके अधिकारों का उ भले ही सामग्री पहले से ही पब्लिक डोमेन में मौजूद है (उस मामले की तरह जब सरकार के वीडियोग्राफर कुछ फिल्माते हैं, और अन्य नेटवर्क भी उसी को फिल्माने का काम करती है)। अधिकांश मामलों में जहां मुझे टेकडाउन नोटिस प्राप्त हुआ था, निर्माता उन सामग्री के स्वामित्व को लेकर गलत थे, या उन सामग्री को उपयोग करने के लिए, वे सरकार को लगातार (परपीचुअल) लाइसेंस प्रदान कर दिये थे। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो ये कार्य यू.एस. सरकार के थे।
कोड स्वराज पर नोट

पहले के कुछ सालों में जब मैंने वीडियो पोस्ट करना शुरू किया तो इन झूठे दावों से निपटने में काफी वक्त लगा। वर्ष 2011 तक, मैंने 5,900 वीडियो पर 325 कंटेंट आईडी वाले दावों को करारा जवाब दे चुका था। इनमें से केवल दो वीडियो में, वास्तव में कॉपीराइट का उलंघन था। वर्ष 1927 की थाईलैंड के बारे एक साइलेंट फिल्म, और 1940 टाइम, इंक, की फिल्म जो अभिलेखों में दाता प्रतिबंध (डोनर रेस्ट्रिक्शन) के साथ जमा की गई थी। बाकी सभी साफ और स्पष्ट थे। मैंने इससे संबंधित अपने परिणामों को लिखा और उन्हें संयुक्त राज्य के आर्किविस्ट, डेविड फेरिएरो (David Ferriero) को भेज दिया।

वर्ष 2011 से, चैनल टेकडाउन फ्रंट पर काफी शांत था, हालांकि चैनल के इन वीडियो ने लाखों व्यूज प्राप्त कर लिए हैं। वर्ष 2014 में, बॉब होप क्रिसमस स्पेशल पर हमें काफी परेशानी हुई थी। होप की वीडियो कंपनी को चलाने वाले निर्माता के निधन होने के बाद, उसके संचालक ने हमें काफी तंग किया और साथ देने से इंकार कर दिया। उन्होंने दावा किया कि सरकार को, बॉब होप क्रिसमस स्पेशल का इस्तेमाल करने के लिए, सिर्फ सीमित अधिकार प्राप्त हैं, भले ही वियतनाम में रहे अमरीकी सेना के एक बड़े सरकारी खर्च पर, इसका उत्पादन किया गया था। मुझे सरकार के साथ हुए प्रारंभिक अनुबंध नहीं मिले, इसलिए मैंने वीडियो को हटा दिया।

चूंकि वर्ष 2007 में मैंने यह चैनल तैयार किया था, उसके बाद लोगों ने FedFlix को देखने में कुल 20,70,66,021 मिनट बिताए हैं। जो देखने के समय के हिसाब से 394 साल के बराबर हैं। यह उन पुराने वीडियो के लिए बुरा नहीं था जो अब तक तिजोरी में पड़ा धूल खा रहा था।

माई आइलैंड ऑफ टियर्स

दिसम्बर में पुनः कॉपीराइट स्कूल में भेजा गया नोटिस एक आश्चर्य की बात थी। इस बार हमें चाल्र्स गुगेनहेम (Charles Guggenheim) द्वारा निर्मित फिल्म “आइलैंड आफ होप, आइलैंड आफ टियर्स” को हटाने के लिए औपचारिक टेकडाऊन नोटिस मिला था। एलिस आइलैण्ड की यह खूबसूरत कहानी, उनके संयुक्त राज्य अमरीका में आप्रवासन की है जिसे जीन हैकमेन (Gene Hackman) ने सुनाया है और इसे नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) द्वारा दिखाया गया था। जब मुझे नेशनल टेक्निकल इंफोर्मेशन सर्विस ने एक वीडियोटेप डिजिटाइज़ करने के लिए दिया था, तो मैंने इसे वर्ष 2008 में ऑनलाइन कर दिया था। इसे अबतक 80,000 व्यूज़ प्राप्त हुए थे। नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) ने इस फिल्म के बारे में एक पेज भी लिखा है जिसमें, मेरे द्वारा इंटरनेट आर्चिव पर डाले गए कॉपी को इंगित किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि अध्यापक इसे अपने कक्षाओं के अध्यापन में शामिल कर सकें।

टेकडाउन नोटिस वाशिंगटन की एक उच्चवर्गीय महिला (सोशलाइट) की ओर से आया था, जो निर्माता की बेटी थी और अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी कम्पनी चला रही थी। उसका कहना था कि इसकी घटिया कॉपी ऑनलाइन करके हुम उस काम की गुणवत्ता को नीचे ला रहे हैं, जिसे सिर्फ थियेटर में, सिर्फ नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) द्वारा ही दिखाया जाना चाहिए था। और उसने मुझ पर आरोप लगाया कि मैंने नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) से पैसे लेकर इसे ऑनलाइन पर डाल दिया है।

मैंने क्लोजिंग क्रेडिट्स को बहुत ध्यान से पढा, जिसमें कहा गया था कि इसका निर्माण और निर्देशन गुगेनहेम द्वारा किया गया है और इसकी “प्रस्तुति” नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) द्वारा की गई थी। मैंने कॉपीराइट स्कूल के निर्देश का पालन किया और पूरा वीडियो यू-ट्यूब और इंटरनेट आर्काइव से हटा लिया और अपनी गलतफहमी के लिए माफी मांगी। लेकिन मैं इसे लेकर बहुत परेशान रहा।

मैंने देखा कि गुगेनहेम प्रोडक्शंस, अमेज़ेन पर इस वीडियो को बेच रहा था, इसलिए मैंने खुद इसकी एक कॉपी मंगाई और इसे नेशनल अकइव में डेविड़ फरेरों को भेजा। उन्होंने शायद इसे मोशन पिक्चर डिवीजन को भेजा, क्योंकि लगभग एक सप्ताह बाद मुझे सीनियर आर्कविस्ट से एक नोट प्राप्त हुआ। उन्होंने, नेशनल पार्क सर्विस (National Park Service) और फिल्म निर्माता के बीच हुए कान्ट्रैक्ट की एक प्रति संलग्न की जिसमें साफ लिखा था कि यह काम मेहतनामा देकर कराया गया है, अतः फिल्म निर्माता का उस काम पर कोई अधिकार नहीं होगा। सिर्फ इतना ही नहीं, जैसा कि मैं जानता हूँ, इस फिल्म बनाने के लिए निर्माता को टेक्सपेयर फंड से 3,25,000 डॉलर दिए गये थे और इस फिल्म बनाने की मदद में उसे अमेरिकन एक्सप्रेस से गिफ्ट भी मिले थे। वे इसे आमेजन पर भी बेचते हैं और वे इस पर कॉपीराइट का दावा कर रहे थे और इस प्रक्रिया से मिली आमदनी को हजम कर रहे थे।

दूसरे शब्दों में, उन्होंने मुझे जो टेकडाउन नोटिस भेजा था वह मान्य नहीं था। इस पर कोई कॉपीराइट नहीं था। य-ट्यब के द्वारा उनके प्रारंभिक टेकडाउन स्वीकार करने के पहले निर्माताओं ने पेनल्टी ऑफ पर्जुरी के अंतर्गत शपथ में कहा कि फिल्म के वास्तविक स्वामी वही थे। उन्होंने शपथ ली कि यदि उन्होंने झूठा टेकडाउन नोटिस भेजा, तो उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। यह दावा करने के लिए कि मैं कॉपीराइट का पालन नहीं कर रहा हूँ उनको पांच चेकबॉक्स जांचने पड़े थे। वे मुर्खतापूर्ण काम कर रहे थे और वे मुझे अपराधी बताकर मेरे लिए कई समस्याओं का कारण बने, जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा।

मुझे उस कान्ट्रैक्ट को भेजने के अलावा नेशलन अर्काइव ने कहा कि वे मुझे एक हाई डेफिनीशन वीडियो फाइल भजेंगे। मैंने यु-ट्यूब और इंटरनेट अर्काइव की मदद ली, नेट पर दोबारा गया, आमेजन डीवीड़ी ली और उसे पोस्ट किया। नेशनल अर्काइव से आने वाली डिस्क ड्राइव 163 गीगाबाइट की थी और वीडियो 28 मिनट की थी। यह वीडियो काफी अच्छी गणवत्ता की थी। मैंने उसे पोस्ट कर दिया। मैंने अनकम्प्रेस्ड हाई-डेफिनीशन वीड़ियों से 276 स्टिल चित्रों को निकाला और इन्हें कॉपीराइट-फ्री स्टॉक फूटेज के तौर पर, फ्लिकर पर पोस्ट किया। सामाग्री का नया और रोचक प्रयोग देखकर नेशनल अर्काइव के स्टॉफ प्रसन्न हुए। मैं लगातार नेशनल अर्काइव के साथ काम कर रहा हूँ, जिन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझे ऐसे और रेफरेंस प्रिंट्स उपलब्ध कराएंगे, जो उन्होंने फिल्मों से डिजिटलाइज किए हैं।
कोड स्वराज पर नोट

कई लोगों का मानना है कि कॉपीराइट एक पुराना मुद्दा है, एक दोहरी समस्या है, जिसमें कन्टेंट को उपयोग कर लोग, कन्टेन्ट के मालिक को नकसान पहुँचाते हैं। झठे कॉपीराइट के दावे को झूठा साबित करते हुए ऐसे अनुभवों ने मुझे सिखाया है कि ऐसे कई लोग हैं जो ऐसे कन्टेंट पर दावा करते हैं, जो उनका नहीं होता है। उनके द्वारा किये मालिकाना दावे उनके लिए महत्वपूर्ण है, पर ऐसे दावों की जांच की जानी चाहिये, विशेषतौर पर उस स्थान पर जहां इस बात का ठोस सबूत होता है कि वह संबंधित कार्य, सरकार द्वारा किया गया कार्य है।

दी एक्सीडेंटल कांग्रेशनल विडियो अर्काइव

वास्तव में मैं फेडफ्लिक्स (FedFlix) में फंस गया। मेरा पहला वीडियो इंटरेस्ट, कांग्रेशलन हियरिंग्स में था। जॉन पोडेस्टा के साथ काम करते हुए मैंने एक प्लान तैयार करने में दो साल लगाए, जिसे मैंने “आई-स्पैन” कहा। यह सभी कॉग्रेशनल सुनवाई को ब्रोडकास्ट-क्वालिटी वीडियो के साथ ऑनलाइन करने का एक प्रयास था। मैंने स्पीकर नेंसी पेलॉसी (Nancy Pelosi) की रिपोर्ट भेजी, उनमें कई बातों पर जोर दिया और जिसके चलते बाद में कॉग्रेशनल स्टाफ के साथ कई बैठके हुई।

वर्ष 2010 में मैंने कांग्रेस की आने वाली रिपब्लिकन मेजॉरिटी से बात की कि वह मुझे कांग्रेस वीडियो को ऑनलाइन करने में मेरी मदद करें। अपने कार्यकाल के पहले दिन ही। स्पीकर जॉन बॉहेनर (John Boehner) ने मुझे एक पत्र भेजा जिसमें मुझसे कहा गया कि मैं हाऊस ऑवरसाइट कमेटी को, उनकी पूरी अर्काइव को ऑनलाईन करने में सहायता करुं। सुनवाई समाप्त होने के तुरंत बाद, सुनवाई और ट्रान्सक्रिप्ट्स मुझे मिलने लगे और मैंने उन्हें सिर्फ इतना ही नहीं सिखाया कि उच्च गुणवत्ता की वीडियों को कैसे कई स्थान पर एक साथ पोस्ट किया जाय, बल्कि सुनने में अक्षम लोगों के लिये, कैसे क्लोज्ड केप्शनिंग जोड़ना भी उन्हें सिखाया। इसका अर्थ था कि हमारे पास सभी मौजूदा सुनवाई की उच्च-गुणवत्तापूर्ण फीड़ थी, ऐसा हाऊस में पहली बार हो रहा था।

हाऊस के साथ हुए मेरे अनुबंध ने मुझे हाऊस ऑवरसाइट कमेटी की अर्काइव लेने की अनुमति दी लेकिन जब मैं हाऊस ब्रोडकास्ट स्टूडियो गया और उनसे मदद मांगी तो उन्होंने कहा कि वे अन्य गंभीर चीजों में व्यस्त हैं। मैंने उन से कहा कि मैं ही स्वयम् उन डाटा को कॉपी कर लेगा तो उन्होंने कहा कि ये सभी एक पेशेवर फारमेट में हैं जिसे मैं संभवतः हैंडल नहीं कर सकता। मेरी ओर से थोड़ी-बहुत खुशामद करने के बाद (और कमेटी चेयरमैन की ओर से उन्हें एक फोन कॉल आने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि वे एक टेस्ट डिस्क भेजेंगे, यह जानने के लिए कि क्या मैं इसे पढ़ सकता हूँ, या नहीं। जब बात एक वीडियों की हो तो मैं इतना गंवार भी नहीं हूँ कि उनकी डिस्क्स पढ़ भी न संकू।

आगे जो हुआ वह बहुत चौंकाने वाला था। हाउस ब्रॉडकास्ट ने मुझे एक बाइंडर, फेडरर एक्सप्रेस से भेजा जिसमें पचास ब्लू-रे डीवीडी डिस्क थे। मैंने इसे खोला और इसको देखा। इसमें मुझे न केवल वे डाटा मिले जो मुझे हाउस ऑवरसाइट के लिए चाहिए था, बल्कि इसमें 600 से अधिक घण्टे के ब्रोडकास्ट-क्वालिटी वीडियो थे जो सभी कमिटियों के डेटा थे।

मैं तुरंत ही छः ब्लू-रे रीडर्स खरीद लाया और उन्हें अपने मैक डेस्क्टोप पर लगा दिया। एक ही समय में, डाटा को छः डिस्कों में कॉपी किया और उसे उसी रात कुरियर से बाइंडर को वाशिंगटन भेज दिया। अगले दिन मैंने उन्हें दोबारा कॉल की, उसे धन्यवाद दिया और उनसे यूं ही पूछा कि क्या उनके पास इस तरह के और भी चीजें हैं। “जरूर, हमारे पास ऐसे चीजों की भरमार है। क्या आप एक और चाहते हैं?” अतः, उन्होंने मुझे एक और बाइंडर भेज दिया।

पूरी गर्मी के सीजन में वे मुझे ज्यादा-ज्यादा बाइंडर्स भेजते रहे। मैं उन्हें कॉपी करता और उन्हें वापिस भेज देता था। जब वो सभी हो गए तो मैंने वाशिंगटन के लिए टिकट खरीदा और उनसे पूछा कि उनके पास कोई और काम भी है। ज्ञात हुआ उनके पास कई सारी डिस्क्स ड्राईव थी, जो औजारों के रैक के पीछे पड़ी थीं, इसलिए मैंने फेडेक्स स्टोर से पैकिंग टेप के बक्से खरीदे और उन्हें रेबर्न बिल्डिंग के भू-तल पर लाया और उन्हें शिपिंग के लिए पैक कर दिया।

इस ग्रीष्मकाल के अंत तक, मेरे पास कांग्रेसनल सुनवाई के 14,000 घण्टे का वीडियो था। आगे की योजनाओं पर चर्चा करने के लिए मेरी बैठक स्पीकर के जनरल काऊंसल से हुई। मैंने कांग्रेस को 2.4 गीगाबाइट की लाइन से, कैपिटोल के बेसमेंट से सी-स्पैन के बाहर तक, और फिर उसे इंटरनेट 2 के बैकबोन तक उसे जोड़ने का प्रस्ताव दिया। ऐसा करने से । कांग्रेस की कार्यवाही का 48 ब्रॉडकास्ट-क्वालिटी वीडियो, एक साथ पूरे देश में देखने के लिए लाइव-स्ट्रिम हो पाएगी। साथ ही साथ, ऐसा करने से इंटरनेट अर्काइव, युट्यूब, और स्थानीय न्यूज़ स्टेशन्स और अन्य संसाधनों द्वारा, कांग्रेस की कार्यवाही देखी जा सकेगी।

मैंने, डेडिकेटेड हार्डवेयर इनकोडर्स और इथरनेट स्विच पर, 42,000 डॉलर खर्च किए जो दूसरी चीजों पर खर्च करने के लिये थे। इन सभी को एक रैक में लगा दिया और मैंने, इस सैटअप के फोटोग्राफ को अपने साथ ले गया। मैंने उन्हें बताया कि इसके लिए सरकार को कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा, क्यों कि हार्डवेयर पहले से उपलब्ध हैं, और सिर्फ 90 दिनों में इस पूरे काम को अंजाम दिया जा सकता हैं जो इस्तेमाल के लिए तैयार है।

हम, यूएस केपिटोल के बेसमेंट में उस स्थान को भी ठीक से जानते थे जहाँ से हम, हाउस ब्रॉडकास्ट स्टूडियो से आने वाले फाइबर वीडियो फीड्स को, जोड़ सकते थे। हमारी मीटिंग सितम्बर, 2011 में हुई, और मैंने वहाँ के स्टाफ को कहा कि हम जनवरी 2012 तक, जब कांग्रेस का दूसरा सत्र प्रारम्भ होगा, इसे चालू कर देंगे। इससे उनके मुखिया के ऊर्जावान नेतृत्व में, प्रगति के नए युग का आरम्भ होगा। मैंने उनसे कहा कि यदि वे अमेरीका के न्यूज़रूम्स में सीधे-सीधे हाई रिजोल्यूशन वीडियो ला सके तो उन्हें, देश के प्रत्येक स्थानीय टी वी स्टेशनों पर बुलाया जायेगा। मैंने इसे पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी का काम कहा जो सभी के लिये लाभप्रद थी।
कोड स्वराज पर नोट

जब मैं आफिस में था, तो मैंने अलग से स्पीकर के स्टाफ को यह कहा कि हाउस स्टूडियो ने मझे भलवश कांग्रेस के सभी दस्तावेज भेज दिए हैं। उनको आश्चर्य लगा क्योंकि उन्होंने सोचा था कि मैं एक ही कमेटी के उपर काम कर रहा था। मैंने उनसे कहा कि चूंकि इस विषय पर हमारे बीच कोई औपचारिक समझौता नहीं है और यह सरकारी काम है जो पब्लिक डॉमेन का है, अतः यदि मैं इस डाटा को पोस्ट कर दें, तो शायद किसी को आपत्ति नहीं होगी। मैंने उन्हें, उस रैक की फोटोग्राफ दी जो मैंने उनके लिए बनाई थी और साथ साथ सिस्टम से संबंधित में विस्तृत चाट्र्स और टेबल्स भी दिये।

ऐसा कार्यक्षेत्र एक रोचक विषय है। लाईब्रेरी ऑफ कोंग्रेस में विस्तृत (और महंगी) आडियो-वीडियो सुविधा है जो वर्जिनिया में स्थित है। ब्रॉडकास्ट स्टूड़िया और प्रशासनिक तंत्र में कई कर्मचारी काम करते हैं। लाइब्रेरी कर्मचारियों ने इस बात को काफी गंभीरता से लिया और कहा कि यह सब उनका काम है और अंततः वे स्वयम् इसे कभी न कभी करवायेगें या वे असल में जब इसे करना शुरु कर देंगे तो काम बहुत बेहतरीन होगा। प्रत्येक स्थिति में यह तो स्पष्ट था कि वे यह नहीं चाहते थे कि मैं यह काम करुँ।

उन्होंने मुझे इस काम से पूर्णतः दूर कर दिया। हाउस एडमिनिस्ट्रेशन की कमेटी के चेयरमैन, कांग्रेसमैन लंग्रेन (Lungren) ने एक आदेश जारी किया कि मझे और कोई डाटा न दी जाय। लाइब्ररी ने एक काफी निम्न-बैंडविथ की स्ट्रीमिंग सोल्युशन स्थापित किया और इस बात का खास ख्याल रखा कि पूरे आर्काइव को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध न कराएं। वे जो पहले कर रहे थे उससे तो यह अच्छा था लेकिन यह कुछ ज्यादा नहीं था और वास्तव में काफी खराब था। मेरे पास कोई काम नहीं था और कुछ हार्डवेयर में पैसे फंसे थे, जो छः वर्षा बाद, लकिल इम्प पर ई-साइक्लिंग के लिये दे दिया गये। यह एक भारी बबोर्दी थी।

सबसे खूबसूरत पल वह था, जब मैं हाउस एडमिनिस्ट्रेशन पर कमेटी के वकीलों से मिल रहा था। उन्होंने एक कागज निकाला, एक ऐग्रीमेंट का, जिसके अनुसार मुझे यह अनुमति थी कि जो डाटा पहले से मेरे पास थे मैं उसका इस्तेमाल कर सकता था, बशर्ते कि कमेटियों का वीडियो रिलिज़ करने से पहले, मेरे पास प्रत्येक कमेटी के चेयरमैन की अनुमति हो। वे चाहते थे कि मैं इस ऐग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करें लेकिन मैंने ऐसा करने से इंकार कर दिया।

मेरा 14,000 घंटे का वीडियो अब इंटरनेट अर्काइव पर था और मैं यह वीडियो कभी भी देख सकता था और इसके माध्यम से मैंने 6,390 सुनवाईयों के लिए मेटाडाटा भी बना लिये। मैंने हाउस के साथ किये गये सारे ई मेल्स और पत्राचार, साथ ही वह बेवकूफी वाला एग्रिमेंट जिस पर मैने हस्ताक्षर नहीं किये थे, उन्हें इंटरनेट पर पोस्ट कर दिए।

हमारी बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए न्यायालयों ने एफ.बी.आई(FBI) को बुलाया

वीडियो पर काम करना मजेदार था, लेकिन यह मेरा मुख्य उद्देश्य नहीं था। मुझे कानून के अध्ययन पर ध्यान देना था। कानून अध्ययन से मुझे नागरिक प्रतिरोध के इतिहास से संबंधित अनेक जानकारी मिली। मैंने केस लॉ से शुरुआत की। मैं, हारवर्ड के प्रोफेसर लेरी लेसिग (Larry Lessig) के साथ काम करते हुए, एक विक्रेता से संयुक्त राज्य अमेरीका के कोर्ट आफ अपील्स के, सभी पुराने मामलों को खरीदा और उन्हें नेट पर डाल दिया। इन मामलों को नेट पर डालने में हमारे 6,00,000 डॉलर खर्च हुए। लेकिन पहली बार लोगों को यह सुविधा मिली कि वे बिना किसी खर्चे के, नेट पर उपलब्ध इन विचारों तक पहुँच सकते थे। यह औचित्यपूर्ण था।

संयुक्त राज्य अमेरिका के कोर्ट आफ अपील्स के बाद, मैंने अमेरिका के जिला न्यायालयों पर ध्यान दिया जो “पेसर” (पब्लिक एक्सेस टू कोर्ट इलेक्ट्रोनिक रिकाड्स) नामक एक सिस्टम चलाते थे। जिसकी सहायता से विवरण, राय, डॉकेट्स और अन्य चीजों को पाया जा सकता था, लेकिन इसके लिए प्रति पेज 8 सेन्ट देने होते थे (आजकल प्रति पेज के लिए 10 सेन्ट्स भी देने पड़ सकते हैं)। यह सच में मुझे बहुत बेतुका लगा, इसलिए मैंने, ‘पेसर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों (फ्रिक्युन्टलि आस्क्ड क्योश्चेन्स)' के व्यापक सेट के उपर, पेसर डोक्स की पुर्नरावर्तन (रीसाइकिल) करने के लिए एक सिस्टम बनाया। यह सिस्टम कई तकनीकी और आर्थिक खामियों से गुजरा।

यह वर्ष 2008 की बात है, एक बार सहसा मेरा फोन बजा। लाइन पर एमआईटी (MIT) से स्टीव शुल्ट्ज (Steve Schultz) नामक छात्र था और उसका मित्र आरोन स्वाट्र्ज (Aaron Swartz) भी था। मैं, आरोन को उस समय से जानता हूं जब वह 12 साल का था। वह लैरी लेस्सिा का शिष्य था और जो इंडस्ट्री गेट टुगेदर्स जैसे कार्यक्रम में अक्सर आता था। आरोन ने मेरे साथ आई.आर.एस (IRS) जैसे कई मामलों पर काम किया था। उसने, मेरी पूर्व पत्नी रेबेका मालामूड के साथ भी काम किया था जब वह इंटरनेट अर्काइव के लिए ओपने लाइब्ररी सिस्टम का संचालन करती थी।

आरोन को मेरा एफ.ए.क्यू (FAQ) काफी पसंद आया और उसने बड़े पैमाने पर पुर्नरावर्तन के लिए, लाइब्रेरी का उपयोग करने का निर्णय किया। स्टीव ने एक साधारण पेसर क्रॉलर (crawler) लिखा था और आरोन ने उसका प्रयोग करना चाहा। अदालतों ने, देश भर के खास 20 पुस्तकालयों में, सिर्फ एक प्रायोगिक सेवा (Self-Employed Women's Association of India) स्थापित की थी, यह देखने के लिए कि क्या “साधारण” लोग पेसर का इस्तेमाल करना चाहते हैं। यह एक तरह से कांग्रेस के अधिकारियों के अत्यधिक दबाब के सामने, अदालत द्वारा थोड़ा झुकने जैसा था। कांग्रेस यह जानना चाहती थी कि क्यों उन्हें, पेसर के बारे में इतने पत्र प्राप्त हो रहे हैं। अदालतों ने सोचा कि 2-वर्षीय पायलट प्रयोग, एक विलम्ब करने का आसान तरीका हो सकता है।

आरोन ने स्टीव का कोड़ लिया और एक बड़ा क्रॉलर लिख डाला। उन्होंने देखा कि लाइब्रेरी सिस्टम के अन्दर जाने (एक्सेस) के अधिकार की जाँच करने की प्रक्रिया, ‘कुकि’ पर आधारित है। जिसका अर्थ यह था कि जब, सप्ताह के शुरूआत में, एक बार लाइब्रेरियन सिस्टम पर लॉग-इन करता है तब उसके बाद, एक तिकड़म से, कोई भी एक सप्ताह तक बैठ कर, मुफ्त में पेसर को उपयोग कर सकता था। मैं इसे ठीक से समझ नहीं पाया हूँ कि आरोन ने यहां क्या किया था। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने, सप्ताह में एक बार, सेक्रामेंटो लाइब्रेरी में किसी जिगरी दोस्त को भेजा और उसने वहाँ की कुकि (cookie) को कॉपी किया और उस कुकि को, आरोन को ईमेल से भेज दिया। यह कुकि, जो एक सप्ताह
कोड स्वराज पर नोट

के लिये मान्य है, जिसकी सहायता से वह इस सिस्टम को सप्ताह भर के लिये, क्राल करने के लिए सक्षम हो गये।

कुछ महीने के बाद, मुझे आरोन से एक नोट प्राप्त हुआ, जिसमें उसने कहा कि उसके पास कुछ डाटा है, और क्या वह मेरे सर्वर पर लॉग इन कर सकता है। मैं आमतौर पर ऐसा अधिकार किसी को नहीं देता, वास्तव में मैंने अपने सिस्टम पर किसी को भी कोई गेस्ट अकाउंट नहीं दिया था। लेकिन आरोन कुछ खास था और इसलिए मैंने उसे एक अकाउंट दे दिया। मैंने इसके बारे में ज्यादा सोच-विचार भी नहीं किया। फिर संभवतः एक महीने बाद हमने देखा कि उसने उस पर करीब 900 गीगाबाइट डेटा अपलोड किया है। यह बहुत ज्यादा था। लेकिन वह एक होशियार लड़का था, इसलिए मुझे उस पर आश्चर्य नहीं हुआ। मैंने इसको अपने मन में रख लिया पर इस पर दोबारा नहीं सोचा क्योंकि हमारे पास पर्याप्त डिस्क स्पेस उपलब्ध था।

फिर फोन बजा। आरोन लाइन पर था। सरकार ने एकाएक प्रयोगात्मक सिस्टम को बंद कर दिया है और नोटिस जारी किया है कि उनके सिस्टम पर हमला हो गया है, और उन्होंने एफ.बी.आई को कॉल किया। उन्होंने 20-लाइब्रेरी के संपूर्ण प्रयोग को रोक दिया है। वे बात कर रह थे कि उनके सिस्टम को हैक कर दिया गया है, जो एक गंभीर मामला था।

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फिर दो घटनाएं घटी। सबसे पहले, मैं वकील के पास गया और आरोन को भी वकील ढूढ़ने को कहा। जो हुआ था हमने उसे गौर से देखा, और अन्ततः मेरी राय थी कि हमने कुछ भी गलत नहीं किया है। हमने किसी भी समझौते या सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है। हां, यह जरूर था कि अदालतों ने किसी व्यक्ति से आशा नहीं की थी कि वह पब्लिक टर्मिनल से 900 गीगाबाइट डेटा प्राप्त कर लेगा। मैंने एफ.बी.आई को कहा कि किसी नौकरशाह को आश्चर्य में डालना कोई अपराध नहीं है। यह पब्लिक डाटा है और हमने इसे पब्लिक को दी गई सुविधा से ही प्राप्त किया है हम निर्दोष हैं।

दूसरी बात यह थी कि अब मैंने गोपनीयता अतिक्रमण (प्राइवेसी वायलेशन्स) के लिए इन डाटा को पैनी नजर से देखना शुरु कर दिया। मुझे इसमें हजारों दस्तावेज ऐसे मिले जो, कोर्ट के नियमों के विरुदघ, व्यक्तिगत सचना प्रकट कर रहे थे, जैसे कि सामाजिक सरक्षा नंबर, छोटे बच्चों के नाम, गोपनीय सूचनाओं को देने वाले के नाम, कानून के अधिकारियों के घर के पते, चिकित्सा संबंधी व्यक्तिगत अवस्था का विवरण आदि, जिसे हरगिज प्रकट नहीं किया जाना चाहिए था।

इस काम को करने में मुझे दो महीने लगे। लेखा परीक्षा (ऑडिट) के परिणाम लिखे गए और एक प्रमाणित (सटिफाइड) पत्र, 32 जिलों के प्रत्येक मुख्य न्यायाधीशों को भेजे गए। उन्होंने शुरु में ऑडिट को नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन मैं उन्हें यह बार-बार भेजता रहा, और तीसरी बार जब मैंने उन्हें वे नोटिस भेजे, तो उनपर मैंने लाल स्याही में तीसरा और आखिरी नोटिस” मुद्रांकन कर दिया था। मैंने संयुक्त राज्य अमरीका जिला के मुख्य न्यायाधीशों को एक गुस्ताखी भरा पत्र भेजा था, लेकिन फिर भी उनका ध्यान इस तरफ नहीं गया।

यूएस सीनेट ने इस नोटिस को गंभीरता से लिया और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यायिक सम्मेलन को, तीखे शब्दों में लिखा एक पत्र भेजा। कोर्ट ने, अपनी गोपनीयता की प्रथा (प्राइवेसी प्रेक्टिसेज़) में कुछ हल्के बदलाव किए, लेकिन हाँ, कुछ न्यायधीशों ने इस मामले को गम्भीरता से लिया, जिसका श्रेय उन्हीं को जाता है। हालांकि इससे हमें कुछ भी लाभ नहीं हुआ। करमुक्त अभिगमन (फ्री-एक्सेस) पायलट प्रयोग निलम्बित रहा। अदालतों ने, उनके केसों के फाइल देखने के भाव भी बढ़ा दिए।

एफ.बी.आई. ने आरोन के घर पर निगरानी रक्खी और उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसने बात करने से इंकार कर दिया। बाद में एफ.बी.आई. ने, अदालतों को कहा कि हमने कुछ गलत नहीं किया है। इसके बाद, न्यूयॉर्क टाइम्स में लेख छपने के बाद, न्यायालय ने एफ.बी.आई को बुलाया और इस मामले पर दुबारा नजर डालने को कहा। फिर भी कुछ नहीं मिला, और एफ.बी.आई ने न्यायालयों को इस मामले को यहीं पर छोड़ देने की गुजारिश की।

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यह बात तब की थी जब से मैंने सविनय अवज्ञा (सिविल रेसिस्टेंश) का गम्भीरता से अध्ययन करना शुरु किया था। मुझे ज्ञात था कि हम उन खतरों का साँचा:Sic नहीं कर रहे थे जिन खतरो का गांधीजी और मार्टिन लूथर किंग ने सामना किया था। मुझे किसी भी विधि अधिकारी या सतर्कता समिति के सदस्य से खतरा नहीं था कि वे मुझे शारीरिक नुकसान पहुचाएंगे। विधि साहित्य को एक्सेस करना, सामाजिक न्याय पाने के लड़ाई की तुलना में, एक छोटा सा संघर्ष था। यह जनता के लिए आजादी की लड़ाई लड़ने की तरह नहीं था।

लेकिन हमारा प्रयास, सिस्टम की कार्यशैली को बदलना था, और हम यह जानते थे कि हम उन लोगों से बहुत कुछ सीख सकते थे, जो हम से पहले विभिन्न संघर्षों से गुजर चुके हैं। साथ ही, मैं यह जानना चाहता था कि समाज में प्रभावकारी बदलावों को कैसे अमल में लाया जा सकता है। अपने सिर को दीवार पर मारने से, या पवन चक्की को झुकाने से कुछ नहीं होगा। मैं इस बारे में और जानना चाहता था कि पहले ऐसे बदलाव कैसे लाये गये थे। मैं यह भी जानना चाहता था कि हम अपनी वर्तमान की शिकायतों में न उलझ कर, कैसे आने वाले समय में बदलाव ला सकते हैं।

मेरा यह अध्ययन, वर्ष 2011 से और भी अधिक गहन होता चला गया। मैं अब केस लॉ पर काम नहीं कर रहा था, और कानून द्वारा अपेक्षित तकनीकी मानकों पर ध्यान केंद्रित करना शुरु कर दिया था। प्राइवेट पार्टियाँ सोचती थी कि इन कानूनों पर उनका ही स्वामित्व है। वे सोचती थी कि इसके चलते उनकी तनख्वाह दाव पर है। वे कड़ा संघर्ष करने को तैयार थीं। मुझ पर कभी कोई मुकदमा नहीं चला, लेकिन मुझे पता था कि कुछ गैर-लाभकारी स्टेंडर्ड निकायों को इसकी काफी चिंता थी और वे किसी भी कीमत पर यह बदलाव चाहते थे।
कोड स्वराज पर नोट

उस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि आरोन को हिरासत में ले लिया गया। उसने जे.एस टी.ओ.आर (JSTOR) सिस्टम से कई महत्वपूर्ण स्कोलरली आर्टिकल्स डाउनलोड कर लिए थे। वह ऐसा एम.आई.टी (MIT) में होने के कारण ही कर सका क्योंकि उसे वहां अतिथि विशेषाधिकार (गेस्ट प्रिविलेज़) प्राप्त था। एम.आई.टी ने पुलिस बुला लिया जब कि ऐसी स्थिति में, आरोन जैसे दुर्लभ विद्यार्थी के साथ जो करना चाहिए था वह यह था कि उसे बुला कर समझाने की कोशिश करना। मैंने अपने मित्र जेफ़ शिल्लर (Jeff Schiller) को फोन किया जो एम.आई.टी नेटवर्क को चलाता था, तब उसने मुझे बताया कि वास्तव में क्या हुआ था। यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र के अन्दर नहीं आता था क्यों कि अब कोई और ऑपरेशन चला रहा था, और जब एक बार पुलिस बुला ली गई है तो, अब पीछे जा पाना संभव नहीं था।

पुलिस ने उसे यूएस के अटॉर्नी को सौंप दिया, जो इस मामले को एक उदाहरण की तरह प्रस्तुत करना चाहते थे। उन्होंने आरेन पर 13 संगीण आरोप लगाए। इन आरोपों के सिद्ध होने पर, भारी जुर्माना भरना पड़ सकता था और सालों तक जेल में बिताने पड़ सकते थे। मुझे आरोन के लिये सबसे बड़ा खौफ यह लग रहा था कि उसका ऐसे अपराधों के लिये अपराधी घोषित होने पर, अपने मतदान का अधिकार वह खो देगा। एक तथाकथित हैक़र के छूटने पर, उस पर यह आम शर्त लगायी जाती है कि आप आगे कम्प्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। और यह आरोन जैसे व्यक्ति के लिए सबसे दर्द भरी, दिल दहलाने वाली स्थिति होगी। संयुक्त राज्य अमेरिका के अटर्नी इस मामले को इसके अंजाम तक पहुँचाने के लिये कटिबद्ध थे, और उन्होंने आरोन के अटर्नी को यह सूचित किया कि वे, आरौन को जेल की सजा से बचने के लिये, किसी भी प्ली बारगेन के सौदे के लिये तैयार नहीं थे।

आरोन का अपराध यह था कि उसने बहुत बड़ी संख्या में आर्टिकल्स डाउनलोड किए थे। जे.एस.टी.ओ.आर (JSTOR) सर्विस पर, डाउनलोडिंग की अनुमति होती है। कोई भी छात्र केंपस-वाइड सर्विस के अंतर्गत, जे.एस.टी. ओ.आर जर्नल के आर्टिकल्स पढ़ सकता था। समस्या यह थी कि आरोन ये आर्टिकल्स बड़ी तेजी से पढ़ रहा था। यह सोच कर मैं अभी भी चकरा जाता हूँ कि कैसे यह, कथित तौर पर अपराध बन गया।

आरोन ने ये आर्टिकल्स अभी तक कहीं रिलीज नहीं किए थे, हालांकि संयुक्त राज्य अमरीका के अटर्नी को यह पूरा विश्वास था कि यह तो होने ही वाला है। मुझे इस बात का विश्वास नहीं था। जब आरोन ने पेसर डोक्स डाउनलोड किए थे, तो उसने मुझे दिये थे, उनको स्क्रब करके रिलीज करने के लिए। वह सर्वर नहीं चलाता था आता था, इसलिए वह, मेरे और बूस्टर जैसे लोगों पर निर्भर करता था। उसने अब तक, जे.एस.टी.ओ.आर (JSTOR) के डाटा रिलीज करने के लिए कोई कदम नहीं उठाये थे।

संभवतः, आगे के समय में, वह इन आर्टिकल्स को रिलीज करने के लिए कदम उठाये, लेकिन इस बात का अभी तक कोई सबूत नहीं था कि वह भविष्य में ऐसा करेगा। वह, मेरे जैसे व्यक्ति, या नेट पर ऐसे काम करने वाले अपने दोस्तों में किसी का साथ लिये बिना, यह काम नहीं कर पायेगा। उसने पहले वेस्ट (West) से, बड़ी संख्या में लॉ जर्नल डाउनलोड किए थे, लेकिन उसने उन्हें भी कभी रिलीज नहीं किया। बल्कि उसने उन आर्टिकल्स पर, एक बिग-डेटा विश्लेशण करके एक बुनयादी (seminal) पेपर संयुक्त रूप से लिखा था जिसमें यह दिखाया कि कैसे लॉ के प्रोफेसर लोगों को, आमतौर पर कॉरपोरेट हितों के अनुकूल, उनके मुद्दों पर लिखने के लिये अनुदान मिलता है जैसे कि प्रदूषण के चलते उत्पन्न वैधानिक देयधन (लायेबिलिटी), और बाद में यही आर्टिकल्स कोर्ट के मामलों में, उनकी तरफ से उपयोग किए गए।

आरोन ने, हमारे प्रिय मित्र क्ले जॉनसन से कहा कि वह पर्यावरण परिवर्तन के अनुसंधान में, भ्रष्टाचार के सबूत ढूढ़ने के लिए वह जे.एस.टी.ओ.आर के आर्टिकल्स का विश्लेषण कर रहा था। आरोने की गिरफ्तारी के बाद, जहां तक क्ले को याद है, उसका वक्तव्य इस प्रकार का था, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि डेटा फ्री होना चाहिए, लेकिन मैं सिर्फ पर्यावरण परिवर्तन आर्टिकल्स को लिखने के लिये, दिये गये अनुदानों का विश्लेषण करना चाहता था।” ऐसा आरोन ही कह सकता है।

आरोन की गिरफ्तारी और मेरे द्वारा किये जा रहे टेक्निकल स्टेंडर्ड के मामलों के गहन अध्ययन के चलते मैं कई रात ठीक से सोया नहीं और मैंने अनगिनत रातें अध्ययन करने में बिताये। जब जनवरी, 2013 में आरोन ने आत्महत्या कर ली तो इंटरनेट पर कार्यरत सभी लोगों ने शोक मनाये, खासतौर पर उनलोगों ने जिन्हें उसके साथ काम करने को अवसर और गौरव प्राप्त हुआ था। मुझे उसके जाने का आज भी बहुत दुख है।

हिंद स्वराज

वर्ष 1909 में महात्मा गांधी ने “हिंद स्वराज” की रचना की। वह लंदन से वापस जहाज से लौट रहे थे और दक्षिण अफ्रीका में ज्यादा गंभीरता से मुद्दों को उठाने वाले थे। उनका सत्याग्रह अभियान सफल रहा था, लेकिन यह सफलता अत्यंत कष्ट सहकर, और बलिदान देकर प्राप्त हुई थी। मुझे लगता है कि गांधी जी अपने मस्तिष्क में उन बातों पर स्पष्टता लाना चाहते थे जिनपर उन्हें विश्वास था। गांधी जी, एस.एस किल्दोनन कैसल नामक जहाज पर, नौ दिनों तक जमकर लिखते रहे। जब उनके दाएं हाथ में दर्द होने लगता तो वे बाएं हाथ से लिखने लगते। जब उन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन किया था, तो उन्होंने उसके ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा था “कोई अधिकार आरक्षित नहीं (No Rights Reserved).”

यह पुस्तक सबसे हटकर थी लेकिन लाजवाब थी। गांधी जी के पास ढेरों विचार थे जिनमें से कुछ उनके मित्रों को तर्कसंगत लगते थे और कुछ नहीं। नेहरू और टैगोर इस पुस्तक को पसंद नहीं करते थे। इस पुस्तक में कुछ ऐसे विचार हैं जो आज मुझे मूर्खतापूर्ण लगते हैं जैसे “अस्पताल पापों का प्रसार करने वाले संस्थान हैं (hospitals are institutions for propagating sins)।” परंतु इन कड़े वाक्यों के बाद भी कोई भी व्यक्ति यह तो स्वीकारता

है कि बापू के विचारों में दम था। भले ही आप पुस्तक में प्रत्येक शब्द का समर्थन न भी करते हो लेकिन उसमें, गांधी के विचार से, भारत में और भारतीयों द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं का संपूर्ण विवरण था और उसके निवारण के दमदार सिद्धांत भी दिये गये थे।
कोड स्वराज पर नोट

गांधीजी ने एक उत्तर दिया था। हो सकता है कि यह सही उत्तर न हो, नि:संदेह यह सिर्फ इकलौता उत्तर नहीं था। लेकिन यह सुसंगत उत्तर था और यह उनकी, इस बात के बारे में पहली संपूर्ण अभिव्यक्ति थी कि मौलिक परिवर्तन, विश्व में कैसे लाया जा सकता है। वे यह लगातार कह रहे थे, उसे पुनः दुहरा रहे थे कि यह परिवर्तन कैसे होने चाहिए। उनके लेखन के 100 खंडों का संकलित कार्य यह दर्शाता है कि उनके विचार किस तरह विकसित हुए। लेकिन मेरे लिए, ‘हिंद स्वराज हमेशा मेरे पुस्तक की अलमारी में विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि यह हमें, एक छपे पुस्तिका के जरिये मजबूत संदेश देता है। यह पुस्तिका की शक्ति को दर्शाता है और यह भी बताता है कि क्यों प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों को प्रसारित करने लिये एक मुद्रक होना चाहिये।

मैंने जब पहली बार हिंद स्वराज पुस्तक पढ़ा तो मेरे दिमाग में “कोड स्वराज (Code Swaraj)” शब्द गुर्जाने लगा। हिंद स्वराज का विचार और भारतीयों का स्वशासन (सेल्फ रूल), दोनों ही विचार स्पष्ट लक्ष्यों पर केंद्रित हैं। ये बहुत आकांक्षापूर्ण थे लेकिन इनमें कुछ प्राप्त करने योग्य भी थे। कुछ खरी वास्तविकता थी। कुछ ठोस ध्येय था। यह स्वतंत्रता की लड़ाई के मुख्य प्रतीकों में एक था। शब्द महत्वपूर्ण होते हैं और “हिंद स्वराज” शब्द, लोगों ने जैसे ही सुना उनके लिए यह विशिष्ट अर्थ का हो गया। यह शब्द किसी बड़े कार्य का संकेत बन गया, एक सामूहिक लक्ष्य के रूप में।

गांधी जी ने हमें दूसरे सिद्धांतों से भी परिचित कराया है। सत्यग्राह एक संघर्ष है लेकिन यह कोई लघु घुमावदार संघर्ष नहीं है कि जो किसी भी अच्छे ध्येय के खिलाफ किया जाय। सत्याग्रह एक विशिष्ट संघर्ष है जिसे किसी ठोस लक्ष्य के लिये किया जाता है, जैसे कि एक विशेष अधिनियम की अवज्ञा करके नमक बनाना।

सत्याग्रह के लिए गहन तैयारी की आवश्यकता होती है। लोगों को मुद्दे के विषय में सस्वयम को शिक्षित करना पड़ता है। एक सत्याग्रह के लिए नैतिक आधार जरूरी हैं। गांधी जी ने। जब समुद्र तट तक जाने के लिये कूच किया तो उन्होंने इसके पहले, अपने इरादे की सूचना वायसराय को दी। सत्याग्रह अपने लक्ष्य पर केंद्रित होनी चाहिए, और एक बार जब लक्ष्य प्राप्त हो जाय तो उन्हें उस लक्ष्य को और आगे बढ़ा नहीं देना चाहिए। जीत की घोषणा के बाद, लोगों को अन्य मुद्दों पर आग्रसर हो जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी सत्याग्रह अभियान को, एक बहुत बड़े लक्ष्य के संदर्भ में करना चाहिए, जैसे कि स्वराज की प्राप्ति।

गांधी जी के ये उपदेश दक्षिण अफ्रीका को, और भारत को भेजे गये। ये उपदेश गांधी जी के माध्यम से, मंडेला और केनियट्टा और न्क्रूमाह तक पहुंचे और पूरे अफ्रीका में फैल गये। गांधी जी के ये उपदेश किंग तक, और अमेरिका में नस्लभेद के विरूद्ध की लड़ाई तक फैले। इन उपदेशों ने विश्व को बदल दिया।

कोड स्वराज, एक प्रतीक और एक लक्ष्य के रूप में

मेरे लिए कोड स्वराज का अर्थ है कि हमारी नियमों की पुस्तकें खुली और करमुक्त उपलब्ध होनी चाहिए। इंटरनेट ने विश्व को बदल दिया है और इसने विश्व को, ओपन सोर्स सोफ्टवेयर और ओपन प्रोटोकॉल के माध्यम से बदला था। सभी यह जान सकते हैं कि इंटरनेट कैसे काम करता है यदि वे प्रोटोकॉल के विवरण (स्पेसिफिकेशन्स) पढ़ने के लिए समय निकालें जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।

इंटरनेट कोई अन्ततोगत्वा होने वाला निष्कर्ष नहीं था। वर्ष 1980 में जब मैंने इंटरनेट पर काम करना शुरू किया तो उस समय विभिन्न तरह के नेटवर्क थे। एक नेटवर्क को, इन्टरनेशनल आर्गनाइजेशन फार स्टैन्डर्डाइजेशन और बड़े कॉर्पोरेटों और सरकारी संगठनों की सहायता से विकसित किया जा रहा था। इसे ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन । (ओ.एस.आई) कहा जाता था और उन्होंने जो मॉडल अपनाया था वह वैसा ही था जैसा मॉडल हम आज भी मानक निकायों को प्रयोग करते हुए देखते हैं। प्रोटोकॉल की विशेषताओं को नियंत्रित प्रक्रिया के अंतर्गत तैयार किया गया था। इसके विवरण के दस्तावेज काफी मंहगे थे और उनकी प्रतिलिपि, एक निजी संस्थान द्वारा दिये गये लाइसेंस के बिना, नहीं बनाई जा सकती थी।

मैं उस समय कंप्यूटर नेटवर्क पर, पेशेवर रेफरेंश पुस्तकें लिख रहा था और उसके लिये हमें बहुत सारे “ओ.एस.आई” के दस्तावेजों खरीदना पड़ता था। मैंने, कंप्यूटर ट्रेड के मैंगज़ीनों के लिए कॉलम भी लिखे थे। मेरे अधिकांश कॉलम इस संर्दभ में लिखे गए हैं कि कैसे मानकों की उच्च कीमत, और बंद विकास की प्रक्रिया (क्लोज़ड प्रोसेस) इस नई प्रौद्योगिकी की अन्तर्निहित संभावनाओं के प्राण हर ले रही है।

इसी बीच, इंजीनियरों के एक अनौपचारिक ग्रुप ने इंटरनेट इंजिनीयरिंग टास्क फोर्स (आई.ई.टी.एफ) का गठन किया। यह समूह स्वयं-आयोजित था और इसके सभी प्रोटोकॉल ओपन थे और नि:शुल्क उपलब्ध थे। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह एक ‘काम करते कोड (वर्किंग कोड) के सिद्धांत पर काम कर रही थी। जिसका मतलब यह था कि आप समिति के बैठक में, इंटरनेट संचालन के किसी भी पहल के मानकीकरण के लिये तब तक प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं जब तक कि आपने उसे अपने काम करते कोड के द्वारा कार्यांवित नहीं कर लिया है, उदाहरण के लिए आप ई-मेल हेडर के फारमेट का सुझाव तब तक नहीं प्रस्तुत नहीं कर सकते जब तक आपने ई-मेल हेडर के सुझाव को कोड करके अमल न कर दिया हो। इंटरनेट प्रटोकॉल उन चीजों पर आधारित होते थे जो वास्तव में काम करते थे, जबकि ओ.सी.आई कॉर्पोरेट के एजेंडों पर निर्भर होती थी।

इंटरनेट प्रोटोकॉल पर मेरा योगदान कम है लेकिन मैंने आई.ई.टी.एफ पर बहुत समय दिया और आखिरकार इंटरनेट के प्रशासन प्रणाली के मामलों पर काम किया। मैं उस रैडिकल समूह का हिस्सा था, जो इसके प्रशासन को निपुणता से नियंत्रित कर, एक बौट्टम-अप मॉडल की ओर ले जाते गये और इसके प्रशासन प्रणाली को सरकारी प्रायोजकों (स्पोनससी के नियंत्रण से बचाते रहे, जैसे कि अमेरिका रक्षा मंत्रालय और वह अन्य एजेंसियां, जो आज भी हमारे उपर कई पर्यवेक्षी (सुपरवाइजरी) निकायों, जैसे इंटनेट आर्किटेक्चर बोर्ड की स्थापना कर रहे हैं।

हुम मूल सिद्धांतों पर अडिग रहे जैसे कि बैठकों में भाग लेते व्यक्ति अपने विचारों को प्रकट करते हों, न कि अपने नियोक्ताओं के। इनमें कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता था, वहां कोई
कोड स्वराज पर नोट

भी आवेदन या सदस्यता नहीं होती थी। मैंने उस विषय पर समय लगाया है कि उन दस्तावेजों को कैसे उपलब्ध किया जा सकता है, जो आई.ई.टी.एफ डाटाबेस का निर्माण करते हैं, और बाद में मैंने, मार्शल टी. रोज़ के साथ मानकों के लिए, संलेखन भाषा (ऑथिरिंग लैंग्वेज) पर काम किया जिसका प्रयोग आज भी किया जा रहा है।

इंटरनेट ने, ओ.एस.आई (OST) के खिलाफ लड़ाई जीती। हमने यह पाया कि जब कभी भी बड़ी समस्या होती है जिसका समाधान असंभव लगता है तब हमारा ओपन नेटवर्क, इसका कोई-न-कोई समाधान हमेशा निकाल लेता है। सहसा कोई नया स्नातक विद्यार्थी, कोई ऐसा उपाय ढूंढ़ निकालेगा जिससे चीजों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इंटरनेट की प्रगति, हमारी सभी कल्पनाओं की परिधियों को लांघ चुकी है, लेकिन हम कम से कम इस बात पर तो जरुर फ़ख़ करेंगे कि हमने, इसकी प्रगति में राह में कभी कोई रुकावट नहीं डाले। ओ.एस.आई (OSI) दल ने इसे नहीं समझा और अब वे इतिहास के एक पन्ने में, एक छोटे फुटनोट तक ही सीमित रह गये हैं।

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कोड स्वराज इंटरनेट के लिए वास्तविक रहा है हालांकि अब भी हमलोग, बड़े दीवारों का सामना कर रहे हैं। यदि आपने लाइनक्स का प्रयोग किया है तो आप यह देख पायेंगे कि कंप्यूटर का संचालन कैसे किया जाता है लेकिन आप अपने आई-फोन के सोर्स कोड को देख नहीं सकते हैं। नेट के प्रोटोकॉल विवरण खुले हैं लेकिन आजकल इस पर चलने वाली ज्यादातर सेवाएं, विशाल और केंद्रित क्लाउड सेवाओं पर, स्थानान्तरित हो रही हैं। हमलोग नेट न्यूट्रैलिटी के लिये लगातार संघर्ष कर रहे हैं, और अभी भी ज्यादतर इंटरनेट से जुड़ी ज्यादा विषय आज भी खुले हुए (ओपेन सोसी हैं, और हमें इन्हें इसी रूप में रखने के लिए लड़ते रहना होगा। अब भी इंटरनेट पर, नकली खबरों, अब्यूसिव बोट्स, और नेट को खराब करने के अनेक प्रपंचों के आक्रमण हो रहे हैं ताकि इसे अपकृत कर, बंद किया जा सके।

हमें अपने दृष्टिकोण को, सिर्फ इंटरनेट को खुला और करमुक्त करने के काम से ज्यादा उपर रखना चाहिए। हमें उन्ही सिद्धांतों को जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी लागू करने के प्रयत्न करना चाहिए। कोड स्वराज का सिद्धान्त, कानून के क्षेत्र में भी लागू होता है। हम सही अर्थों में लोकतंत्र कैसे बन सकते हैं, अगर जिन कानूनों के माध्यम से हम सरकार का निर्माण करते हैं वे ही अधूरे हैं, तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण हों, और महंगे हों? जब आज वकील, विक्रेता द्वारा संचालित एक पुराने और घटिया सिस्टम को उपयोग करने को बाध्य है, जैसे वह कंपनी, जो हमें जौर्जिया लॉ के एकमात्र अभिगमन (एक्सेस) के लिये, एक तकनीकी रूप से त्रटिपूर्ण सोफ्टवेयर को उपयोग करने को, और अनगिनत शर्तों को मानने को बाध्य करती हैं। यहां तक कि पब्लिक सिस्टम, जैसे यू.एस फेडरल कोट्र्स का अभिगमन भी, निहायत अयोग्य और महंगे कैश रजिस्टर के पीछे छिपा है जिससे कोई भी साधारन कार्य करना असंभव सा लगता है, जैसे कि गोपनीयता के अतिक्रमण के अध्ययन के लिए, सभी जिला न्यायलयों के कार्यों को डाउनलोड करना। मुझे लगता है कि कोड स्वराज, इंटरनेट और, कानून से भी ज्यादा अन्य क्षेत्रों को इंगित करता है, हमारी तकनीकी मानको की स्वतंत्रता का संघर्ष, इसका एक उदाहरण है। हमारे विश्व का ज्यादा से ज्यादा तकनीकीकरण हो रहा है। अतः यह नितान्त जरुरी है कि हम यह समझे कि हमारे विश्व के प्रमुख संरनात्मक ढांचों का संचालन कैसे होता है। मानक हम सब की सर्वसमत्ति को दर्शाता है कि चीजें को कैसा बनाया जाय। कोड स्वराज यह कहता है कि यदि कोई मानक अर्थपूर्ण है तो उसे सभी लोगों को पढ़ने के लिए, और उस पर विवेचना करने के लिये उपलब्ध होने चाहिए। कोई भी निजी मानक, किसी भी निजी कानून की भांति मूर्खतापूर्ण ही होगा।

मुझे इला भट्ट के शब्द याद हैं जिन्होंने हमसे कहा था कि हमें अपने लक्ष्यों के प्रति आकांक्षापूर्ण होना चाहिए। हमें विश्व की शांति के लिए काम करना चाहिए, भले ही हमें इस बात का विश्वास हो कि यह कार्य जल्द नहीं हो सकता, भले ही हमें यह भी विश्वास न हो कि ऐसा कभी भी होगा। फिर भी हमें उसके लिए प्रयास जरुर करते रहना चाहिए।

ज्ञान की प्राप्ति भी एक आकांक्षापूर्ण लक्ष्य है। हमें उसके लिए काम करते रहना चाहिए और जैसे हिंद स्वराज का लक्ष्य, भारत के भविष्य के कुछ अकांक्षापूर्ण लक्ष्यों के साथ जुड़ा था, मुझे विश्वास है कि कोड स्वराज का लक्ष्य भी, वैश्विक ज्ञान के सार्वजनिक अभिगमन के लक्ष्यों को साथ संलग्न है। यदि हमारे पास कोड स्वराज नहीं है तो हम कभी भी ज्ञान के अभिगमन की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर पाएगें। यदि आपके पास कानून की खुली किताब नहीं होगी तो आप कभी भी सूचना को लोकतांत्रीकरण करने में सक्षम नहीं हो पाएगें। यह, एक लोकतंत्र में, लोगों द्वारा अपनी ही किस्मत को, अपने ही नियंत्रण में करने के बारे में है।

ओपन गर्वमेंट: एक मंत्र

बराक ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद एक दिलचस्प घटना हुई। सिलिकॉन वैली में वर्षों से चल रही सरकारी सूचना के लिए चल रहे हमारे संघर्ष को एक विवाद की तरह देखा जा रहा था। लेकिन, प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग कर सरकार को बेहतर बनाने के ओबामा के प्रयास के चलते, लोगों में आशा की एक लहर दौड़ गई। गूगल और फेशबुक के वरिष्ठ इंजीनियरों ने अधिक वेतन वाली अपनी नौकरी छोड़कर व्हाइट हाउस में काम करने के लिए आ गये।

राष्ट्रपति ने एक चीफ टैक्नोलॉजी ऑफिसर को नियुक्त किया और मेरा यह मानना था कि जिन तीन लोगों ने उन पदों के कार्यभार संभाले, वे सभी मेरे दोस्त समान थे। नेशनल आर्काइव के लिये डेविड फेरिएरो (David Ferriero) जैसे दूरदर्शी अधिकारियों को पूरी एजेंसियों को चलाने का काम दिया गया था। रिपब्लिकन, कांग्रेस को चला रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वे भी प्रौद्योगिकी को अपनाना चाह रहे थे। मैं कंजरवेटिव रिपब्लिकन, कांग्रेस के सदस्य डैरेल ईसा के साथ मिलकर काम कर रहा था, मुझे भी यह सब दिखाई दे रहा था। उनका मुख्य काम कांग्रेसनल वीडियोज़ के एक बड़े हिस्से को सार्वजनिक करना था।
कोड स्वराज पर नोट

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, व्हाइट हाउस द्वारा ओपन गर्वमेंट की साझेदारी पर अद्भुत प्रयास किए गए थे। प्राय: कई देशों के अधिकारी आकर मिलते एवं वे ओपन गर्वमेंट की योजनाएं और लक्ष्य तैयार करते। संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रत्येक संघीय एजेंसी को अपने लिये ओपन गर्वमेंट संबंधी योजनाएँ बनाने को कहा गया। एजेंसियों को उनके द्वारा जनता के लिये सार्वजनिक किए गए डाटा सेट के आधार पर, उनको रैंक देना शुरू किया गया। उस स्थिति में पारदर्शिता, एक नारा बन गई और ओपन करना - लक्ष्य।

सरकारी सेवा (Self-Employed Women's Association of India) में, अधिक संख्या में तकनीकी विशेषज्ञों को लाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने युनाइटेड किंगडम की एक अग्रणी एजेंसी, गवर्नमेंट डिजिटल सर्विस का अनुकरण किया जो आधुनिक कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को प्रत्यक्ष रूप से ऑनलाइन सरकारी सेवाओं में ला रहे थे। इस नई यू.एस.डिजिटल सर्विस से “18F” नामक एक अन्य समूह भी जुड़ गया। *18F” नामक यह समूह जनरल सर्विसेज एडमिनिस्ट्रेशन का एक हिस्सा है, जिसमें करीब सौ होनहार युवा और अनुभवी तकनीकी विशेषज्ञ स्टाफ भरे हैं। (संगठन को यह अनोखा नाम इसलिये पड़ा क्यों कि इसके कार्यालय की इमारत, 18वीं स्ट्रीट और F स्ट्रीट के कोने पर स्थित थी।)

उस समय आरोन स्वार्टज ने एक निबंध लिखा था जिसे मैंने परिशिष्ट के रूप में संलग्न किया है। उन्होंने चेताया था कि एकमात्र लक्ष्य के रूप में पारदर्शिता, एक गलत लक्ष्य होता है, और मैं भी उसकी इस बात पर सहमत था । वास्तव में मुझे उस समय काफी गुस्सा आता था जब लोग यह कहा करते थे कि मैं, सरकार में पारदर्शिता लाने के एकनिष्ठ लक्ष्य को लेकर ही अपना काम कर रहा हूँ। मुझे गलत न समझें। मैं किसी कार्य के संचालन को ज्यादा प्रभावकारी बनाने में एक साधन के रुप में पारदर्शिता के उपयोग पर पूरी तरह विश्वास रखता हूँ। यह महत्वपूर्ण है, सिर्फ सरकारी एजेंसियों के संचालन में ही नहीं बल्कि मेरे जैसे पब्लिक चैरिटी के लिए भी। लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि जो हम कर रहे हैं। उसके लिए यह पारदर्शिता का फ्रेम ठीक नहीं है। पारदर्शिता अपने आप में एक अस्पष्ट लक्ष्य है। इसके अन्तर्गत सत्याग्रह जैसे किसी विशिष्ट अभियान को शामिल नहीं किया जा सकता है। आपका लक्ष्य, कुछ बड़े फ्रेम का होना चाहिये।

मैंने यह कार्य इसलिए किया क्योंकि यह सरकार के कार्यविधि को बेहतर बनाएगा। मैं उन कार्यविधियों की सुधार में दिलचस्पी ले रहा था जिसके द्वारा सरकार अपने नियमों को, खुद की, बार को, और जनता को उपलब्ध कराती है। मैं कांग्रेस संबंधी सुनवाई को इंटरनेट पर उपलब्ध कराना चाहता था क्योंकि यह देश के सभी विद्यार्थियों को शिक्षित करने के लिये एक ऐसा उपकरण था जिसने कांग्रेस के कर्मचारियों के लिए, कांग्रेस को बेहतर तरीके से चलाने का काम आसान बना दिया था।

मैंने यह पाया कि पारदर्शी सरकार के आंदोलन में लगे नेक लोगों की एक बड़ी संख्या यह सोच यह थी कि वे सिस्टम को अंदर से बदलने जा रहे थे। मैं यह स्पष्ट कहता हूं कि उनमें से कुछ लोग तो इससे भी ज्यादा करने में सफल रहे थे। एक छोटी सी SWAT टीम के आश्यचर्यजनक कार्य को देखें, जिसने healthcare.gov को एक ठेकेदार की दुर्दशा से बचाया। लेकिन कई लोग यह महसूस करते थे कि अन्दर में एक गुट काम कर रहा था। यदि आप सरकार का हिस्सा नहीं थे तो आप किसी समस्या के समाधान के भागी नहीं बन सकते थे। उनमें से अधिकांश लोग मुझसे बात करने में झिझक रहे थे और इस बात के लिए चिंतित थे क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि वे इस संघर्ष, और मौलिक परिवर्तन को अपना रहे हैं।

मुझे लगता है कि आपको, सरकार को बाहर और अन्दर, दोनों तरफ से प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। मैं भारत और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, दोनो के सिविल सेवा (Self-Employed Women 's Association of India) के कौशल का बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। आप किसी भी मिशन ऑरिएंटेड एजेंसी को देखें उसमें आपको तकनीकी ज्ञान में महारथ हासिल किये लोग मिलेंगे और आप उन्हें सार्वजनिक सेवा (Self-Employed Women's Association of India) के प्रति प्रतिबद्ध पायेंगे।

हालांकि, हम ये सरकार के सिर्फ अन्दरूनी लोगों पर छोड़ नहीं सकते हैं। हम अपनी सरकारों के मालिक हैं और यदि हम उनके कार्य में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते हैं, तो वे अपनी पूर्ण क्षमता तक नहीं पहुंच पाएंगे। पारदर्शिता को एक लक्ष्य के रूप में निर्धारित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें अधिक विशिष्ट (स्पेसिफिक) होना होगा। इसलिए कोड स्वराज की जरुरत है। यदि कोई कानून है, तो उसे सार्वजनिक होना चाहिए। पारदर्शिता की दृष्टि से यह केवल पारदर्शिता के लिये नहीं है, बल्कि यह हमारे कानूनी और तकनीकी संरचना को प्रभावी रूप से कार्य करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। ऐसा केवल आंतरिक प्रयास से ही नहीं होता है।

कई सालों से, ऐसा लग रहा था कि सरकार के अन्दर से काम करना ही एकमात्र तरीका है। यूनाइटेड किंगडम की गवर्नमेंट डिजिटल सर्विस को, तकनीकी दुनिया में सार्वभौमिक प्रशंसा मिली है, लेकिन सरकार में बदलाव होने के बाद अब यह एक खाली ढांचा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, यू.एस. डिजिटल सर्विस और 18 F, इस बात का संघर्ष कर रहे थे कि विधायिकी और कार्यकारी शाखाओं में नीति निर्धारकों का ध्यान उन पर रहे। वे लगातार अच्छा काम कर रहे हैं और मैं, इन दोनों एजेंसियों के कार्यरत प्रशासकों को व्यक्तिगत दोस्त की हैसियत से जानता हूँ और उनके खुद की सार्वजनिक सेवा (Self- Employed Women 's Association of India) की भावना का मैं काफी कद्र करता हूँ। लेकिन उन्हें बाहर से हमारी सहायता की आवश्यकता है। हम प्रशासन को सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। नागरिक होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी भी है।

भारत में ज्ञान का एजेंडा
जैसे ही दिसंबर करीब आया और वर्ष 2017 का अंत हुआ, मैंने यह समझने की कोशिश में अपने दिन बिताए कि मैं क्या करना चाहता हूँ। मुझे लगा कि मैं भारत में अधिक काम करना चाहता हूँ। मैं ऐसा अपने स्वार्थी कारणों के लिए करना चाहता हूँ। मुझे इस विशाल और विविधतापूर्ण देश से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, यह समृद्ध इतिहास और जीवंत लोगों का देश है। मुझे लगता है कि सैम पित्रोदा के साथ किये गये काम एक परिवर्तन की शुरुआत है। उनके जरिए मैं भारत में बहुत सारे लोगों से मिला और मुझे इस बात का यकीन है कि वे जिन्दगी भर मेरे अच्छे दोस्त बने रहेंगे।
कोड स्वराज पर नोट

मैं इस पुस्तक का अंत उन चर्यों को लिखकर करना चाहूंगा, जो भविष्य की कार्रवाई के लिए एजेंडा बनेगा। मैं अपने विचारों को क्रम में रखकर ऐसा करूंगा, लेकिन मैं यह आशा करता हूँ कि दूसरे लोग भी हमारे साथ इस संघर्ष में जुड़ेंगे।

कुल दस ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हम काम कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश क्षेत्रों में पहले से ही कार्य जारी है। मैं इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हो सकता है कि दूसरे लोगों के पास इससे अलग और बेहतर लिस्ट हो। मैं इन दस विषयों को किसी भी निर्णायक कार्यक्रम की वस्तु के रूप में नहीं रख रहा हूँ। मैं यह विश्वास करता हूँ कि जब महात्मा गांधी ने कहा था कि “बदलाव का साधन बनो” तो इससे उनका तात्पर्य केवल यही नहीं था कि लोग कोई संघर्ष करें, उन्हें साथ-साथ अपने अन्दर भी देखना चाहिए और उन्हें दूसरे लोगों को यह बताने की जरुरत नहीं कि उन्हें क्या करना चाहिये।

1. तकनीकी ज्ञान- निसंदेह यह सबसे पहला है, तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने की लड़ाई, यह कोड सत्याग्रह है। इस बारे में, केवल भारत में ही नहीं पूरे विश्व में प्रश्न उठाए गए हैं। लाखों लोग इंटरनेट पर हमारे द्वारा पोस्ट किए गए मानकों का प्रयोग करते हैं, हमने भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में नागरिकों को सूचित किया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि इस सूचना को और विकसित करने की अत्यंत आवश्यकता है।

हम दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय और माननीय यू.एस. कॉर्ट ऑफ अपील के फैसले का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन हमें इंतजार करने के अलावा भी बहुत कुछ करना चाहिए। हमें उन लोगों के, शिक्षाविज्ञ, इंजीनियर, नगरीय अधिकारियों और आम नागरिकों के दिमाग में इन मुद्दे को उठाना चाहिए, जो इन दस्तावेजों का प्रयोग करते हैं। ऐसा तभी संभव है जब हम सभी अपनी आवाज़ को उठाएंगे और यह मांग करेंगे कि वैसे तकनीकी नियम, जो हमारे समाज का नियंत्रण करते हैं वे सार्वजनिक रूप से सर्वसाधारन को उपलब्ध होने चाहिए।

2. भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय - दूसरा, भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय के साथ मिलकर पुस्तकों सर्वसाधारन को उपलब्ध कराना। काफी काम होना बाकी है और भारत में सभी पुस्तकालयों में उच्च गुणवत्ता में स्कैनिंग करने की क्षमता है। वर्तमान संग्रह के लिए काफी काम करना बाकी हैं, जैसे कि मेटाडेटा को व्यवस्थित करना, ठीक से नहीं हुए स्कैन का पता लगाना और अधिक सामग्रियों को शामिल करना। साथ-साथ इसे आप्टिकल कैरेक्टर रीडर के माध्यम से उसे टेक्स्ट में परिवर्तित करने की सख्त जरुरत है।

डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया - यह भारत सरकार का एक अत्यंत सराहनीय प्रयास है। मेरा मानना है कि पूरे संग्रह को फिर से स्कैन करना चाहिए। किये गये स्कैनिंग निम्न स्तर के हैं, यहाँ पर कई पेजे गायब हैं और कई तिरछे हैं। इन सब कारण से यह संग्रह अभी भी पूर्ण नहीं हैं। इसे आप्टिकल कैरेक्टर रीडर से पढ़ना मुश्किल हो जाता है। भारत में विशाल सार्वजनिक स्कैनिंग केंद्र मौजूद हैं, जिसने सार्वजनिक क्षेत्र की सामग्रियों को उपलब्ध कराया। यह भारत में सभी भाषाओं में शैक्षिक सामग्री को उपलब्ध करने के लिए काफी उपयोगी हो सकता है। वर्तमान में हमारे पास 4,00,000 पुस्तकों का संग्रह है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि थोड़ा और प्रयास करके हम लाखों पुस्तकों को स्कैन कर सकते हैं। यह काफी संभावित लक्ष्य है और इसमें कुछ वर्षों का समय लग सकता है। यह भारत के भावी शिक्षा में एक बेहतरीन निवेश साबित हो सकता है।

जब राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपना पद संभाला तो मैंने जॉन पॉडेस्टा (John Podesta) से संपर्क किया और हमने उसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा। मैंने उस पत्र को, राष्ट्रपति के मुहिम के नारे “हाँ, हम कर सकते हैं (Yes We Can)” पर आधारित । YesWeScan.Org नाम की वेबसाइट पर डाल दिया। पत्र की सबसे आकर्षित पंक्ति थी-यदि हम किसी व्यक्ति को चाँद पर भेज सकते हैं तो हम कांग्रेस की लाइब्रेरी को साइबर स्पेस पर भी डाल सकते हैं। चूंकि जॉन मेरे सह-लेखक थे, प्रशासन ने आर्किविस्ट डेविड फेरिएरो (David Ferriero) के माध्यम से एक अच्छा उत्तर तो दिया लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने नई डिजिटल पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ अमेरिका जैसे आकांक्षापूर्ण लक्ष्य में रूचि दिलाने का प्रयास किया लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। मुझे यह उम्मीद है कि भारत इस चुनौती का सामना करेगा और आनेवाली पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए एक ज्ञान मंदिर का निर्माण करेगा।

3. सरकार के अध्यादेश। तीसरा प्रयास, सरकार की पत्रिकाओं/फ़रमानों को आधुनिक बनाना। इसमें सरकार के अन्दर और अन्य मूलभूत क्षेत्रों में जैसे कि आधिकारिक राजपत्र । में, समर्थन मिलने की उम्मीद लगती है। लेकिन इस क्षेत्र में अधिक प्रयास की आवश्यकता है। राजपत्र के पुराने अंकों उनके रहस्यमय तकनीकी इंटरफेसों से बचाना है। इससे महत्वपूर्ण यह है कि राजपत्रों, नियमों, अधिनियमों, उपनियमों और सरकार के अन्य ने व्यापक रूप से उपलब्ध कराना लेकिन ऐसा तभी संभव है जब सरकारी कार्यकारी इन सामग्रियों को प्रकाशित करने को, एक लाभकारी प्रयत्न के रूप में देखेगी। हमें उन्हें उसी तरह से शिक्षित करना चाहिए जैसे हम स्वयं को शिक्षित करने में लगे हैं।

हम सरकार के अध्यादेश को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने के लिए दो प्रयास कर सकते हैं। पहला तकनीकी कार्य है और वह है, राज्यों और नगरपालिकाओं के सभी राजपत्रों की एक प्रतिलिपि को प्रकाशित करना, और इसमें वर्तमान ऑनलाइन फाइलों के अलावा इनके पुराने ऐतिहासिक संस्करणों को भी स्कैन करना। उपलब्ध ऑनलाइन राजपत्र का मिरर बनाना एक मुश्किल कार्य है लेकिन इसे एक छोटे पर अनवरत प्रयास से किया जा सकता है।

एक अन्य गतिविधि जो उपयोगी साबित हो सकती है वह है, सम्मेलन या कांग्रेस या किसी अन्य समारोह के लिए, सरकार के, विधि के, और तकनीकी दुनिया के प्रतिभागियों को। एकत्रित करना। यहां, आधिकारिक पत्रिकाओं के प्रकाशन तंत्र को आधुनिक बनाने, और कानूनों को व्यापक रूप से प्रकाशित करने के लिए कुछ वैधानिक परिवर्तनों की आवश्यकता है। और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसके लिये कुछ प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक परिवर्तनों की आवश्यकता पड़ सकती है। भारत में ऐसे लोगों को साथ लाना है, जो सरकार के आदेशपत्रों के साथ काम करते हैं, और उसके साथ वैसे लोगों को भी ना है जिनके पास वैसी तकनीकी दक्षता हो जैसा कि उन लोगों के पास था जिन्होने यू.के. का सिस्टम बनाया था, और तब शायद कुछ ठोस कदम लिये जा सकते हैं।
कोड स्वराज पर नोट

4. हिंद स्वराज- यह चौथा क्षेत्र है, हिंद स्वराज के समृद्ध इतिहास के शानदार दस्तावेजों को प्रकाशित करना, यह मुझे व्यक्तिगत रूप से पसंद है। मैं उसे संग्रह में शामिल करने के लिए काफी उत्साहित हूँ। यहां पर कुछ मुद्दे हैं। महात्मा गांधी के कार्यों पर तकनीकी प्रयोगऔर कॉपीराइट के माध्यम से कई बार नियंत्रण करने का प्रयास किया गया है। स्वतंत्रता संग्राम का संपूर्ण विवरण और सभी स्रोत दस्तावेज और संविधान निर्माताओं के कथनों को उपलब्ध कराना चाहिए। विशेष रूप से जब सामग्रियों का विकास, सरकारी धन के माध्यम से किया गया था।

यहाँ तक की साबरमती आश्रम भी महात्मा गांधी के संकलित कार्यों के कॉपीराइट पर अपने स्वामित्व का दावा करता है और उनके प्रयोग पर तकनीकी सीमाएं लगाता है। मुझे इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि जब मैंने महात्मा गांधी के संकलित कार्यों की पीडीएफ फाइलों को प्राप्त किया था तो मैंने उन पर से सुरक्षात्मक प्रतिबंध (ताकि लोग प्रत्येक पेज को अलग से निकाल सक) को, और उस पर लगे जलचिह्नों (वाटरमाक्सी को, जो प्रत्येक पृष्ठ पर लगे थे, हटा दिया। मेरा मानना है कि वे सब चीजें इन पृष्ठों को खराब कर रहे थे।

मैंने साबरमती आश्रम को, गांधीजी के पोर्टल से संबंधित सामग्रियों को अप्रतिबंधित करने के लिये एक प्रार्थना पत्र भेजा है ताकि हम इसमें, हिंद स्वराज के, बिना जलचिहु और बिना तकनीकी प्रतिबंधों के प्रति को संलग्न कर सकें। इस विषय पर उन लोगों से बात होने की उम्मीद है, जो भारत में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्रियों के संरक्षक हैं। मैं संकलित कार्यों में लगने वाले कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकताओं को समझता हूँ, जो उस कार्य की अखंडता की रक्षा करने और उनके दुरुपयोग न होने के लिए आवश्यक हैं। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है कि इन ऐतिहासिक कार्य को लॉक करके इनके दुरूपयोग को रोका जा सकता है। क्योंकि इससे वे केवल इसके वैधिक उपयोग को ही हतोत्साहित करेंगे। मेरा मानना है कि हमें इस पर अगले कुछ वर्षों तक चर्चा करनी होगी क्योंकि हम सभी का एक ही उद्देश्य है।

5. फोटोग्राफिक रिकॉर्ड ऑफ इंडिया। यह ऐसा पांचवा कार्यक्षेत्र है जिसके बारे में मेरा मानना है कि हमें बेहतर फोटोग्राफिक रिकॉर्ड ऑफ इंडिया प्रदान करने के लिए कार्य करना चाहिए। हमें सूचना मंत्रालय के सर्वर पर निम्न गुणवत्ता की तस्वीरें मिली, फिर भी वे तस्वीरें काफी बेहतर थीं। भारत के अनगिनत फोटोग्राफिक आर्काइव हैं जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले स्कैन की गई तस्वीरें लगी हुई हैं पर वे पैसे की दीवार (पे-वाल) के पीछे बन्द हैं। यहां अनेक जगहों पर विस्मयकारी संग्रह मौजूद हैं, जैसे कि ब्रिटिश लाइब्रेरी।

मेरा मानना है कि उच्च गुणवत्ता वाले डेटाबेस का विकास करना सार्थक उद्देश्य है, जिसका प्रयोग प्रिंट से लेकर वेब तक किया जा सके और उस डाटाबेस को बिना किसी प्रतिबंध के उपलब्ध किया जा सके। यह मुश्किल कार्य नहीं है। उदाहरण के लिए सूचना मंत्रालय के फोटोग्राफिक रिकॉर्ड को आसानी से उपलब्ध किया जा सकता और उसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का कोई कारण नहीं है।

6. आकाशवाणी । छठ्ठा, मैं आकाशवाणी पर महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम वर्ष के, 129 भाषणों को पाकर एकदम विस्मित था। नि:संदेह आकाशवाणी की तिजोरी (वाल्ट) में और भी अनेक उपयोगी सामाग्रियाँ होंगी। उनमें से कुछ को संगीत या अन्य सामग्री की

कोड स्वराज


व्यवसायिक सीडी के रूप में जारी किया गया था। एक समय था जब आकाशवाणी सरकार का अभिन्न अंग था। ऐसा लगता था कि उनके आर्काइव को विस्तृत उपयोग के लिए उपलब्ध करना काफी रोचक कार्य हो सकता है।


7. भारत का एक वीडियो रिकॉर्ड- सांतवा, वीडियो आर्काइव, औडियो आर्काइव से काफी संबंधित है। हमने “भारत एक खोज” नामक कार्यक्रम के 53 एपिसोड पोस्ट किए हैं। यह अब भी उतना ही लोकप्रिय है जितना कि यह पहली बार प्रसारित होने पर था। रामायण को क्यों नहीं पोस्ट किया जाये? या उन हजारों शानदार गीतों, नृत्य, कला और भारत की संस्कृति और इतिहास को क्यों नहीं पोस्ट किया जाये? आकाशवाणी की भांति दूरदर्शन भी काफी समय तक सरकार का ही अंग था। अब वह स्वतंत्र एजेंसी है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक है।


दूरदर्शन के अलावा, पूरे भारत में वीडियो के अन्य कई आर्काइव हैं, जिन्हें आसानी से उपलब्ध किया जा सकता है। यू.एस नेशनल आर्काइव से मेरा अनुभव यह रहा है कि उनके संरक्षित वीडियो का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए। जब हमारे स्वयंसेवकों ने 6,000 वीडियो को कॉपी कर उसे उपलब्ध कराया, और उस पर 7.5 करोड़ से अधिक व्यूज़ मिले तो इससे पुरालेखकर्ता आश्चर्यचकित रह गए। आर्काइव का मुद्रीकरण (मोनेटाइजेशन) करने के गलत तरीकों के चलते, वीडियो को छुपाया जाता है, लेकिन ऐसा करने से शायद ही उनका व्यापक वितरण हो पाता है या उससे कोई बड़ी रकम मिल पाती है। इस तरह से, इतिहास को दूसरे से वंचित रखने से जनता की उचित सेवा (SelfEmployed Women's Association of India) नहीं होती है।


अच्छी गुणवत्ता वाले वीडियो, फोटो और ऑडियो उपलब्ध कराने का एक और पहलू है। फिल्म या न्यूज प्रोडक्शन, या उच्च गुणवत्ता वाली पत्रिका लेख लिखने का सबसे मुश्किल काम यह जानना है कि फिल्म के लिए "बी-रौल”, या प्रिंट के लिए “स्टाक फोटो” क्या क्या हैं। यदि आप यात्रा संबंधी लेख लिख रहे हैं, तो हो सकता है कि आपको ताज महल की तस्वीर की आवश्यकता पड़े। यदि आप भारत पर एक फिल्म बना रहे हैं, तो हो सकता है कि आप नेहरू की फुटेज चाहते हों। इस तरह के ऐतिहासिक सामग्री को प्राप्त करना अक्सर बहुत मुश्किल होता है।


ऐतिहासिक रिकॉर्ड के सार्वजिनक केंद्र को डिजिटाइज़ करके और इन सूचना को मुफ्त और अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध कराने से सरकार, बॉलीवुड और समाचार मीडिया और सभी छोटे स्वतंत्र फिल्म निर्माता, लेखक और यहां तक कि छात्रों को भी एक अच्छा उपहार देगी। इससे वे अपने स्वयं के काम में इस सामग्री का उपयोग करना चाहें, तो कर सकेंगे। इस सामान्य सार्वजनिक कोर को बनाने से हम निजी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।


ये सात कार्य क्षेत्र काफी मुश्किल पर काफी स्पष्ट हैं। मैं तीन और चुनौतियों को सामने रखना चाहता हूँ।

8. पारंपरिक ज्ञान;
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9. आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान;

10. लोकतांत्रिक जानकारी का व्यापक और आकांक्षात्मक लक्ष्य;

पारंपरिक ज्ञान और जैविक लुटेरे (बायोपाइरेट्स)

पारंपरिक ज्ञान मेरे लिए बिल्कुल नया क्षेत्र था, जिसे मैंने विस्तृत रूप से नहीं पढ़ा था। वर्ष 2017 अक्टूबर में मैंने सैन फ्रांसिस्को से फ्लाइट ली और सैम ने शिकागो से फ्लाइट ली।हम दिल्ली हवाईअड्डे पर मिले और वहां से सीधे बेंगलुरु गए। हमें पहले एक आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय और अस्पताल जाना था, जहां सैम इस संगठन के कुलपति थे। इस संगठन को उन्होंने 30 साल पहले अपने दोस्त दर्शन शंकर के साथ मिलकर शुरू किया था।

भारतीय संस्कृत पाठयों में आयुर्वेद को चिकित्सा का पारंपरिक विज्ञान माना जाता है। समय के साथ यह परिष्कृत होता गया। इसके चिकित्सकों को वैद्य के रूप में जाना जाता है। यूनानी चिकित्सा परम्परा, आयुर्वेद से संबंधित थी। यह प्राचीन चिकित्सा परंपरा अरबी और फारसी दुनिया से आई थी। इसका अभ्यास मुस्लिम हकीमों द्वारा किया जाता था।

जब सैम अपने बोर्ड और प्रोफेसरों के साथ काम में व्यस्त थे, तो मैं इधर उधर घूमने लगा। ट्रांस डिसिप्लिनरी यूनिवर्सिटी (टीडीयू) एक आकर्षक स्थान हैं। भारत में 6,500 से ज्यादा औषधीय पौधों का इस्तेमाल किया गया है और यह प्राचीन ग्रंथों में प्रलेखित हैं। टीड़ीयू में 1,640 से अधिक प्रजातियां उगाई जा रही हैं। एक बड़े वनस्पति संग्रहालय में, 4,500 से अधिक प्रजातियों को संरक्षित और एकत्रित किया गया है।

टीडीयू पारंपरिक पाठ्यों और सिद्धांतों के विस्तृत ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़ता है। 50 से अधिक पीएचडी विद्यार्थी यह समझने की कोशिश करते हैं कि आयुर्वेद की प्राचीन तकनीकें कैसे और क्यों काम करती हैं (या काम नहीं करती हैं। हाल ही में स्कूल ने स्नातक पाठ्यक्रम शुरू किया है। यह एक बड़ा अस्पताल भी चलाता है। इसके अलावा टीडीयू, 6,500 औषधीय पौधों, सूत्रीकरण (फारमुलेशन), औषध विज्ञान, फार्मास्यूटिकल सिद्धांतों और विधियों, चिकित्सा विज्ञान, रोगजनन, जैव-नियमन और आयुर्वेदिक विज्ञान के अन्य पहलुओं के कम्प्यूटरीकृत डेटाबेस का संचालन करता है।

मैंने इस तरह के शोध के कई उदाहरण देखे हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे कई अध्ययन हैं जो बताते हैं कि कुछ खाद्य पदार्थ लंबी उम्र का इजाफा कर सकते हैं। कुछ लोकप्रिय अध्ययनों ने इस गुण को रेड वाइन में बताया है। आयुर्वेद में, अनार ऐसे गुणों के लिए ही जाना जाता है। आयुर्वेद की एक शाखा जिसे रसायन कहा जाता है वह दीर्घायु विज्ञान के नाम से जाना जाता है।

एक पीएचडी छात्र ने इस प्रस्ताव का परीक्षण करने के लिए ड्रोसोफिला (फल मक्खी) पर प्रयोग किया। कुछ मक्खी को रेड वाइन दिया गया और अन्य को अनार का रस दिया गया और बाकी नियंत्रित समूह में थे। यह देखना था कि ये मक्खियाँ एक कंटेनर पर कितनी दूर तक चढ़ सकती थी, जो उनके जीवन शक्ति और सामर्थ्य को मापता था। छात्र ने पाया कि मक्खी पर आहार के अनुपूरण ने न केवल उनके जीवन अवधि ही नहीं बढ़ाई बल्कि उनकी प्रजनन क्षमता को भी बढ़ाया। अर्थात् यह पाया गया कि वे मक्खियाँ रेड वाइन और नियंत्रण समूह के मक्खियों की तुलना में बेहतर थी।

टीडीयू बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ के सह-अध्यक्ष डॉ. रामास्वामी एक प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने मुझे एक और अधिक प्रभावशाली प्रयोग के बारे में बताया। चिकित्सा के क्षेत्र में शोध करने की समस्याओं में एक यह है कि तथाकथित असली दुनिया में परिणामों का परीक्षण कैसे किया जाता है। कोई भी व्यक्ति, प्रयोगशाला में चूहों या मक्खियों पर प्रयोग कर सकता है, लेकिन ये मनुष्य से अलग हैं। मनुष्यों पर परीक्षण का सिद्धांत विशेष रूप से मुश्किल होता है क्योंकि इससे कोई भी बड़ा नुकसान हो सकता है। फ़ील्ड टेस्ट के लिये कड़े प्रयोगशाला प्रोटोकॉल होते हैं। यह सभी चिकित्सा अनुसंधानों के लिए एक कठिन समस्या है।

डॉक्टर ने कहा कि वे उन दवाइयों की प्रभावशीलता का परीक्षण करना चाहते थे, जो मलेरिया का इलाज करने में सहायक थीं। हालांकि, ऐसा करने का एकमात्र तरीका लिवर की बायोप्सी लेना था जिसमें दवा का इंजेक्शन दिया गया हो। यह निश्चित तौर पर मलेरिया से ग्रस्त किसी जीवित मानव पर संभव नहीं है।

टीम ने अत्याधुनिक स्टेम सेल तकनीकी का प्रयोग किया। इसमें प्राथमिक तौर पर हाथ की त्वचा की कोशिकाओं को लिया जाता है। स्टेम सेल से मानव शरीर के किसी भी अंग को विकसित किया जा सकता है। अतः, उन्होंने कुछ लिवरों को विकसित किया। उन्होंने इन लिवरों में मलेरिया की सुई लगाई। फिर इनमें से एक लिवर में आयुर्वेदिक दवा डाला। इस तरीके से उन्हें प्राचीन दवा की प्रभावशीलता का पता लगाया।

यह यात्रा दिलचस्प थी। पारंपरिक ज्ञान के बारे मेरे विचार इस से बदल गए थे। दर्शन शंकर ने कहा कि उनके पास एक विस्तृत डेटाबेस है, जिसमें उन्होंने तस्वीरों, टिप्पणियों और अन्य सामग्रियों के साथ पारंपरिक पाठ्यों में उल्लेखित दवाओं को रखा है। मैंने उनसे पूछा कि क्या इस डेटाबेस को ऑनलाइन रखा जा सकता है? उन्होंने कहा कि जैव विविधता अधिनियम इस पर रोक लगाएगी। मैं इसे समझ नहीं पाया और इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता था।

उस शाम, मैसूर की महारानी, रॉयल महामहिम प्रमोदा देवी वाडियार ने अपने बैंगलुरु पैलेस में बैंगलुरु समाज के कुछ चुनिंदा विख्यात सदस्यों और टीडीयू के डॉक्टरों के लिए एक समारोह का आयोजन किया था। प्रस्तुतियों के बाद, हमने दक्षिण भारतीय भोजन के शानदार खाने का लुफ्त उठाया, जिसमें डोसा और पानी पुरी और तरबूज में परोसी गई तरबूज से बनी कुल्फी और खोखले संतरे में परोसी गई संतरे की कुल्फी शामिल थी। डीनर पर, मैं आयुर्वेदिक ज्ञान के बारे पूछता जा रहा था और जानकारी का प्रसार इन्टरनेट पर करने के लिए जैव विविधता नियम के प्रतिरोध को भी समझने के लिये भी प्रश्न पूछ रहा था।
कोड स्वराज पर नोट

जब मैं कैलिफोर्निया वापस आया, तो मैंने पारंपरिक ज्ञान और जैविक लूट (बायोपायरेसी) से संबंधित पुस्तकें खरीदी और इसकी शुरुआत वंदना शिवा के अभूतपूर्व कार्यों की पुस्तक से की। मैंने प्राचीन चिकित्सा के कुछ संस्कृत विद्वानों को नोट भेजे, जो पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ इंडिया के सक्रिय उपयोगकर्ता थे और मैंने उनसे पूछा कि उनकी इसके बारे में क्या राय है। पारंपरिक ज्ञान पर पेटेंट के बारे में मैंने कई पुस्तकों से आयुर्वेदिक दवाओं और बौद्धिक संपदा का इतिहास पढ़ा।

दो चीजों ने मुझमें कौतुहल उत्पन्न कर दिया। पहला, दर्शन शंकर ने मुझे 13 सीडी भेजी, जिन्हें वे “मेडिसिनल प्लान्ट इन होमियोपैथी (Medicinal Plants in Homeopathy” और “मेडिसिनल प्लान्ट इन केराल (Medicinal Plants of Kerala)” के शीर्षक से बेचते हैं। प्रत्येक सीडी में साधारण डेटाबेस इंटरफेस था। इसमें पौधों के तस्वीरों के साथ कुछ। मूलपाठ, संकेत शब्द (की वड्स और अन्य सामग्री शामिल थे। इस सीडी को देखकर ऐसा लग रहा था कि इन सब सामग्री को अच्छे इंटरनेट इंटरफेस में आसानी से बदला जा सकता हैं।

दूसरी बात जो मुझे परेशान कर रही थी, वह था ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी नामक सरकार का बड़ा प्रयास। इस सिस्टम को अनेक वर्षों में बनाया गया है जिसमें 150 किताबों को बड़ी मेहनत से अनुलेखन किया गया, और फिर एक डेटाबेस में 2,97,183 पारंपरिक आयुर्वेदिक और यूनानी फार्मूलेशन को सम्मिलित किया गया। प्रख्यात विशेषज्ञों ने लेखों का चयन किया है और मैं यह कह सकता हूं कि यह डेटाबेस पारंपरिक ज्ञान के आयुर्वेदिक फार्मूलेशन के कोड़ की कला को दर्शाता है। पर इसमें भी एक पेंच है। यह डेटाबेस जनता के लिए उपलब्ध नहीं है और यह केवल पेटेंट परीक्षकों के लिए ही उपलब्ध है।

मैं लंबे समय से यू.एस. पेटेंट सिस्टम को लेकर चिंतित हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि अब तक जो भी “बिजनेस के तरीके (Business Methods)” और “साफ्टवेयर” पेटेंट हुए हैं, उनसे लाभ होने के बजाय हानि ज्यादा हुई है और ये ज्यादा नवीन या अद्वितीय भी नहीं है। मैंने वर्ष 1994 में यू.एस पेटेंट डेटाबेस को इंटरनेट पर डाला था। मैंने पेटेंट की प्रक्रिया को समझने में काफी समय बिताया है। साथ ही उन लोगों से बात की है, जो अपने दैनिक कार्य में पेटेंट का इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में, जब पहली बार मैंने पेटेंट डेटाबेस को इंटरनेट पर डाला, तो मेरे सबसे उत्साही उपयोगकर्ताओं में से कुछ यू.एस. पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस में काम करते थे। उन्हें कार्यालय में खराब और पुरानी सर्च करने की सुविधाएं प्रदान की गई थी और वे अपने शोध के लिए मेरे सिस्टम का उपयोग करने मेरे घर आते थे।

व्यापारिक तरीकों और सॉफ्टवेयर पेटेंट की बढ़ती संख्या के अलावा, दवाओं से संबंधित इसी तरह के मुद्दे सामने आए हैं। विशेष रूप से, यू.एस और यूरोपीय पेटेंट कार्यालयों ने बहुत अधिक संख्या में संदिग्ध पेटेंट जारी किए हैं। इससे भारत, अफ्रीका और कई अन्य जगहों पर, जहाँ दैनिक जीवन में इन पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने का गहन इतिहास रहा है जन आक्रोश की लहर दौड़ गई है।

सबसे प्रसिद्ध पेटेंट हल्दी का था। हल्दी लंबे समय तक घावों के उपचार सहित कई चिकित्सा के गुणों के लिए जाना जाता है। दो अमेरिकी शोधकर्ताओं ने “हल्दी पाउडर और उसके उपयोग” पर एक पेटेंट प्राप्त किया। भारत समुचित कारणों से क्रोधित हुआ। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. आर.ए. माशेलकर ने इस पेटेंट के खिलाफ एक बड़ी मुहिम चलाई, काफी प्रयास के बाद इस पेटेंट को रद्द किया गया।

बासमती चावल पर भी एक पेटेंट जारी किया गया था, जिसे बंगाल में हजारों साल से उगाया जाता है। यह पेटेंट अच्छी फसल उगाने के लिए चावल की बौनी किस्मों के साथ बासमती चावल की क्रॉस ब्रीडिंग पर आधारित था। यह निश्चित रूप से नवाचार नहीं है क्योंकि भारत में किसानों ने सदियों से इस उद्देश्य से क्रॉस ब्रीडिंग करके चावल उगा रहे हैं। इतना ही नहीं, पेटेंट में बासमती शब्द को भी शामिल किया गया था। इसके चलते इस शब्द का उपयोग करने पर किसानों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती थी।

जैव विवधता पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के साथ मिलकर, यह स्वीकार किया है कि वे पेटेंट जो पारंपरिक ज्ञान पर आधारित होते हैं और जिसे स्थानीय लोग काफी समय से जानते हैं, वे किसी पश्चिमी जैविक लुटेरे कम्पनियों (कॉपोरेट्स बायोपाइरेट्स) के अधिकार में नहीं आना चाहिए जो उस ज्ञान को अपने लिये हड़प लेना चाहते हैं। इस सम्मेलन ने विभिन्न देशों को एक राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए प्रेरित किया और भारत ने वर्ष 2002 के जैव-विविधता अधिनियम बनाया। उस सम्मेलन और इस अधिनियम, दोनों का प्रमुख सिद्धांत यह है कि पश्चिमी कॉपोरेशनों को स्थानीय समुदायों के ज्ञान से कमाये आमदनी को, सिर्फ अपने लिये नहीं सीमित करना चाहिए बल्कि उसे उन स्थानीय लोगों के साथ साझा करना चाहिए।

यदि पारंपरिक ज्ञान पर पेटेंट जारी किया जाता है तो मैं इस बात के समर्थन में हूँ कि उसके लाभ को साझा करना चाहिए। इसके अलावा यदि जैविक सामाग्री को विशेष उपचारात्मक प्रभाव की जागरूकता के आधार पर, या फिर इसे किसी स्थानीय क्षेत्र में व्यापक रूप से उपजाया जाता है, तो उससे हुई आमदनी को स्थानीय समुदाय के साथ साझा करना चाहिए। जैव-विविधता अधिनियम इन सिद्धांतों को प्रतिस्थापित करता है।

हालांकि मेरी समस्या यह है कि हल्दी से लेकर बासमती चावल तक जितने भी पेटेंटों को सम्मानित किया गये थे उनमें से अधिकांश नकली थे। उन्हें जारी ही नहीं करना चाहिए था। लेकिन अब भी ऐसे रद्दी पेटेटों को जारी किया जा रहा है। परंपरागत ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी का सिद्धांत यह है कि इसका प्रयोग पेटेंट परीक्षक, रद्दी पेटेंटों को जारी होने से रोकने के लिए करें। डिजिटल लाइब्रेरी ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोप पेटेंट कार्यालय के साथ समझौता किया है। मैं इस विचार का पूर्णतः समर्थन करता हूँ कि पेटेंट परीक्षक को इस डेटाबेस का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए। यह सकरात्मक चीज है।

लेकिन कुछ लोग यह मानते हैं कि डेटाबेस को विस्तृत स्तर पर उपलब्ध करना कुछ हद तक बुरा हो सकता है। इससे यह ज्ञान बुरे निगमों को उपलब्ध होगा जिसका वे लाभ उठा सकते हैं। टी.डी.यू के डेटाबेस को इंटरनेट पर नहीं डालने का भी यही कारण हो सकता है। मुझे यह तर्क समझ में नहीं आ रहा था। पिछले तीन दशकों से मैं जिस तरह की जानकारी को ऑनलाइन पर सार्वजनिक कर रहा हूँ, यह तर्क मेरे इस अनुभव के ठीक विपरीत था।
कोड स्वराज पर नोट

मैंने इस पर सलाह लेने के लिए कई लोगों को नोट भेजा कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं। वे मेरी इस बात से सहमत थे कि डेटाबेस को गुप्त रखने से बुरे पटेंट को रोका नहीं जा सकता है। मैं इस निष्कर्ष पर आ चुका हूँ कि इस सूचना को गुप्त रखना, महत्वपूर्ण सार्वजनिक सूचना की प्रगति और विस्तार को बाधित करता है। मुझे इस बात का ध्यान है। कि मैंने डेटाबेस को नहीं देखा है, और संस्कृत के विशेषज्ञों ने सावधान किया है कि किसी भी फारमुलेशन्स को बिना उसके अंतर्निहित लेखों/सद्धांतों को समझे, डेटाबेस में डालना उसे कचरा का ढेर बना देना होगा जिससे सिर्फ कचरा ही निकलेगा।

पर यह बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाला डेटाबेस है। मेरा मानना है कि विस्तृत रूप से इसकी उपलब्धता, उपयोगी ज्ञान के प्रचार में सहयोग कर सकती है। यदि यह जानकारी बुरे पेटेंट को रोकने में उपयोगी है तो इस जानकारी को पेटेंट-बस्टरों के व्यापक समूह को उपलब्ध कराना लाभदायक हो सकता है। यदि डेटा उच्च गुणवत्ता का नहीं है तो संस्कृत विशेषज्ञ इस पर टिप्पणी लगाने का काम कर सकते हैं और इसे ज्यादा उपयोगी बना सकते हैं। यह आयुर्वेदिक और यूनानी विज्ञान की प्रगति में भी काफी उपयोगी हो सकती है।

केवल परीक्षकों तक डेटाबेस सीमित करने से बेहतर यह हो सकता है कि यह वंदना शिवा जैसे पेटेंट बस्टरों को इस डेटाबेस को उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाए। मेरी सहकर्मी बेथ नॉवेक, व्हाइट हाउस में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के ओपन गर्वमेंट इनिशिएटिव की अध्यक्ष थी (वे सैम पिट्रोडा की भी दोस्त हैं)। वो “पीयर टू पेटेंट (Peer To Patent)” नामक तंत्र की प्रवर्तक थी, जिसमें पेटेंट परीक्षक पूर्वगामी कला के उदाहरणों का पता लगाने के लिए नेट पर अन्य लोगों के साथ काम क । सिर्फ कुछ पेटेंट परीक्षकों के लिए डेटाबेस उपलब्ध कराने के बजाय, पेयर टू पेटेंट बेहतर परिणाम पाने के लिए लोगों के ज्ञान का लाभ उठाता है।

मैं इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि इसका उत्तर क्या है लेकिन मेरा यह झकाव है कि सरकार के ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी के डेटाबेस को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना चाहिए। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का ज्ञान शामिल है, इसे सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया था और इसे उपलब्ध करना परंपरागत ज्ञान के लिए अच्छा होगा।

सरकारी उद्यम के रूप में, ऐसा लगता है कि कॉपीराइट अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम, और संविधान सभी की प्रवृति मुक्त प्रकाशन की ओर है। मैं गलत भी हो सकता हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि वर्ष 2018 में इस पर चर्चा होगी। इसके परिणामस्वरूप हो। संकता है कि सरकार को एक औपचारिक याचिका दायर करूं कि वे अपने डेटा को सार्वजनिक करें, केवल पोर्टल के लिए नहीं बल्कि उसे भारी मात्रा में डाउनलोड करने के लिये और फिर उसको अपने तरीके से प्रयोग करने के लिए।

वैज्ञानिक ज्ञान और दिल्ली विश्वविद्यालय की फोटोकॉपी की दुकान

नौंवा क्षेत्र है वैज्ञानिक ज्ञान का। मेरा तात्पर्य शोध पत्रिकाओं में छपे आधुनिक विद्वानों के प्रकाशन से है। वर्ष 2017 में मेरा अधिकांश प्रयास वैज्ञानिक ज्ञान तक पहुंचने की बाधाओं से निपटने में लगा था। विशेष रूप से अमेरिकी कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा उनके सरकारी कर्तव्यों के दौरान लिखे गये पत्रिकाओं के लेख थे, जिन्हें अवैध रूप से प्रकाशकों द्वारा पैसे की दीवार (पे-वाल) के पीछे छिपाया गया था।

मेरी कार्यवाही की मूल योजना अमेरिकी बार एसोसिएसन में मेरे निष्कर्षों पर होने वाले वोटों से उत्पन्न समस्या का विश्लेषण करना था। यह देखना था कि एसोसिएसन मुझे वोट 'हाँ' में। देती है या 'ना' में। फिर उसके बाद उस सूचना को प्रमाणित मेल द्वारा कई दर्जन प्रकाशकों और एजेंसियों को भेजी जानी थी। इन पत्रों द्वारा प्रकाशकों को नोटिस दिया जाना था कि उन पर कुछ सवाल उठे हैं और उन्हें 60 दिनों के अंदर अपनी प्रतिक्रिया देनी है।

मेरे दिमाग में एक ही सवाल था कि “फिर क्या होगा”? जब मैं पब्लिक डोमेन के काम पर कॉपीराइट के अनुचित दावों के बारे में पत्र भेजता हूँ, तो मैं इसे प्रकाशित करने की अनुमति नहीं मांगता हूँ। यदि कोई काम पब्लिक डोमेन में है, तो मुझे किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। मैं इस बात को भी स्पष्ट कर देता हूँ कि मेरे पास ऐसे काम की एक कॉपी भी है जिस के बारे में यह प्रश्न उठा रहा हूँ, अन्यथा यह केवल एक सैद्धांतिक मुद्दा है। मैंने प्रतिक्रियाएं मांगी, लेकिन मुझे नाममात्र प्रतिक्रियाएं ही मिली। इस स्थिति में प्रश्न यह था कि क्या इस लेख को पोस्ट किया जाना चाहिए?

मुझे स्की-हब(Sci-Hub) के एलेक्सजांड्रा एल्बाक्यान और जेएसटीओआर (JSTOR) के एरॉन स्वाट्र्ज के अनुभवों की जानकारी है कि जब प्रकाशकों को उनके वित्तीय हितों पर खतरा नजर आता है, तो वे कितने क्रर हो सकते हैं। मुझे नहीं लगता है कि यदि मैं सरकार के कामों के बारे में वैध तरीके से बात करूंगा, तो प्रकाशक मेरी बात को जरा भी सुनेंगे। वे वही करते हैं, जो मानकों के लोगों ने किया है और वे जम कर झगड़ने के लिये खड़े होते हैं। मैं निश्चित रूप से उस नोटिस को प्रकाशकों को भेजने जा रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग किया है, लेकिन मैं ऐसा करने के लिए किसी दूसरे रास्ते की तलाश कर रहा हूँ, जो कम रुखड़ा हो और जो मुझे मेरे लक्ष्यों तक पहुंचाए।

भारत में भी ऐसी ही स्थिति है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉपी करने की दुकान वह रास्ता हो सकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में एक छोटा और निजी कॉपी करने की दुकान थी। प्रोफेसर वहां कुछ पत्रिकाओं के लेखों की सूची लाते हैं। दुकानदार पुस्तकालय में जाकर उन लेखों को लाकर उनकी प्रतिलिपियां बनाते है, और फिर उन प्रतिलिपियों को एक साथ जोड़ कर विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम पुस्तिका तैयार करते हैं। वे उस पाठ्यक्रम पुस्तिका को मामूली दरों पर बेचते हैं। रामेश्वरी फोटोकॉपी शॉप के खिलाफ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और टेलर एंड फ्रांसिस ने मुकदमा दायर किया था। दुकान पर सशस्त्र पुलिस बल ने छापा मारा था। दुकान के मालिक ने ‘द वायर' को बताया कि “यह शर्मनाक था - मैं खुद को गुनहगार महसूस कर रहा था।”

यह मुकदमा दिल्ली के उच्च न्यायालय में गया। भारत के एक प्रमुख बौद्धिक सम्पत्ति के विद्वान और एक समर्पित सार्वजनिक कार्यकर्ता, मेरे मित्र शमनाद बशीर ने छात्रों और शिक्षाविदों की सोसाइटी की ओर से हस्तक्षेप किया।

कोड स्वराज पर नोट

किसी भी अन्य कॉपीराइट अधिनियम के समान ही भारत के कॉपीराइट अधिनियम में कुछ अपवाद हैं, जिसमें कॉपीराइट लागू नहीं होता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, अमेरिकी सरकार का काम कॉपीराइट से मुक्त हैं। भारत और अमेरिका दोनों में, कोई भी कॉपीराइट का उल्लंघन करे बिना किसी नेत्रहीन के लिये, किताब को कॉपी कर सकता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किताब की अहमियत क्या है, यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि का नतीजा है।

भारत में कॉपीराइट के संबंध में एक और अपवाद है, यदि कोई शिक्षक अपने छात्र को निर्देश देने के लिए किसी काम की कॉपी करवाता है, तो उस पर कॉपीराइट लागू नहीं होगा। न्यायलय का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम पुस्तिका कॉपीराइट के इस अपवाद के अधीन आते हैं। इसलिए, रामेश्वरी फोटोकॉपी शॉप ने कॉपीराइट का कोई उलंघन नहीं किया है क्योंकि पाठ्यक्रम पुस्तिका को विश्वविद्यालय की अनुमति के साथ किसी विशेष उद्देश्य के लिए तैयार किया गया था, ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देने के लिये जो कॉपीराइट का मुख्य उद्देश्य है।

कॉपीराइट कानून इन पर लागू नहीं होते हैं। और मुकदमा खारिज किया गया।

मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के मामले पर विचार कर रहा हूँ, और अदालत का निर्णय मेरे कानों में गूंज रहा हैं। क्या होगा यदि मैं अपने पत्रिका के लेखों के डेटाबेस को विश्वविद्यालय के परिसर में दिखाऊं? मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के मामले की तरह ही कुछ करने की सोच रहा था, जो अमेरिका में भी सर्वव्यापी हो।

मेरा विचार है कि एक प्रोफेसर मुझे पत्रिका के लेखों के लिए एक डिजिटल ऑब्जेक्ट आइडेंटिफायर की सूची दे सकता है। फिर, जब छात्र खिड़की पर आएंगे, तो मैं उन्हें उनके पाठ्यक्रम के साथ एक यूएसबी (USB) ड्राइव दे दूंगा। फिर मैं दूसरे विश्वविद्यालय में जाऊंगा और इसी प्रक्रिया को दोहराऊंगा। यह ज्ञान उपलब्ध कराने की सेवा (Self-Employed Women's Association of India) होगी। हम मुफ्त यूएसबी ड्राइव के साथ विद्यार्थियों को कुछ नाश्ता भी दे सकते हैं। मेरे पास गुआकेमीले व्यंजनों का अद्भुत संग्रह है, जो भारत में काफी मशहूर है।

मैंने शामनद से पूछा “क्या यह बात इसी बिन्दू पर नहीं है?” उन्होंने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह यूएसबी ड्राइव भी पाठ्यक्रम पुस्तिका के समान ही है, लेकिन कोई यह नहीं बता सकता है कि न्यायालय इसके विशिष्ट तथ्यों का कैसे व्याख्या करेगा। क्या वे यूएसबी ड्राइव के पाठ्यक्रम को कागजी पुस्तिका के समान देखेंगे। लेकिन हम दोनों इस बात पर सहमत हुए कि यह काम निश्चित रूप से इसी बिंदु पर थे।

शिक्षा का अधिकार न केवल कॉपीराइट अधिनियम में दर्ज किया गया है, बल्कि यह भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों में भी शामिल है। उदाहरण के लिए, अपने पसंद के पेशे का चुनाव करना मौलिक अधिकार है, एक अधिकार जो जाति के परे है। लेकिन यह जाति से कुछ ज्यादा है। आप अपने पसंद के पेशे का अभ्यास नहीं कर सकते हैं यदि आप उस पेशे को सीख नहीं सकते। तकनीकी मानकों के साथ मेरा यही तर्क था और मैं सामान्य रूप से ज्ञान पाने के लिए भी यही प्रस्ताव रखूगा। एक जानकार नागरिक का कार्यशील लोकतंत्र में मुख्य योगदान होता है।

वैज्ञानिक सूचना सभी लोगों को प्रदान करने के बजाय, मैं 2 करोड़ भारतीय विद्यार्थियों को वह सूचना, एक बार में उपलब्ध कराने में खुश रहूँगा। यह महत्वपूर्ण बिंदू बन सकता है: । ज्ञान की पहुंच द्विगुणी (बायनरी) समस्या नहीं है। यद्यपि यहाँ निजी संपत्ति के अधिकार का मामला है, लेकिन हम इस अधिकार को ज्ञान के रास्ते में अनुचित बाधा बनने नहीं दे सकते हैं जब विद्याथी अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में प्रयासरत है। शिक्षा के लिए बाधा उत्पन्न करना अनैतिक है और शायद उन बाधाओं को दूर करने का यही अवसर है।

मुझे इस डेटा का भारत में प्रयोग करने और उसे भारतीय विद्यार्थी तक पहुंचाने की उम्मीद है। मैं इस बारे में आश्वस्त नहीं हूँ कि मुझमें इस कार्य को कर पाने का साहस है। क्या भारत के विश्वविद्यालय को इतना साहस है कि मुझे अपने परिसर में इस बात के लिये आने की अनुमति दें। मुझे नहीं पता कि इस बात पर लालची प्रकाशक कैसी प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन मेरा यह मानना है कि यह गतिविधि भारत के कानून के अन्तर्गत आता है। और यदि उस सूचना को उपलब्ध कराने के लिए ज्ञान-सत्याग्रह ही एकमात्र रास्ता है तो फिर इसे करना ही चाहिए।

सूचना का लोकतांत्रिकरण

दसवां क्षेत्र है सूचना का लोकतांत्रिकरण करना। यह मेरा कार्यक्षेत्र है, शायद यह सबसे महत्वपूर्ण है। मेरा व्यक्तिगत ध्यान उन बड़े डेटाबेस को खोजना और फिर उन्हें सार्वजनिक करना हैं जिन्हें पब्लिक फंड से, यानि ज्यादातर सरकारी फंड से, बनाया गया हो। यह एक उपर से नीचे (टॉप-डाउन) जाने का उद्यम है, जो अक्सर भारत या अमेरिका में राष्ट्रीय सरकार के स्तर पर ही काम करता है। मैं उन चीजों की तलाश करता हूँ, जो पहले से मौजूद हैं, और उन्हें लोगों तक उपलब्ध कराने की कोशिश करता हूँ।

लेकिन ज्ञान उपर से नीचे (टाप-डाउन) नहीं बहता है। ज्ञान लोगों से शुरू होता है। वर्ष 2016 में, अपनी यात्रा के दौरान जब मैं बंकर रॉय से मिला तो मुझे इसका आभास हुआ। सैम को संभ्रांत मेयो कॉलेज में व्याख्यान देना था और उसके बाद अगली सबह हुम बेयरफुट कॉलेज में सैम के पुराने दोस्त बंकर से मिलने गए। उसके बाद सैम को सैंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के चांसलर की तरह, दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करनी थी।

बेयरफुट कॉलेज अद्भुत जगह है। बंकर ने वर्ष 1972 में इसकी स्थापना की थी। वर्तमान में राजस्थान के मध्य में तिलोनिया गांव के समीप इसका बड़ा परिसर है। उनका उल्लेखित काम है सौर लालटेन का। वे दुनिया भर के गांवों से महिलाओं को लाए और उन्हें सौर लालटेन बनाने के और उसके रखरखाव के तरीकों को सिखाते हैं। वे लोग सोल्डर करना, स्कैमैटिक्स डायग्राम पढ़ना और दूसरों को प्रशिक्षित करना सीखते हैं। ये महिलाएं अपने घर वापस जाती हैं और अपने गांव में रोशनी फैलाने का काम करती हैं। इससे विद्यार्थियों और वयस्कों को अंधेरा होने के बाद भी पढ़ने की सुविधा मिलती है। सौर ऊर्जा का उपयोग कई अन्य कार्यों के लिए भी किया जाता है, जैसे कि सेल फोन को चार्ज करने के लिए।
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इसके अलावा, बेयरफुट कॉलेज ने सोलर कुकर, जल पुनर्प्रप्ति (रिक्लमेशन) परियोजनाएं, सौर ऊर्जा संचालित जल विलवणीकरण (डीसैलिनेशन), कचरा निपटाने की प्रणाली और अन्य कई योजनाओं को विकसित किया है। उन्होंने एप्पल कम्पनी के साथ एक ऐसे सिस्टम पर भी काम किया है, जिससे यदि बच्चे दिन भर खेतों में काम करते हैं, तो वे रात में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। हाल के पी.एच.डी कर चुके छात्रों ने अपनी पी. एच.डी के उपरान्त के (पोस्ट-डौको एक साल टिलोनिया में गु और उस समय का उपयोग ज्यादा बेहतर प्रौद्योगिकी बनाने के लिए किया, फिर उन्हें भारत और दुनिया के गावों में जा कर लगाने के लिये किया।

ज्ञान जमीनी स्तर से उत्पन्न होता है। कोई व्यक्ति राष्ट्रीय सरकारों पर ही सिर्फ ध्यान केंद्रित कर सकता है, लेकिन ऐसा करने का मतलब होगा कि वह, अनगिनत छोटे पुस्तकालयों, स्कूलों, गांवों में बुजुर्गों के ज्ञान, मंदिरों और आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी में रखे जाने वाले परंपरागत ज्ञान और ज्ञान के कई भंडारणों को अनदेखा कर रहा है।

सचना का लोकतांत्रिकरण एक लक्ष्य है, जो अमेरिका और भारत के बीच पर-उर्वरण (क्रौस-फर्टिलाइजेशन) का अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, दोनों देशों के किसानों को एक जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सही सॉफ्टवेयर की प्राप्ति, खेती करने की अपनी मशीनों की मरम्मत, और बीजों का पुनर्उपयोग आदि। अमेरिका और भारत दोनों के पास मजबूत ग्रामीण परंपराएं और पूरे देश में फैले इनके छोटे शहरों में विशाल संसाधन मौजूद हैं। अमेरिका-भारत भाई भाई, बहुत शक्तिशाली नारा रहेगा। अमेरिका में रहने वाले 35 लाख भारतीय मूल के नागरिक, इस साझेदारी के निर्माण करने के लिए एक मजबूत आधार बन सकते हैं।

सैम पित्रोदा अक्सर सूचना के लोकतांत्रिकरण के बारे में वक्तव्य देते रहते हैं। यह एक महत्वकांक्षी लक्ष्य है। यह कोई डेटाबेस नहीं है, जिसे मुक्त किया जाना है। सूचना का लोकतांत्रिकरण से ज्ञान के उत्पादन और उसके उपभोग में मौलिक परिवर्तन आयेगा। ज्ञान तक की सार्वभौमिक पहुंच हमारे समय की प्रतिज्ञा है और सूचना का लोकतांत्रिकरण इसका परिणाम। हमें अवश्य ही इस आकांक्षापूर्ण लक्ष्य पर काम करना चाहिए।

मेरी अपनी खोज, भारत की

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, और स्वतंत्रता तथा कानून के शासन के लिए लड़ी गई महत्वपूर्ण लड़ाईयों का इतिहास, इन दोनों देशों की विरासत में हैं। यह शायद मेरे जैसे एक अप्रवासी अभारतीय के लिए भारत के ज्ञान के बारे में विमर्श करना थोड़ी धृष्टता होगी, लेकिन मुझे इस बात से प्रसन्नता हुई है कि मेरे प्रयासों को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और मैं अब उन्हें दुगने प्रयासों के साथ करना चाहूँगा।

यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि ज्ञान पर सार्वभौमिक पहुंच पाने के लिये, और ज्ञान को सभी अंकुशों से स्वतंत्र करने के लिये दुनिया भर में क्रांति छिड़ जाए, तो इस क्रांति का नेतृत्व करने के लिये भारत, दुनिया भर के देशों में सबसे अच्छी स्थिति में होगा। मेरे इस विश्वास के पीछे दो उपाख्यानों के उदाहरण हैं जिसे मैं बताना चाहूँगा। डॉ. कविराज नागेंद्रनाथ सेनगुप्त लिखित 'औषधि की आयुर्वेदिक प्रणाली, खंड-2 बंगला भाषा में लिखी एक उत्कृष्ट किताब, जिसका अनुवाद सन् 1901 में अंग्रेजी में किया गया था, उसके एक उद्धरण से मैं काफी प्रभावित हुआ। सेनगुप्त उन वैद्यों और संस्कृत आचार्यों के वशंज थे जिन्होंने कलकत्ता में लंबे समय तक डाक्टरी की थी। इस किताब की भूमिका में उन्होंने लिखा है कि “इस देश का ज्ञान विक्री के विनिमय हेतु नहीं है। हिंदु शास्त्रों के अनुसार ज्ञान की बिक्री निन्दनीय है।”

वो बातें मेरे मस्तिष्क में गूंजने लगी। मैंने जितने भी भारतीय मानकों को पोस्ट किया उन सभी के ऊपर भरत मुनि के नीतिशतकम् के शब्दों को लिखा, “ज्ञान ऐसा खजाना है जिसे चुराया नहीं जा सकता है। मुझे उन शब्दों को, वर्ष 1901 की आयुर्वेदिक पुस्तक पर देखने की उम्मीद नहीं थी लेकिन स्वाभाविक रूप से, मुझे इसके लिये आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए था।

सेनगुप्त जी ने पुनः मुझे आश्चर्यचकित किया, क्योंकि उन्होंने लॉर्ड फ्रांसिस बेकन के शास्त्रीय ग्रंथ “द एडवांसमेंट ऑफ़ लर्निंग” का उद्धरण दिया था। बेकन ने कहा ज्ञान के निर्माण का कार्य “लाभ या बिक्री की दुकान” नहीं होनी चाहिए बल्कि ज्ञान को “रचनाकार की कीर्ति का प्रचुर भंडार का द्योतक और मानवीय अवस्था को सुख चैन पहुँचाने वाला” होना चाहिए।

डॉ. सेनगुप्त उन शास्त्रीय पाठ्यों का गहराई से अध्ययन करके व्याख्या करते हैं कि यह प्राचीन काल में कैसे कार्य करते थे:

"यदि कोई व्यक्ति शिक्षा के किसी क्षेत्र में प्रवीणता हासिल किये हुए हो तो वह उस ज्ञान को इसके इच्छुक योग्य छात्रों को देने के लिए बाध्य हैं। शिक्षक अपने छात्रों को न केवल शिक्षा देंगे बल्कि जब तक वे साथ हैं उनके रहने और खाने का भी प्रबंध करेंगे। समृद्ध और भू-स्वामीगण शिक्षा प्रदान करने वालों शिक्षकों की सहायता करेंगे।"

स्वाभाविक रूप से कोई व्यक्ति इस सिद्धांत को थोड़ा संदेहात्मक रूप से देखेगा। जैसे शमनाद बशीर ने मुझे यह याद कराया था कि पहले अधिकांश ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों के संचार की युक्तिपूर्ण तरीके से सीमित रखते थे। यदि कोई शूद्र उसे सुन लेता था तो वे उनके कानों में पिघला हुआ सीसा डाल कर सजा देते थे। लेकिन मेरा यह सुझाव है कि ज्ञान का संचार, जातिनिषेध और अन्य बाधाओं को लांघ कर किया जाना चाहिये और यह सिद्धांत भारत के इतिहास में प्रचूर मात्रा में व्याप्त था।

पारंपरिक ज्ञान पर मेरी पढ़ाई के दौरान, मेरा सामना एक और ऐसी उपाख्यान से हुआ, जिसने मुझे परेशान कर दिया। मैं ‘डॉक्टरिंग ट्रेडिशन' पढ़ रहा था, जो 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल में आयुर्वेदिक अभ्यासों के आधुनिकीकरण पर आधारित थी। पिछली शताब्दी की शुरुआत में, पश्चिमी चिकित्सा शिक्षा अधिक व्यापक हो गई थी, पर डाक्टरी के नए वर्गों में कई आयुर्वेदिक चिकित्सक भी थे। उन्होंने थर्मामीटर, अणुविक्षण यंत्र
कोड स्वराज पर नोट

(माइक्रोस्कोप) और स्टॉप वॉच जैसे नए उपकरणों को अपना लिया था। नए अस्पताल बनाए जा रहे थे। फार्मेसियां बड़ी और अधिक केंद्रित हो गई थीं।

इन सबों के बीच, नए विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का निर्माण चिकित्सा के शिक्षण के लिए किया जा रहा था। जब नए ‘अस्ट्रांग आयुर्वेद महाविद्यालय का निर्माण हुआ, तो उसकी नींव रखने के लिए महात्मा गांधी को आमंत्रित किया गया था।

महात्मा गांधी ने अपने किसी निजी कारणों से इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। वहां पर उनका स्वागत विशेष अतिथि के रूप में तुरही-नाद के साथ किया गया और उनसे दो शब्द कहने के लिए कहा गया। उन्होंने उसके बाद इस पूरे उपक्रम की जमकर आलोचना की। आप 6 मई, 1925 के उनके भाषण को संकलित कार्यों के खंड 27 के पेज 42 पर पढ़ सकते हैं। महात्मा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि वे इन सब के बारे में क्या महसूस करते हैं कि कैसे बड़े बड़े अस्पताल और चमकीले डिस्पेन्सरी, चीजों को बेहतर बनाने के बजाय खराब कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सकों में विवेक की कमी है और उनमें नम्रता की भी कमी है। यह तो केवल उनकी शुरूआत थी। वे बाद में, इस प्रश्न के जड़ तक जाकर उसकी कड़ी आलोचना की, और ऐसा सिर्फ गांधी जी ही कर सकते थे।

महात्मा गांधी के जाने के बाद वहां पर उथल-पुथल मच गई। निमंत्रण समिति ने उन्हें पत्र लिखा और उनसे अपने शब्द वापस लेने की प्रार्थना की। उन्होंने इसे नकार दिया। मैंने उनका यह भाषण सैम पित्रोदा को भेजा और उन्होंने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि वे बहुत से बिंदुओं पर गांधी जी से सहमत हैं। सैम ने स्पष्ट किया कि गांधी के कहने का तात्पर्य यह था कि समाज को रोगों के रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए न कि चिकत्सकों, दवाईयों और अस्पतालों के व्यवसाय उद्यम के रूप में विकास करने पर। गांधी जी ने यह भी कहा कि आपका यह सोचना कि आपके पास सभी उत्तर हैं एकदम गलत है। और वे यह महसूस करते हैं कि अधिकांश चिकित्सक यह सोचते हैं कि सभी उत्तर आयुर्वेद के पास है, जो गलत है। और उन चिकित्सकों में सामान्य लोगों के स्थानीय ज्ञान के प्रति, नम्रता और विश्वास की भी कमी दिखती है।

इन दो उपाख्यानों ने मुझे यह बताया कि क्यों सूचना के लोकतांत्रिकरण और उसकी निरंकुश विमुक्ति के आंदोलन की शुरुआत के लिये भारत ही सबसे अच्छा स्थान है। सूचना सभी लोगों को उपलब्ध हो, यह विचार भारतीय इतिहास में, और गणतंत्र के आधुनिक लोकतांत्रिक ढ़ाचे में पूरी तरह अंतर्निहित है। पश्चिमी देशों की दवाओं की उच्च कीमत, पारंपरिक ज्ञान पर पेटेंट्स, और पूरे वैज्ञानिक संग्रह (कार्पस) तक सीमित पहुंच, यह सभी ज्ञान पर लगे अंकुशों का प्रतीक है, जिसे लोग पहचानते और समझते हैं।

भारत के लोग इस बात को समझते हैं कि जब ज्ञान कुछ निगमों की निजी संपत्ति बन जाती है, तो इससे समाज को कितना ज्यादा नुकसान पहुंचता है। भारत में सामाजिक मुद्दों पर बहस करना परंपरा है। ऐसा ही गांधी जी ने भी किया, जब उन्होंने अस्ट्रांग में खुल कर भाषण दिया था। ऐसा ही सम्राट अशोक ने किया था, जब उन्होंने सभी धर्मों के लिए सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया था और तीसरी बौद्ध परिषद को प्रायोजित करने में सहायता भी की थी। यदि हम ज्ञान के सार्वभौमिक पहुंच के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करते हैं, तो भारत इस चर्चा के लिए एकदम सही जगह हैं।

यह नोट मैं कैलिफोर्निया में, क्रिसमस का दिन पूरा कर रहा हूँ। मैंने फरवरी में भारत जाने के लिए टिकट बुक किया है। मुझे आशा है कि नया साल मेरे र्लिये, और दूसरों के लिए भी ज्ञान से भरा साल होगा। मुझे इस यात्रा में शामिल करने के लिए मैं अपने दोस्त सैम पित्रोदा का आभारी हूँ। जय हिंद। कोड स्वराज
टी.डी.यू, बैंगलूरु में वनस्पति संग्रहालय (हर्बेरियम)
टी.डी.यू, बैंगलुरु में वनस्पति संग्रहालय (हर्बेरियम)
साबरमती आश्रम में गांधीजी के काम करने की जगह
आयुर्वेदिक दवाई के पारंपरिक सिद्धांत, रसायन के वैज्ञानिक परीक्षण पर, डॉक्टरेट के छात्रों का एक पोस्टर
मैसूर के महारानी के साथ
रात के खाने पर सैम पित्रोदा के साथ। मध्य में खड़े हैं टीडीयू के श्री दर्शन शंकर हैं।
गुजरात विद्यापीठ में दीक्षांत समारोह का जुलूस
अहमदाबाद में इला भट्ट और अनामिक शाह भाषण देते हुए
पुस्तकें, लॉर्ड रिचर्ड एटनबरो द्वारा संकलित संग्रहों में से
नेहरू के संकलन, भारतीय निर्माण संहिता, और आजादी के दस्तावेज जिसका स्कैनिंग होना बाकी
बेयरफुट कॉलेज में, विशाल कठपुतलियों के साथ
बेयरफुट कॉलेज में, महिलाएँ सौर लालटेन बनाने और उसके रखरखाव करना सीख रही हैं।
बेयरफुट कॉलेज में, बंकर रॉय पानी की पुनप्राप्ति (रिक्लेमेशन) प्रणाली के बारे में समझा रहे हैं।
दिनेश त्रिवेदी के घर पर गुजराती भोजन
सलमान के कक्ष में, निशिथ देसाई के फर्म की अनंत मालती और सलमान खुर्शीद।
सैम पित्रोदा, गुजरात विद्यापाठ के विद्यार्थियों से बातचीत करते हुए
निशीथ देसाई के साथ, मुंबई में इंडिया गेट पर
कम्पनी बनाने (इनकोरपोरेशन) की नोटिस जो हमारे इस विश्वास को प्रस्तुत करता है कि कानून सभी को उपल्बध होने चाहिए।
अधिसूचनाओं (नोटिफिकेशन्स) के डब्बे, जो मानक निकायों को भेजे गए। कर्क वाल्टर द्वारा ली गई तस्वीर।
दो डिस्क अरै में 545 लाख पत्रिकाओं के लेखों जिस में सभी मानवीय ज्ञान का एक बड़ा भाग उपलब्ध है। इन डिस्कों को ‘पब्लिक रीसोर्स' ऑफिस से हटा कर और अन्य जगहों पर भेज दिया गया है।

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