सत्य के प्रयोग
मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

पृष्ठ ३८४ से – ३८५ तक

 

 अध्याय ४३ : बिदा ३६७ जाएँगे । तब तक यदि युद्ध जारी रहा तो उसमें मदद करने के और भी बहुत अवसर मिल जाएँगे । नहीं तो जो कुछ आपने यहाँ किया है उसे भी मैं कम नहीं समझता ।”

    मुझे उनकी यह सलाह अच्छी मालूम हुई और मैंने देश जाने की तयारी की।
                               ४३
                               बिदा

मि० केलनबेक देश जाने के निश्चय से हमारे साथ रवाना हुए थे ! विलायत में हम साथ ही रहते थे । युद्ध शुरू हो जाने के कारण जर्मन लोगों पर खूब कड़ी देखरेख थी और हम सबको इस बात पर शक था कि केलनबेक हमारे साथ आ सकेंगे या नहीं। उनके लिए पास प्राप्त करने का मैंने बहुत प्रयत्न किया । मि० राबर्टस खुद उन्हें पास दिला देने के लिए रजामंद थे । उन्होंने सारा हाल तार द्वारा वाइसरायको लिखा, परंतु लार्ड हाडिंज का सीधा और सूखा जवाब आया- “हमें अफसोस है, हम इस समय किसी तरह जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं । ” हम सबने इस जवाब के औचित्य को समझा । केलनबेक के वियोग का दु:ख तो मुझे हुआ ही, परंतु मैंने देखा कि मेरी अपेक्षा से उनको ज़्यादा हुआ । यदि वह भारतवर्ष में आ सके होते तो आज एक बढ़िया किसान और बुनकर का सादा जीवन व्यतीत करते होते । अब वह दक्षिण अफ्रीका में अपना वही असली जीवन व्यतीत करते हैं और स्थपति (मकान बनानेवाले) का धंधा मज़े से कर रहे हैं ।

     हमने तीसरे दर्जे का टिकट लेने की कोशिश की; परंतु 'पी एंड ओ के जहाज़ में तीसरे दर्जे का टिकट नहीं मिलता था, इसलिए दूसरे दर्जे का लेना पड़ा । दक्षिण अफ्रीका से हम कितना ही ऐसा फलाहार साथ बाँध लाये थे जो जहाज़ों में नहीं मिल सकता । वह हमने साथ रख लिया था और दूसरी चीजें जहाज़ में मिलती ही थीं । 
     डाक्टर मेहता ने मेरे शरीर को मीड्स प्लास्टर के पट्टे से बांध दिया था और मुझे कहा था कि पट्टा बँधा रहने देना । दो दिन के बाद वह मुझे सहन न हो ________________

आस-कथा : भाइ ४ का और बड़ी मुश्किल के बाद मैंने उसे उतारा और नहान-धोने भी लगा । मुख्यतः ल और मेवेके सिवाय और कुछ नहीं खाता था। इससे तबियत दिनदिन सुधरने लगी और स्वेजकी खाड़ी में पहुंचनेतक तो अच्छी हो गई । यद्यपि इससे शरीर कमजोर हो गया था फिर भी बीमारीका भय मिट गया था । और मैं रोज धीरे-धीरे कसरत बढ़ाता गया । स्वास्थ्य में यह शुभ परिबर्तन तो मेरा यह खयाल है कि समशीतोष्ण हवाके बदौलत ही हुआ । | पुराने अनुभव अथवा और किसी कारण हो, अंग्रेज यात्रियों और हमारे अंदर जो अंतर में यहां देख पाया वह दक्षिण अफ़ीकासे झाते हुए भी नहीं देखा था। वहां भी अंतर तो था, परंतु यहाँ उसले और ही प्रकारका भेद दिखाई, दिया । किसी-किसी अंग्रेजके साथ बातचीत होती; परंतु वह भी ‘साहब-सलामत से आगे नहीं । हादिक भेंट नहीं होती थी। किंतु दक्षिण अफ्रीकाके जहाजमें और दक्षिण अफ्रीका में हादिक भेट हो सकती थी । इस भेदका कारण तो मैं यही समझा कि इधरके जहाजोंमें अंग्रेजोंके मनमें यह भाव कि हम' शासक हैं' मौर हिंदुस्तानियोंके भनमें यह भान कि हम गैरोके गुलाम हैं' जनमें यह अनजान काम कर रहा था । | ऐसे वातावरणभैंसे जल्दी छूटकर देस पहुंचने के लिए मैं अतुर हो रहा था । अदन पहुंचने पर ऐसा भास हुआ मानो थोड़े-बहुत घर आ गये हैं । अदनबालों साथ दक्षिण अफ्रीका ही हमारा अच्छा संबंध में गया था; क्योंकि भाई कैकोबाद कावसजी दीना डरबन आ गये थे और उनके तथा उनकी पत्नी के साथ मेरा अच्छा परिचय हो चुका था । थोड़े ही दिनमैं इस बंबई आ पहुंचे। जिस देश में १९०५में लौटनेकी आशा रखता था वहां १० वर्ष बाद पहुंचने मेरे मनको बड़ा आनंद हो रहा था। बंबईमें गोखलेने सभः वगैराका प्रबंध कर ही डाला था। उनकी तबियत नाजुक थी । फिर भी वह बंबई आ पहुंचे थे। उनकी मुलाकात करके उनके जीवनमें मिल जाकर अपने सिरका बोझ उतार डालनेकी उसंग मैं अंबई पहुंचा था, परंतु विधाताने कुछ और ही रचना रच रक्खी थी ! नैरे मन छ और है, कतर्फि कछु और । । ।

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