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राणा प्रताप प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह करने वाली पुस्तक कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।


"प्रताप उदयसिंह का बेटा और शेरदिल दादा सांगा का पोता था। राणा सांगा और बाबर के संग्राम इतिहास के पृष्ठो पर अंकित हैं, यद्यपि राणा की पराजय हुई, पर स्वदेश की रक्षा में अपना रक्त बहाकर उसने सदा के लिए अपना नाम उज्ज्वल कर लिया। साँगा का बेटा उदयसिंह बाप के वीरोचित गुणों का उत्तराधिकारी न था। कुछ दिनों तक तो वह चित्तौड़ को मुगलो के द्वारा पदाक्रांत होने से बचाता रहा, पर ज्यों ही अकबर के तेवर बदले देखे, शहर जगमल को सिपुर्द करके अरौली की पहाड़ियों में जा छिपा, और वहाँ एक नये नगर की नींव डाली जो आज तक उसके काल से उदयपुर मशहूर हैं। जगमल ने जिस वीरता से शत्रु का सामना किया, चित्तौड़ के सब वीर जिस तरह सिर हथेली पर रखकर दुश्मन को हटाने के लिए तैयार हुए, चित्तौड़ की सुकुमार ललनाओ ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जिस दृढ़ता से अग्निकुण्ड में कूदकर जल मरने को श्रेयस्कर समझा—यह बातें आज सबकी जबान पर हैं..."(पूरा पढ़ें)