सङ्कलन/२५ मक्खियों से हानि
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मक्खियों से हानि
साधारण आदमियों की दृष्टि और तत्वदर्शी विद्वानों की दृष्टि में बड़ा अन्तर है। साधारण जन अनेक विषयों को तुच्छ समझ कर छोड़ देते हैं -- उनके सम्बन्ध में अधिक बातें जानने की चेष्टा ही नहीं करते। परन्तु तत्त्वदर्शी विद्वान् उन्हीं सामान्य विषयों की आलोचना करके कितने ही गूढ़ रहस्यों का पता लगाते हैं। फूल-फलों का पृथ्वी पर गिरना एक। साधारण बात है। हम लोगों ने संख्यातीत बार फल टपकते देखा होगा और उसे मामूली बात समझ कर छोड़ दिया होगा। परन्तु सर आइज़क न्यूटन ने एक सेब को जमीन पर गिरते देख कर पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति का पता लगा लिया। ब्रुनेल ने छोटे छोटे कीड़ों को लकड़ी में सूराख करते देख कर टेम्स नदी का पुल बनाया, जो पृथ्वी के आश्चर्य-कारक पदार्थों में गिना जाता है। रेल, तार, बिजली की रोशनी आदि बुद्धि को चक्कर में डालनेवाली कितनी ही चीजें विद्वानों ने इसी तरह ईजाद की हैं।
इस समय संक्रामक रोगों की प्रबलता है। अतएव अनेक
विद्वान् इस बात का पता लगाने की चेष्टा कर रहे हैं कि किन
किन जन्तुओं के संसर्ग से संक्रामक रोग फैलते हैं। चूहे,
बिल्ली आदि घरेलू जीवों के द्वारा ऐसे रोगों के फैलने की बात
तो कुछ दिन पहले ही सिद्ध हो चुकी थी। अब अमेरिका के
एक विद्वान् ने मक्खियों को भी रोग फैलानेवाला साबित
किया है।
अब तक लोग मक्खियों को हानिकारक न समझते थे। कितने ही कवियों ने मक्खी के भोलेपन के विषय में कवितायें तक लिखी हैं। परन्तु एन० ए० कॉब नामक एक अमेरिकन विद्वान् ने बहुत विचार और परीक्षा से यह साबित किया है कि मक्खियों से जन-समाज को बहुत हानि पहुँच सकती है।
कॉव साहब का कथन है कि मक्खियाँ बहुत तेजी के साथ एक जगह से दूसरी जगह जा सकती हैं। यह बात कई तरह से प्रमाणित होती है। जब कोई जहाज़ बन्दर पर पहुँचता है, तब बहुत दूर तक फैले हुए पानी को लाँघ कर मक्खियाँ उस पर आ जाती हैं। उस समय जहाज़ का ज़मीन से कोई लगाव नहीं रहता। मक्खियाँ वहाँ उड़ कर ही पहुँचती हैं। बहुधा यह भी देखा जाता है कि मक्खियाँ बहुत दूर तक चौपायों का पीछा करती हैं। मक्खियों के पंख चिड़ियों के डैनों से यथा- परिमाण भारी होते हैं। इससे मक्खियाँ जल्द नहीं थकतीं। यदि किसी कमरे में मक्खी को आप देर तक बराबर उड़ाते रहिए तो भी वह नहीं थकेगी और न घबड़ायगी। बहुत से रोगों की उत्पत्ति छोटे छोटे अदृश्य कीटाणुओं से होती है। ये कीटाणु जीव-जन्तुओं के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं। और, मक्खियों की यह आदत है कि वे भली-बुरी सभी जगह जाती हैं और रोगी तथा नीरोग सब तरह के आदमियों पर बैठती हैं। इससे यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि मक्खियों के द्वारा रोग उत्पन्न करनेवाले कीटाणुओं के प्रसार में बहुत सहायता मिलती है।
इस अनुमान की सहायता की परीक्षा भी की गई है। परीक्षा से ऐसा भयङ्कर परिणाम देखने में आया है कि कॉब साहब ने उसे प्रकाशित करने का भी साहस नहीं किया। वे कहते हैं कि अपनी परीक्षा का ऐसा भयङ्कर फल देख कर मुझे खुद ही सन्देह होता है कि जाँच करने में किसी तरह की ग़लती ज़रूर हुई होगी। इसी से मैं उसे अभी प्रकट नहीं करना चाहता।
मक्खियों की बनावट विलक्षण होती है। उनके प्रत्येक पैर
में दो दो पञ्जे और हलके रङ्ग की दो दो गद्दियाँ होती हैं। खुर-
खुरी चीज़ों पर मक्खियाँ पञ्जे के बल बैठती हैं और चिकनी
चीज़ों पर पञ्जे और गद्दियाँ दोनों के बल। इन गद्दियों पर हज़ारों
छोटे छोटे बाल होते हैं। बालों के सिरे चिपचिपे होते हैं। जब
मक्खी किसी रोगी के शरीर पर बैठती है, तब रोग के कीटाणु
इन्हीं बालों के सिरे में चिपक जाते हैं। फिर दूसरी जगह
जाकर जब वह अपने पैर फैलाती या झाड़ती है, तब वे सब
वहाँ गिर पड़ते हैं। मक्खियों के पैर चिपचिपे होते हैं। इससे
उन्हें बार बार उसे साफ़ करना पड़ता है। पैरों में अधिक
कीचड़ लग जाने से जैसे मनुष्यों को चलने में तकलीफ़ होती
है और कीचड़ साफ़ करना पड़ता है, वैसे ही मक्खियों को
अपने पैर साफ़ करने पड़ते हैं। यदि वे ऐसा न करें तो उन्हें
चिकनी चीज़ों पर बैठने में बड़ी दिक्क़त हो।
मक्खी का सिर, विशेष करके उसका मुँह, बड़ा ही बिलक्षण होता है। उसके सिर के बढ़ाये हुए चित्र को देख कर डर सा लगता है। कॉब साहब ने परीक्षा करके देखा कि जब कभी मक्खियाँ किसी सड़ी-गली चीज़ पर या किसी रोगी के बदन पर बैठ जाती हैं, तब अनेकानेक कीटाणु उनके पैरों में चिपक जाते हैं और वे उन्हें दूसरी जगह पहुँचा देती हैं। मक्खियों का यह कार्य मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।
अमेरिकावाले मक्खियों को सपरिवार अपने देश से निकाल देने अथवा उनका मूलोच्छेद करने की फिक्र कर रहे हैं।
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