सङ्कलन/२४ समुद्र के भीतर तार डालना

काशी: भारतीय भंडार, पृष्ठ १५८ से – १६५ तक

 

२४
समुद्र के भीतर तार डालना

इस लेख में मराठी की बालबोध नामक पुस्तक से इस बात का संक्षिप्त वर्णन किया जाता है कि मीलों गहरे समुद्र में, हज़ारों कोस तक, तार कैसे डाला जाता है। पाठक जानते ही होंगे कि यूरप और अमेरिका के बीच अटलांटिक समुद्र के भीतर तार पड़ा हुआ है। उसी की बदौलत लन्दन के तार-घर में बैठा हुआ कर्मचारी अमेरिका के न्यूयार्क में बैठे हुए कर्म- चारी से उसी तरह बात-चीत कर सकता है, जिस तरह कि दो आदमी पास पास, या परस्पर मिली हुई दो कोठरियों में, बैठे हुए कर सकते हैं। कराची और स्वेज़ के बीच भी इसी तरह का तार समुद्र में पड़ा हुआ है। और भी अनेक द्वीप और नगर इसी प्रकार के सामुद्रिक तारों से जुड़े हुए हैं।

दृढ़ निश्चय की बदौलत मनुष्य कठिन से भी कठिन काम कर सकता है। वह पहाड़ फोड़ सकता है, समुद्र तोप सकता है, यहाँ तक कि वायुयान में बैठकर आकाश में उड़ भी सकता है। समुद्र में तार डालकर तार-यन्त्रों के द्वारा ख़बरें भेजना भी इसी तरह के दृढ़ निश्चय ही का फल है।

तार के यन्त्रों का प्रचार पहले-पहल जमीन पर हुआ। समुद्र की छोटी छोटी खाड़ियों में भी बेठन लगे हुए तार डाल दिये गये। परन्तु हज़ारों मील दूर तक समुद्र के भीतर तार डालने का विचार जब इँगलैंड के कुछ लोगों के मन में उत्पन्न हुआ, तब वे बड़े सोच-विचार में पड़ गये। इँगलैंड और अमे- रिका के बीच अटलांटिक महासागर है। उसका विस्तार सौ पचास मील नहीं, किन्तु हज़ारों मील है। बिजली का शास्त्र जाननेवाले बड़े बड़े विद्वानों ने बरसो माथापच्ची की। परन्तु उससे फल-प्राप्ति न हुई। उन्होंने कहा, समुद्र के भीतर जगह जगह पर बड़े बड़े और अत्यन्त गहरे खड हैं। उन सब की परीक्षा करके, उनसे बचकर, समुद्र के भीतर ही भीतर तार डालना असम्भव सा है। परन्तु एक साहसी पुरुष ने इन सब कठिनाइयों को हल करके तार द्वारा इँगलैंड को अमेरिका से जोड़ देने का दृढ़ निश्चय कर लिया।

उसने पहले भँजे हुए तार की रस्सियों से अटलांटिक महासागर की परीक्षा की। उसने इस बात का पता लगाया कि किस जगह समुद्र कितना गहरा है। इस परीक्षा से उसे यह मालूम हो गया कि आयरलैंड और न्यूफौंडलैंड के बीच का महासागर बहुत गहरा नहीं; उसमें खड भी बहुत कम हैं। इसलिए उसने कहा -- मैं पहले समुद्र के इसी भाग के भीतर तार डालकर देखूँगा कि यह काम हो सकता है या नहीं। परीक्षा से तो यही मालूम होता है कि समुद्र उथला है। इस कारण वह अवश्य ही तार डालने योग्य है। ज़मीन के ऊपर का तार खम्भों पर लटकाते हुए ले जाते हैं; उसे पाठकों में से प्रायः सभी ने देखा होगा। उस तार के ऊपर कोई चीज़ लपेटने की ज़रूरत नहीं होती; क्योंकि वह आसमान में लटका रहता है। परन्तु जो तार समुद्र के भीतर डाला जाता है, उसे सुरक्षित रखने के लिए बहुत प्रबन्ध करना पड़ता है। बिजली ही की सहायता से तार द्वारा ख़बरें भेजी जा सकती हैं। एक तार-घर से दूसरे तार-घर तक बिजली का प्रवाह तार द्वारा बहाना पड़ता है। परन्तु पानी ऐसी चीज़ है कि यदि तार उससे छू जाय तो बिजली का प्रवाह उसी में चला जाता है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए जो तार समुद्र में डाला जाता है, उस पर बेठन लगाना पड़ता है। यह बेठन या आच्छादन किसी ऐसी चीज़ का होता है जिसके भीतर बिजली का प्रवाह नहीं घुस सकता। मतलब यह कि तार को किसी ऐसी चीज़ से मढ़ देते हैं जिसके कारण तार से पानी का स्पर्श नहीं होता। समुद्र में तार डालने के लिए पहले इस बेठन का झमेला करना पड़ता है। इसके सिवा इस बात का भी ख़याल रखना पड़ता है कि वह बेठन समुद्र के भीतर पड़े रहने से सड़ न जाय, अथवा अधिक दबाव और खिंचाव के कारण टूट भी न जाय। इन बाधाओं को दूर करने के लिए तार के ऊपर का बेठन बहुत ही मज़बूत लगाना पड़ता है। इस बेठनदार तार का अङ्गरेजी नाम 'केबिल' है। पहले ताँबे का एक गोल तार लेते हैं। फिर ताँबे के ही भँजे हुए छः तार उसपर

मज़बूती से लपेट देते हैं। उन सबका एक मज़बूत रस्सा सा हो जाता है। उसके ऊपर गटापर्चा नामक एक पदार्थ के, एक के ऊपर एक; ऐसे तीन बेठन लगाते हैं। इस पदार्थ में यह गुण है कि बिजली का प्रवाह इसके भीतर नहीं घुसता। इसी से तार के ऊपर इसके लगे रहने से ख़बर भेजने में कोई बाधा नहीं आती। परन्तु गटापर्चा के तीन बेठन लगाने पर भी यह डर रहता है कि उसके अत्यन्त सूक्ष्म छेदों की राह से पानी कहीं भीतर न चला जाय। यदि ऐसा हो तो बिजली का प्रवाह खण्डित होकर पानी में प्रविष्ट हो जायगा। इस दशा में ख़बर भेजना असम्भव हो जायगा। उस कठिनता को दूर करने के लिए गटापर्चा लगे हुए उस तार के ऊपर इसपात के तार लपेटे जाते हैं। इस से वह बहुत मज़बूत हो जाता है। न उसके टूटने ही का डर रहता है और न सड़ने ही का। पानी भी उसके भीतरी तार तक नहीं पहुँच सकता। ऐसा तार बनाने में बहुत ख़र्च पड़ता है। फ़ी मील कोई साढ़े चार हज़ार रुपया ख़र्च बैठता है। इँगलैंड में ऐसे कई कारखाने हैं जहाँ यह तार तैयार किया जाता है। इस व्यवसाय में इँगलैंड और सब देशों से आगे है।

जब आयरलैंड और न्युफौंडलैंड के बीच समुद्र में तार डालने का निश्चय हो गया, तब बहुत लोगों ने एकत्र होकर एक कम्पनी बनाई। कई प्रसिद्ध प्रसिद्ध एञ्जिनियर कार्य-कर्ता नियत किये गये। इस कम्पनी ने चार महीने में ढाई हज़ार

मील लम्बा तार तैयार कर लिया। वह तार बड़े बड़े दो जहाज़ों पर लादा गया। उन जहाजों को वे लोग 'वैलेंशिया बे' नामक बन्दरगाह में ले गये। यह बन्दरगाह आयरलैंड के समुद्री किनारे पर है। वहाँ पर उस केबिल का एक छोर ज़मीन में गाड़ दिया गया। फिर जहाजों पर लदे हुए उस तार को धीरे धीरे समुद्र में डालते हुए वे लोग अमेरिका की तरफ़ ले जाने लगे। परन्तु समुद्र में चार सौ मील तक डाले जाने पर वह अकस्मात् टूट गया और उसका टूटा हुआ सिरा गहरे समुद्र के भीतर न मालूम कहाँ चला गया। इस दुर्घटना से वह काम उस साल बन्द रहा।

अगले साल केबिल डालने की एक नई रीति निकाली गई। निश्चय हुआ कि वे दोनों जहाज़ अटलांटिक महासागर के बीच में एक दूसरे से मिलें और वहीं से केबिल डालना आरम्भ करें। फिर एक जहाज़ केबिल डालते हुए न्युफौंडलैंड की तरफ़ जाय और दूसरा आयरलैंड की तरफ़। इसके भी बाधक कारण उत्पन्न हो गये। उन दोनों जहाज़ों के परस्पर मिलने के पहले ही समुद्र में तूफ़ान आया। उससे एक जहाज़ को बड़ी आफत में फँसना पड़ा। जो लोग उस पर सवार थे, उन्हें बहुत तकलीफ़ हुई। केबिल के पर्वतप्राय ढेर, जो उस पर थे, जहाज़ हिलने से उछल उछल कर जहाज़ की दीवारें तोड़ने लगे। ऐसा मालूम होने लगा कि जहाज टूट कर डूब जायगा। परन्तु थोड़ी देर बाद तूफ़ान शान्त हो गया। जहाज़ वहाँ से

चला और सागर के बीच, नियत स्थान पर, वे दोनों एकत्र हुए। तब वहाँ से तार डालना शुरू किया गया। परन्तु फिर भी विघ्नों ने पीछा न छोड़ा। सात दफे केबिल टूटा और सातों दफे वह जोड़ा गया। आठवीं दफ़े फिर टूटा। उस समय जहाज़ फिर एक तूफ़ान में पड़ गये। तूफ़ान से, उनके ऊपर, कप्तान के कमरे के सारे यंत्र बिगड़ गये। जहाज़ चलाने के साधन नष्ट हो गये। अन्त को आजिज़ आकर वे लोग उन जहाज़ों को किसी तरह बन्दरगाह पर लौटा लाये। केबिल डालने के काम में फिर भी सफलता न हुई।

परन्तु उन साहसी और दृढप्रतिज्ञ लोगों ने हार न मानी। तीसरी दफे फिर भी वे वह काम करने निकले। इस दफे सफलता हुई अवश्य, पर विघ्न-बाधाओं ने इस दफे भी उनके नाकों दम कर दिया। एक बार एक बड़ी भयङ्कर मछली उस केबिल में फँस गई। जान पड़ा कि केबिल अब बिना टूटे न रहेगा। पर राम राम करके किसी तरह उन लोगों ने सफलता प्राप्त ही कर ली। सारे संकट झेल कर १६ अगस्त १७५७ को उन्होंने अमेरिका का सम्बन्ध तार द्वारा योरप से कर दिया। उस दिन सबसे पहली ख़बर जो भेजी गई, वह यह थी -- "योरप और अमेरिका का सम्बन्ध तार द्वारा हो गया। परमेश्वर का जयजयकार! पृथ्वी पर सर्वत्र शान्ति रहे!"

यह केवल एक वर्ष चला। इसके बाद बन्द हो गया। उस से ख़बरें भेजना असम्भव हो गया। इसके आठ वर्ष बाद फिर प्रयत्न किया गया। परन्तु कोई दो-तृतीयांश केबिल डालने के अनंतर वह टूट गया। ग्रेट ईस्टर्न नामक जहाज़ पर वह केबिल लदा था। वही उसे समुद्र में डाल रहा था। जहाँ पर केबिल टूटा था, वहाँ से वह लौट आया और दूसरा केबिल ले गया। उसे उसने शुरू से आख़ीर तक निर्विघ्न डाल दिया। यह काम करके उस टूटे हुए केबिल का सिरा समुद्र से निकालने के लिए उस जहाज़ ने फिर प्रस्थान किया। ढूँढ़ते ढूँढ़ते उसे पहले केबिल का टूटा हुआ सिरा, कोई १३०० बाँस गहरे पानी के भीतर मिल गया। उसे उसने यंत्रों की मदद से निकाला। फिर उस टूटे हुए सिरे को एक और केबिल में जोड़ कर वह उसे भी डालता चला और छोर तक डाल कर ही कल की। फल यह हुआ कि एक के बदले दो केबिल हो गये और दोनों काम देने लगे।

तब से आज तक इंगलैंड और अमेरिका के बीच और भी कई केबिल हो गये हैं। और देशों के बीच भी केबिल पड़ गये हैं। अब तो समुद्र के भीतर इन केबिलों का जाल सा बिछ गया है। उसने समग्र पृथ्वी को घेर सा लिया है। कोई २० हजार आदमी, इस समय केबिल बनाने के व्यवसाय में लगे हुए हैं। इसी से आप इस बात का अन्दाज़ा कर सकेंगे कि यह काम कितने महत्व का है। जिनका एक मात्र व्यवसाय केबिल डालना और उनकी मरम्मत करना है, ऐसे जहाज़ों की संख्या इस समय चौबीस से भी अधिक है। समुद्र में पड़े हुए सारे

केबिलों की लम्बाई, इस समय, २ लाख ५७ हजार मील है। जहाँ समुद्र बहुत गहरा है -- मीलों गहरा है -- वहाँ केबिल डालना बड़ा ही कठिन काम है। परन्तु अब तार और बिजली की विद्या इतनी उन्नत हो गई है और यंत्र भी इतने अच्छे बन गये हैं कि चाहे जितने गहरे समुद्र के भीतर केबिल टूट जाय, इन विद्याओं के ज्ञाता अपने यंत्रों की मदद से तत्काल बतला देते हैं कि अमुक जगह पर केबिल टूटा है । बस, उसी जगह जहाज़ पहुँचता है और केबिल को यंत्रों से उठा कर जोड़ देता है।

अच्छी तरह डालने से एक केबिल कोई चालीस वर्ष तक चलता है। जब पहले पहल केबिल डाला गया, तब फ़ी मिनट केवल दो शब्दों के हिसाब से ख़बरें भेजी जा सकती थीं। परन्तु अब तो एक मिनट में एक सौ शब्द तक भेजे जा सकते हैं। इस समय की बात ही और है। अब तो बे-तार की तार- बर्क़ी की बदौलत, दूर दूर तक, केबिल के बिना भी ख़बरें भेजी जा सकती हैं।

[जून १९१५.
 

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