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हिन्दू-वर्णाश्रम-धर्म लाला लाजपत राय का द्वारा रचित दुखी भारत का एक अंश है जिसका प्रकाशन सन् १९२८ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाय तो वर्तमान वर्णाश्रम-धर्म मध्य-कालीन युग का अवशिष्टांश-मात्र प्रतीत होगा। प्राचीन भारत में वर्णाश्रम-धर्म कदापि इतना कठोर और संकुचित नहीं था। बौद्धकाल और उसके पश्चात् के समय में जातियों और उपजातियों की बहुत वृद्धि हुई और उनके नियम क्रमशः और भी कठोर होते गये। आरम्भ में केवल चार वर्ण थे। उसके पश्चात् उद्योग-धन्धों के अनुसार अनेक जातियों का निर्माण हुआ। ये जातियाँ मध्यकालीन इँगलेंड के उन व्यापार-संघों से मिलती जुलती थीं जिनका उद्देश परस्पर एक दूसरे की सहायता और रक्षा करना होता था और जिन्हें ट्रेड गिल्ड्स कहते थे।..."(पूरा पढ़ें)