"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९२": अवतरणों में अंतर
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बनदेवी--प्यारे ! चलो हम लोग इस कुंज की आड़ में से इन दोनों के पवित्र प्रेम-पुरान को सुनकर अपना जीवन चरितार्थ करै। |
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