वेनिस का बाँका/तीसरा परिच्छेद

वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १० से – १६ तक

 

तीसरा परिच्छेद

न लोगों को बैठे हुए विलम्ब नहीं हुआ था कि किसी अपरने द्वार पर पाकर पुकारा। उसी युवती अबला ने जिसका नाम सिन्थिया था जाकर कपाट खोला। अब उस समूह में दो पुरुष और प्राकर मिले और इस नूतन अतिथि को नख से शिख पर्यन्त घूरने लगे। जिन लोगों ने उसे उस बुरी समज्या में लाकर मिलित किया था, उन में से एक पुरुष
ने कहा "देखें बचा तुम्हारा स्वरूप कैसा है" और आलेपर से दीपक उठा कर उसके भयंकर सुख के सामने किया। सिंथि- या देखतेही चिल्ला उठी" परमेश्वर रक्षा करे, ऐ है मूंडीकाटे का कैसा भयावना स्वरूप है"। यह कह कर उसने अपना मुख दोनों हाथों से छिपा लिया और दूर हट गई। अविलाइनो ने उसकी ओर क्रोधपूरित दृष्टि से देख कर आंखें फेर लीं। डाकुओं में से एकने कहा “बचा विधाता ने तुम्हें अपने कर-कमलों से डाकू का काम करने के लिये बनाया है, ईश्वर की शपथ है यह ज्ञात होता है कि कोई निशाचर मनुष्य के कलेवर में आ घुसा है। मुझे तो यही आश्चर्य है कि आज तक तुम फांसी से क्यों कर बचे। भई सच कहना किस कारागार से हल मुक्त हो निकल भागे हो, अथवा किस सामुद्रिक पोत[]से भोज्यवस्तु बांध कर पलायित हुये हो?" इसके उत्तर में विलाइनो डपट कर ऐले स्वर,से बोला कि वह लोग थर्रा उठे" यदि मैं ऐसा ही हूं जैसा कि तुम कहते हो तो फिर क्या पूछना है जब विधाता ही ने मुझे इस गाँव का बनाया है तो फिर मैं जो चाहूंसो करू इस में मेरा क्या अपराध।"

पाँचों डाकू दूर जाकर कुछ परामर्श करने लगे और अविलाइनों अपने स्थान पर निश्चिंतता के साथ मौनावलम्बन किये बैठा रहा। एकक्षण के उपरांत वे सब फिर अविलाइनों के समीप आये और उनमें से एक, जिसका मुख अत्यन्त रूखा था और जो सबसे अधिक बलवान ज्ञात होता था, भागे बढ़ा और अविलाइनों को सम्बोधन करके यों कहने लगा “सुनो मित्र वेनिस में केवल पांच डाकू हैं और वे सब तुम्हारे



सामने उपस्थित हैं। चाहो तुम भी छठे बन जाओ, इसकी चिन्ता न करना कि तुमको कार्य न मिलेगा। मेरा नाम माटियो है और मैं इस समूह का अधिपति हूँ। इस व्यायाम निपुण पट्ठे का नाम जिसकी लाल लाल अलके ऐसी बात होती हैं कि मानों रुधिराक्क हैं बलुज्जो है। वह जिस की आंखें बजरबट्ट की सी हैं टामेसो है, उसे भी डाकुओं का चचा समझना। यह महाशय जिनकी हड्डियां आज तुमने ढीली कर दी पोट्रेनो है और वह जो पहाड़ सा डील लिये सिन्थिया के पास खड़े हैं ष्टजा हैं। अच्छा अब तुम सबको जान गये, मुद्रा के नाम तुम्हारे पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं है, इस लिये हम लोग तुम्हें अपने दल में भरती कर सकते हैं। इस नियम के साथ कि तुमारे हृदय में किसी प्रकार का कपट न हो। इस पर अविलाइनों ने दाँत निकाल कर कहा 'मेरी

भूख की अधिकता से बुरी गति है।

माटियो-अबे पहले मेरी बात का उत्तर तो दे कि तेरे हृदय में कुछ कपट अथवा छल तो नहीं है ?

अविलाइनों काम पड़ने पर आप ज्ञात हो जावेगा।

माटियो-चेत रखना वचा कि यदि तुम्हारी ओर से थोड़ी भी आशंका हुई तो तुम्हारे जीवन पर आ बनेगी चाहे महाराज के प्राकार में अथवो कठिन दुर्गमें शरण ग्रहण करो और सहस्रों सिपाहियों के बीच में रहो। अथवा स्वयं महाराज के उत्संग मे क्यों न जा छिपो, सैकड़ों तोपें लगी हो, परन्तु हमलोग तुमको बिना हनन किये न छोड़ेगे।[] चाहे तुम



देवालय में जाकर छिपो और सलीब को हृदय से लगानो तो भी हम लोग दिन दहाड़े तुम को यमलोक की यात्रा करावेंगे। देखो सोच लो और भली भांति स्मरण रक्खो कि हम लोग डाकू हैं।

अविलाइनो-इस के जताने की कोई आवश्यकता नहीं मैं स्वयं जानता हूं, परन्तु अब मुझे खा लेने दो तो फिर जब तक कहोगे तुम्हारे साथ वार्तालाप करूंगा इस समय तो भूख के मारे मुख से सीधी बात भी नहीं निकलती, पाठ पहर से एक अन्न भी मुख के भीतर नहीं गया।

यह सुन कर सिन्थियाने एक बृहत् पात्र में उत्तम उत्तम खाने लाकर चुन दिये और रजत निर्मित कतिपय पानपात्रों में उत्तम मदिरा भर दी और मुंह ही मुंह में कहने लगी "परमेश्वर ऐसे मुये का मुँह न दिखाये, मनुष्य काहे को अच्छा खासा राक्षस है। इस में सन्देह नहीं कि जब यह अपनी माता के गर्भ में था तो इस पर प्रेत की छाया पड़ गयी, जिस से यह प्रेत का सँवारा ऐसा कलमुहा उत्पन्न हुआ। नौज! मुह काहे को, यह निगोड़ा चेहरा लगाये है, पर ऐसा भयंकर चेहरा भी तो आजतक मैंने नहीं देखा। अबिलाइनों ने उस की बात का कुछ ध्यान न किया और भोजन करने में ऐसी तन्मयता प्रकट की कि मानों छः मास तक का ठिकाना कर लिया। डाकू जी ही जी में प्रसन्न हो रहे थे कि अच्छा चेला मुँडा।

पाठकों को अविलाइनों के स्वरूप से अभिज्ञता लाभ की आकांक्षा होगी, मैं उस का वर्णन किये देता हूं। कोई पञ्चीस तीस वर्ष का युवा, हाथ पैर ठीक, शरीर शक्तिमान, सर्व प्रकार से स्फूर्ति सम्पन्न और तेजस्वी, पर मुख ऐसा कि यदि प्रेत भी देखे तो डर जाय । काले काले लम्बे चमकते हुए बाल

मुख पर इस प्रकार से उड़ते थे कि मानो मार्जनी बन कर कुरूपता को स्वच्छ करने का प्रयत्न करते हों। मुख इतना चौड़ा कि मसूड़े और दांत देख लीजिये । इस पर विशेषता यह कि वह बार बार मुख ऐसा चलाया करता था कि प्रत्येक समय दांत निकले ही रहते थे। उस की आँख (जो कि एक ही थी) शिर में इतनी घुसी हुई थी कि सुपेदी के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखलाई देता था। पर उस को भी असित घनी आकुंचित भृकुटियोंने ढक लिया था। प्रयोजन यह कि उस के मानन में तमाम भोंड़ी और कुरूपता सम्बन्धी बातें एकत्रित थीं। जिनके देखने से यह ज्ञात होता था कि वह उसकी खंता के दृढ़ चिन्ह हैं या धृष्टता के अथवा दोनों के। खाने के पीछे अबिलाइनो ने मदिरा, जो पानपात्र में भरी थी,पृथ्वी पर फेक दी ओर उन लोगो से कड़ककर कहा 'अब आप लोग कहिये मैं पेटभर खा चुका और पूर्ण तृप्त हो गया, जो कुछ मुझ से पूछना हो पूछिये मैं उत्तर देने को तैयार हूं।

माटियो बोला "पहली बात हमको यह जांचनी है कि तुम्हारे शरीर में शक्ति है अथवा नहीं क्योंकि हमारे सम्पूर्ण कार्यों के लिये यह अतिआवश्यक है। मल्ल युद्ध करना जानते हो न?,।

अविलाइनों-मैं नहीं कह सकता परीक्षा कर देखो।

माटियो-सिन्थिया पात्रों को यहांसे हटा दे, ले अब अविलाइनो किससे मल्लयुद्ध करोगे? हम में से तुम किसे समझते हो कि इस नवशिक्षित पीट्रैनो की भांति सुगमता के साथ दे मारोगे?"।

अबिलाइनो-"ऐं किसे? अजी तुम सबों को वरन तुम्हारे ऐसे दश और छोकरों को,। यह कहकर वह अपने स्थान से कूद कर खड़ा हो गया और पलमात्र में सबों की

शक्ति तोल ली। सव डाकू अट्टहास शब्द करके हँसने लगे। अविलाइनों ने चिल्ला कर कहा "अब मेरी परीक्षा करो, तुमलोग सामने क्यों नहीं पाते?"।

माटियो-मित्र! मेरी बात मान, पहले मेरे साथ एक पकड़ लड़ ले तो तुझे ज्ञात होजायगा कि कैसों से पाला पड़ा है क्या हम लोगों को दूध पीता बच्चा समझता है या बाबू भैया मान लिया है?॥

अबिलाइनो यह सुन कर हँस पड़ा, जिससे माटियो खिसियाकर क्रोधके मारे आपे से बाहर हो गया। उसके सहकारियों ने कोलाहल करना और ताली बजाना प्रारम्भ किया।

अविलाइनो बोला "ले पाओ एक पकड़ हो जाय, मेरा चित्त भी इस समय ठीक है, ले आप आप को सँभल कर बड़े हो जाओ'। यह कह कर उसने अपने बलको तौल कर बात की बात में माटियो के से वीरपुरुष को बच्चे के समान शिरके बल उठाकर दे मारा, ष्ट्रजा को दाहिनी ओर और पीट्रैनो को बाई ओर ढकेल दिया, टामेसो को पैर ऊपर शिर नीचे कर के दूर परिसर में फेंक दिया और बलुज्ज़ो को बेदम करके पास की तिपाइयों पर लिटा दिया। पांच पल के उपरांत पांचो डाकुओं की मूर्छा दूर हुई और चित्त ठिकाने हुआ, अबिलाइनो ने आनन्द में मग्न होकर एक भीमनाद किया और सिन्थिया इस शक्ति को अवलोकन कर टकटकी बांधे खड़ी कांपने लगी। निदान माटियो अपना शरीर झाड़ता हुआ उठा और कहने लगा “ईश्वर की शपथ है कि यह अद्भुत व्यक्ति हम लोगों का गुरु है, सिन्थिया! देख! सबसे अच्छा आयतन जो है उसमें इसे ठहरायो”। टामेसो अपनी उतरी हुई कलाई बैठाता और कहता जाता था "निस्सन्देह यह व्यक्ति पौरुष में प्रेतों और राक्षसों का समकक्ष है" फिर
किसो के जी में इतनी अभिलाषा न रही कि दूसरी बार उस की शक्ति का परीक्षण करे। निशा अधिक व्यतीत हो गई थी यहां तक की ऊषा काल की स्वेतता समुद्र से स्पष्टतया दृष्टि गत होती थी। अतएव डाकू अलग २ होकर अपनी अपनी कोठरियों में जा सोये।

  1. अगले समय में यूरप में बड़े २ और कठिन अपराधों का दंड फांसी के सिवाय यह दिवा जात था कि अपराधी से किसी नियत समय तक पोतों पर कर्णधार (खलासी) ला काम लिया जाना था।
  2. ईसाइयों में यह रीति थी कि यदि किसी को कोई मनुष्य पकड़ना चाहता हो और वह गिर्जा में जाकर शरण ले तो वहां उसको कोई पकड़ने के लिये नहीं जाता था और समझता था कि वह ईश्वर की शरण में है॥