वेनिस का बाँका/चौथा परिच्छेद

वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १६ से – २१ तक

 

चौथा परिच्छेद।

बिलाइनो को-जिसे उसकी शक्ति के बिचार से अपने समय का बायुजात अथवा भीम कहना चाहिये-डाकुओं के साथ रहते हुए बहुत दिवस नहीं व्यतीत हुये थे, कि वह सबों की दृष्टि में समा गया, प्रत्येक उससे परम स्नेह करता था और सब उसका सम्मान करते थे क्योंकि उसमें डाकूपन की योग्यता कूट कूट कर भरी थी। पहले तो उसके शरीर में बल ऐसा था कि दर्शक चकरा जाते थे, दूसरे तीब्र इतना था कि अवसर और समय की बात तत्काल सोच कर निकालता थो, तीसरे भय की दशा में कभी घबराता अथवा साहसको हाथ से न जाने देता था। इन सब बातों से सिद्ध होता था कि वह प्रकृति ही से डाकूगरी और बांकपन के गँवका बनाया गया है । सिन्थिया भी अब उससे स्नेह कर चली थी, परन्तु अविलाइनो की कुरूपता उसकी दृष्टि में कण्टक समान खटकती थी॥

अविलाइनो को अति शीघ्र विश्वास होगया कि माटियो वास्तव में इस साम्राज्य का स्वामी है। इस मनुष्य के डाकूपन की सीमा असीम हेद हो गयी थी, भय तो नाम को छू
नहीं गया था, चालाकी काइयाँपन और कठोरता में वह अद्वितीय था। उसके साथी जो कुछ सम्पत्ति हरणकर लाते उस के हाथ में देते थे, वह प्रत्येक पुरुष का भाग पृथक् कर देता और आप भी उन्हीं के बराबर ले लेता था। जो लोग उसके काल समान कठोर करों से निहत होकर विविधाकांक्षा पाशबद्ध इस संसार से उठ गये थे उनकी तालिका इतनी बड़ी थी कि गिनाना दुस्तर था। बहुत से नाम उसकी स्मरण शक्ति ने विस्मरण कर दिये थे, परन्तु बेकार होने के समय उसको अपने डाकूपन के कतिपय उपाख्यानों के वर्णन करने में-जो अब तक याद थे-अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त होती थी, जिसका अभिप्राय यह था कि उसे सुनकर उसके साथी भी वैसा ही करें। उसके शस्त्र पृथक रक्खे रहते थे और उनसे एक कोठरी ठसाठस भरी हुई थी। सहस्रों प्रकार के मुठियावाले और विना मुठिया के कटार दो तीन और चार धारको बन्दूकें जो वायु संसर्ग से छूटती थीं, पिस्तौल, करवाल, यमधार, प्रभृति प्रत्येक प्रकार के विषाक्त शस्त्र, तथा सब प्रकार के विष, भांति भांति के बेष परिवर्तन के परिच्छद, जिनसे मनुष्य जिस प्रकार का रूप चाहे बन ले, वहां मौजूद थे।

एक दिन उसने अविलाइनो को उस कोठरी में बुलाकर कहा " सुनो मित्र तुम्हारे ढंग से ज्ञात होता है कि तुम वीर निकलोगे अतएव उचित है कि अपनी रोटी आप कमा खाओ और हमलोगों का भरोसा छोड़ दो। देखो यह कटार उत्तमोत्तम फौलाद का है जिसके प्रत्येक इञ्च का मूल्य तुमको प्राप्त हो सकता है। यदि एक इञ्च किसी के हृदय में भोंक दो तो एक स्वर्णमुद्रा, दो इञ्च के लिये दश स्वर्णमुद्रा, तीन इश्च के लिये विंशति स्वर्णमुद्रा, और सम्पूर्ण कटार के लिये अभिलषित पारतोषिक प्राप्त होगा। दूसरे इस कटारको देखो यह स्फटिक

द्वारा निर्मित है! जिस मनुष्य के शरीर में यह प्रविष्ट होगा उसकी मृत्यु निश्चित है। घायल करने के साथ ही चाहिये कि कटार उसके भीतर तोड़ दिया जाय, तत्काल घाव भर जावेगा और कटार का खण्ड प्रलय पर्यन्त बाहर न निकल सकेगा। यह तीसरा कटार बड़ी युक्तिसे निर्माण किया गया है क्योंकि इसके भीतर एक छिद्र में हलाहल विष भरा है। ज्योंही इससे शरीर क्षत विक्षत हो तत्काल इस तिकठी को दबाये, विष घाव के मार्ग से सम्पूर्ण शरीर में फैल जायगा और मनुष्य का जीवन समाप्त कर देगा । इन तीनों कटारों को लो और स्मरण रक्खो कि मैंने तुमको वह पूंजी अथवा मूलधन दिया है जिसके सहारे समृद्धिशाली हो जाओगे।

अबिलाइनो ने उनको ले लिया, परन्तु उसने किसी निरापराधी का प्राण आज तक धोखे से नहीं लिया था, इस लिए उसका हाथ कांपने लगा।

अबिलाइनो-इन शस्त्रों के बल से तो तुमने लक्षों मुद्रायें हरण कर अपना घर भर दिया होगा।

यह सुनते ही माटियो ने क्रोधित होकर नाक भौं चढ़ाई और रुखाई से कहा 'अरे दुष्टात्मा हमलोग जानते ही नहीं कि अपहरण करना किसे कहते हैं। ऐं क्या तू हमलोगों को साधारण डाकुओं, बोरों, गिरहकटों, और हीन श्रेणी के दुष्टात्माओं के समान समझता है?

अविलाइनो-अच्छा तो ज्ञात हुआ कि कदाचित् तुम्हारी यह चाह है, कि मैं तुमको इनसे भी नीचतर समझू, क्योंकि सच पूछो तो उस प्रकार के लोग तुमसे लक्षगुण उत्तमतर हैं,इस कारण से कि वे लोग तो केवल मनुष्यों की थैली का रिक्त कर देते हैं जिसका फिर मरजाना सम्भव है, परन्तु जो वस्तु हमलोग दूसरों से ले लेते हैं वह एक अनुपम रत्न है

जो मनुष्य को एक ही बार प्राप्त होता है। और जब एकबार उसके अधिकार से निकल गया तो फिर प्रलय पर्यन्त हस्तगत नहीं हो सकता। अतएव तुम्हीं बतलाओ कि हमलोग उनसे निकृष्टतर हैं अथवा नहीं।

माटियो-ऐसा ज्ञात होता है कि आप हम लोगों को सदुपदेश देने के लिये यहां आये हैं।

अबिलाइनो-अजी मेरा तो एक ही प्रश्न है अर्थात् तुम्हारी दृष्टि में धर्मराज के सामने कौन निर्दोष निश्चित हो सकता है तस्कर अथवा प्राणहारक।

इस पर माटियोने एक बार अति उच्चस्वर से अट्टहास किया।

अविलाइनो-इससे यह मत समझना कि मुझ में साहस अथवा पौरुष नहीं, कहो तो वेनिस के सम्पूर्ण राजकर्मचारियों और अधिकारियों को ठिकाने लगा दूं, परन्तु-"।

माटियो-मूर्ख! सुन! डाकुओं को चाहिये कि भलाई और बुराई की कथाओं को जिनको वाल्या- वस्था में धात्री के मुख से सुना था, जी से भुला दे। भला,-भलाई क्या वस्तु है? और बुराई किसे कहते हैं? यहीं न कि रीति, प्रणाली, परिपाटी,नियम और शिक्षाने इनको ऐसा समझ रखा है, नहीं तो जिस वस्तु को मनुष्य किसी समय उत्तम समझता है जहाँ दूसरी धुन समाई उसी को निकृष्ट और तुच्छ अनुमान करने लगता है। यदि वर्तमान नृपति की ओर से वेनिस की राजकीय घटनाओं पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता के साथ सम्मति देने का निषेध न होता तो इतनी हानि न होती। यदि अब शासनप्रणाली परिवर्तित होकर यह आज्ञा हो जाय, कि जो मनुष्य चाहे अपनी सम्मति प्रकट रीति से दे, तो जिस बात को आज लोग अपराध विचारते हैं, कल्ह उसको एक सत्कर्म समझने लगें। बस

परमेश्वर के लिये भविष्यत् में ऐसे संशय हमारे सामने न उपस्थित करना। हमलोग भी महाराज और उनके मंत्रियों की भांति मनुष्य हैं अतएव हम को भी बुराई भलाई के विषय में नियम और नीति निर्माण करने का वैसाही अधिकार प्राप्त है जैसा कि उनको है और हम भी यह निर्धारण कर सकते हैं कि अमुक कर्म सत् है और अमुक असत्।

अविलाहनो यह सुन कर हँस पड़ा इस पर माटियो और अधिक उत्तेजना के साथ कहने लगा।

कदाचित् तुम हमसे यह कहोगे कि हमारी वृत्ति निकृष्ट है, अब बतलाओ कि महत्त्व क्या वस्तु है? केवल एक शब्द, एक वाक्य, एक अनुमानित विषय, और है क्या? यदि जी चाहे तो किसी राजपथ पर जहाँ प्रत्येक प्रकार के लोग आते जाते हों चल कर पूछो कि महत्व किस बातसे प्राप्त होता है? महाजन कहेगा बस धनवान होना योग्य होना है और वही बड़ा सम्मान योग्य है जिस के पास अधिक स्वर्णमुद्रायें हैं। विषयी कहेगा अजी यह मूर्ख व्यर्थ प्रलाप करता है महत्व इसमें है कि प्रत्येक युवती प्यार करे और कोई कैसी ही पति-परायणा क्यों न हो हमलोगों के हस्तगत होजाय। सेनप कहेगा, 'दोनों झूठे हैं। सच पूछिये तो देश जीतने शत्रु को पराभव देने और बसे हुये नगरों को उजाड़ने सेही महत्त्व प्राप्त होता है। पढ़े लिखे लोग बहुत से ग्रन्थ ही लिखने अथवा पठन करने में बड़ा महत्व समझते हैं-भाजनकार इसी में भूला हुआ है कि मैंने इतने भाजन बनाये और उनको सुसँस्कृत किया, बस अब मेरे समान संसार में दूसरा मनुष्य नहीं। संत अथवा महात्मा लोग अपने पूजापाठ और ईश्वरार्चन के घमंड में चूर हैं। बारबधू गण इसी पर मुग्ध हैं कि मेरे बहुत से ग्राहक हैं। और भूपति के जी में यही समाई है कि मेरे

अधिकार में इतने देश हैं। निदान जिसे देखो मित्र! वह एकन एक निराली बात में अपना मान समझता है। अतएप हमलोग भी अपनी बृत्ति में पूरी योग्यता लाभ करना और ताक कर ठोक कलेजे में कटार भोंक देना क्यों न महत्व की बात समझे।

अविलाइनो-'जीवन की शपथ माटियो इस समय मुझे अत्यन्त शोक हुआ कि तुम डाकू का काम करते हो क्यों तुमतो किसी पाठशाला में न्याय के उच्च अध्यापक नियत किये जाने के योग्य थे।

माटियो-वास्तव में तुम ऐसा विचार करते हो तो लो मैं अब अपना वृत्तान्त तुम से वर्णन करता हूँ। मेरे पितालका में पादरी थे और मेरी माता एक अत्यन्त पतिव्रता और आचारवती स्त्री थी। उन लोगों ने मुझे धर्म विषयक शिक्षा-दी और मेरे पिताने चाहा कि वह मुझे किसी माननीय धार्मिक पद पर नियुक्त करा दें। परन्तु मुझे तत्काल ज्ञात हो गया कि मेरी प्रकृति दुष्टता और उत्पात के गाँवकी है अतएव मैंने अपने हृदय का अनुसरण किया। पर मैं सोचता हूँ कि मेरा पढ़ना लिखना निरर्थक नहीं हुआ क्योंकि उन्हीं के कारण अब मुझको वह योग्यता प्राप्त है कि अनुमानित भय की बातों से मैं कदापि भयभीत नहीं होता। आशा है कि अब तुम भी मेरी ही प्रणाली को ग्रहण करोगे लो, अब तुम्हारा परित्राता जगत् रक्षक है।