विकिस्रोत:आज का पाठ/३ सितम्बर
मजदूरी और प्रेम पूर्णसिंह द्वारा रचित निबंध है, जो इलाहाबाद के कौशाम्बी-प्रकाशन द्वारा १९५८ ई. में प्रकाशित सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध में संकलित है।
"हल चलाने और भेड़ चरानेवाले प्रायः स्वभाव से ही साधु होते हैं। हल चलानेवाले अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवनशाला है। उनके हवनकुंड की ज्वाला की किरणें चावल के लंबे और सुफेद दानों के रूप में निकलती हैं। हल चलाने वाले का जीवनगेहूँ के लाल लाल दानें इस अग्नि जीवन की चिनगारियों की डलियाँ सी हैं। मैं जब कभी अनार के फूल और फल देखता हूँ तब मुझे बाग के माली का रुधिर याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिरकर उगे हैं, और हवा तथा प्रकाश की सहायता से मीठे फलों के रूप में नजर आ रहे हैं। किसान मुझे अन्न में, फूल में, फल में, आहुति हुआ सा दिखाई पड़ता है।..."(पूरा पढ़ें)