सङ्कलन/२३ भारतवर्ष में नशेबाज़ी
प्रजा को बुराइयों से बचाना और उसे सच्चरित्र बनाना राजा का बहुत बड़ा कर्तव्य है। हर देश का राजा अपने इस कर्तव्य-पालन के लिए उत्तरदाता है। राजा के इस काम से केवल प्रजा ही का उपकार नहीं, राजा का भी बड़ा भारी उपकार है। प्रजा के सच्चरित्र और गुणी होने से देश का शासन बड़ी सरलता से किया जा सकता है। देश में सुख और शान्ति रहती है।
मान लीजिए कि किसी देश या नगर की प्रजा बड़ी उद्दण्ड है; न वह सच्चरित्र है, न गुणी। इस दशा में वहाँ के राजा को अपनी प्रजा के शासन में बहुत कष्ट उठाना पड़ेगा। मार- पीट, हत्या, चोरी आदि दुष्कर्मों की संख्या बढ़ेगी। सैकड़ों- हज़ारों मुक़द्दमे चलेंगे। देश से शान्ति पलायन कर जायगी।
नशेबाज़ी से प्रजा की सच्चरित्रता को बहुत बड़ा धक्का
पहुँचता है। दुःख की बात है, भारत में नशेबाज़ी की अधिकता
है। अशिक्षितों ही पर नहीं, शिक्षितों पर भी इस बुरी बला ने
अपना प्रभाव जमा रक्खा है। अनेक शिक्षित और कुलीन बाबू
लोग भी इस व्यसन के दास बन गये हैं। गाँजा, भङ्ग और
चरस आदि की भी खूब खपत है। साधु, सन्त और महात्मा
कहलानेवाले लोग इन नशीले पदार्थों का निःशङ्क सेवन करते
हैं। देश के अनेक होनहार नवयुवक तक नशेबाज़ी की बुरी
आदत के कारण अपना सत्यानाश कर रहे हैं।
सन् १९०७ ईसवी के अगस्त में भारतवासियों का एक प्रतिनिधि-दल विलायत पहुँचा। उसने वहाँ जाकर भारत के स्टेट-सेक्रेटरी से प्रार्थना की कि भारत की रक्षा नशेबाज़ी से कीजिए। प्रार्थना में उसने नशेबाज़ी के नाश के अनेक उपाय भी बताये। स्टेट-सेक्रेटरी ने पूर्वोक्त प्रतिनिधि-दल की प्रार्थना के अनुसार भारत सरकार से इस विषय में पूछ-पाँछ की। इस पर जाँच होती रही। पर उसका परिणाम क्या हुआ, यह बात अज्ञात ही रही।
इतने में, १९१२ ईसवी के जुलाई महीने में, एक प्रति- निधि-दल लार्ड हार्डिञ्ज के भी पास पहुँचा। बाँकीपुर में एक साल पहले मादकता-निवारिणी सभा (Temperance Society) का जो अधिवेशन हुआ था, उसी में इस प्रतिनिधि- दल के भेजे जाने का निश्चय किया गया था। लार्ड हार्डिञ्ज इस दल से सादर मिले। उसका वक्तव्य सुना और बहुत ही सहा- नुभूतिपूर्ण उत्तर दिया।
पूर्वोक्त प्रतिनिधि-दल के प्रार्थना-पत्र में कहा गया -- नशीली
चीज़ों पर अधिक कर लगाया जाय। इन चीज़ों की बिक्री के
लिए दुकानें खोलने के लैसंसों की संख्या कम कर दी जाय। दुकानें ऐसी जगह खोली जायँ जहाँ बहुत कम लोगों की पहुँच हो। दुकानों के प्रति दिन खुलने और बन्द होने का समय नियत कर दिया जाय, वे बहुत कम समय तक खुली रहें।
इस पर लार्ड हार्डिञ्ज ने प्रान्तीय गवर्नमेंटों से रिपोर्टैं तलब कीं। यही सब रिपोर्टैं, अन्यान्य आवश्यकीय काग़ज़ों के साथ, अब पुस्तकाकार प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक की मुख्य मुख्य बातों का उल्लेख नीचे किया जाता है।
१९०१-०२ में आबकारी के महकमे से गवर्नमेंट को ६ करोड़ १७ लाख रुपये की आमदनी हुई थी। पर १९१०-११ में बढ़ कर वह १० करोड़ ५४ लाख रुपये हो गई। अर्थात् १० वर्षौं के भीतर ही ४ करोड़ ३७ लाख की वृद्धि हुई। गाँजा, चरस और अफ़ीम आदि से जितनी आमदनी हुई, उससे कहीं अधिक शराब से हुई। देखिए—
गाँजा, चरस, अफ़ीम आदि | शराब | |
रुपया | रुपया | |
सन् १९०१-०२ | १,६३,४१,४८३ | ४,५१,७९,५१८ |
सन् १९१०-११ | २,६२,५२,४८६ | ७,८८,०१,७१० |
यद्यपि सभी नशीली चीज़ो से अधिक आमदनी हुई, तथापि शराब की आमदनी में बहुत ही अधिक वृद्धि हुई।
गवर्नमेंट का कथन है कि इस बढ़ी हुई आमदनी से यह न समझना चाहिए कि इन चीज़ों का ख़र्च अधिक हुआ। वह कहती है कि नशे की चीज़ों पर अधिक कर का लगाया
जाना इस वृद्धि का कारण है। पर गवर्नमेंट को चाहिए था
कि वह अपने कथन की पुष्टि में बिके हुए सब प्रकार के
मादक पदार्थों की तोल प्रकाशित कर देती। हाँ, एक बात
गवर्नमेंट के कथन की पोषक अवश्य है। वह यह कि
सन् १९०१-०२ में गाँजा, भङ्ग और अफ़ीम आदि की २०,१५५
दुकानें थीं। पर सन् १९१०-११ में उनकी संख्या घट कर
२०,०१४ रह गई। शराब की दुकानों की संख्या सन् १९०१-०२
में ८४,९२५ थी । १९१०-११ में घट कर वह ७१,०५२ रह गई।
इस प्रकार इन १० वर्षों के भीतर सब प्रकार की दुकानों में
१४,०२८ की कमी हुई।
१९१२-१३ में भी गाँजा, भङ्ग, अफ़ीम और शराब की सब मिला कर १६३२ दुकानें बन्द कर दी गई। इससे तो यही सूचित होता है कि सरकार मादकता बढ़ाना नहीं चाहती। उसे धीरे-धीरे कम ही करना चाहती है।
गवर्नमेंट देशी तथा विदेशी शराब, गाँजा, भङ्ग और अफ़ीम आदि पर लगाये गये कर को अधिकाधिक कड़ा भी करती जाती है। जो लोग नशे की हालत में दङ्गा-फिसाद करते हैं, उन्हें वह सज़ा भी देती है। सन् १९११-१२ में म्युनिसिपैलिटी-वाले शहरों की हद के भीतर ३०,७४३ आदमियों ने इस जुर्म में सज़ा पाई। इन सभी बातों से गवर्नमेंट की शुभ-चिन्तना ही सूचित होती है।
देशी शराब की बिक्री बढ़ी है। इसका कारण यह है कि
विदेशी शराब अब बहुत महँगी बिकती है। उस पर अधिक
कर लगा दिया गया है। इससे थोड़ी आमदनीवाले शराबी
देशी शराब पीने लगे हैं। देशी शराब की सबसे अधिक बिक्री
बम्बई प्रान्त में है। उसके बाद मदरास और फिर युक्त प्रदेश
का नम्बर है। सन् १९११-१२ में बम्बई प्रान्त में २७,३३,०३४
गैलन देशी शराब की खपत हुई। उसी साल, मदरास में,
१६,२८,१७८ गैलन और युक्त प्रदेश में १५,३८,५०४ गैलन।
मादक पदार्थों की सूची में अब एक नया पदार्थ भी शामिल हो गया है। उसका नाम कोकेन है। यह एक प्रकार का विष है, जिसके विशेष सेवन से मनुष्य का शरीर मिट्टी हो जाता है। दवा के काम के सिवा और किसी काम के लिए इसे बेचना जुर्म है। इसका प्रचार रोकने की चेष्टा गवर्नमेंट बड़े ज़ोरों से कर रही है। आशा है, इसके सेवन की आदत बहुत जल्द छूट जायगी।
कानपुर के कलेक्टर टाइलर साहब की रिपोर्ट पढ़कर हमें सबसे अधिक दुःख हुआ। वे कहते हैं कि कितने ही ब्राह्मण, बनिये, खत्री, ठाकुर और मुसल्मान भी शराब पीने लगे हैं। यह पुरातन सामाजिक रीतियों के टूट जाने और धर्म पर अश्रद्धा होने का परिणाम है। नई रोशनी, नई शिक्षा-दीक्षा, नये ढंग की सामाजिक व्यवस्था ने इस अनाचार की सृष्टि की है। स्कूलों और कालेजों के कुछ लड़के तक इसकी लपेट में आ रहे हैं। ईश्वर इस बला से हमारी रक्षा करे।
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